Tamas Jyoti - 5 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 5

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तमस ज्योति - 5

प्रकरण - ५

अमिता बोली, "तो चलिए मेरे प्यारे दर्शकों! मैं अमिता एक बार फिर आ गई हूं आपके साथ और मेरे साथ हमारे स्टूडियो में मौजूद है महान संगीतकार रोशन कुमारजी। ब्रेक में जाने से पहले हम बात कर रहे थे कि उनके भाई रईश का दसवीं कक्षा का रिजल्ट क्या आया था? तो रोशनजी! आप से निवेदन है कि अब रहस्य पर से पर्दा उठायें और हम सबको बताएं कि आपके बड़े भाई रईशजी का परिणाम क्या आया?”

रोशनने कहा, "परिणाम तो बहुत ही अच्छा आया था। उसने दसवीं कक्षा में पूरे जिले में प्रथम नंबर स्थान हासिल किया था। हम सभी उसकी इस प्रगति से बहुत ही खुश थे। हमारे घर में उत्सव का माहोल हो गया था। मेरे माता-पिता ने उसकी इस सफ़लता का जश्न मनाने का तय किया और पार्टी का आयोजन किया। रईश की इस सफलता की पार्टी हमने अपने सभी रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ मनाई।

हमारे पूरे कुल का नाम रईशने रोशन किया था। अन्यथा हमारे पूरे कुल में आज तक कभी भी कोई प्रथम नहीं आया था, इसलिए जब रईश प्रथम आया तो वो हमारे परिवार का सितारा बन गया।

अमिता बोली, "बहुत खूब! ये तो बहुत ही अच्छी बात है। रोशनजी! आपके भाईने आपके पूरे परिवार का नाम रोशन कर दिया।”

रोशनने कहा, "हां, अमिताजी! आप ठीक कह रही हो। दसवीं में बोर्ड में प्रथम आने के बाद रईशने साइंस स्ट्रीम से आगे की पढ़ाई करने का फैसला किया। वह अब दिन-रात देखे बिना बहुत ही मेहनत करने लगा। उस समय उसका एकमात्र सपना डॉक्टर बनना था। और इसके लिए वह काफी मेहनत भी कर रहा था। वो कहते है न कि, इंसान के सपने भी उसकी परिस्थिति और उम्र के हिसाब से बदलते रहते हैं। रईश का भी पहला सपना डॉक्टर बनकर लोगों की सेवा करना ही था। लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था!

बार साइंस में कड़ी मेहनत करने के बावजूद भी उसे बारवी कक्षा में केवल साठ प्रतिशत अंक ही मिले। इतनी मेहनत करने के बाद भी जब परिणाम कम मिला तो वह बहुत ही उदास हो गया। वह अब बिल्कुल चुप रहने लगा था। घर पर भी वह किसी से ज्यादा बात नहीं करता था। वह बहुत शांत रहने लगा इसलिए अब मेरी माँ और पिताजी को उसकी चिंता होने लगी और अपनी चिंता के चलते वे दोनों एक दिन रईश को डॉक्टर के पास ले गए।

डॉक्टरने रईश से पूछा, "क्या बात है बेटा? तुम्हें क्या हो गया है?" 

तब रईशने अपने मन की बात डॉक्टर को बताई और कहा, "डॉक्टर साहब! मैं एक डॉक्टर के रूप में सेवा करना चाहता था और मैंने इसके लिए कड़ी मेहनत भी की थी, लेकिन फिर भी मेरे अंक कम आए। मैं पूरी तरह से हार चुका हूं। डॉक्टर बनने का मेरा सपना अब कभी पूरा नहीं हो सकता।"

डॉक्टरने उसे समझाते हुए कहा, "देखो बेटा! क्या आपने कभी सोचा है कि अगर आप ही इस तरह से हार मान कर बैठ जाओगे तो फिर आपके माता-पिता और आपके भाई-बहनों को कितना दुख होगा? क्या आपने कभी सोचा है कि अगर आप ही इतनी छोटी सी हार से घबरा जाएंगे तो उनका क्या होगा? तुम भी मेरी बातों को समझने की कोशिश करना और अपने मम्मी-पापा की भावनाओं को भी समझने की कोशिश करना।

अभी तो जिंदगी में बहुत सी कठिनाइयाँ आयेंगी तो क्या आप हर बार उनका सामना करने की बजाय क्या ऐसे ही उदास होकर बैठ जायेंगे? आप बताओ। अब मैं यह फैसला आप पर छोड़ता हूं।”

