प्यासी बदली in Hindi Love Stories by Sharovan books and stories PDF | प्यासी बदली

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प्यासी बदली

प्यासी बदली

कहानी / शरोवन

***

       मेघन का संसार उजड़ गया. सारा आसमान, दुनियां-जहान उसे खाली, सूना-सूना दिखाई देने लगा. कभी उसने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि, उसकी पहली-पहली मुहब्बत की सारी आस्थाओं, हसरतों और बहुत सेज कर रखे हुए अरमानों के सपनों पर अचानक से किसी ज्वालामुखी की आग बरस पड़ेगी. एक छोटी सी 'बदली' उसके आसमान में प्यार की चंदेक बूँदें बरसा कर यूँ लुप्त भी हो जायेगी? वह सोचने लगा कि, इस संसार में, संसार की इन हवाओं में, प्यार का खेल खेलने वाली सब हसीन लड़कियां क्या ऐसी ही, बे-मुरब्बत और निष्ठुर ही होती हैं?

***

 

       पूर्णमासी का चाँद था. पूरा, बड़ा पीतल के थाल जैसा. सारे आकाश में चांदनी का झाग किसी कढ़ाई में उबलते हुए दूध के समान उफनता जा रहा था. कुछेक बादलों के टुकड़े जब कभी भी चन्द्रमा के सामने से गुज़रते थे तो कुछेक पलों के लिए सारे वातावरण पर एक धुंध सी छा जाती थी. रात्रि के लगभग ग्यारह बज रहे होंगे. शहर का हरेक व्यक्ति, वनस्पति के सभी पेड़-पौधे शान्ति-से जैसे ऊंघ रहे थे. कायनात का सारा आलम नींद में सोया पड़ा था. हर तरफ खामोशी थी, चुप्पी थी. मगर अपने ही ख्यालों और सोच-विचारों में उलझे हुए मेघन के मस्तिष्क में तूफ़ान गुज़र रहे थे. वह अभी भी अपने घर से बहुत दूर, शहर से बाहर निकलती हुई सड़क के किनारे लगे हुए एक मील के पत्थर पर बैठा हुआ था. बहुत चुप, बेहद खामोश और उदास. जिस मील के पत्थर पर वह बैठा हुआ था, उस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था - 'सागर नगर- 185 किलो मीटर.' अचानक ही कोई लारी या ट्रक उसके सामने से गुज़रता तो पल भर के लिए इस खामोश चांदनी से भरी रात का सन्नाटा तो टूटता ही था, साथ ही मेघन के मुंह, आँखों और सारे बदन पर धूल भी झोंक जाता था. मेघन जानता था कि, इस मील के पत्थर से सागर नगर इसकदर दूर था कि, वहां तक बगैर रेल या मोटर वाहन के सहज ही कोई भी नहीं जा सकता है. फिर अब वहां जाने से लाभ भी क्या? जाने वाली तो चली गई. अब उसके बारे में सिवाय सोचने के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं रह गया है. 

       अचानक चांदनी से भरी इस रात के आकाश में एक बदली ने आकर चन्द्रमा के चमकते हुए मुख पर अपना लिहाफ फैलाया तो क्षण भर के लिए सारे आलम पर हल्के अन्धकार की चादर बिछ गई. लगता था कि जैसे कढ़ाई में उफनता हुआ दूध पूरी तरह से उफन कर धरती की गोद में समा चुका है. मेघन ने देखा तो उसे सहसा ही याद आ गया कि, बदली भी तो अक्सर आकर अचानक से उसके मुख पर अपना दुपट्टा डालकर उसे छुपा लेती थी. कहा करती थी कि,

'मैं नहीं चाहती हूँ कि, मेरे अतिरिक्त तुमको कोई अन्य भी देखे.'

       सोचते हूये मेघन की आँखें स्वत: ही भर आईं. इस प्रकार कि, क्षण भर में ही उसकी आँखों से आंसुओं की बूँदें उसके गालों से सरकती हुई कुछेक उसकी बढ़ी हुई दाढ़ी के बालों में उलझ गईं तो बाक़ी बची हुई नीचे टपक कर सूखी धूल के गर्भ में समा गईं. कितना अधिक प्यार करता है वह बदली को? इतना अधिक कि वह शब्दों में इसका बखान भी नहीं कर सकता है. इसकदर चाहता है वह उसे कि उसने तो कभी उसके बगैर अपने जीवन का कोई अस्तित्व तक नहीं सोचा था. वह तो आरम्भ से यही सोचता आ रहा था कि, उसका जीवन बदली से शुरू होता है और समाप्त भी बदली पर ही आकर होता है. मगर कौन जानता था कि, यह विधि का ही कोई फैसला था अथवा उसके हाथ की लकीरों में लिखे हुए उसके नसीब की विवशता कि, सब कुछ उसके हाथों में आकर भी अब कुछ नहीं बचा था. इतना अधिक वह अपने घर, समाज और दुनियां के चलन में बंट चुका है कि, आज उसके हिस्से में भी कुछ नहीं बचा है. बदली के छिन जाने के बाद आज उसके हाथ खाली थे. दामन सूना और अरमान मरे हुए. वह किस-किस से शिकायत करता? किस पर दोष लगाता? जब उसका खुद के ईश्वर ही ने शायद यह निर्णय किया हो?

       सोचते हुए, अचानक ही आकाश में चांदनी फिर से खिल उठी तो मेघन के विचारों का तांता भी टूट गया. चन्द्रमा से लिपटते हुए बादल अब छंट चुके थे. भरी हुई चांदनी के उफनते हुए झाग में छेड़खानी करने वाली बदलियों के लिहाफ अब दूर जा चुके थे और चाँद का मुखड़ा आकाश में खिले हुए किसी बड़े से सूर्यमुखी के समान खिल चुका था. सड़क सूनी होती जा रही थी. रात की खामोशी सन्नाटे के सहयोग से और भी अधिक चुप्पी साध चुकी थी. काफी देर से अब कोई भी लॉरी और ट्रक मेघन के सामने से नहीं गुजरा था. इसी मध्य फिर से अन्धकार छाया, चंद्रमा के मुख को एक बार फिर से बादलों की टोलियों ने आकर ढँक लिया तो सहज ही मेघन ने अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढंक लिया. ढंक लिया तो सहसा ही उसके होठों से निकल पड़ा,

'ऐसे ही मेरा मुंह छिपाओगी तो मेरा तो दम ही निकल जाएगा.'

'कुछ नहीं होगा. बहुत ही झिन्नीदार दुपट्टा है मेरा.'

'?'- क्यों करती हो ऐसा? क्यों मेरा मुखड़ा छिपाया करती हो?

'जलती हूँ मैं.'

'मुझ से या किसी और से?'

'वह उस लड़की से. देखा नहीं, बार-बार तुमको देखती है.'

