बुढिया की फरियाद
आज समझ आया ये कलयुग नही घोर कलयुग है उस बुढिया को देखकर ।
बुढिया को भटकते हुए लगभग एक महीना होने को आया था।जल संस्थान मे चक्कर लगाते हुए, पर कोई सुनवाई नही ,रोज आंखो मे आँसू भर के चली जाती।
किसी पहाड़ी जगह से आती थी हर दूसरे तीसरे दिन,
बस हमेशा एक ही साड़ी मे, शायद एक ही होगी उसके पास, बहुत बूढ़ी थी और गरीब भी , पैदल ही आती जाती थी या कोई तरस खाकर छोड़ देता होगा पता नही,
एक दिन पास के मन्दिर मे देखा तो रो रही थी और जल संस्थान के कर्मचारी को कोस रही थी भली बुरी कहे जा रही थी,जब रहा नही गया तो पूछ लिया ," क्या हुआ अम्मा, तो रो रो कर बताने लगी , बेटा किसी पहाड़ी क्षेत्र मे रहती हूं पानी नही आता मेरे गाँव मे , पानी लेना बहुत दूर जाना पड़ता है ,मेरे घर के सामने से पानी के पाईप लाइन गई है , घर मे और कोई नही जो पानी ले आये और मुझ से लाया नही जाता , दो दिन मे एक बार वो यहां आती थी ,और एक दिन वो पानी लेने जाती थी, अब बहुत थक गयी थी वो ,कुछ रूपये लेकर भी उसने किसी को दिये थे की उसे भी उस पाइप लाइन से पानी लेने दिया जाये ,पैसे देकर भी उसे धोखा मिला , पर कोई
उसका दुखड़ा सुनने वाला भी कोई नही था तो आज भगवान को रिश्वत देने आई थी और रो रो कर अपनी भड़ास निकल रही थी और दुहाई दे रही थी, कई पानी भी नही मिला और कर्ज और सर पर आ गया,
तो मुझसे रहा नही गया मैने पूछा अम्मा भगवान को क्या चढ़ाने आई हो तो मुठ्ठी खोल दी एक रूपये का सिक्का था जो न जाने कब से बचा रखा था, गांव मे पशु चराने का काम करती थी तो कोई रोटी दे देता था उसी से गुजर बसर करती थी, मुझे रोना आ गया तो बताने लगी किसी मंत्री का नाम उसके खेत और पशुओं के लिए वो पाइप लाइन गई थी, तो मैने कहा अम्मा जिस मन्दिर के भगवान से ये गुहार करने आई हो ये भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा भी उसी मंत्री जी ने कराई है ,अब बोलो वो पहले तुम्हारी सुनेंगे या मंत्री जी की।बुढ़िया मुठ्ठी भिच कर वहां से चली गई। बुढ़िया को जाते देर तक देखती रही फिर यही सोचा सच मे घोर कलयुग है, उसके बाद की बार उधर जाना हुआ पर वो बुढ़िया फिर कभी दिखाई नही दी , कभी कभी सोचती हूं क्या उस अम्मा को पानी मिला होगा ,जहां हम पानी की कोई कीमत नही समझते उसको व्यर्थ बहाते है वहीं किसी के लिए जीने की एक आस है , काश उस अम्मा को पानी मिल गया हो, क्या अम्मा की फरियाद बेबुनियाद थी ,,।
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