Bekhabar Ishq - 3 in Hindi Love Stories by Sahnila Firdosh books and stories PDF | बेखबर इश्क! - भाग 3

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बेखबर इश्क! - भाग 3

कनिषा को यूं ही रोता छोड़ कर,इशांक अपने कमरे में लौट गया,उसके बॉडीगार्ड भी अब तक बाहर चले गए थे,इसलिए इस लंबे चौड़े विरान से लिविंग रूम में सिर्फ कनिषा और इशांक की छोटी बहन भव्या ही बचीं रह गई थी...जो इशांक से पांच साल छोटी और कनिषा की हमउम्र लग रही थी,अब तक इशांक और कनिषा की बातों को सुनने से भव्या को ये बात अच्छे से समझ में आ गया था की...उसकी हो चुकी भाभी ने शादी करने के लिए उसके भाई से पैसे डिमांड किएं हैं,,इसलिए उसका भाई इशांक सभी के साथ इतने गुस्से से पेश आ रहा है।।


पहली मीटिंग में जब भव्या ने कनिषा को देखा था,तब वो उसे एकदम पारफेफ्ट लगी थी,अपने भाई की दुल्हन बनने के लिए,लेकिन इस वक्त उसे अपने फैसले पर अफसोस हो रहा था,,वो कनिषा को अजीब नजरों से घूरने लगी थी,,वहीं कनिषा अब तक रोते हुए नीचे बैठ गई चुकी थी,उसके समीप पहुंच भव्या उसके ठीक सामने बैठ गई और व्यंगता करते हुए बोली...."तुमने अपने ही शादी का सौदा किया है?आखिर किस तरह की लड़की हो तुम?...मुझे लगा था की तुम भाई की नफरत खत्म करोगी,लेकिन तुमने तो उनके अंदर और ज्यादा जहर घोल दिया,आखिर तुम लडकियों को इतने पैसों की कहां जरूरत पड़ जाती है,मैं भी एक लड़की हूं लेकिन मुझे तो कभी इतने सारे पैसों की जरूरत नही पड़ी!" 



इशांक के गरजने के बाद,एक लड़की की आवाज सुन कनीषा ने अपना सिर उठाया,तो...देखा उसके सामने एक बीस बाइस साल की लड़की बैठी थी,उसने शरीर में वेस्टर्न ड्रेस पहना हुआ था,और चेहरे पर घृणा की भावना लिए उसे ही देख रही थी,नजरें मिलने पर उसने एक पल बाद अपना सिर वापस झुंका लिया और दबी सी आवाज में बोली...."इंसान अपने हालातों के आगे मजबूर हो जाता है,और मुझ जैसे हालात तुम्हारी जिंदगी में कभी नहीं आई,इसलिए तुम्हे नही पता की एक आजाद लड़की को पैसों की जरूरत कैसे पड़ जाती है!"


कनिषा के आंसू,उसके शब्द इस वक्त इतनी वेदना और सच्चाई के साथ निकल रहे थे,की...कुछ पलों के लिए भव्या स्तब्ध रह गई,उसने होंठ में कुछ और भी बातें अटकीं हुई थी,लेकिन कनीषा की हालत देखते हुए उसने अपने शब्दों को बाहर ना निकाला और चुप चाप वहां से उठ कर एंट्रेस की ओर चली गई,हालंकि जब वो दरवाजे को खोल बाहर निकलने लगी तब उसने एक बार फिर मुड़ हर कनिषा को देखा और कहने लगी...."वैसे तो मैं तुम्हे ये कभी नही बताना चाहती थी,लेकिन हो सके तो कुछ देर के लिए भाई की नजरों से दूर ही जाना, इस तरह उनका गुस्सा जल्दी शांत होने की सम्भावना रहता है।।"


इतना कह वो वहां से चली गई,उसके जाने से इशांक का इतना बड़ा मेंशन पूरी तरह सन्नाटे में डूब गया,घर की देख भाल करने वाला सर्वेंट "हलील"भी ना जाने कहां चला गया था,जिसके कारण इशांक के साथ अकेले घर में होना, कनीषा के दिल में एक अनकहे खौफ को पैदा करने लगा था,उसके सुबकने की आवाज लिविंग रूम के हर एक कोने में बसने सी लगी थी,लेकिन कुछ पलों के बाद उसकी आवाज शांत होने लगी,और वो वहीं मंडप में लगे गद्दे पर धीरे धीरे करवट कर लेट गई,उसने अपने शरीर की असामान्य रूप से समेट लिया,तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दिए और वो एक बार फिर घबरा कर उठ बैठी।।


