Ardhangini - 38 in Hindi Love Stories by रितेश एम. भटनागर... शब्दकार books and stories PDF | अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 38

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 38

आज भले ही दुल्हन की तरह सजते संवरते हुये मैत्री को अपने स्याह अतीत की याद आ रही थी और ब्यूटीपार्लर मे शीशे के सामने बैठी मैत्री अपने आप को एकटक देखे जा रही थी... वो खुद अपने आपको आज फिर से दुल्हन की सजावट मे देखकर हद से जादा भावुक हो रही थी... हर लड़की की तरह मैत्री को भी सुहागन का चोला बहुत प्यारा था जो नियति के क्रूर हाथों ने उससे छीन लिया था... वो मैत्री आज शीशे मे अपने आप को फिर से उसी सुहागन के चोले मे देखकर मानो विश्वास ही नही कर पा रही थी कि किस्मत ने उसे दुबारा से अपना जीवन नये सिरे से शुरू करने का इतना प्यारा मौका दिया है.... वो कभी अपनी सूनी हो चुकी कलाइयो मे पड़ी लाल चूड़ियो को देखती कभी अपनी हथेली खोलकर अपने हाथो मे लगी रची हुयी मेहंदी को देखती.... तो कभी अपने आप को दुल्हन वाले परिधान मे लिपटा देखती... मैत्री के मन मे हजार बातें चल रही थीं... उसका मन बहुत भारी था वो मन ही मन बस यही सोच रही थी कि "रवि की मम्मी मुझे मनहूस कहती थीं, हे भगवान मेरी मनहूसियत का असर मेरे होने वाले पति जतिन के जीवन पर मत पड़ने देना... आपको अब जो भी बुरा करना है मेरे साथ कर लेना,मै आपसे अग्रिम विनती करती हूं कि मेरे प्राण हर लेना पर जतिन.... जतिन बहुत अच्छे इंसान हैं उनको हमेशा खुश रखना.... "

जहां एकतरफ मैत्री एक अलग तरह की मनस्थिति लिये ब्यूटीपार्लर मे बैठी मैरिज लॉन जाने का इंतजार कर रही थी वहीं दूसरी तरफ जनवासे से बारात निकल रही थी... जनवासा मैरिज हॉल से लगभग सौ से डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर ही था... जहां एक तरफ जतिन अपनी फूलों से सजी कार मे ज्योति, सागर और अपनी मौसी के साथ बैठा था वहीं दूसरी तरफ बाकि के सारे बाराती नाचते गाते मैरिज लॉन की तरफ आगे बढ़ रहे थे... जनवासे से बारात निकलते समय जतिन ने अपनी मम्मी बबिता को अपने साथ कार मे आने के लिये कहा तो उन्होने बोला- नही मै कार वार मे नही जाउंगी... मै तो नाचते हुये जाउंगी...

उनकी ये बात सुनकर जतिन ने कुछ नही कहा... जतिन की कार सागर चला रहे थे और ज्योति और उसकी मौसी दोनो पीछे बैठे बारात मे नाचते गाते सारे लोगो को देख रहे थे... जतिन सागर के बगल वाली सीट पर बैठा था... सबको ऐसे नाचते देख ज्योति ने कहा- भइया मेरे को भी डांस करना है.... मेरे भइया की शादी है और मै डांस भी नही कर सकती....
ज्योति की बात सुनकर सागर ने हंसते हुये कहा- तुम यहीं बैठे बैठे कंधे उचका लो...
"हां ये भी सही है" इतना कहकर शादी की मस्ती मे डूबी ज्योति ने अपने बगल मे बैठी अपनी मौसी के दोनो हाथ पकड़े और कार के अंदर ही हाथ उठा के नाचने लगी.... सागर ने थोड़ी देर तो कार चलायी और अपने पर काबू रखा लेकिन फिर उनसे रहा नही गया और वो जतिन से बोले- भइया आप दो मिनट रुको मै पांच मिनट मे आया...
जतिन बोला- अरे कहां जा रहे हो आप... कार कौन चलायेगा...
सागर ने कहा- अरे भइया बस दो मिनट...

"पर जा कहां रहे हो आप" जतिन ने कहा...
सागर ने कहा- अरे भइया आपकी बारात है और मै दो चार ठुमके ना लगाऊं ऐसा कैसे हो सकता है... मै अभी आया...