'?' - कौन?' . . . ख्यालों में खोये हुए मेघन ने अचानक ही सामने देखा तो अचानक ही कोई कार सर्र से धूल के गुबार बनाती हुई उसके सामने से निकल गई. निकल गई तो मेघन फिर से वर्तमान में आ गया. उसने अपने आस-पास देखा; कोई भी तो नहीं था, उसके आस-पास. केवल उसके अतिरिक्त. मील के बेजान पत्थर पर वही अकेला बैठा हुआ था. तभी मेघन को एहसास हुआ कि, बदली तो जा चुकी है. हमेशा के लिए, उससे बहुत दूर. इतनी दूर कि, अब वह उसके वापस आने की तनिक सी कोई आस सोच भी नहीं सकता है. कितनी अच्छी थी बदली. कितनी अधिक प्यारी. किसकदर सुंदर, मोहक, नीली झील सी गहरी आँखों वाली. सचमुच ईश्वर ने उसे तो किसी विशेष अवसर को ही निकालकर बनाया होगा? सोचते हुए मेघन की आँखों के पर्दों पर उसके पिछले जिए हुए दिनों की तस्वीरें एक-एक करके आने लगीं . . .'

       '. . . . दुबली-पतली, इकहरे शरीर की बनी हुई, बदली की सुन्दरता में चार चांदों का अक्श जोड़ती हुई उसकी आँखों की वह नीलिमा थी कि जिसे देखते ही मेघन भी एक बार अपने स्थान पर ठिठक गया था. बदली की आँखें भी ऐसी जो काज़ल की मोहताज़ भी नहीं. कुदरत ने खुद ही उसकी आँखों में नीला काज़ल भर दिया था. इकहरे, गोरे बदन पर उसके कूल्हों से भी नीचे झूमते हुए, काले घनेरे बाल, आकाश की किसी भी बरसने को आतुर घटा से कम नहीं थे. और जब ऐसा था तो मेघन का कॉलेज की गैलरी में अचानक ही ठिठक जाना बहुत ही स्वभाविक था. वह ठहरा भी ऐसे स्थान पर जो किसी कक्षा का द्वार था.

'एक्स क्यूज मी? ऐसे ही खड़े रहेंगे या मुझे अंदर भी जाने देंगे?'  

'?'- अचानक ही मेघन के कानों में किसी मधुर आवाज़ के स्वर सुनाई पड़े तो वह चौंक गया. उसके सामने बदली खड़ी हुई उसको बहुत हैरानी से देख रही थी. अपनी नीली, कजरी आँखों से.

'ओ .. सॉरी.' मेघन ने उसे रास्ता दिया तो आगे बढ़ी, मगर उसने एक बार फिर से मेघन को निहारा. सोचा-विचारा, क्षण भर में उसने ना जाने क्या सोचा और बोली,

'आप ठीक तो हैं न?'

'?- मेघन ने हां में अपना सिर हिलाया.

तब बदली चुपचाप कक्षा में चली गई.

       चली गई मगर, वह मेघन के दिल में सैकड़ों प्रश्न एक साथ छोड़ भी गई. प्रश्न भी ऐसे कि जिनसे उसके व्यक्तिगत जीवन का दूर-दूर तक का कोई भी वास्ता नहीं था. मगर फिर भी उसके मस्तिष्क के पर्दे पर यही ख्याल बार-बार आ रहे थे कि, 'कौन है वह?.' आज से पहले कभी देखा नहीं?.' शायद इसी वर्ष उसने इस कॉलेज में प्रवेश लिया होगा?.' सोचते हुए मेघन अपनी कक्षा में भी जाना भूल गया. वह बदली के ख्यालों में खोया हुआ कॉलेज की केन्टीन में पहुंच गया. केन्टीन में आया तो काउंटर पर से एक मग कॉफ़ी का लेकर, चुपचाप एकांत में पड़ी एक अकेली मेज के सामने जाकर बैठ गया. काफी का एक घूँट भरा- उसकी कड़वाहट ने तुरंत ही उसके दिल-ओ-दिमाग के सोये हुए तारों को झंकृत कर दिया. अपने साथ लाई हुई कोर्स की पुस्तक को उसने एक बार उल्ट-पुलट कर देखा और फिर उसे खोलकर बैठ गया. पढ़ने की कोशिश की, मगर बदली की अपार सुंदरता की मय में बहकी हुई छवि फिर एक बार उसकी आँखों के सामने आ गई. आ गई तो वह पढ़ना भूलकर केवल पुस्तक में अपनी आँखों को गड़ाए हुए, सिर झुकाए बैठा रहा. इन्हीं सोचों में कितना ही समय बीत गया. उसकी काफी भी ठंडी हो गई. कॉलेज की एक कक्षा का समय भी समाप्त हो गया और मेघन अपने ही स्थान पर बैठा रहा.

       तभी उसके कानों में अचानक से एक मीठा स्वर सुनाई पड़ा. बड़ा ही प्यारा, कोमल और नाज़ुक सा,

'ऐ, मिस्टर ! आप सो रहे हैं? कॉफ़ी पी रहे हैं अथवा बुक पढ़ रहे हैं?'

'?'- मेघन ने सुना तो अचानक ही उसने चौंकते हुए सामने देखा. देखा तो बदली उसकी तरफ ही देख कर हल्के से मुस्करा रही थी. इस तरह कि, उसके चेहरे पर सफेद चमकते मोतियों जैसे दांत बहुत सारे जुगनुओं की तरह मुस्करा उठे थे.

'आई एम सॉरी. मैं ज़रा सो सा गया था.'

'क्यों? रात में क्या करते रहे थे? सोये नहीं हैं ज़रा भी क्या?' बदली ने कहा.

'हां, ऐसा ही समझ लीजिये.'

'क्या मैं जान सकती हूँ कि, 'कौन सा मेजर है और कौन सी यीअर है आपकी?'

'अर्थशास्त्र का फायनल वर्ष है.

'?'- तब बदली चुप हो गई.

तभी मेघन ने उससे पूछा कि,

'कॉफ़ी लेंगी आप?'

'काफी ! और वह भी ठंडी?'

'मैं दूसरी लेकर आता हूँ.'

'श्योर.' कहते हुए बदली फिर से मुस्करा दी.

       फिर थोड़े ही से पलों के अंतर में दोनों आमने-सामने बैठ कर गर्म-गर्म काफी के घूँट भर रहे थे.

बातो-बातों में इस प्रकार से दोनों का आपसी परिचय हो गया. बदली का भी फायनल वर्ष था, पर वह अपना कॉलेज छोड़कर शहर के इस विद्द्यालय में आ गई थी और वह हिन्दी साहित्य में अध्ययन कर रही थी. जहां तक पढ़ने की बात थी तो दोनों ही गाँव के रहने वाले थे, मगर दोनों के स्थानों में काफी दूरी भी थी. बदली का गाँव अगर पूरब दिशा में था तो मेघन का उत्तर दिशा में. बदली अपने मां-बाप की अकेली सन्तान थी और उसके पिता के पास समुचित भूमि खेती के लिए थी. उनका गाँव में अपना अच्छा-खासी पक्का मकान था. खेतों में काम करने के लिए नौकरों की भी कोई कमी नहीं थी. बैल, गाय, भेंस, बकरी-भेड़ से लेकर ट्रक, गाडी, ट्रैक्टर, ट्यूबबेल; सभी कुछ था. सारे गाँव और गाँव के आस-पास के तमाम गाँवों में उनकी गिनती एक सुव्यवस्थित किसान के रूप में होती थी. और बदली की तुलना में वह एक बहुत ही छोटा किसान का पुत्र था. उसके दो अन्य बड़े भाई दूसरे शहरों में अच्छी सरकारी नौकरियां कर रहे थे. मेघन का भी इरादा कॉलेज समाप्त करने के पश्चात किसी अच्छी बैंक की नौकरी करने का था.

