Heer... - 11 in Hindi Love Stories by रितेश एम. भटनागर... शब्दकार books and stories PDF | हीर... - 11

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हीर... - 11

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये अंकिता ने कहा- उस होटल के रेस्टोरेंट के अंदर जाने के बाद चाय पीते हुये पहले तो राजीव वैसी ही नॉर्मल बातें करता रहा जैसे हमेशा करता था लेकिन जब हम ये कहते हुये अपनी जगह से उठे कि "चलो राजीव हम तुम्हें भुवनेश्वर घुमाते हैं!!" तब उसने हमारा हाथ पकड़कर हमें वापस चेयर पर बैठा दिया और बहुत प्यार से किसी बच्चे की तरह उसने कहा- यार बाहर जाकर क्या करेंगे और फिर भुवनेश्वर आना जाना तो अब लगा ही रहेगा.. फिर कभी घूम लेंगे और यार हम इतने दिनों बाद मिले हैं तो मैं तुम्हारे साथ अकेले में टाइम स्पेंड करना चाहता हूं!! 

हमने कुछ सोचते हुये कहा- अम्म्.. चलो ठीक है, यहां पास में ही एक गार्डन है चूंकि दोपहर का समय है तो वहां जादा भीड़ भी नहीं होगी, तो हम वहां चलकर बैठते हैं!! 

हमारी ये बात सुनकर राजीव ने कहा- गार्डन चलकर क्यों बैठना है जब हम यहां होटल में मेरे रूम में बैठ सकते हैं तो!! इससे जादा हम दोनों कहां अकेले होंगे पागल... 

राजीव के फोर्स करने के बाद भी जब हमने उसके साथ रूम में जाने से मना कर दिया तो वो बच्चों की तरह पीछे पड़कर जिद करते हुये बोला- चलो ना प्लीज, दिल्ली में भी तो हम कितना टाइम अकेले बिताते हैं और फिर मैं यहां अपने प्यार के पास ही तो आया हूं.. मेरा भुवनेश्वर तो तुम ही हो, तुमसे मिलूं, तुम्हारी गोद में सिर रखकर लेटूं और तुम अपने प्यारे प्यारे छोटे छोटे से हाथों से मेरे बाल सहलाओ बस इतनी सी ही तो ख्वाहिश है मेरी और तुम उसके लिये भी मना कर रही हो.. छी नॉटी गर्ल!! 

राजीव ने बच्चों की तरह जो ये बात मुंह बनाते हुये बोली उसे देखकर हमें हंसी आ गयी और उसकी इन मीठी मीठी बातों में फंसकर हम उसके साथ रूम में चले गये... 
    चूंकि हम दोनों एक रिलेशनशिप में थे इसलिये राजीव का हमें टच करना कोई बड़ी बात नहीं थी इसलिये रूम में जाने के बाद जब उसने हमें फ्रेंडली जेस्चर में वैसे ही टच किया जैसे अक्सर करता था तो हमें इसमें कुछ भी अजीब नहीं लगा लेकिन..... 

अपनी बात कहते कहते अंकिता चुप हो गयी और नीचे की तरफ देखने लगी, उसे ऐसा करते देख अजीत को कुछ ठीक नहीं लगा इसलिये वो थोड़ा नर्वस सा होते हुये बोला- अम्म्... क्या लेकिन अंकिता? 

अंकिता ने कहा- लेकिन ये कि उस दिन उसने पहली बार अपनी हदें पार करने की जब कोशिश करी तो हमने उसे रोक दिया लेकिन हम राजीव की मीठी मीठी बातों में फंसकर एक गलती कर चुके थे... हम अकेले उसके साथ उसके रूम में आ चुके थे इसलिये हमें अकेला पाकर वो रुकने को तैयार ही नहीं हो रहा था और बार बार हमें फोर्स करते हुये गलत तरीके से छूने की कोशिश किये जा रहा था, हम जानते थे कि राजीव हमसे जादा ताकतवर है और इससे पहले कि वो अपने कंट्रोल से बाहर हो.. हमें कैसे भी करके यहां से निकल जाना चाहिये क्योंकि शादी से पहले हम वो सब नहीं कर सकते थे जो वो करना चाहता था पर राजीव की पकड़ मजबूत होती जा रही थी और हम खुद को उसकी पकड़ से छुटाने की पूरी कोशिश कर रहे थे लेकिन छुटा नहीं पा रहे थे कि तभी रूम का गेट खोलकर उस होटल का एक अटेंडेंट अंदर आ गया... 
   राजीव हमारे साथ गलत करने की बेचैनी और जल्दबाजी में रूम का गेट बंद करना भूल गया था.. 
   उस अटेंडेंट ने अंदर आने के बाद थोड़ा तल्ख लहजे में राजीव से कहा- सर यहां ये सब अलाउ नहीं है... प्लीज मैडम को यहां से भेजिये!! 

उस अटेंडेंट के अचानक से वहां आने के बाद हम राजीव से ये कहते हुये कि "हमने कहा था ना यहां ये सब नहीं चलता, हम बदनाम हो जायेंगे राजीव!!"... वहां से चले गये और फिर राजीव ने भी हमें नहीं रोका क्योंकि उस अटेंडेंट के आ जाने से वो भी थोड़ा सकपका गया था। 

उस दिन घर जाने के बाद भी हमें वो सब याद करके बहुत गंदा गंदा सा फील होता रहा और तब हमें समझ आया कि राजीव दिल्ली में भी बार बार हमसे अपने फ्लैट में चलने के लिये क्यों कहता था लेकिन वहां हम कभी नहीं जाते थे और वो उस तरीके से फोर्स भी नहीं करता था जैसे उस दिन होटल में किया था, उस दिन हमें ऐसा लगा जैसे उस अटेंडेंट ने नहीं बल्कि खुद भगवान ने हमारी इज्जत को बचा लिया था... लेकिन इतना सब होने के बाद भी हमने राजीव को गलत नहीं समझा और ये सोचकर कि वो हमसे प्यार करता है इसलिये शायद उसके कदम बहक गये होंगे.. हमने धीरे धीरे करके उस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया, उस दिन के बाद राजीव करीब तीन दिन भुवनेश्वर में रुका लेकिन फिर उसने भी कभी होटल के रूम में चलने के लिये नहीं कहा और बाकी के दिनों में हम जब भी मिले तब बाहर ही मिले.... 

क्रमशः