डॉक्टरने रईश के साथ सारी बातचीत करने के बाद मेरे माता-पिता से कहा, "आप सब लोगों को रईश के बारे में ज्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। वह थोड़ा चिंतित है क्योंकि उसके अंक कम आए हैं। उसे दवा की भी ज़रूरत नहीं है। आप लोगों को उसे थोड़ा समझाने की जरूरत है।आपको उसे यह समझाने की जरूरत है कि कम नंबर आने से जिंदगी तो नहीं रुकती। ऐसा भी नहीं है कि आप केवल डॉक्टर बनकर ही समाज की सेवा कर सकते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता बनकर भी तो सेवा की जा सकती है न? ये भी तो सेवा ही हुई न? कई बिजनेसमैन भी दान देकर समाज सेवा का काम कर रहे हैं। कई राजनेता जनता के लिए कई अच्छे काम भी करते हैं। ये भी तो सेवा ही हुई न? ये सब बाते तो मैं भी उसे समझा सकता हूँ लेकिन मेरे समझाने से उस पर उतना असर नहीं पड़ेगा जितना आपके समझाने से पड़ेगा। हाँ, यदि आपको आवश्यकता हो तो मैं आपको मार्गदर्शन दे सकता हूँ, लेकिन उसे मुसीबत से बाहर निकालने का काम तो उसे स्वयं ही करना होगा।"

मेरे मातापिताने कहा, "ठीक है डॉक्टर! हम ही अब उसे इस स्थिति से बाहर लाएंगे। आप जैसे बताएंगे वैसा ही हम करेंगे।” 

इसके बाद हमारे घर में रईश की काउंसिलिंग शुरू हुई। हमने वैसा ही किया जैसा डॉक्टरने हमें करने को कहा। और फिर धीरे-धीरे रईश तनावमुक्त हो गया। फिर उसने कॉलेज में बी.एस.सी. में दाखिला ले लिया और धीरे-धीरे वह अपनी पढ़ाई में रुचि लेने लगा।

वह पहले से ही पशुप्रेमी तो था ही। इसीलिए वे सदैव पशुओं के अध्ययन की ओर आकर्षित रहता था। उसे जानवरों के जीवन के बारे में सीखना अब अच्छा लगने लगा था। उसे अब पढ़ाई में आनंद आने लगा था। इसी तरह दो साल बीत गए और वह कॉलेज के अंतिम वर्ष में आया। मैं तब कॉलेज के प्रथम वर्ष में था। अंतिम वर्ष में रईशने प्राणीशास्त्र का मुख्य विषय लेकर उसका अध्ययन करना चुना। और मुझे तो पहले से ही रसायनविज्ञान में रुचि थी। ऐसे ही हमारी कॉलेज लाइफ चल रही थी। दर्शिनी अभी भी स्कूल में ही पढ़ रही थी।

दो साल और बीत गए। इसी बीच रईश की बी.एस.सी. की पढ़ाई भी पूरी गई और वह अच्छे अंकों से पास भी हो गया। उसके बाद उसने एम.एस.सी. करने का निर्णय लिया। एम. एस. सी. की पढाई के लिए उसने अहमदाबाद की गुजरात यूनिवर्सिटी को चुना।

कुछ वक्त बाद मैं अब बी.एस.सी. केमिस्ट्री के फाइनल यर में था और रईश का एम.एस.सी का आखरी साल था।" इतना कहकर रोशन अचानक चुप हो गया। 

उसके चुप होते ही अमिता बोली, "सुना है फिर यहीं से आपकी जिंदगी में एक नया मोड़ आया! यही वो साल था न, जब आपकी जिंदगी का सबसे कठिन वक्त आया, है न रोशनजी?"

रोशनने उत्तर दिया, "हां, अमिताजी! आप बिलकुल सही कह रही हो।"

उस घटना को याद करते ही रोशन की आंखे थोड़ी सी नम हो गई। अमिता को उनके चेहरे पर थोडी सी परेशानी की झलक दिखाई दी, इसलिए अमिताने भी ब्रेक लेना ही उचित समझा। उसने कैमरामैन को अपना कैमरा थोड़ी देर के लिए बंद करने को कहा। 

कैमरे के बंद होते ही अमिता रोशन के पास आई और बोली, "रोशनजी! अगर आप ठीक नहीं हैं तो हम कार्यक्रम को अभी स्थगित कर सकते हैं।"

रोशनने कहा, "नहीं, नहीं, मैं अब ठीक हूं। आप कार्यक्रम जारी रखे। वो तो मैं अपने अतीत में खो गया था, इसलिए आंखें थोड़ी सी नम हो गई। मेरे संघर्ष की ये कहानी भारत के लोगों तक जरूर पहुंचनी चाहिए। क्योंकि, मेरी ये कहानी कई लोगों के लिए प्रेरणा बन सकती है।''

अमिताने कहा, "अच्छा तो फिर ठीक है। चलिए अब कार्यक्रम को आगे बढ़ाते है।”

अमिताने कैमरामेन को कैमरा फिर से ऑन करने को कहा।

(क्रमश:)