       सो इस तरह से बदली की मुलाक़ात मेघन से हुई तो कुछेक ही दिनों में वे दोनों एक अच्छे मित्र भी बन गये. मित्र भी ऐसे कि हरेक दिन दोनों साथ होते, साथ-साथ कम-से-कम एक बार कॉफ़ी पीते. जब भी दोनों की कोई कक्षा खाली होती तो एक-साथ दोनों कॉलेज के एकांत में, गार्डन में बैठे रहते. बातें करते. बातों ही बातों में एक-दूसरे के बहुत करीब आने की कोशिश करते. बदली सम्पन्न परिवार से थी. वह एक अत्यंत मंहगे लड़कियों के हॉस्टल में रह कर पढ़ रही थी. आने-जाने के लिए उसके पिता ने उसे कार भी दे रखी थी.

                एक दिन, मेघन और बदली नगर के स्थानीय पार्क में बैठे हुए थे. रविवार का दिन था. शाम मोहक हो चुकी थी. हांलाकि, अगस्त का महीना था, गर्मी का प्रकोप अभी भी बना हुआ था, मगर दिन में अच्छी-खासी बारिश हो जाने के कारण, यह शाम ठंडी और मधुर हो चुकी थी. अच्छा मौसम हो जाने के कारण युगल जोड़ों से पार्क लगभग भरा हुआ था. जगह-जगह, झाड़ियों की आड़ में, झुरमुटों के सायों में और वृक्षों के तले, युवा युगल अपने-अपने प्यार की झूठी-सच्ची कसमें खाने में व्यस्त थे. बदली और मेघन ने भी यह शाम इसी पार्क में बिताने के बाद शाम का खाना भी एक साथ ही खाने का विचार बना लिया था. पिछले दो महीनों की जान-पहचान उनकी बदल कर मित्रता में बदली थी और अब उनकी मित्रता पहले से और भी नज़दीक आ चुकी थी. इस प्रकार कि, अब दोनों के मस्तिष्कों में उनके भावी जीवन के चित्र एक-दूसरे को लेकर बनने लगे थे. दोनों ही खामोश थे. चुप और बे-हद शांत-से. तभी मेघन बदली की बड़ी-बड़ी नीली आँखों को देखने लगा तो बदली ने उसे एक संशय से देखते हुए टोक दिया. बोली,

'ऐसे क्या देखते हो?'

'देख नहीं सोचता हूँ.'

'मुझे देख कर?'

'ऐसा ही समझ लो.' मेघन बोला तो बदली ने तुरंत ही पूछा. वह बोली,

'क्या सोचते हो?'

'सोच रहा था कि, लोग कहते हैं कि, नीली, भूरी और कजरी आँखों वाली लड़कियाँ फरेबी होती हैं'

'अच्छा ! लोग तो कहते हैं, लेकिन तुम खुद क्या कहते हो?'

'मैं. . .मैं क्या कहूंगा?'

'नहीं कह सकते हो तो फिर आजमाकर देख लो. अनुभव हो जाएगा तुम्हें भी?' बदली का स्वभाव अचानक ही बदल चुका था.

'?'- मेघन चुप हो गया.

'तो क्या सोचा है अब तुमने?' कुछेक क्षणों के लुप्त हो जाने के बाद बदली ने पूछा.

'वक्त आने पर यह बाज़ी तो खेलनी ही पड़ेगी.'

'क्यों खेलनी होगी? किसी ने मजबूर कर रखा है तुम्हें?'

'नहीं. कौन मजबूर करेगा मुझे?'

'तो फिर?'

'इसके अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग भी तो नज़र नहीं आता है मुझे.'

'?'- बदली खामोश हो गई.

'एक ही तो रास्ता चुना है मैंने?' मेघन ने बात आगे बढ़ाई तो बदली उससे और भी सटकर बैठ गई. फिर अपना सिर उसके कंधे पर रखते हुए बोली,

'ऐसे निराश क्यों होते हो? कॉलेज समाप्त होने के बाद ही तुम अपने माता-पिता के साथ मेरे घर आना.'

       क्रिसमस की लम्बी छुट्टियां हुई तो बदली घर जाने के लिए तैयारी करने लगी. हांलाकि, जाना तो मेघन को भी था पर उसके सामने छुट्टियों में हॉस्टल बंद हो जाने की कोई समस्या नहीं थी. वह किराए पर एक कमरा लेकर रहता था. वह घर जाता या नहीं जाता, उसके सामने कोई समस्या नहीं थी. लेकिन, अचानक से उसके घर से खबर आई कि, उसकी मां बहुत बीमार है तो उसे दूसरे दिन ही अपने गाँव जाना पड़ गया. ऐसे समय में बदली ने उसका पूरा-पूरा हर तरह से साथ दिया. सहयोग किया. मेघन ने कॉलेज के लिए छुट्टी का प्रार्थना-पत्र लिखा और उसे बदली को दे दिया ताकि वह जब कॉलेज जाए तो कार्यालय में दे दे. तब उसने अपने जरूरत के थोड़े से वस्त्र रखे और उन्हें एक बैग में रख कर उसे कंधे से लटका कर चलने को हुआ तो बदली उससे बोली,

'चलो, मैं तुम्हें कार से रेलवे स्टेशन पर छोड़ देती हूँ. जल्दी पहुँच भी जाओगे और आराम से ट्रेन भी पकड़ लोगे. मेघन को उसका सुझाव पसंद आया. तब बदली उसे स्टेशन तक छोड़ने आई. रास्ते भर बदली ही बातें करती रही. लेकिन मेघन बहुत खामोश बैठा हुआ था. बहुत चुप भी. वह कभी-कभी मध्य में केवल हां-हूँ में ही उत्तर दे देता था. बदली उसकी चुप्पी का कारण समझ चुकी थी. वह जानती थी कि, मेघन के मन-मस्तिष्क में इस समय उसकी मां के चित्र घूम रहे होंगे. ज़ाहिर भी था; घर से मां की बीमारी की खबर आये तो कौन सा ऐसा पुत्र होगा जो परेशान न हो? सो बदली उसे समझाती भी रही. उसे घर पहुंचते ही मां की खबर भी देने को बोला. फिर रेलवे स्टेशन भी आ गया. मेघन प्लेटफार्म पर पहुंचा. बदली भी उसके साथ-साथ प्लेटफार्म पर गई. गाडी आने में अभी कुछ समय बाक़ी था, सो दोनों वहीं एक बेंच पर बैठ गये. बदली शीघ्रता से दो चाय के कप ले आई और फिर दोनों बैठे हुए चाय की चुस्कियां लेने लगे. तब समय पर ट्रेन भी आ गई. मेघन के अपने शहर पहुंचने का एक घंटे का रास्ता था. अर्थात, यहाँ से जाने के बाद अगले ही स्टेशन पर उसे उतर जाना था. वह गाड़ी में खिड़की के किनारे वाली सीट पर जाकर बैठ गया था. बदली गाड़ी के बाहर ही , उसकी खिड़की के सामने खड़ी हुई थी. जब वह काफी देर तक कुछ नहीं बोली तो मेघन ने उसे टोका. बोला,

'क्या सोचने लगी हो?'

'?'- तब बदली उसकी तरफ देखते हुए मुस्कराई और बोली,

'कुछ नहीं.'

'कुछ नहीं ! ऐसा तो हो ही नहीं सकता है.' मेघन ने कहा.

'?'- तब बदली फिर से चुप हो गई.

