प्रकरण - ८
मेरा भाई रईश आज यहां राजकोट आनेवाला था। उसे पन्द्रह दिनों की पढाई की छुट्टियाँ मिली थीं, इसलिए वो पढ़ने के लिए घर आनेवाला था और फिर पन्द्रह दिनों के बाद उसकी एम.एस.सी की फाइनल परीक्षा शुरू होने वाली थी।
मेरे साथ अब तक जो कुछ भी हुआ था उसको लेकर मेरे माता-पिता पहले से ही बहुत चिंतित थे और ऐसे में रईश का घर आना उनकी चिंताओं को और भी बढ़ावा दे रहा था।
उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि, वे रईश को ये बात कैसे बताऐंगे कि मेरी आंखों की रोशनी अब नहीं रही! मेरी आंखों की रोशनी चली जाने की वजह से मानो उन सभी के जीवन में भी अंधेरा ही छा गया था। चारों ओर केवल तमस ही तमस...था।
कही से भी कोई ज्योति प्रकाशित नहीं हो रही थी। अपनी आंखों की स्थिति से अनजान सिर्फ मेरे मन में एक आशा थी कि शायद प्रकाश की एक किरण प्रकट हो और मेरे जीवन को रोशन कर दे! लेकिन फिलहाल तो मेरे परिवार की सारी आशाए पूरी तरह से टूटती ही जा रही थी। मैं अभी भी अस्पताल में बेहोश ही था। रात में अस्पताल में केवल मेरी माँ ही मेरे साथ रहने वाली थी और मेरे पिताजी और दर्शिनी दोनों अब घर जानेवाले थे।
रात होने को आई थी इसलिए अब मेरी माँ मेरे साथ अस्पताल में रुक गई और दर्शिनी और मेरे पापा दोनों घर चले गए। रईश भी देर रात को ही घर वापस आनेवाला था। वह अहमदाबाद से शाम की बस में बैठा था, इसलिए राजकोट पहुँचते-पहुँचते उसको रात तो होने ही वाली थी। अहमदाबाद से राजकोट का सफ़र चार घंटे का होता है।
घर आकर पापाने दर्शिनी से कहा, "बेटा! तुम्हारी मम्मी तो आज रात अस्पताल में ही रहने वाली है इसलिए तुम उसका और रोशन का दोनों का टिफिन तैयार कर दो। फिर रात को रईश भी तो आनेवाला है तो फिर उसे लेने भी जाना होगा।"
पापा की ये बात सुनकर दर्शिनी अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाई और एकदम से रोने लग गई और बोली, "पापा! ये सब क्या हो गया हमारे साथ? अब हम रईशभाई को कैसे बताएंगे कि रोशनभाई की आंखें चली गई है? अब वह कभी भी देख नहीं पाएंगे! उनके जीवन में अंधेरा सा छा गया है। कही से भी ज्योति की एक किरण भी नही दिखाई दे रही है। जब रईशभाई ये सब जानेंगे तो उनपे क्या बीतेगी? जब रईशभाई को इस बारे में पता चलेगा, तो उनपे क्या बीतेगी? मैं बहुत डर गई हू, पापा!"
मेरे पापाने दर्शिनी को समझाते हुए कहा, "बेटा! हम सभी को अब बहुत ही हिम्मत रखनी होगी। अगर हम सभी टूट जाएंगे, तो हम रोशन और रईश का सामना कैसे कर पाएंगे, बेटा? हम सबको तो अब रोशन की हिम्मत बनना होगा और यदि भगवानने चाहा तो रोशन एकदिन जरूर देख पाएगा। डॉक्टर ने हमें एक उम्मीद दी है और उम्मीद पे तो वैसे भी दुनिया कायम है।
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रईश अब बस में से नीचे उतरा। वह बहुत ही खुश था। नीचे उतरने के बाद उसने तुरंत मुझे फोन किया और बोला, "रोशन! मैं राजकोट पहुंच गया हूं। तुम जल्दी आकर मुझे ले जाओ। मैं बिग बाजार पे तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं।"
लेकिन दूसरी ओर से मेरी जगह फोन मेरे पापाने उठाया और बोले, "हां बेटा! मैं एक मिनट में तुम्हें लेने आ रहा हूं। तुम वहीं रहना।"
पापा की आवाज सुनकर रईश बोला, "अरे पापा! आप? आपने रोशन का फ़ोन क्यों उठाया? रोशन कहाँ है? वह मुझे लेने नहीं आ रहा है क्या?"