ऐसा कहकर सागर कार से उतर कर बारात मे जाकर नाचने लगे... उन्हे ऐसा करते देखकर कार के अंदर बैठा जतिन हंसने लगा और ज्योति जोर से ताली बजा बजाकर चिल्लायी- येेेेेेेेेेेेे... येस.... भइया मेरा बहुत मन हो रहा है नाचने का... मै दो मिनट के लिये उतर जाऊं...??
जतिन ने कहा- नही बेटा थोड़ा संयम रख... हमारी पहली एनीवर्सरी मे बढ़िया सी पार्टी करेंगे तब नाच लेना... अभी कोई रिस्क नही ले सकते हैं ना...
ऐसा कहते हुये जतिन ने बड़े प्यार से ज्योति के सिर पर हाथ फेरा तो वो थोड़ी शांत हुयी पर कार के अंदर बैठे बैठे उसका हल्का फुल्का डांस जारी रहा... इधर पांच सात मिनट नाचने के बाद सागर वापस से कार मे हांफते हुये आ गयेे और बोले- अब ठीक है.. अब मिली मेरे मन को शांति...

इधर बबिता और विजय उम्र की वजह से जादा खुलकर तो नही नाच पा रहे थे पर बीच बीच मे हल्का फुल्का डांस करते हुये आगे बढ़ रहे थे... इधर जतिन कार मे बैठा अपने मम्मी पापा को ऐसे खुश होकर शादी की मस्ती मे डूबे हुये नाचते देखकर बहुत जादा खुश हो रहा था... एक तो जतिन के मन की खुद की सहजता दूसरा परिवार के सारे सदस्यो का मैत्री को खुले दिल से स्वीकार करना.. ये सब बाते जतिन के चेहरे की आभा को दस गुना बढ़ा रहे थे.... जतिन ने मैत्री को अभी तक बहुत साधारण लिबास मे देखा था वो जानता था कि आज शादी के दिन वो अपनी दुल्हनिया को अच्छे से सजा संवरा देखेगा इसलिये उसके मन मे कहीं ना कहीं मैत्री को देखने की बहुत जादा उत्सुकता थी....

धीरे धीरे करके नाचते गाते खुशियां मनाते बड़े ही हर्षोल्लास के साथ बारात आखिरकार मैरिज हॉल के दरवाजे तक पंहुच गयी.... वहां मैरिज हॉल के दरवाजे पर मैत्री के पापा जगदीश प्रसाद उसके चाचा नरेश और राजेश समेत परिवार के अन्य पुरुष सदस्य हाथो मे गेंदे और गुलाब के फूलो की मालाये लेकर उनके स्वागत के लिये पहले से ही खड़े थे... चूंकि राजेश का छोटा भाई सुनील अपनी बहन मैत्री और अपनी भाभी नेहा और पत्नी सुरभि को लेने ब्यूटीपार्लर गया हुआ था तो वो उस समय वहां नही था... नेहा और सुरभि से मैत्री ने पहले ही कह दिया था कि चाहे जो हो जाये पूरी शादी मे वो उसका एक मिनट के लिये भी साथ नही छोड़ेंगी इसीलिये वो दोनो भी उसी के साथ तैयार होने पार्लर गयी हुयी थीं...

इधर बारात के दरवाजे तक पंहुचने पर सबसे पहले जतिन के पापा विजय मैत्री के पापा जगदीश प्रसाद की तरफ हंसते हुये हाथ जोड़कर आगे बढ़े तो जगदीश प्रसाद ने भी खुश होकर हाथ जोड़ते हुये उन्हे अपने गले से लगा लिया... जतिन के पापा विजय को गले लगाते हुये जगदीश प्रसाद ने कहा- आप सभी प्रियजनो का बहुत बहुत स्वागत है भाईसाहब....
जतिन के पापा विजय ने भी उसी जोश के साथ मैत्री के पापा जगदीश प्रसाद से कहा- बहुत बहुत आभार भाईसाहब... ये हम सबके लिये बड़े सौभाग्य की बात है कि आज हम सब आपके सबके साथ एक ही परिवार का हिस्सा बनने जा रहे हैं....

जतिन के पापा विजय वैसे तो लड़के वाले थे और शादी वाले दिन लड़के के घरवालो का आमतौर पर रवय्या कैसा होता है सब जानते हैं लेकिन विजय की बातो की सहजता और समर्पण देख कर मैत्री के पापा जगदीश प्रसाद खुश होकर उन्हे बस देखते रह गये और एक बार फिर से गले लगाकर उनको टीका लगाया और फूलो की माला पहना कर उनका बहुत ही सम्मान के साथ मैरिज लॉन मे स्वागत किया.... इसके बाद सागर को भी गले लगाकर टीका करके माला पहनाकर उनका भी स्वागत किया उसके बाद जतिन की मम्मी बबिता और ज्योति दोनो से हाथ जोड़कर और थोड़ा झुककर उनसे नमस्ते करके उनके हाथ मे माला रखकर उनका स्वागत करने के बाद बाकि के बारातियो को भी टीका लगाकर माला पहना कर अंदर आने के लिये आमंत्रित किया.... अंदर आने के बाद बबिता ने देखा कि जतिन के द्वारचार के लिये सरोज अपनी ननद सुनीता और अन्य महिला रिश्तेदारों के साथ हाथ मे पूजा का खूबसूरत सा थाल लिये खड़ी हैं.... बबिता को देखकर सरोज ने बहुत खुश होते हुये उनसे नमस्ते करी तो ज्योति ने भी बड़े प्यार से सरोज, सुनीता और बाकि की महिलाओ से बड़े ही हर्षित तरीके से सबसे नमस्ते करी... इसके बाद बबिता ने अपने साथ आयीं जतिन की मौसियों, मामियो, चाची और बुआ से सरोज और सुनीता का परिचय करवाया...