'बताओ न. ऐसी क्या बात है?' मेघन ने फिर से कहा तो बदली ने खिड़की पर रखा हुआ उसका हाथ पकड़ लिया और बोली कि,

'बताऊँ, क्या सोच रही थी?'

'हां. . .हां. क्यों नहीं?'

'तुमने तो एक बार भी नहीं पूछा. बस चुपचाप, अजनबियों के समान अंदर जाकर बैठ गये?'

बदली के स्वरों में शिकायत थी. सुनकर मेघन उसे संशय से देखने लगा. फिर बोला,

'सचमुच मेरा सारा ध्यान मां की तरफ था. अब बता दो कि, क्या नहीं पूछा है मैंने ?'

'घर जा रहे हो. मुझे भी ले चलते?'

'?'- मेघन आश्चर्य से बदली को देखता रह गया.

वह कुछ कहता कि तभी गाड़ी ने सीटी देना आरम्भ कर दिया. दोनों का ध्यान ट्रेन की तरफ चला गया. तभी गाडी ने फिर एक लम्बी सीटी दी और वह अपने स्थान से खिसकने लगी. बदली ने अपना हाथ हिलाया और मेघन को विदा किया. ट्रेन के चले जाने बाद बदली भी अपने हॉस्टल में आ गई.

       मेघन एक सप्ताह के बाद, अपनी मां की सेवा आदि करके वापस आ गया. उन्हें भी कोई विशेष बीमारी नहीं हुई थी. केवल वह मेघन को देखना चाहती थी. बेटे का चेहरा देखते ही उनकी सारी बीमारी हवा हो गई थी. दूसरे दिन वह कॉलेज में बदली से मिला. बदली उसे देख कर मुस्कराई. उसकी मां के लिए कुछेक औपचारिक बातें पूछीं और फिर चुप हो गई. सारे दिन वह कॉलेज में ऐसे ही बनी रही. चुप-चुप, गुमसुम, खोई-खोई-सी. मेघन ने उसका चेहरा देख कर भांप लिया. उसने पूछा भी. मगर बदली ने कुछ भी नहीं बताया. वह वैसे ही अपनी पूर्व मुद्रा में अनमनी-सी दिखती रही. लगभग चार बजे के समय पर दोनों की कक्षाएं समाप्त हुईं. दोनों निकल कर बाहर आये तो इस बार मेघन ने साथ चलते हुए उसका हाथ थाम लिया, मगर बदली ने अपना हाथ किसी न किसी बहाने से छुड़ा लिया. मेघन ने उसकी इस हरकत को काफी गम्भीरता से लिया. उसने बदली की तरफ देखा, वह उसे काफी परेशान-सी दिखी. पार्किंग में आकर बदली अपनी कार के पास आकर खड़ी हो गई और मेघन को देखने लगी.

'?'- मेघन ने उसके मन की दशा को पढ़ने का प्रयास किया, पर कुछ समझ नहीं सका.

'मैं चलती हूँ.' बदली बोली.

'हां ! लेकिन कार की चाबी मुझे दो.'

'?'- बदली आश्चर्य से मेघन का मुंह ताकने लगी.

'कहा न कि, कार की चाबी मुझे दो.' मेघन ने फिर से कहा तो बदली ने चुपचाप कार की चाबी मेघन को पकड़ा दी.

मेघन ने चाबी अपने हाथ में ली और बदली से बोला कि,

'चलो बैठो ! मैं तुम्हें हॉस्टल छोड़कर आता हूँ. तुम्हारे मन की दशा ठीक नहीं है. कहीं कोई 'एक्सीडेंट' आदि कर लिया तो और मुसीबत खड़ी हो जायेगी.'

तब बदली कार में बैठ गई. बहुत चुपचाप. इस तरह से मानों उसके दिमाग में कहीं सैकड़ों ढोल बज रहे हों- बगैर किसी भी बात के. मेघन ने कार चालू की और फिर थोड़ी ही देर में बदली की कार शहर की बाहर वाली सड़क पर भाग रही थी.

'क्यों परेशान दिख रही हो? कुछ तो बताओ?' मेघन ने ही बात आरम्भ की तो बदली जैसे बुझे-बुझे मन से बोली,

'क्या बताऊँ?'

'कुछ तो. हो सकता है कि, मैं तुम्हारी 'प्रोब्लम' 'सोल्व' कर सकूं.'

'तुम ! नहीं, तुम मेरी परेशानी दूर नहीं कर सकते?'

'?'- मेघन ने बदली को घोर आश्चर्य से देखा तो वह बोली,

'हां, एक काम तो कर ही सकते हो.'

'वह क्या?' मेघन ने पूछा.

'तुम अब मुझसे मत मिला करो.'

'?'- जानती हो कि तुम क्या कह रही हो?' कहते हुए मेघन ने कार की रफ्तार आधी कर दी.

'सही कह रही हूँ मैं.'

'क्या सही कह रही हो?'

'यही कि, मेरा पति वापस आ गया है और मेरी शादी हो चुकी है.'

'?'- मेघन के सिर पर अचानक ही पहाड़ गिर पड़ा. इस प्रकार कि, सुनते ही उसकी कार का संतुलन भी डगमगा गया. उसने तुरंत ही कार के ब्रेक लगा दिए. कार तुरंत ही सड़क पर चीं. . .चीं करती हुई, टायरों से रगड़ मारती हुई सड़क के एक ओर जाकर खड़ी हो गई. क्षण भर में ही कार के आस-पास का सारा स्थान टायरों की रगड़ से बने हुए धुंए से भर गया. मेघन चुपचाप कार के स्टीयरिंग पर अपना सिर टिकाकर बैठ गया. बड़ी देर तक वह यूँ ही अपना सिर टिकाये हुए बैठा. बदली चुप थी, मगर बेहद खामोश, चुप, गम्भीर और जैसे अपराधबोधिता का बना हुआ प्रतीक. तभी मेघन ने अपना सिर स्टीयरिंग के ऊपर से उठाया. बदली को देखा और  उसकी आँखों में आँखें डालते हुए बोला कि,

'मेरी आँखों में आँखें डालकर एक बार फिर से बोलो कि, तुमने अभी यह जो सब कहा है, वह झूठ है. मजाक है.?'

'?'- बदली ने चुपचाप अपनी नज़रें झुका लीं. वह एक शब्द भी न बोल सकी.

       तब मेघन ने बदली से आगे कुछ भी नहीं कहा. कोई भी वाद-विवाद नहीं किया. बदली की कही हुई बात गलत है है अथवा सच, इस सफाई के लिए एक भी सबूत नहीं माँगा. कोई भी तर्क नहीं किया. फिर बगैर शिकायत किये हुए कार आगे बढ़ाई और बदली को उसके हॉस्टल छोड़ आया. रास्ते भर उसने कोई भी बात नहीं की. स्वयं बदली भी चुप बैठी रही. हॉस्टल से पैदल आते समय बदली उसके साथ काफी दूर तक आई. फिर एक स्थान पर स्थिर खड़ी होकर वह मेघन को जाते हुए तब तक देखती रही, जब तक कि वह उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गया.