मेरे पापाने उत्तर दिया, "वो सब मैं तुम्हें बाद में बताता हूं। अभी तुम घर पर तो आओ फिर बात करेंगे। चल! अभी फ़ोन रख, मैं तुम्हे लेने आता हूं।”
"जी पापा।" इतना कहकर रईशने फोन तो रख दिया लेकिन रईश के मन में मानो एक अनजाना सा डर घर करने लगा था। पापा से बात करते समय उसने अनुभव किया कि, उसके पापा की आवाज हमेशा जैसी सामान्य नहीं थी। उसे पापा की आवाज थोड़ी कमजोर सी सुनाई दी। अवश्य ही घर में कुछ तो ठीक नहीं है ऐसा आसार रईश को अब हो रहा था।
रईश अभी मेरे पापा का इंतज़ार कर रहा था। तभी कुछ ही मिनटों में मेरे पापा बाइक लेकर उसको लेने आ पहुंचे। जैसे ही रईश बाइक पर बैठा, पापाने तुरंत बाइक हमारे घर की ओर चला दी। पापा उस दिन बहुत ही तेज बाइक चला रहे थे। मेरे पापा जो हमें हमेशा हम सबको धीरे गाड़ी चलाने के लिए कहते थे, वो खुद ही आज बहुत तेज़ बाईक चला रहे थे।
पूरे रास्तेभर में रईश पापा से मेरे बारे में पूछता रहा। वो बार बार पूछ रहा था कि, रोशन मुझे लेने क्यों नहीं आया? लेकिन मेरे पापा उसकी सभी बात का एक ही जवाब दे रहे थे की मैं घर जाकर तुम्हें शांति से सब कुछ बताऊंगा।
कुछ ही मिनटों पापा और रईश दोनों घर पहुँच गये। वो घर आए तब तक दर्शिनीने खाना बनाकर ही रखा था। रईशने जाकर अपना सामान कमरे में रखा, थोड़ा फ्रेश हुआ और फिर डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गया। उसे घर में मैं और मम्मी कही दिखाई नहीं दिए इसलिए उसने कहा, "पापा! मैं आपसे कब से पूछ रहा हूँ कि रोशन कहाँ है, आप मुझे मेरी इस बात का जवाब क्यों नहीं देते? और अब मम्मी भी घर से गायब है! सच क्या है मुझे बताईए।"
पापाने कहा, "मैं बताता हूं, लेकिन पहले तुम शांति से खाना खा लो। उसके बाद मैं तुम्हें सब कुछ सच सच बताऊंगा।’’
रईश अब ज़िद पर अड़ गया था। वो बोला, "नहीं! पहले आप मुझे सच बताईए। फिर ही मैं खाना खाऊंगा। जब तक तुम आप मुझे सच नहीं बताऐंगे मैं नहीं खाऊंगा।"
पापाने फिर कहा, "देखो बेटा! जिद्दी मत बनो। सबसे पहले तुम खाना खा लो। फिर मैं तुम्हें पूरी बात जरूर बताउंगा। कभी भी अन्न का अपमान नही करना चाहिए।”
दर्शिनी भी रईश को समझाने का प्रयत्न करते हुए बोली, "हाँ भाई! पापा सही कह रहे है। आप पहले खाना खा लीजिए फिर बात करेंगे।"
दर्शिनी की बात सुनकर रईश बोला, "ठीक है बहन! तुम कह रही हो इसलिए मैं खा लेता हूं।"
उसके बाद रईशने खाना खाया और दर्शिनीने टिफिन भरकर पापा के पास आकर कहा, "पापा! टिफिन तैयार हो गया है। चलिए! अब जल्दी से अस्पताल चलते हैं।"
अस्पताल का नाम सुनकर अब रईश के कान चमके। उसने तुरंत पूछा, "टिफिन! अस्पताल!? ये सब क्या चल रहा है? अस्पताल में कौन है? क्या अब कोई मुझे बता सकता है? क्या मा को कुछ हुआ है? क्या वह ठीक है?"
पापाने कहा, "हाँ बेटा! तुम्हारी मां की तबियत तो बिलकुल ठीक है, लेकिन रोशन अस्पताल में भर्ती है। उसका एक्सीडेंट हो गया है।'' इतना बोलते बोलते तो मेरे पिता फूट-फूटकर रोने लगे।
फिर दर्शिनीने रईश को बाकी की सारी बातें विस्तार से बताई। किस तरह प्रयोगशाला में आग लग गई और ये पूरी घटना घटी। डॉक्टरने मेरी दृष्टि के बारे में भी जो कुछ भी कहा था वह भी दर्शिनीने रईश को बता दिया।
ये सारी बाते सुनकर रईश बहुत ही टूट गया था फिर भी वह हिम्मत करके उठ खड़ा हुआ और बोला, "पापा! मुझे अस्पताल में रोशन के पास ले चलो।"
रईशने फिर पूछा, "क्या रोशन को अपनी इस हालत के बारे में पता है? क्या उसे अपनी इस स्थिति का एहसास है?"
मेरे पापाने उत्तर दिया, "नहीं बेटा! अब तक तो उसे कुछ भी नहीं पता है। डॉक्टरने रोशन को बहुत ही दर्द हो रहा था इसलिए उसको एक इंजेक्शन देकर बेहोश कर दिया था। जैसे ही उस इंजेक्शन का असर कम होगा और उसे होश आ जाएगा तब हमें उसे भी सारी बाते बतानी होंगी। रोशन को अब तक इसके बारे में कुछ भी नहीं पता है। वो नही जानता की उसकी आंखों की रोशनी चली गई है। उसको भी अपनी इस स्थिति का अब सामना करना होगा। हमें उसे भी साहस देना होगा।" मेरे पिता ये बात भी बहुत ही मुश्किल से बोल पा रहे थे।
रईशने मेरे पापा को हिम्मत देते हुए कहा, "हां पापा! आप ठीक कह रहे है। हमें अब कमजोर नहीं होना है, बल्कि बहादुर बनना है। चलो अब हम तीनों अस्पताल चलते है।" इतना कहने के बाद वो तीनों लोग मेरे पास अस्पताल आने के लिए घर से निकले और कुछ ही मिनटों में वे सब मेरे पास अस्पताल आ पहुंचे।
(क्रमश:)