Tamas Jyoti - 10 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 10

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तमस ज्योति - 10

प्रकरण - १०

नमस्कार मेरे प्यारे दर्शकों! मैं अमिता एक बार फिर आ गई हूं और आप देख रहे है हमारा ये कार्यक्रम रुबरु और मेरे साथ है आज बहुत प्रसिद्ध संगीतकार रोशनकुमार। तो चलिए रोशन कुमार के साथ हमारे संवाद को अब आगे बढ़ाते है। ब्रेक में जाने से पहले हमने जाना कि, कैसे रोशनजी के जीवन में एक दर्दनाक घटना घटी और उस घटना के कारण उनकी आंखों की रोशनी चली गयी और कैसे उनके जीवन में घना अंधेरा छा गया था! आइए जानते है इसके बाद आगे क्या हुआ? तो बताईए रोशनजी! आप अपने जीवन में छाए तमस से कैसे बाहर आये? इस घटना से आपके मन पर क्या प्रभाव पड़ा? जैसे की आपने पहले कहा था आपका सपना तो वैज्ञानिक बनने का था लेकिन वह तो अब संभव नहीं होनेवाला था, तो फिर आपने आगे चलकर क्या किया?"

रोशन बोला, "अमिताजी! मैंने आपको पहले भी बताया था कि मैं केवल बाहर से ही सामान्य होने का दिखावा कर रहा था, ताकि मेरे माता-पिता मेरी हालत देखकर और दु:खी न हो लेकिन मैं खुद मन से बहुत ही टूट चुका था। मेरे मन में उस समय पता नही क्या हो रहा था? जिसे मैं अभी भी आपको बयान नहीं कर पा रहा हूं लेकिन कुछ तो ऐसा था जिसकी वजह से मैं अपनी स्थिति को स्वीकार ही नहीं कर पा रहा था। मैं जिस स्थिति में था उससे निपट नहीं पा रहा था। मैं स्वीकार ही नहीं कर पा रहा था कि मेरी आंखें चली गई है!

यदि किसी व्यक्ति से उसका पूरा अंग ही छीन लिया जाए तो उसकी क्या हालत होगी? उस दिन मुझे ये समझ आया की हमारी आंखों की कीमत क्या होती है? मुझे ये भी समज आया की आंखें ही तो हमारे शरीर का सबसे अहम हिस्सा होता है। आंखों से ही तो सब कुछ इस संसार में रोशन होता है और रोशनी की वजह से ही तो ये जिंदगी हमें जीने जैसी लगती है। आंखें ही तो हमारी जिंदगी में रंग भरती है। अगर आप सोचेंगे तो आपको समझ आएगा की बिना आँखों की दुनिया कैसी होती होगी? एकदम अँधेरे से भरी हुई!

ईश्वरने मेरे साथ ये कैसा खेल खेला था? ईश्वरने मेरे जीवन में से रोशनी छीन ली थी। रोशनी अब सिर्फ मेरे नाम में ही रह गयी थी। हां, मेरा नाम रोशन जरुर है लेकिन मुझे जिंदगी में कहीं भी रोशनी की एक किरण तक नजर नहीं आ रही थी। अब मेरी आँखें भी चली गयी, तो फिर अब मेरे जीवन का क्या अर्थ है? अब जीकर मैं क्या करुंगा? ऐसे कई नकारात्मक खयाल मेरे मन में बारबार आते रहते थे।

कुछ दिन बाद मुझे अस्पताल से छुट्टी मिल गई। मेरा पूरा परिवार मुझे लेकर अब घर  गया था। जिस घर में अपने जीवन के इतने साल बिताए आज मैं उसी घर को देख नहीं पा रहा था। बस अब इसे केवल महसूस ही कर सकता था।

आज पहली बार मुझे लगा कि यह घर मेरा अपना होते हुए भी मेरा नहीं है। मुझे ऐसा लगा जैसे मैं पहली बार इस घर में प्रवेश कर रहा हूँ! मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो घर मुझे अब जानता ही नहीं। मेरी चारों ओर अब तमस ही तमस था।

जैसे ही मैं अपने घर में प्रवेश करनेवाला था की तभी मैं अपने घर की दहलीज से टकराया और गिरने से बाल-बाल बच गया। मेरे मन में पलभर के लिए एक अनजाना सा डर बैठ गया कि मैं अब अपना पूरा जीवन बिना आँखों के कैसे जीऊँगा? मेरा मन बहुत ही उदास था, मेरी चारों ओर अंधकार छा गया था और मेरे मन में पीड़ा हो रही थी कि मेरे कारण मेरे परिवार को भी कितना कष्ट भुगतना पड़ रहा है!