       मेघन का संसार उजड़ गया. सारा आसमान, दुनियां-जहान उसे खाली, सूना-सूना दिखाई देने लगा. कभी उसने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि, उसकी पहली-पहली मुहब्बत की सारी आस्थाओं, हसरतों और बहुत सेज कर रखे हुए अरमानों के सपनों पर अचानक से किसी ज्वालामुखी की आग बरस पड़ेगी. एक छोटी सी 'बदली' उसके आसमान में प्यार की चंदेक बूँदें बरसा कर यूँ लुप्त भी हो जायेगी. वह सोचने लगा कि, इस संसार में, संसार की इन हवाओं में, प्यार का खेल खेलने वाली सब हसीन लड़कियां क्या ऐसी ही बेमुरब्बत और निष्ठुर ही होती हैं? क्यों वह बदली के करीब आया था? करीब भी आया था तो वह क्यों उसे प्यार करने लगा था? प्यार भी किया था तो क्यों उसके सपनों पर आग बरस पड़ी? हांलाकि, बदली ने जो कहा था वह क्यों कहा था? और अगर कहा भी था तो उसमें क्या, सच्चाई है? क्या सचमुच में बदली की शादी हो चुकी है? अगर उसने शादी की भी थी, उसका विवाह हो भी चुका है तो वह क्यों उसके साथ प्रेम का नाटक खेल रही थी? और अगर यह सब सच है तो बदली को यह सब करते हुए, एक विवाहिता होते हुए, उसके साथ अपने प्यार के सपने देखते हुए ज़रा भी लाज नहीं आई? यह पाप करते हुए उसे अपने ईश्वर से तनिक भी भय महसूस नहीं हुआ. इन सारी बातों को बदली ने अपनी जुबान से बिलकुल भी स्पष्ट नहीं किया था, परन्तु सच तो सच होता है. वह कब तक छिप सकता था. एक न एक दिन तो सामने आना ही था.

       काफी दिनों तक मेघन परेशान बना रहा. आरम्भ के दो हफ्तों तक वह कॉलेज ही नहीं आया. फिर जब आया तो काफी अनमना, रूठा-रूठा सा बना रहा. वह बदली से दूर-दूर रहने लगा. कभी भी उसके सामने नहीं आता. अगर कभी-कभार बदली उसे सामने से आती हुई दिख भी जाती तो वह अपना रास्ता ही बदल देता था. तब एक दिन बदली की सारी सच्चाई उसको पता भी चल गई. एक दिन बदली के पिता कॉलेज आये और बदली को कॉलेज से हमेशा के लिए निकालकर घर ले गए. मेघन से जब नहीं रहा गया तो उसने बदली के साथ पढ़ने वाली उसकी सहेलियों से सारी जानकारी ले ली. उसकी सहेलियों ने जो बताया तो उसे सुनकर मेघन ने एक हारे हुए खिलाड़ी के समान अपना सिर पकड़ लिया. जिस आखिरी उम्मीद पर वह अपने प्यार की हिलती हुई नींव को मजबूत बनाने का ख्वाब देख रहा था, वह भी टूट गई थी.

       बदली की सखियों के कहे अनुसार, बदली का विवाह, गाँव में ही उसकी बारह साल की उम्र में हो चुका था, मगर गौना (विदाई) नहीं हुआ था. जब तक विदाई होती उसका पति नौकरी के लिए शहर चला गया था. फिर वह शहर से जब तक वापस आता  तब तक के लिए बदली पढ़ते हुए स्कूल से कॉलेज तक पहुँच गई थी. इस तरह होते हुए दस वर्ष बीत चुके थे और इस बीच उसके पति की कोई भी खैर-खबर भी नहीं मिली थी. सब यही सोच एहे थे कि, या तो बदली के पति का देहांत हो चुका है अथवा उसने शहर में ही कोई दूसरा विवाह कर लिया है. हांलाकि, बदली को अपने विवाह की बात मालुम थी पर अपने पति की एक लम्बे समय तक अनुपस्थिति को देखते हुए उसने भी अब उसके वापस आने की ज़रा भी उम्मीद छोड़ दी थी. लेकिन कौन जानता था कि, एक दिन अचानक से उसका पति वापस भी आ जाएगा. और जब आया तो पता चला कि, वह इतने दिनों तक जेल में था. किसी अपराध में वह अपनी जेल की सजा काटकर आया था. हांलाकि उसके पति ने सफाई भी दी थी कि, उसको गलत केस में फंसाया गया था. बदली के पति की बातों में चाहे कोई सच्चाई नहीं भी थी, चाहे सचमुच उसने झूठ ही बोला हो; लेकिन सबसे बड़ी सच्चाई यही थी कि, बदली का पति, क़ानून, धर्म और समाज की हरेक रीतियों के अनुसार उसका पति था और बदली उसकी पत्नी थी. यही कारण था कि इस सच्चाई के आगे मेघन के सारे प्यार के पांसे उलटे पड़ चुके थे . . .'

       सोचते-सोचते मेघन की आँखों से आंसू, इस रात की घोर तन्हाई में उसकी प्यार की बाज़ी के कुतरे हुए फूलों की पंखुड़ियों के समान नीचे गिरने लगे. चन्द्रमा का थाल छोटा दिखते हुए अब नीचे खिसकने लगा था. आकाश में भरपूर चांदनी के सामने छोटी-छोटी तारिकाएँ जैसे अपनी धुंधली रोशनी पर मातम मना रही थीं. सड़क सूनी थी. रात काफी हो चुकी थी, इसलिए आकाश से ठंडक नहीं, परन्तु ओस टपकती प्रतीत होती थी. मेघन के सिर पर खुला आसमान भी जैसे उसकी बर्बाद मुहब्बतों के आंसू देखते हुए मानों अपनी बेबसी पर पश्चाताप कर रहा था. अब चन्द्रमा बिलकुल ही अकेला था. उसको परेशान करने वाले बादलों के लिहाफ नदारद थे. सारी बदलियाँ उसको नितांत अकेला छोड़कर भाग चुकी थीं- मेघन की बदली के समान ही.

       मेघन के सिर पर से एक हादसा गुज़र कर जा चुका था. उसकी ज़िन्दगी के हर कोने में निराशा और ना-उम्मीदी के वह बड़े-बड़े पत्थर आकर ठहर चुके थे कि, जिन्हें हटाने का साहस उसमें नहीं बचा था. वह जानता था कि, दिल की कितनी ही प्यारी-प्यारी हसरतों से उसने अपने प्यार के सुंदर-सुंदर फूल एकत्रित किये थे, मगर उसके बिगड़े नसीब की लकीरों ने एक पल में उन फूलों को सारे जीवन चुभने वाले काँटों में बदल दिया था. किसी तरह उसने खुद को सम्भाला. अपने दुखी मन को समझाया. कहते हैं कि समय किसी भी दुःख को बर्दाश्त करने के लिए सबसे अच्छा मरहम होता है. प्यार की हारी हुई बाज़ी के घाव भरे नहीं थे मगर सूख जरुर गये थे. अब रोता तो था, पर मन ही मन. अपने प्यार में मिली चोट के कारण उसकी आँखों के आंसू रुक तो नहीं सके थे, मगर वक्त की चलने वाली हवाओं और आँधियों ने सुखा अवश्य दिए थे. एक दिन उसने अपना कॉलेज समाप्त किया. घर आया. कुछेक दिन घर पर यूँ ही बैठा रहा. उसका जीवन ऐसे ही कट रहा था. ना कोई जीवन में उमंग थी, न कोई भी चहल-पहल ही बची थी. घर में उसके विवाह करने की बात होती थी तो वह अपने स्थान से उठ कर चला जाता था. उसकी इन हरकतों को देख कर चाहे कोई कुछ समझ पाता हो अथवा नहीं, पर उसकी मां जरुर ही भांप चुकी थी कि, लड़का दिल से कहीं न कहीं जरुर लुट चुका है. जीवन के इन्हीं उतार-चढ़ाव में जब भी मेघन अकेला होता, जब भी वह रात में चन्द्रमा से बदलियों को छेड़खानी करते हुए देखता तो इस स्थिति में एक प्यारी-सी, नीली झील-सी गहरी आँखों वाली 'बदली' की तस्वीर जरुर इठलाती हुई उसकी आँखों के सामने आती और अपने प्यार की स्मृतियों के दो-चार चांटे उसके मुख पर खिलखिलाती हुई जड़ कर वापस चली जाती. तब एक आह-सी उसके मुख से निकलती और वह अपना सिर अपने दोनों हाथों से कसकर पकड़ कर बैठ जाता था.