थोड़ा संकोचते हुए उसने अपनी पलकें उठाई तो देखा...वहां एक पचपन वर्षीय आदमी व्हीलचेयर पर बैठा हुआ था,उसके व्हिलचेयर के पीछे हलील भी खड़ा था,जो शायद उनके व्हीलचेयर को धक्का दे कर चला रहा था, उस आदमी से कोई जान पहचान ना होने की वजह से कनिषा ने खुद को मंडप बने आर्टफिशियल पिलहर के पीछे छुपा लिया और वहीं से झांकते हुए सब कुछ देखने लगी।।।



इधर उस व्हील चेयर पर बैठे आदमी को लिविंग रूम के बीचों बीच छोड़ कर हलील भागते हुए इशांक के कमरे में गया और कुछ पलों के बाद इशांक के साथ लौटा,अब तक इशांक ने अपने सफेद शरवानी को बदल कर काले रंग का शर्ट और खाकी रंग के पैंट को पहन लिया था,उसके बाल गीले थे,और उसने उन्हे हर दिन की तरह सेट भी नही किया था,पैरों में आम सा स्लीपर्स डाले वो तेजी से सीढ़ियों से नीचे उतरा,उसी पल अचानक ना जाने कैसे...उसकी नजर पिलहर के पीछे छुपी कनिषा के ऊपर पड़ गया,हालांकि उसे देखने के बाद भी इशांक ने उसे अनदेखा कर दिया और लिविंग के बीचों बीच पहुंच कर उस आदमी से बोला....."डैड!....आपका सफर कैसा रहा?


इशांक के सवाल के जवाब में...उसके पिता ने गहरी सांस भरी और इशांक की ओर गुस्से से घूरते हुए बोला..."यहां आते हुए बाहर, मेरी मुलाकात विक्रम और रीमा से हुई थी,और जानते हो विक्रम ने किस तरह के लहजे में बात की मुझसे...अपने ही बेटे की शादी के बारे में जानकारी ना होने पर, गैरों से मुझे आपकी शादी की बात पता चला,इससे ज्यादा शर्म की और क्या बात हो सकती है।।"


"डैड...मैंने कोई प्लानिंग कर के शादी नही की है,ये सब कुछ अचानक हुआ है!"....इशांक ने जवाब दिया।।


"फिर भी मुझे पता होना चाहिए था!"... ईशांक के पिता ने बेरुखी से कहा,जिस पर इशांक उनके सामने घुटने के बल बैठ गया और उनके ठंडे हथेलियों पर हाथ रखते हुए कहने लगा...."डैड!...मुझे इस शादी...


वो इतना ही कह पाया था,की तभी इशांक के डैड ने उसकी बातों का बीच में ही कटाक्ष करते हुए कहा..."भव्या ने बताया की शादी के बदले उस लड़की ने आपसे पैसें लिए है,क्या ये सच है?"


इशांक उनके इस सवाल से थोड़ा शॉक हो गया,कुछ पलों तक वो सोचने लगा की आखिर उसके और कनिषा के बीच हुई डील के बारे में भव्या कैसे जान गई थी,,तब जा कर उसे याद आया की शादी के बाद, जब वो उस पर चिल्ला रहा था,तब भव्या घर में ही थी और तभी उसने सब कुछ सुन लिया होगा,पर वो अपने डैड या किसी को भी इस बारे में पता नही लगने देना चाहता था,इसलिए वो अपना सिर ना में हिलाने ही वाला था की तभी उसके डैड ने एक बार फिर कहा...."आपने अपनी जिंदगी में एक ऐसी लड़की को जगह दे दी...जो पैसों की भूखी है?...ऐसी औरतें दौलत के लिए कुछ भी कर सकती हैं,,किसी दूसरे के घर के साथ साथ,अपने घर को भी तोड़ सकती है,भले ही आज वो आपके मकसद को पूरा करने का जरिए बनी हो,लेकिन याद रखियेगा एक दिन वो ही लड़की आपके दिल को तोड़ कर रख देगी,आप भी उसी हालत से लड़ने लगेंगे...जिन हालातों से मैं लड़ता आया हूं,पिछले बाइस सालों से।।"