इधर मेनगेट पर सारे बारातियो के अंदर आने के बाद जतिन कार मे अकेला रह गया... सबका स्वागत करने के बाद अब बारी थी आज के दिन के मुख्य किरदार जतिन के स्वागत की.... जतिन को अंदर लाने के लिये राजेश और उसके पापा नरेश.. दो तीन और रिश्तेदारों के साथ उसकी कार के पास पंहुच गये तो उनको अपनी तरफ आता देख जतिन कार से उतरने लगा... उसे कार से उतरता देख राजेश ने आवाज लगायी और हंसते हुये कहा- अरे रे रे रे... जीजा जी रुकियेे दो मिनट... मुझे आने दीजिये पहले....

राजेश को ऐसे जीजा जी कहते सुन जतिन हंसने लगा और बोला- अरे यार जीजा जी बोलकर तुम तो शर्मिंदा कर रहे हो....

चूंकि जतिन जानता था कि दूल्हे को उसका साला गोद मे उठाकर अंदर ले जाता है इसलिये वो थोड़ा सा असहज सा महसूस कर रहा था... कि तभी राजेश उसके पास आया और बोला- आओ जीजा जी थोड़ा सा खड़े हो जाओ...
जतिन ने कहा- अरे यार ठीक है गोद मे उठाने की क्या जरूरत है... मै ऐसे ही चला जाउंगा....
राजेश ने भी मजाकिया अंदाज मे कहा- अरे ऐसे कैसे चले जाओगे... इतना कमजोर भी नही है आपका साला कि आपको गोद मे ना उठा पाये...
इससे पहले कि जतिन कुछ कह पाता राजेश ने उसे अपनी गोद मे उठा लिया... राजेश जब जतिन को अपनी गोद मे उठा रहा था तो जतिन हड़बड़ा सा गया और हड़बड़ाते हुये बोला- अरे रे रे.. नही नही नही नही... अरे मै गिर जाउंगा भाई... अरे राजेश संभाल के...
जतिन की हड़बड़ाहट मे करी गयी इस बात को सुनकर राजेश समेत वहां खड़े सब लोग हंसने लगे.... फिर राजेश ने कहा - अरे चिंता मत करो बहुत ताकत है तुम्हारे साले के हाथों मे... मै खुद गिर जाउंगा पर तुम्हे नही गिरने दूंगा...
इसी हंसी मजाक के साथ राजेश ने अंदर जाकर जब जतिन को अपनी गोद से उतारा तो जतिन ने लंबी सांस छोड़ते हुये कहा- हश्श्श... बच गया...!!
इसके बाद जतिन ने हंसते हुये राजेश को गले लगाया फिर राजेश जतिन का हाथ पकड़े पकड़े उसे उस जगह ले गया जहां उसकी ताई जी सरोज, उसकी मम्मी सुनीता घर की बाकी औरतो के साथ जतिन के स्वागत के लिये पूजा का थाल लेकर खड़ी हुयी थीं... जतिन को देखकर सरोज तो जैसे खुशी के मारे फूली नही समा रही थीं.... जतिन ने क्रीम कलर की बहुत ही सुंदर शेरवानी पहनी हुयी थी, क्रीम कलर की ही पजामी और नीचे पैरो मे अपनी शेरवानी के रंग से मिलते जुलते रंग के नागरे पहने हुये थे... सिर पर उसी शेरवानी के रंग की बहुत खूबसूरत पगड़ी जिसमे मेहरून रंग से बहुत सुंदर सिलाई की हुयी थी पहन रखी थी... जतिन के स्वभाव की सहजता, उसके चरित्र की सौम्यता उसके चेहरे की आभा पर जैसे चार नही चालीस चांद लगा रहे थे... सरोज तो जतिन को देखकर जैसे उसपर न्यौछावर ही हुयी जा रही थीं.... वो जतिन को देखकर खुश हो ही रही थीं कि उनके बगल मे आकर उनकी बहन यानि मैत्री की मौसी ने कहा- दीदी जतिन जी को देखकर ऐसा लग रहा है मानो साक्षात भगवान सज धज के हमारे सामने खड़े हैं... ऐसा लग रहा है मानो जतिन जी और मैत्री एक दूसरे के लिये ही बने हैं....