       अपनी ज़िन्दगी की हिचकोले खाती हुई उसकी गाड़ी चल रही थी. एक दिन उसे एक 'लॉ और ऑर्डर' नामक कम्पनी में नौकरी मिली तो वह फिर से उसी शहर में आ गया जहां पर कभी उसने बदली के साथ बैठ कर अपने प्यार के गीत गुन-गुनाये थे. यहाँ नौकरी करने के बाद भी उसका जीवन नहीं बल्कि समय गुजरने लगा था. वह दिन भर अपना काम करता, फिर शाम को चुपचाप घर आ जाता था. अब तक बदली से बिछुड़े हुए उसे तीन वर्ष व्यतीत हो चुके थे. जीवन के इन तीन वर्षों में उसने हर तरह के उतार-चढ़ाव देखे. दुनिया देखी. दुनियादारी के तमाम तरह के काम देखे. कभी खुद से तो कभी समय के हथकंडो से संघर्ष भी किया. जीवन में आगे बढ़ने के लिए सब तरह के काम करने की योजनायें भी बनाई, पर कभी भी दोबारा प्यार के गीत न गाने की कसमें जरुर खाईं.

       एक दिन रविवार की सुबह जब वह चाय पी रहा था. टी. वी. खुला हुआ था. तभी सोशल मीडिया पर दिखाती हुई एक खबर सुनकर वह चौंका ही नहीं बल्कि आश्चर्य से घबरा भी गया. खबर के अनुसार किसी 'मेघना' उर्फ़ 'बदली' नामक छबीस वर्षीय विवाहित महिला के द्वारा अपने पति की निर्दयी हत्या का मामला सुनाया जा रहा था. मेघन यह खबर सुनकर चौंका ही नहीं बल्कि एक सशोपंज में भी पड़ गया. वह बदली को केवल बदली नाम से ही जानता था. उसका वस्तविक नाम मेघना भी हो सकता है? उसे मालूम भी नहीं था. बदली ने भी कभी इस बात का कोई ज़िक्र उससे नहीं किया था. मेघन ने पहले तो विश्वास नहीं किया, पर तस्वीर उसके सामने ही थी. वह उसकी बदली ही थी और तस्वीर में जो सोशल मीडिया पर दिखाई जा रही थी, उसके हिसाब से पहले की बदली और अभी की बदली में जमीन-आसमान का अंतर आ चुका था. पहले वाली बदली को उसने हंसते-मुस्कराते और अठखेलियाँ करते हुए छोड़ा था और इस नई बदली में समय की मार की एक पीड़िता और दुखिया दिखाई देती थी. उसके पास से चले जाने के बाद बदली ने किसकदर दुःख और मुसीबतें उठाई होंगी, उसके चेहरे पर लिखे हालात के अक्षर स्वयं ही गवाही दे रहे थे. तब, मेघन यह सब देख कर न तो रो ही सका और न ही कोई मलाल ही कर सका, क्योंकि जिन हालातों में बदली उसे छोड़कर गई थी, उन सबका अंजाम कुछ ऐसा ही होना भी था. विवाह की उम्र न होते हुए भी, एक कमसिन और ना-समझ बाला को किसी ना-समझ से विवाह के बंधन में बाँधने से क्या मतलब निकलता है? ऐसी विषम परिस्थिति में तब मेघन बड़ी देर तक खुद से यह निर्णय भी नहीं ले सका कि, उसको बदली की सहायता करनी भी चाहिए अथवा नहीं? बदली उसके लिए अब पराई थी. वह किसी की पत्नी थी. भले ही उसका पति अब दुनिया में नहीं रहा था, मगर थी तो वह किसी की विवाहिता ही. तब बहुत देर तक, हर तरह से, हरेक पहलू पर सोचने के बाद उसके दिल से उठने वाली प्यार की कशिश आखिरकार जीत ही गई. अब चाहे कुछ भी हो, बदली का यूँ तो कोई भी कुसूर नहीं था, वह अपने हालात की मारी थी, वक्त ने उसकी तकदीर के साथ खेल खेला था; परन्तु अब वह नितांत अकेली, असहाय और कमजोर थी. परिस्थितियों ने भले ही उसे कातिल बना दिया था, फिर भी उसे बदली की सहायता करनी ही चाहिए. आखिरकार कभी बदली उसकी मीता बनी थी. एक समय था कि, बदली उसका मुखड़ा अपने दुपट्टे से ढांक लिया करती थी. किसी की बुरी नज़र तक वह उस पर नहीं पड़ने देती थी और आज जब वक्त आया तो क्या वह उसकी थोड़ी सी भी मदद नहीं कर सकता है? बैठे हुए मेघन ने जब इस प्रकार से सोचा तो वह स्वयं ही एक अपराधबोध की भावना से ग्रस्त हो गया. हो गया तो उसने शीघ्र ही बदली के पास जाने का, उसका हाल-चाल लेने और अपनी तरफ से जो कुछ भी वह कर सकता था, उसकी सहायता करने का मन बना लिया. जहां तक मेघन को याद है, बदली कॉलेज छोड़कर अपने पति के साथ सागर नगर चली गई थी. परन्तु सोशल मीडिया की खबर के अनुसार जो शहर और स्थान बताया गया था, उसके अनुसार अब वह किसी नये शहर में रह रही थी और उसके अनुसार उसी शहर के पुलिस थाने से उसकी जानकारी मिल सकती थी कि वह किस जेल में है?

       मेघन दूसरे दिन ही अपने कार्यालय से छुट्टी लेकर बदली के शहर में जा पहुंचा.

