Bhagya Ki Dhara in Hindi Short Stories by Dr Atmin D Limbachiya books and stories PDF | भाग्य की धारा

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भाग्य की धारा

भाग्य की धारा : राजा सम्राट और राजकुमारी चंद्रिका

बहुत समय पहले, महान और समृद्ध राज्य महेन्द्रगढ़ पर राजा सम्राट का शासन था। राजा सम्राट एक न्यायप्रिय और समझदार शासक थे। उनके शासन में राज्य में शांति और समृद्धि फैली हुई थी। राजा की एक सुंदर, बुद्धिमान और करुणामयी बेटी थी, जिसका नाम राजकुमारी चंद्रिका था। चंद्रिका राज्य के सभी लोगों की प्रिय थी, और राजा सम्राट चाहते थे कि उनकी बेटी का विवाह एक अच्छे और योग्य युवक से हो, जो उसके कद्र और उसकी रक्षा कर सके।

राजा सम्राट ने अपने राजगुरु, गुरु देवव्रत, को बुलाया और चंद्रिका की कुंडली दिखाने का आग्रह किया ताकि वे उसके विवाह के लिए शुभ मुहूर्त और सही जीवनसाथी का चयन कर सकें। देवव्रत एक कुशल ज्योतिषी थे, लेकिन उनके मन में लालच और स्वार्थ ने घर कर लिया था। जब देवव्रत ने चंद्रिका की कुंडली देखी, तो उन्होंने पाया कि उसके भविष्य में बहुत सारा सुख और समृद्धि लिखी है। इस पर देवव्रत के मन में लालच आ गया।

देवव्रत ने राजा सम्राट से कहा, "महाराज, आपकी बेटी की कुंडली में एक अद्भुत भविष्य है, लेकिन एक शर्त है। यदि आपने अपनी मर्जी से उसका विवाह करवा दिया, तो उसका अंत निश्चित है। परंतु, यदि आप उसे एक बक्से में बैठाकर नदी की धारा में बहा दें और जो व्यक्ति स्वेच्छा से उसे प्राप्त करेगा, उससे उसका विवाह हो, तो उसका भाग्य अवश्य उदय होगा।"

राजा सम्राट गुरु देवव्रत की बातों में आ गए और सोचने लगे कि उनकी बेटी के सुखद भविष्य के लिए यह करना आवश्यक है। उन्होंने चंद्रिका को बुलाया और सारा मामला समझाया। चंद्रिका अपने पिता की भलाई और राज्य की समृद्धि के लिए तैयार हो गई।

एक विशाल बक्सा तैयार किया गया, जिसमें चंद्रिका को बैठाया गया। बक्से में बहुमूल्य आभूषण और गहने भी रख दिए गए। राजा सम्राट ने भारी मन से बक्से को नदी की धारा में प्रवाहित कर दिया। देवव्रत अपनी योजना में सफल होने की खुशी से उत्साहित हो गए और जल्दी से अपने स्कूल पहुंचे, जहां वे गांव के बच्चों को पढ़ाते थे। उन्होंने बच्चों से कहा, "जाओ, नदी किनारे जाओ। एक बक्सा बहता आ रहा है, उसे लेकर मेरे कमरे में रख देना और दरवाजा बंद कर देना। चाहे मैं कितना भी चिल्लाऊं, दरवाजा मत खोलना।"

उधर, उसी नदी के किनारे, राजकुमार वीरेंद्र अपने सैनिकों के साथ विश्राम कर रहे थे। वीरेंद्र एक साहसी, न्यायप्रिय और दयालु युवक थे। उन्होंने दूर से एक बक्से को नदी में बहते देखा और तुरंत आदेश दिया कि उसे निकाल कर लाया जाए। सैनिकों ने बक्से को निकालकर राजकुमार के सामने रखा। जब बक्सा खोला गया, तो अंदर चंद्रिका को देखकर वीरेंद्र चकित रह गए। चंद्रिका ने अपनी पूरी कहानी वीरेंद्र को सुनाई। वीरेंद्र ने चंद्रिका की दुखभरी कहानी सुनकर तुरंत निर्णय लिया कि वे चंद्रिका से विवाह करेंगे और उसे हरसंभव सुरक्षा और सम्मान देंगे।

राजकुमार वीरेंद्र और राजकुमारी चंद्रिका का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ। वीरेंद्र ने बक्से में जिंदा भालू को रखकर उसे फिर से नदी में बहा दिया। उधर, गांव के बच्चे बक्से को उठाकर गुरु देवव्रत के कमरे में ले आए और बाहर से दरवाजा बंद कर दिया। देवव्रत अपने कमरे में अकेले थे और उनके मन में जीत की खुशी उमड़ रही थी। जब उन्होंने बक्सा खोला, तो अंदर चंद्रिका और सोना-गहने नहीं थे, बल्कि एक भयानक भालू था।

भालू ने देवव्रत पर हमला कर दिया और उनकी जान ले ली। इस घटना से साफ हो गया कि जो होना है, वह होकर रहेगा। अपने कर्मों का फल सबको भुगतना पड़ता है। 

राजा सम्राट को जब यह सब पता चला, तो वे पहले दुखी हुए लेकिन बाद में यह जानकर संतुष्ट हुए कि उनकी बेटी चंद्रिका एक योग्य और साहसी राजकुमार वीरेंद्र के साथ सुरक्षित है। राजकुमारी चंद्रिका और राजकुमार वीरेंद्र ने मिलकर अपने राज्य को न्याय, प्रेम और करुणा से भरा। वे अपनी प्रजा के बीच बेहद लोकप्रिय हुए और उनका शासनकाल राज्य के इतिहास में स्वर्णिम युग के रूप में जाना गया।

यह कहानी एक महत्वपूर्ण सीख देती है कि हमारे कर्म हमारे भविष्य का निर्माण करते हैं। यदि हम सही मार्ग पर चलें और अच्छे कर्म करें, तो हमारा भविष्य भी उज्जवल होगा। और यह भी कि लालच और स्वार्थ का अंत हमेशा दुखद ही होता है। इसलिए, सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलना ही हमारे जीवन का सही उद्देश्य होना चाहिए।