अपनी बहन की बात सुनकर सरोज बहुत खुश हुयीं और दो कदम आगे बढ़ाकर सामने ही खड़े जतिन के सिर पर बड़े प्यार से उन्होने हाथ फेर कर उसे आशीर्वाद देते हुये उसका टीका करके उसकी आरती उतारी.. जतिन ने भी पूरे सम्मान के साथ हाथ जोड़कर और उनके सामने थोड़ा झुक कर उनसे नमस्ते करी... इसके बाद द्वारचार की सारी रस्मे पूरी करके जतिन को लाकर स्टेज पर रखे बहुत ही खूबसूरत और आलीशान सोफे पर बैठाया गया... इधर बारात मे आये जतिन के कुछ रिश्तेदार अपनी धुन मे मस्त डीजे पर डांस कर रहे थे और कुछ नाश्ता करने मे व्यस्त थे कि तभी मैत्री के परिवार की तरफ से कोई लड़का डीजे वाले के पास गया और उसके कानो मे कुछ बोला... उसके बोलने के करीब पांच मिनट बाद डांस वाले गाने चलाते चलाते डीजे वाले ने गाना चलाया... "दिन शगना दा चढ़या, आओ सखियों नी वेहड़ा सजया"

इधर ये गाना बजना शुरू हुआ उधर स्टेज के सामने बनी एक गैलरी से मैत्री हाथो मे वरमाला लिये, सिर झुकाये नेहा और सुरभि के साथ धीरे धीरे ठिठके हुये कदमो से चलकर बाहर की तरफ आयी और स्टेज के सामने की तरफ मुंह करके खड़ी हो गयी.... मैत्री के आते ही जितने लोग भी वहां बैठे थे वो सब खड़े हो गये और शोर मचा कर तालियां बजाने लगे कि तभी वहीं खड़ी होकर मैत्री को देख रही ज्योति ने हतप्रभ से लहजे मे अपने बगल मे खड़ी अपनी मम्मी बबिता का हाथ जोर से हिलाते हुये कहा- मम्मा... मम्मा देखो भाभी.... मम्मा भाभी को ध्यान से देखो.....

ज्योति के इस तरह से कहने पर बबिता ने अपना चश्मा लगाकर मैत्री को जब ध्यान से देखा तो हैरान सी होकर मुंह खोलकर अपने दोनो हथेलियां अपने गालो पर रखकर वो अवाक् सी हो गयीं... वो मैत्री को देखकर इतना खुश हुयीं कि उनकी आंखो मे खुशी के आंसू आ गये वो बस इतना ही कहा पायीं- मेरी बच्ची... मेरी प्यारी बच्ची... तुझे किसी की नजर ना लगे...
इतना कहकर बबिता ने दूर से ही मैत्री की बलायें उतार दीं.... बबिता को अलग ही खुशी मिली थी आज मैत्री को देखकर और इस खुशी की वजह थी..... वो साड़ी!! जो बबिता की सास ने उन्हे दी थी... जो उस दिन पहली बार मिलने पर ज्योति ने इसी उम्मीद के साथ मैत्री को दी थी कि वो इस साड़ी को अपनी शादी वाले दिन पहने.... ज्योति और बबिता की इस मूक इच्छा को मैत्री ने बिना किसी के कहे ही पूरा कर दिया था... और ये इस बात का भी सबूत था कि मैत्री इस रिश्ते को दिल से स्वीकार कर चुकी है... भले मैत्री की खुद की मनस्थिति जो भी थी पर उसने अपनी स्वीकार्यता अपनी ननद और सास पर जाहिर कर दी थी.... मैत्री ने बड़े ही अच्छे सलीके से वो खानदानी साड़ी पहनी हुयी थी... मैत्री वाकई एक आदर्श बहू लग रही थी..... वो बहुत खूबसूरत दिख रही थी.... इधर स्टेज पर बैठा जतिन भी मैत्री की खूबसूरती को देखकर जैसे मंत्रमुग्ध सा हुआ जा रहा था... इधर मैत्री जो मन मे अपना दुख छुपाये सबको दिखाने के लिये मुस्कुरा जरूर रही थी लेकिन उसे एहसास नही था कि उसकी मनस्थिति को उसकी भाव भंगिमाओ के जरिये जतिन पढ़ रहा था.... और अपने आप से वादा कर रहा था कि तुम्हारे दिल मे जो भी भारीपन है अब वो बस कुछ दिनो का मेहमान है.... अब से तुम्हारी खुशियो की सारी जिम्मेदारी मेरी....!!

क्रमशः