जिस समय वह बदली के शहर में पहुंचा, उस समय तक शाम डूबी जा रही थी और क्षितिज में सूर्य की अंतिम लालिमा अपना दम तोड़े देती थी. आकाश में पक्षियों के रेले, अपने नीड़ों की ओर उड़े-भागे चले जाते थे. अच्छा, सुंदर और मनमोहक शहर था और सड़क पर आवागाही जारी थी. सड़क के किनारे चटपटी चाट, छोले-भटूरे और आइसक्रीम के ठेलों पर खासी भीड़ थी. मगर मेघन को इन सारी बातों और नगर की रौनक से कोई भी सरोकार नहीं था. उसके तो मन-मस्तिष्क में केवल एक ही छवि थी- एक ही ख्याल और एक अकेला नाम था- बदली? पता नहीं वह कैसी होगी? जेल की कोठरी में बंद न जाने क्या-क्या सोचती होगी? उसे तो गुमान भी नहीं होगा कि, वर्षों पहले उसका दीवाना, उसको अपने घर ले जाने का सपना सजाने वाला वह मेघन, वह बादल का एक अकेला टुकडा, जिसको कभी वह राहे-ए-सफर में तन्हा और मजबूर छोड़कर चली आई थी, उसकी खबर सुनते ही यहाँ उसके ही नगर में भटकता फिर रहा है? सोचते हुए मेघन को उसके टैक्सी ड्राईवर ने उसके कहने के अनुसार एक अच्छे से होटल के सामने उतार दिया. होटल पर अंग्रेजी के बड़े-बड़े-से अक्षरों में उसका नाम लिखा हुआ था- 'होटल ग्रीज़ी'. कितना मनहूस नाम है? मेघन ने मन में ही विचार किया. फिर वह काउन्टर पर पहुंचा और अपने लिए एक कमरा बुक कराया तथा अपना बैग घसीटता हुआ कमरे में जा पहुंचा. रात भर उसने आराम किया और दूसरे दिन बदली से फिर एक बार अपनी होने वाली मुलाक़ात के बारे में सोचता हुआ वह सो गया.

       दूसरे दिन वह अतिशीघ्र ही उठ गया और हरेक बात से निवृत होकर वह बदली के बारे में पुलिस चोकियों के चक्कर काटने लगा. क्योंकि, बदली की खबर कुछ दिन पूर्व ही निकलकर आई थी इसलिए उसे ढूँढने में उसे कोई विशेष परेशानी नहीं हुई थी. वह सीधा सिटी जेल में जा पहुंचा और बदली से मिलने के लिए उसने आवेदन भरा. फिर कुछेक क्षणों के बाद ही वह बदली की खिड़की के सामने खड़ा हुआ था. तब थोड़े ही से पलों के बाद बदली उसके सामने खड़ी थी. उसकी शक्ल देखते ही मेघन को रोना आ गया. पिछले कुछ वर्षों के अंतराल में ही बदली की सारी रंगत ही जा चुकी थी. मुखड़े की समस्त आभा ही रूठ गई थी. उसकी नीली झील से भी गहरी आँखों के सामने उसकी ज़िन्दगी की तमाम रुसवाइयों के काले दाग बन चुके थे. उसे देखते ही पता चलता था कि, मेघन से बिछुड़ने के बाद बदली कभी भी अपने जीवन में सुखी नहीं रह सकी थी. वक्त की मार ने, उसके नसीब की हरेक बिगड़ी हुई तकदीरों का गुणा-भाग करके, उसके चेहरे पर उसकी दास्तान का सारा हिसाब लिख दिया था.

       बदली, मेघन को यूँ अपने सामने पाकर फूट-फूटकर रो पड़ी. मेघन से देखा नहीं गया तो उसने खिडकी के बाहर से ही बदली के दोनों हाथ पकड़ लिए और दुःख के साथ अपना सिर खिड़की के सामने ही झुका दिया. बड़ी देर तक दोनों इसी मुद्रा में बने रहे. बदली रोटी रही- सिसकती रही. तब रोते-सिसकते हुए बदली ही बोली,

'कहाँ चले गये थे तुम मुझको यूँ अकेला छोड़कर?'

'?'- मेघन से कुछ भी नहीं कहा गया तो बदली ने आगे कहा कि,

'ऐसे जाकर गुम हो गये कि, एक बार भी नहीं पूछा कि, मैं ज़िंदा हूँ या मर गई हूँ?'

मेघन ने उसको तसल्ली दी. समझाया और साहस से संघर्ष करने को कहा और यह भी कहा कि,

'बदली, मैं तुम्हें छुड़ाने आया हूँ. मैं एक लॉ कम्पनी में काम करता हूँ. अच्छे से अच्छा वकील तुम्हारे लिए करूंगा और तुम्हें इस कॉल-कोठरी से आज़ाद करवाऊंगा.'

'?'- बदली सुन कर गम्भीर हो गई. बोली,

'मुझे छुडाकर तुम्हें अब क्या मिल जाएगा?'

'मुझे तुम मिल जाओगी. और मुझे क्या चाहिए होगा?'

'फिर भी, मैं तुम्हें कोई भी सुख नहीं दे सकूंगी.'

'तुम्हें इस केस से बरी करवाकर, मैं तुमको फिर से अपना जीवन फिर एक बार नये सिरे से आरम्भ करने का अवसर देना चाहूँगा.'

'मैं 'प्यासी बदली' हूँ. एक बाँझ औरत हूँ. अधूरी हूँ. मेरी इसी कमी को जानकर मेरे पति ने मुझे हर तरह से सताया, मुझे मारा और एक दिन उसने मुझे जान से मारने के लिए पिस्तौल भी उठा ली थी. मैं सचमुच अब और जीना भी नहीं चाहती हूँ.'

'मुझे सब मालुम है. मैंने पुलिस स्टेशन में एक घंटे बैठकर, वहां के इंस्पेक्टर से सारी मालूमात एकत्रित कर ली हैं.' मेघन बोला.

'तो फिर यह भी जानते होगे कि, . . .?'

'तुमने अपने हसबेंड का खून नहीं किया है. इस बात को पुलिस वाले भी जानते हैं कि, तुम निर्दोष हो. मुझे मालुम है कि, तुम कभी ऐसा कर ही नहीं सकती हो. फिर यह तो खुद ही समझने वाली बात है कि जो स्त्री कभी एक चींटी तक नहीं मार सकी हो वह किसी इंसान का मर्डर कैसे कर सकेगी? मैं जानता हूँ कि, तुमने अपनी जान बचाने के कारण ट्रिगर दबाया था. अगर तुम ऐसा नहीं करती तो आज के दिन तुम्हारा पति यहाँ होता और तुम...?' कहते हुए मेघन रुक गया.

'तो अब तुम्हीं बताओ कि, मैं क्या करूं?' बदली की आँखें फिर से भीगने लगीं

'सब्र से काम लो. हिम्मत जुटाओ. अब तुम अकेली नहीं हो, मैं हूँ न तुम्हारे साथ?'

'?'- सुनकर बदली चुप हो गई.

'अच्छा, अब मुझे जाना होगा. मिलने का समय समाप्त हो चुका है. मैं तुम्हारे लिए कुछ खाने का सामान लाया था, वह तुमको जेलर के द्वारा मिल जाएगा. मैं तुमसे मिलने के लिए आता-जाता रहूंगा. तुमको अब बिलकुल भी हताश होने और घबराने की आवश्यकता नहीं है.'

       बदली को समझा-बुझाकर मेघन वापस आ गया था.

 

       कोर्ट- कचहरी- अदालत- तारीखें और वकीलों के चक्कर लगाते हुए, बदली के केस को सुलझाने और अंतिम निर्णय मिलते-मिलते पूरे दो साल बीत गये. इन दो वर्षों में मेघन ने संसार की हर ऊंच-नीच देखी. वकीलों के रूप में अच्छे-बुरे, सभी तरह के लोग देखे. औरत के जिस्म और उसकी हवस के भूखे, लालची भेड़िये देखे. बदली को जेल से और इस केस से बचाने के लिए उसने परिश्रम किया, भूखा-प्यासा वकीलों के पास भागता फिरा, अपनी मेहनत से जो पैसा वह कमाता था, उसे पानी की तरह बहा दिया, अपने प्यार के सम्मान में, उसे नई ज़िन्दगी देने के लिए अपनी मुहब्बत का जो उत्तरदायित्व उसने निभाया; उसको यह सब करते हुए वह चाहे कुछ और न भी सीख सका हो, लेकिन इतना जरुर जान गया था कि, अपने देश में अगर एक अकेली स्त्री जब उपरोक्त मामलों में फंस जाती है तो उसके मरने से पहले ही इंसानी गिद्ध नोचने के लिए पहले ही से तैयार बैठे रहते हैं.