"नही डैड...मैं ऐसा मौका किसी को नही दूंगा,इस पूरी दुनिया में मुझे कोई भी नही तोड़ सकता!"....कहते हुए इशांक की आंखे ठंडे सितारे के समान बेजान और विरान सी हो गई,वो पहले ही अपने अनचाहे शादी की वजह से परेशान था,इसलिए उसके पिता ने उसे ज्यादा परेशान नहीं किया और हलील को कमरे में ले चलने का इशारा कर दिया।।

हलील को आगे बढ़ता देख इशांक ने उसे वही रोक दिया और खुद व्हील चेयर को धक्का देते हुए सीढ़ी से लगे कमरे की ओर चला गया,कुछ समय बाद हलील भी वहां से किचन की ओर बढ़ गया,और कनिषा वही पिल्हर से लगी इशांक के डैड की बातों के बारे में सोचने लगी,कल तक की एक स्वाभिमानी लड़की को,आज सब पैसों के लिए बिकने वाली लड़की समझ रहे थे,,जिससे वो शादी के बंधन में बंधी थी उसके साथ साथ उसके परिवार का हर एक सदस्य उससे नफरत करता था...उसे घर तोड़ने वाली लड़की से लेकर ना जाने ओर क्या क्या कह दिया गया था अब तक....ये बात उसे अंदर ही अंदर खाने लगी थी,जिससे उसकी पलकें एक बार फिर से भिंगनी शुरू हो गई...तभी अचानक उसके दिमाग में अपने डैड का ख्याल आया जो टैक्स ना भरने की वजह से कास्टडी में ले लिए गए थें!

अपनी परेशानियों के बीच वो उन्हे तो बिल्कुल भूल ही गई थी,लेकिन जैसे ही उसे ये याद आया,वो बिना इशांक की परवाह किए उस कमरे की ओर दौड़ी जहां इशांक का दिया हुआ ब्लैंक चेक गिरा था...कमरे में पहुंच उसने ब्लैंक चेक उठाए और दौड़ते हुए सीढ़ियों से उतर कर घर के बाहर निकाल गई।।

सड़क पर टैक्सी रोकने के क्रम में,उसने कई सारे लोगों की नजरों को...अपने ऊपर ही घूमता हुआ महसूस किया,तब ही कहीं जा कर उसका ध्यान अपनी बदन की ओर गया,उसके शरीर पर चुन्नू नही था, जिसकी वजह से उसकी गोरी पतली कमर के साथ साथ,उसकी कॉलरबोन भी एक्सपोज हो रही थी....जो शायद सभी के आकर्षण का केंद्र बन गया था,लेकिन वो अंदर जा कर चुन्नी वापस भी नही ला सकती था,क्योंकि उसे इस बात का डर सता रहा था,की...अगर इशांक ने उसे पकड़ लिया,तो उसे बाहर निकलने में काफी मुश्किल हो जाएगी,इसलिए उसने चुप चाप सभी की नजरों को इग्नोर कर दिया और एक ऑटो को रोक कर उसमे बैठ गई,ऑटो वाला भी बार बार कनिषा के जिस्म को देखने के चक्कर में पीछे मुड़ जा रहा था,जिस पर कनिषा का मन खीजने सा लगा और उसने अपनी सैंडल उतार कर उसके सिर पर किसी बंदूक की तरह रख दिया,जिसके बाद वो उसे फटकारते हुए बोली....."सीधे से आगे देख कर ऑटो चलाओ,वरना इसी हिल्स से खोपड़ी में छेद कर दूंगी।।।।"

कनिषा की धमकी सुनते हुए उस ऑटो ड्राइवर ने ठहाका मार कर हंसने लगा और और फिर अपनी हंसी को कम करते हुए बोला..."अरे मैडम!...आप ऐसे बाहर निकलोगी तो लोग देखेंगे ही,,दुनिया ऐसी ही है...इतनी ही फिक्र थी खुद को ढक के क्यों नही निकली??"

"ऑटो रोको"....उसकी बातों से परेशान हो कर कनिषा एकदम से चिल्लाई,हालंकि उसकी मंजिल भी आ गई थी और उसके पास इतने पैसे नहीं थे की वो ऑटो वाले को पैसे देती,इसलिए उसने अपने हिल को उसके सिर के ऊपर उठा लिया,जिससे डर के ड्राइवर ने ऑटो को सड़क के एक किनारे रोक दिया और फिर कनिषा बाहर निकल गई,अपने दूसरे सैंडल को भी हाथ में निकालते हुए,उसके उतरते ही ऑटो ड्राइवर खुद में ही बुदबुदया.....एक तो खुद ऐसे सड़क पर निकल आई है,और हमे दोषी बना रही है,पता नही कहां कहां से आ जाते है,बेशर्म कहीं की!".....