घर में प्रवेश करके मुझे ड्रॉइंग होल में रखे सोफे पर बिठाया गया था। मैं अभी अपने कमरे में जाना चाहता था, लेकिन कैसे जाऊं? कहा से जाऊं? मुझे उसके बारे में कुछ भी समझ नहीं आ रहा था! बाद में मैंने रईश को मेरी मदद करने को कहा और वो मुझे से अपने कमरे में ले चला। ऐसे अचानक ही मैं पूरी तरह से असहाय हो गया! घर में से किसी न किसी को तो हमेशा ही मेरे साथ मौजूद रहना पड़ता था।

आज मेरी आंखो में छाए तमस के साथ मेरे घर पर मेरी पहली ही रात थी। मुझे आधी रात में बाथरूम जाने के लिए उठना पड़ा। दिन में तो मैं वैसे भी सबको परेशान कर ही रह था तो मैंने सोचा रात में मैं खुद ही चला जाता हूं। मैंने कोशिश भी की लेकिन मैं अपने उस प्रयास में निष्फल रहा और गिर गया। मेरे गिरने की आवाज सुनकर घर के सभी लोग जाग गये और मेरे पास आ पहुंचे।

रईशने तुरंत ही वहा आकर मुझे खड़ा किया और पूछने लगा, "भाई! तुम्हें अब दर्द तो नहीं हो रहा है? मैं तो मन ही मन बहुत पीड़ा का अनुभव कर रहा था। मेरी परेशानी अब छह-सात महीने के बच्चे जैसी हो गई थी जो हमेशा किसी पर निर्भर रहता है। मैं अपना निजी काम भी किसी की मदद लिए बिना नहीं कर पा रहा था।

सुबह उठकर मुझे अपना ब्रश, अपने कपड़े और सारी जरूरी चीजें जब कोई मुझे लाकर दे तभी मैं उसका उपयोग कर सकता था। अरे! खाना खाते वक्त रोटी को सब्जी में डुबाने जैसा छोटा सा काम भी मैं बड़ी मुश्किल से कर पाता था।

जीवन में आँखों का क्या महत्व है यह अब मुझे समझ आ रहा था। मुझे ये भी नहीं पता था कि मैं दाढ़ी कैसे बनाऊं या अपने बाल भी कैसे बनाऊं? बिना किसी लक्ष्य का जीवन अब मुझे बिल्कुल व्यर्थ लगने लगा था। मेरे सपने कही बहुत दूर पीछे छूट गए थे। मेरी ये जिंदगी भी अब मुझे बोझ लगने लगी थी। मुझे हमेशा एक ही दु:ख रहता था कि मैं अब अपने परिवार के लिए कुछ कर नहीं पा रहा था।

मेरी ये हालत मेरे मम्मी पापा और मेरे भाई-बहन से देखी नहीं जा रही थी । मेरे मम्मी पापा मुझे मेरे दर्द से बाहर निकालने की कोशिश करते रहते थे। उनकी बहुत सी कोशिशों के बावजूद भी मैं था की जो दर्द से बाहर ही नहीं निकल पा रहा था। लेकिन कभी न कभी तो इन्सान कितने भी मुश्किल हालात हो फिर भी उनसे बाहर निकल ही जाता है। उसके जीवन में एक ऐसी घटना घटती है, जिसके कारण वह अपने जीवन की बहुत ही कठिन परिस्थिति से बाहर निकल जाता है। ऐसी ही एक घटना मेरे जीवन में भी घटी।

मेरी ये स्थिति होने के बाद मेरे मम्मी पापा मुझे अकेला नहीं छोड़ते थे। वे जो भी म्युजिक शो करते थे उन सबमें वे मुझे अपने साथ ले जाते थे। शायद उन्होंने सोचा होगा कि संगीत मेरे जीवन में रंग भर दे! उनके साथ जाते हुए मैने महसूस किया कि मैं धीरे-धीरे संगीत के प्रति आकर्षित होने लगा था। मैंने अब संगीत में अपनी खुशी ढूंढ ली थी।

