अब सादी में सिर्फ एक ही रात बाकी थी।लेकिन पता नही क्यू जानकी खुश थी या फ़िर उसकी मन में अजीब सी गभराहट हो रही थी। लेकिन वो बात को इग्नोर करने लगी।धीरे धीरे पूरा दिन गुजर गया। रात का संध्या का समय हो गया फिर वही अंधेरी रात, पूरे गांव में अंधकार, एक सिर्फ पेड़ के पते की आवाज आ रही थी, जिसे सुनते ही मन में डर सा लगने लगता है।
संध्या का समय होते ही लोगो में पता नही डर सा दिखने लगा। सब अपने अपने घर जल्दी से जाने लगे। और जानकी का परिवार भी खाना खाया और सब सोने की तयारी में लग गए। कयुकी कल बारात आने वाली थी।
वो डरावनी रात, घरा जंगल। बीचों बीच गांव में जानकी का घर और वो एक सुनसान सी दिखने वाली हवेली जो कही सालो से बंध पड़ी थी।
फिर कल जेसी रात आई। फिर जानकी डरने लगी। जानकी को आज कुछ ज्यादा ही डर लग रहा था। उसे बिलकुल नींद नही आ रही थी।वो सोते सोते भी जग रही थी। थोड़ी देर बाद वह सोने की कोशिश कर रही थी।वैसे ही उसको नींद नही आ रही थी और अचानक से उसकी नजर खिड़की पर पड़ी।
जानकी की नजर खिड़की पर पड़ते ही उसे वहा गौतम दिखाई दिया। उसने तुरंत ही आंखे बंध कर दी उसको लगा वो सपना ही देख रही थी।फिर उसने फिर से आंख खोली तोह देखा तो वहा कुछ भी नही था। वो अब बहुत डर गई थी। वो अब खिड़की को बंध करने के लिए जाने लगी। खिड़की बंध करने गई तब उसने गौतम की आवाज सुनी।
गौतम की आवाज में : जानकी...... जानकी.....जानकी..... कहा हो तुम?
जानकी की आंखों में डर साफ नजर आ रहा था।
गौतम की आवाज में: जानकी में तुमसे बात करना चाहता हु..... प्लीज बाहर आओ.....
ऐसा सुनते ही जानकी को लगा कि गौतम मुझसे मिलने आए है।वो मुस्कुराने लगी मानो मन में और सोचने लगी एक दिन भी मेरे बगैर नही रह पाते। वो इधर उधर देखने लगी और वो देख रही थी की कोई जग नही रहा है। उसने देखा सब सो रहे है। क्युकी उसको सब ने बाहर जाने से मना किया था लेकिन वो गौतम को मिलना चाहती थी।
वो धीरे से दरवाजा खोल के बाहर निकल गई। और उसने धीरे से दरवाजा बंध कर दिया। वो खुस होते होते गौतम को देखने लगी।
जानकी: गौतम ...... कहा हो तुम?
वो गौतम को बुलाते बुलाते आगे जाने लगी।लेकिन गौतम की आवाज आना बंध हो गया। फिर वो घर की तरफ जाने लगी सोचने लगी की ये मेरे मन का वहम तो नही था न?
वो घर की ओर जैसे ही बढ़ने लगी तो फिर से एक आवाज आई।
जानकी में यहा हु.....
जानकी इधर उधर देखने लगी
कहा हो तुम गौतम?
गौतम की आवाज में इधर हवेली के पास हु जानकी। इधर आओ। मे कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हु।जानकी डरते हुई आवाज में अरे तुम वहा क्या कर रहे हो उस हवेली से इधर आ जाओ।
गौतम बोला नही हमे यहां कोई नहीं देख सकता। तुम इधर आओ जानकी मुझसे रहा नहीं जा रहा। जल्दी आओ जानकी।
जानकी ने अब तक सिर्फ आवाज ही सुनी थी। उसने गौतम को देखा भी नही था। जानकी धीरे धीरे उस हवेली के पास गई।
हवेली के पास जाते ही हवेली का बड़ा सा दरवाजा अपने आप खुल गया। ये देख के जानकी बहुत डरने लगी। ओर गौतम को आवाज देने लगी...... गौतम तुम कहा हो मुझे बहुत ही डर लग रहा है।तुम सामने आओ गौतम।
गौतम की आवाज में: अरे डरो मत मैं अंदर ही हु जानकी इधर आ जाओ । डरो मत मे हु न तुम्हारे साथ ।
वो घनी रात, पूरी हवेली में अंधेरा, रूह को भी डर लगने लगे ऐसा दृश्य। जानकी की पेरो की आवाज आंखों मे दर, दिल में डर, जानकी डरती हुए आवाज में बोली । गौतम कहा हो तुम।
फिर अचानक से जानकी का पैर फिसल गया और वो गिर गई। उसके हाथ में चोट लगी खून बहने लगा उसने देखा तो उसे बहुत सारा खून निकल रहा था। वो डर गई और खड़ी हो गई। उसने मुड़ के देखा तोह उसकी चोट का निकला खून गायब हो गया और चोट भी गायब हो गई।
यह सब देख कर वो ज्यादा डर गई। ओर उसकी आंखो से आसू निकलने ही वाले थे तब अचानक से कही सारे चमकादड़ निकल पड़े। ओर इसके आस पास मंडराने लगे।
अब वो बिल्कुल भी नही जानती थी उसके साथ क्या होने वाला था। लेकिन यह सब देख कर वो वापिस मुड़ी और दरवाजे की तरफ जाने लगी।.............?
Bhavika Rathod ❤️