टैक्सी के दूर निकालने के कारण कनिषा ने अपने मुंह में आए अपशब्दों को जैसे घोट लिया और थोड़ी देर बाद वो पीछे मुड़ी तो उसके सामने एक बड़ा सा बंगला था,ये बंगला इशांक के मेंशन से किसी भी तरह से कम नही था,उसके बड़े से लोहे के गेट के समीप दीवाल पर एक नेम बोड लगा हुआ था,जिस पर बड़े और साफ अक्षरों में तीन शब्द लिखे हुए थे..."हंसिका रेड्डी हाउस!"

वो उसका अपना घर था..फिर भी उसके अंदर दाखिल होने से पहले उसके कदम काफी देर तक वहीं जमे से रह गए थे,दो साल पहले जब वो यहां से अपनी सौतेली बहन मानविका की वजह से धक्के मार के निकाल दी गई थी,तब से उसने इस घर में एक बार भी कदम नही रखा था,,जब भी वो उदास होती तो अपने डैड को हॉस्टल में ही मिलने को बुला लिया करती थी,लेकिन आज पिता के प्रति उसके प्यार ने...उसे यहां तक खींच लिया था।।

यहां आने से कनिषा का परेशान मन और अधिक उदास और पुरानी यादों को याद करने की वजह से बैठ गया, सुबह से रोने की वजह से उसकी आंखे सूझ गई थी,और सिंदूर उसके माथे पर फैला हुआ था,जिसे उसने अपने लहंगे से उठा कर साफ करना चाहा,फिर भी वो पूरी तरह साफ नही हुआ और थक कर उसने खुद को ये करने से रोक लिया,गहरी और लंबी सांसे भरते हुए उसने खुद को हिम्मत दिया और दरवाजे को धक्का दे कर खोलने लगी।।

एक दो कोशिश में ही लोहे का गेट खुल गया,और वो बगीचे के बीच बने रास्ते पर दौड़ते हुए घर के एंट्रेस तक पहुंच गई,उसने बिना सोचे दरवाजे पर अपना हाथ पीठना शुरू किया ही था,की तभी अंदर से किसी ने दरवाज़ा खोल दिया,वहां एक चालीस पैतालीस साल की औरत खड़ी थी,जिसके चेहरे पर पति के जेल जाने की एक भी सिकन नजर नही आ रही थी, इन्फैक्ट उसने हाथों में रेड वाइन का गिलास पकड़ा हुआ था, और अंदर से कुछ औरतों के हसने बोलने की आवाज आ रही थी,जिसे सुन कनीषा को ये समझने में एक पल भी ना लगा की अंदर कोई पार्टी चल रही है,अपनी मां द्वारा बसाए इस घर को हंसिका ने पार्टी और जुआ खेलने का अड्डा बना लिया था,जिस पर कनिषा को काफी गुस्सा आया,लेकिन उसने आपने आप को शांत किया और बोली...."मुझे डैड के ऑफिसियल वर्क के सारे पेपर्स चाहिए!"

इधर कनिषा को दरवाजे पर देख हंसिका(सौतेली मां)की आंखे चौड़ी हो गई थी,और वो उसे फिर से यहां से जाने को कहने ही वाली थी की तभी उसकी नजर कनिषा के माथे की सिंदूर और उसके मंगलसूत्र पर पड़ी,जिससे उसने झपटते हुए,उसका हाथ पकड़ लिया और मरोड़ते हुए बोली...."किससे शादी की है तुमने?अब तक मेरी बेटी का हाथ पीला नही हुआ और तू दुल्हन के जोड़े में यहां मटकने आ गई,,किस कमीने ने तुझ जैसी बत्तमिज और चरित्रहीन लड़की से शादी की है??"

हाथ को मरोड़ने से कनीषा दर्द से झटपटा उठी,और उससे आग्रह करते हुए बोली...."मां!हाथ छोड़िए...दर्द हो रहा है!"