       बदली का पति कोई सभ्य मनुष्य नहीं था. बदली को विदा कराकर लाने से पहले ही वह किसी अपराध में दस वर्ष की सज़ा काटकर आया था. फिर बदली को अपनी पत्नी बनाकर ले जाने के बाद भी वह कभी भी बदली के साथ सभ्यता से पेश नहीं आ सका था. नशा करना, मदिरापान करना, बीडी-सिगरेट पीना और जुआ खेलना और बुरी संगति में बने रहना; उसकी प्रतिदिन की दिनचर्या का एक जरूरी काम बन चुका था. वह सपने देखता था और रातों-रात करोड़पति बन जाना चाहता था. खुद तो कुछ काम नहीं करता था और बदली जो काम करके घर में कमाकर लाती थी, उसमें भी वह हर समय पैसा माँगता रहता था. दूसरी परेशानी, शादी के की वर्ष बीत जाने बाद भी बदली मां नहीं बन सकी थी. इसलिए बदली की इस कमी को ही लेकर वह उसे तलाक देने और छोड़ देने की धमकियां देता था. सो एक दिन जब वह शराब के नशे में धुत था तो बदली को मारते हुए इसकदर वह हावी हो गया था कि, क्रोध में ही वह घर में छिपाकर रखी हुई पिस्तौल निकाल लाया. और जब वह उस पर गोली चलाने ही वाला था तभी बदली ने उसे धक्का दे दिया तो वह उससे छिटक कर दूर जा गिरा. पिस्तौल उसके हाथ से छूटकर दूर जा पड़ा तो उसे बदली ने उठा लिया. मगर उसका पति जब उसकी तरफ आगे आया तो बदली ने उसे रोकने के लिए पिस्तौल उसकी तरफ कर दिया. लेकिन बदली पिस्तौल के बारे में कुछ जानती नहीं थी, अचानक ही गोली चल गई और उसका पति वहीं गिरकर ढेर हो गया था.

       फिर एक दिन अदालत का फैसला भी आ गया. मेघन की भाग-दौड़ और मेहनत रंग लाई. बदली को इस मर्डर केस में अदालत से बा-इज्ज़त बरी कर दिया गया. न्यायाधीश ने बरी करते हुए कहा था कि, जिन हालातों में बदली से गोली चली थी, उसके तहत उसे एक कातिल के तौर पर सज़ा नहीं दी जा सकती है. मगर उससे खून तो हुआ है और जो सजा उसे मिलनी चाहिए उससे अधिक समय वह जेल में पहले ही काट चुकी है. मेघन ने यह फैसला सुना तो अचानक ही सैकड़ों सितारे आकाश से उसकी झोली में आ-आकर गिरने लगे. वह ख़ुशी से फूला नहीं समाया. तुरंत दौड़कर उसने बदली के दोनों हाथ बड़े ही प्यार से थाम लिए. बदली से और कुछ नहीं हो सका, वह केवल अपना सिर उसके कंधे पर रख कर सिसकियाँ भरने लगी. काले-डरावने, अन्धकार से भरे हुए बादलों से घिरी रहने के बाद वह बड़ी कठिनाई से बाहर निकल कर आ सकी थी; खुशियों के आंसू तो आने ही थे.

       दूसरे दिन जब मेघन वापस अपने शहर जा रहा था तो ट्रेन का इंतज़ार करते हुए बदली भी उसके साथ थी. वह भी उसके साथ आई थी. तभी मेघन ने उससे कहा कि,

'वर्षों पहले जब मैं अपने घर जा रहा था तो तुमने मुझसे मेरे घर चलने का आग्रह किया था. मगर तब गाड़ी छूट गई थी. मगर आज गाड़ी आने में बहुत देर है और मैं तुमसे आग्रह करता हूँ कि, क्या तुम मेरे घर चलना पसंद करोगी?'

'?'- बदली ने अपनी नीली आँखों से मेघन को एक बार देखा और अपनी अंगुलियाँ तोड़ते हुए उससे बोली कि,

'मैं एक बाँझ औरत. एक विधवा स्त्री. . .एक प्यासी बदली. . .? तुम्हें क्या दे सकूंगी?'

'एक बदली की घटा मेरे आंगन, मेरे सूने घर में आ जायेगी, मेरे लिए यही बहुत होगा.'

'?'- बदली फिर से चुप हो गई तो मेघन ने अपनी बात आगे बढ़ाई. वह बोला कि,

'मैं जानता हूँ कि, तुम एक 'प्यासी बदली' हो. मगर मैं एक भरा हुआ मेघ और बादल हूँ. अपने प्यार की तुम्हारे सूखे जीवन में इतनी अधिक बारिशें करता रहूंगा कि तुम फिर कभी भी अपने लिए अपने मुख से ऐसे शब्द नहीं दोहराओगी. तुम जानती हो कि, हम दोनों ने अपने प्रेम की खातिर न जाने कितने दुःख उठायें हैं. अंधेरी रातों में तन्हा बैठे हुए सितारे गिनते हुए सुबह देखी है. अब इस दुनिया का बनाने वाला हमको फिर से एक अवसर और दे रहा है. हम अपना जीवन फिर से, नये सिरे से आरम्भ करेंगे. अपना एक नया घर बनायेंगे.'

       मेघन ने कहा तो बदली बगैर कुछ भी कहे-सुने मेघन की बाहों में किसी कटी हुई टहनी के समान झूल गई. मेघन को भी लगा कि जैसे आकाश से कोई बदली का भटका हुआ टुकडा अचानक से आकर उसकी झोली में गिर चुका है. इस प्रकार कि, उस बदली के टुकड़े ने अपने प्यार के जल से उसके सारे बदन को भर दिया है.

       तभी अचानक से एक्सप्रेस ट्रेन अपने प्लेटफार्म पर आकर लग गई. थोड़े ही पलों के बाद वे दोनों ट्रेन में बैठे हुए थे और गाड़ी अपनी रफ्तार से अपने गन्तव्य स्थान की ओर, पटरियों का सीना रोंद्ती हुई भागी चली जाती थी. बदली खिड़की के सहारे बैठी हुई, बाहर भागती हुई समस्त वस्तुओं, वृक्षों, जंगलों, खेत, टेलीफोन के पुराने लगे हुए खम्भों और अन्य नजारों को चुपचाप देख रही थी. उन्हें देखते हुए उसे प्रतीत होता था कि, खिड़की के बाहर पीछे भागती हुई ये तमाम वस्तुएं कायनात की न होकर उसके जीवन के वे पिछले दुःख भरे दिन थे जो अब उसे हमेशा के लिए छोड़ते जा रहे थे. अन्धेरा छंट चुका था और दूर क्षितिज में, नई सुबह के आने के संकेत में दिन भर का थका हुआ सूर्य डूबता जा रहा था.

-समाप्त.