Heer... - 10 in Hindi Love Stories by रितेश एम. भटनागर... शब्दकार books and stories PDF | हीर... - 10

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हीर... - 10

चारू को लेकर करी गयी अंकिता की बात को सुनने के बाद अजीत अवाक् होकर थोड़ी देर तक उसका मुंह ताकता रह गया और उसकी वजह ये थी कि उस समय राजीव महज एक स्टूडेंट था और एक स्टूडेंट की मिस्ट्रेस हो सकती है ये बात उसे बहुत अजीब सी लग रही थी लेकिन उसने अंकिता से कुछ कहा नहीं क्योंकि पिछले दो सालों की दोस्ती में वो इतना तो जानता ही था कि अंकिता एक गुस्सैल लड़की है और अगर फिर से वो इरिटेट हो गयी तब वो उसके पास बिल्कुल नहीं रुकेगी और शायद उससे नाराज़ भी हो जाये इसलिये वो चुप था!!

हैरान होकर पूछे गये अजीत के सवाल का जवाब देते हुये अंकिता ने कहा- हां सही कह रहे हो तुम चारू उसकी रखैल ही थी... हुआ कुछ ऐसा था कि हमारे और राजीव की रिलेशनशिप के स्टार्टिंग में तो सब कुछ बहुत अच्छा अच्छा रहा, हमें राजीव का केयरिंग नेचर बहुत अच्छा लगता था लेकिन उसका केयरिंग नेचर.. ओवर केयरिंग होता जा रहा था पर हमें राजीव के ओवर केयरिंग नेचर से भी कोई दिक्कत नहीं थी उल्टा हमें ये सोचकर बहुत अच्छा लगता था कि आज के टाइम में जब प्यार व्यार ये सब जादातर लड़कों के लिये सिर्फ खेल होता है तब राजीव जैसा प्योर हर्टेड इंसान हमें मिला!! हमारी उम्र भी उस वक्त जादा नहीं थी इसलिये हम सच में उसके ओवर केयरिंग बिहेवियर को उसका प्यार ही समझते रहे लेकिन उसके इस बिहेवियर के पीछे बात कुछ और थी...

अजीत ने अंकिता को टोकते हुये कहा-मैं समझा नहीं.. बात कुछ और थी मतलब?

अंकिता ने कहा- मतलब ये कि जैसे जैसे दिन गुज़रने लगे और राजीव को ये एहसास होने लगा कि अब हम पूरी तरह से उसे अपना मान चुके हैं तब उसके बात करने का तरीका बदलने लगा और उसका ओवर केयरिंग बिहेवियर  हमारे लिये पजेसिवनेस में बदलने लगा, वो हमें लेकर इतना पजेसिव हो गया था कि उसकी हर समय बस यही कोशिश रहती थी कि हम सिर्फ उससे ही बात करें क्लास के किसी और लड़के से नहीं, उसने अपने और हमारे आसपास कुछ ऐसा माहौल क्रियेट कर दिया था कि क्लास के लड़के तो क्या लड़कियां भी हमसे दूर रहने लगी थीं लेकिन हमें उस बात से भी कोई दिक्कत नहीं थी क्योंकि उस समय कहीं ना कहीं हम भी राजीव को लेकर थोड़े से पजेसिव होने लगे थे क्योंकि हमें ऐसा लगने लगा था कि अपने घर से इतनी दूर दिल्ली जैसे शहर में राजीव से बेहतर हमारा कोई प्रोटेक्टर नहीं हो सकता लेकिन इस बात में भी हमारा भ्रम एक दिन टूट ही गया...

"वो कैसे?" अजीत ने पूछा...