"दर्द हो रह है?.... कुतिया की बच्ची,,लेकिन मैंने इसी लिए तो हाथ मोड़ा है,ताकि तुम्हे दर्द में देख सकूं,बता किसके साथ स्वांग रचा के आई है?".... दांत पीसते हुए हंसिका लागतार चिल्लाए जा रही थी,जिसे सुन एक लड़की घर के दरवाजे तक आई,देखने मे वो जवान और खूबसूरत थी,चेहरे पर मेकअप और शरीर मे रेड मिनी ड्रेस उसके खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था।

उसे देखते ही कनिषा ने उससे कहा...."मानविका,मां से कह ना ये मुझे छोड़ दे,और डैड के ऑफिसियल पेपर दे दें,ताकि मैं उनका टैक्स चुका सकूं!"

कनिषा का बात खत्म होते ही मानविका जो अब तक गंभरीता से खड़ी थी,एकाएक हसने लगी और बोली...."तुम चुकाओगी,डैड का टैक्स...आखिर तिरपन लाख लाओगी कहां से,और तुमसे शादी किसने कर ली,कोई तुम्हारी तरह ही बेवकूफ होगा,जिसने तुमसे शादी करने का रिस्क उठाया होगा,खैर...तुम यही रुको मैं अभी डैड के पेपर्स देती हूं,फिर खुद के शरीर को बेच कर उनका टैक्स चुका देना!"....ऐसा कहते हुए वो अजीब तरीके से हंसी और फिर घर के अंदर चली गई,लेकिन हंसिका ने अभी भी उसकी कलाई को मोड़ रखा था और बस बेवजह उसे दबाते जा रही थी।।

पांच मिनट बाद जब मानविका पेपर ले कर आई,तब उसे हाथ में देने के बजाए कनिषा के ऊपर फेंक दिया, जिसके बाद दोनो मां,बेटी ने उसे धक्का दिया और अंदर जा कर दरवाजे की उसके मुंह पर ही बंद कर दिया,उनके ऐसे बरताव से कनिषा को दुख हुआ,लेकिन जैसा की वो अपनी मां और बहन के इस रवैए की उन्नीस सालों से आदि थी,इसलिए उसके आंखो से एक कतरा आंसू ना गिरा और वो नीचे बैठ कर सभी पेपर्स को जमा करने लगी।।

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सभी डॉक्यूमेंट और टैक्स भरने की कारवाही करने में कनिषा को काफी वक्त लग गया,दिन भर वो कड़ी धूप में कभी कमर्शियल टैक्स डिपार्टमेंट तो कभी पुलिस स्टेशन का चक्कर लगती रही,और आखिर में उसने हर एक चीज को सुलझा लिया,जिसके बाद जब वो अपने डैड मिलने गई,तब तक रात के आठ बज चुके थे....और उसे पता चला की...दिन में उसके डैड की हार्ट अटैक आया था,इसलिए उन्हें हॉस्पिटल में ऐडमिट कर दिया गया है।।

वहां से भागते हुए,वो हॉस्पिटल गई तो काउंटर पर उसे पेशेंट ही हालत काफी सीरियस बताई गई,और जल्द से जल्द ऑपरेशन कराने को कहा गया,जिसके बाद उसने काउंटर से ही एक फोन लेकर अपनी मां हंसिका को कॉल लगा दिया,लेकिन उसकी मां ने उसकी बात सुनने के बाद सिवाए हंसने और उसकी हालातों का मजाक बनाने के अलावा कुछ भी ना कहा और कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया।।

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इधर कनिषा के बिना बताए भाग जाने से इशांक पूरे घर में...गुसौल बाघ की तरह घूमता फिर रहा था,वो उसके साथ डील कर के भाग गई थी...जिसकी वजह से इशांक के मन में हजारों विचार गोते खाने लगे थे,,और वो उन सभी विचारो को दबाने के लिए अपने घर में ही बने मयखाने से कुछ उम्दा शराब की बोतल उठा लाया....

लिविंग रूम के बीचों बीच सोफे पर बैठने से पहले वो दरवाजे तक बढ़ा और उसके लॉक को खोल कर,रिमोट कंट्रोल से घर की सारी लाइट्स ऑफ कर दी,जिसके बाद वो उसी काले अंधेरे में सोफे पर बैठ कर एक के बाद एक दो बोतल शराब पी गया।

तभी उसे घर के दरवाजे के खुलने की आहट सुनाई पड़ी,और उसने अपने सिर को उठा लिया...जिसके बाद उसे बहार से आती हल्की रौशनी के

बीच कनिषा का वही जाना पहचाना सा मुरझाया और परेशान चेहरा दिखाई पड़ने लगा।।।