बाहर की दुनिया में मैं अपने माता-पिता के साथ खुश रहने लगा और घर पर दर्शिनी और रईश दोनों मुझे खुश रखने की कोशिश करते रहते थे। वक्त के चलते मैंने अब अपनी स्थिति स्वीकार कर ली और मैं अब खुश रहने लग गया। हालाँकि कभी-कभी मुझे दु:ख भी होता था कि मैं अपने रिसर्च के सपने को पूरा नहीं कर पाया। इस ओर रईश के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था और मैं इससे बिल्कुल ही अंजान था। 

अब पन्द्रह दिन बीत चुके थे। रईश की छुट्टियाँ अब ख़त्म हो चुकी थीं। आज वह फिर अहमदाबाद जा रहा था। दूसरे दिन से उसकी परीक्षा शुरू होने वाली थी। वो इतने दिनों से मेरा ध्यान तो रख ही रहा था, लेकिन साथ में परीक्षा की तैयारी भी कर रहा था। वो बहुत ही मेहनत कर रहा था।

उस दिन जब रईश घर से निकला तो घर एकदम सूना सूना लग रहा था। लेकिन अब तो वो परीक्षा ख़त्म होने के बाद ही घर वापस आनेवाला था। कुछ ही दिनों में उसकी परीक्षा ख़त्म हो गई और वो वापस घर आ गया। उसका नतीजा अभी तक नहीं आया था।

हम सभी रईश के वापस घर आने से बहुत खुश थे। अब हम सभी एक साथ पारिवारिक समय का आनंद ले रहे थे। एक दिन जब हम खाने बैठे थे तब मेरे पिताजीने कहा, "रईश! तुम्हें अब नौकरी तलाशनी चाहिए। तुम्हारा परिणाम जल्द ही आएगा। फिर आगे क्या करने का सोचा है?"

रईशने उत्तर दिया, "नहीं पिताजी! मैं अभी भी आगे पढ़ना चाहता हूं। मैं अभी पी.एच.डी. करना चाहता हूं और रिसर्च करना चाहता हूं। अगर मैंने अभी नौकरी कर ली, तो मेरा ये सपना कभी पूरा नहीं होगा। मैं हर प्राणी की आंखों पर रिसर्च करना चाहता हूं। रोशन की आंखों की रोशनी वापस आ जाए उसके लिए रिसर्च करना चाहता हूं। रोशन की जिंदगी को में एक बार फिर से तमस से ज्योति की ओर ले जाना चाहता हूं।'

रईश की ये बात सुनकर मैं एकदम से शॉक्ड हो गया। मेरी आंखों से आंसू गिर पड़े। मैं बोला, "रईश! मुझे अब अपनी स्थिति स्वीकार है। तुम्हें मेरे लिए अब कुछ भी करने की जरूरत नहीं है।"

मेरी ये बात सुनकर रईश तुरंत ही बोला, "क्यों नहीं? क्या तुम नहीं चाहते कि तुम एकबार फिर से देख पाओ? तू इसे मेरा तेरे लिए प्यार समझ या फिर मेरा जुनून समझ। मैं एक दिन तुम्हारी आंखों की रोशनी जरूर वापस लाऊंगा। मैं अपने इस काम में केवल अपने परिवार का सहयोग चाहता हूं। तो क्या आप सब मेरा समर्थन करेंगे? क्या आप सब मेरे साथ हैं?"

"हाँ बेटा! मैं तुम्हारे साथ हूँ।" मेरी मां ने पहली पहल की। 
"और हम सब भी..." मेरे पिताजी, मैं और दर्शिनी भी एक साथ बोल उठे।

कुछ वक्त बाद रईश का एम.एस.सी. का परिणाम भी आ गया। उसने पूरी गुजरात यूनिवर्सिटी में टॉप किया था। हम सब लोग उसकी इस शानदार सफलता से बहुत ही खुश थे। उस ओर अब रईश को अपनी पी.एच.डी. में दाखिले की तैयारी करनी थी और इस ओर मुझे भी अपना करियर बनाना था। मैंने भी मन ही मन में अपने आगे के जीवन के बारे में  कुछ तय किया था, जिसे मैं अपने परिवार के साथ साझा करनेवाला था।

(क्रमश:)