अंकिता ने कहा- फर्स्ट सेमेस्टर के एग्जाम के बाद तो नहीं लेकिन सेकंड सेमेस्टर के एग्जाम खत्म होने तक चीजें बहुत बदल गयी थीं, राजीव की पजेसिवनेस बढ़ती जा रही थी.. अगर हम दिल्ली में हैं तो वो किसी भी कीमत पर कानपुर जाता ही नहीं था चाहे कोई त्योहार ही क्यों ना हो और इसीलिये सेकंड सेमेस्टर के एग्जाम के बाद जब छुट्टियों में हम भुवनेश्वर आये तो हमें यहां आये हुये मुश्किल से एक हफ्ता ही बीता था कि राजीव भी यहां आ गया...

अजीत ने हैरान होते हुये पूछा- वो यहां भी आया था और रुका कहां था.. तुम्हारे घर पर?

अंकिता ने कहा- अरे नहीं घर पर कैसे रुक सकता है, पापा भी थे उस टाइम..हम उनसे क्या कहते? वो होटल में रुका था... और तभी हमें उसकी पजेसिवनेस के पीछे छुपे उसके गंदे इरादों का एहसास होने लगा था!!

अपनी बात कहते कहते अंकिता चुप हो गयी फिर गहरी सांस छोड़ते हुये उसने कहा- हमें जब राजीव ने फोन पर बताया था कि वो यहां आ रहा है तब हमें बहुत अच्छा लगा और चूंकि हम और मम्मी बिल्कुल फ्रेंड्स जैसे ही रहे हमेशा इसलिये हमने मम्मी को वो बात बता दी थी कि कॉलेज का हमारा एक बहुत अच्छा दोस्त हमसे मिलने के लिये भुवनेश्वर आ रहा है, राजीव यहां आने के बाद जिस होटल में रुका था वहां एक रेस्टोरेंट भी था और राजीव ने हमें उसी रेस्टोरेंट में मिलने के लिये बुलाया था लेकिन शायद जो वो चाहता था वो हमने किया नहीं... वो चाहता था कि हम उससे मिलने के लिये अकेले आयें लेकिन हम मम्मी को साथ लेकर उससे मिलने के लिये चले गये थे और ये बात उसे बिल्कुल अच्छी नहीं लगी थी!!         मम्मी के सामने तो वो कुछ नहीं बोला और बहुत ही अच्छे तरीके से उसने उनके पैर छुये और बहुत अच्छा बिहेव किया, मम्मी भी उसके साथ बात करते हुये उससे वैसे ही घुल मिल गयी थीं जैसे हर कोई घुलमिल जाता था, ये देखकर हमें बहुत अच्छा लगा लेकिन जब हम और मम्मी उससे मिलकर वापस चले गये और वापस जाने के बाद जब हमने उसे फोन किया तब उसने हमसे बहुत रूडली कहा कि "तू अकेले क्यों नहीं आयी.. मैं यहां तेरे साथ टाइम स्पेंड करने के लिये आया हूं या मम्मी के साथ, उनसे बाद में भी मिल सकता था ना मैं!!"       लेकिन हमें उसकी इस बात के पीछे भी हमारे लिये उसका प्यार ही दिखा इसलिये हमने जब उसे प्यार से समझाते हुये कहा कि "हमारे रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिये मम्मी से तो मिलवाना पड़ेगा ना और रही बात अकेले मिलने की तो हम अभी थोड़ी देर में आते हैं तब हम दो तीन घंटे साथ में रहेंगे और हम तुम्हे भुवनेश्वर की अच्छी अच्छी जगह दिखायेंगे!!"... तब उसका गुस्सा शांत हो गया लेकिन जब हम पापा की कार से उसे लेने उसके होटल गये तो वो थोड़ी देर के लिये रेस्टोरेंट में बैठकर चाय वगैरह के लिये जिद करने लगा, हमें इसमें भी कुछ गलत नहीं लगा और हम उसके साथ उसी रेस्टोरेंट में चले गये...        रेस्टोरेंट में जाने के बाद चाय पीते पीते वो हमसे होटल के रूम में जाने की जिद करने लगा, हमारे लाख मना करने के बाद भी वो नहीं माना और....

क्रमशः