कल का दिन आ गया। जैसा कि कायल ने कहा था, उन्होंने अपना भविष्य का बेडरूम प्लान भेजा। यह सुनने में जितना हास्यास्पद लगता था उससे कहीं अधिक हास्यास्पद देखने में लग रहा था। हर किसी की कमरे की योजना में उन्होंने अपनी इच्छाओं को खूबसूरती से चित्रित किया गया था दिव्या, प्रांजली और अंजली को विशाल शयनकक्ष पसंद थे जबकि साक्षी और प्रतिज्ञा को आरामदायक बेडरूम। कायल को महंगी सामग्री और हीरे-रूबी की फिनिश वाली थी। उसकी हर चीज़ केवल पैसा बोलती थी।
और मेरी नियती को तो देखो! इसने कुछ नहीं किया। सादा कमरा कुछ अलग पर्दो के साथ, कुल मिलाकर मेरी नियति ने कुछ खास नहीं किया।
"ओए! तुमने कुछ क्यों नहीं किया?", मैंने उसे बुलाकर पूछा,
वो थोड़ा रुक गई। वो कुछ बोल पाए सबने कायल वहाँ मेरे सामने आ खड़ी हुई। उसने हाथ हिलाया। प्रसिद्ध शेफ हमारे लिए नाश्ता लेकर आये।
(आख़िर मेरे घर में हो क्या है?)
"मैं अच्छे मूड में हूँ इसलिए तुम सभी को ट्रीट कर रही हूँ। मैं जानती हूँ कि सब इस प्रकार के भोजन से ऊब चुके हैं तो आइए अच्छे के लिए बदलाव करें?", उसने बड़े गर्व के साथ मुझे आँख मारकर कहा,
सच कहूँ तो मैं उसे दो सेकंड के लिए अच्छा होते देखकर चौंक गया था। वह ऐसी महिला है जो हमेशा हर बात पर शिकायत करती और चिड़ती रहती है। इसीलिए वृषाली केवल उन्हीं के लिए खाना बनाती थी जो उसका खाना, खाना चाहते थे। इसमें केवल कायल ही शामिल नहीं थी।
"यह बहुत व्यंग्यात्मक है।", मुझे नहीं पता कि वह कौन सी नई साजिश रच रही थी।
"आप किस बारे में बात कर रहे हैं मिस्टर बिजलानी? इंग्लिश ब्रेकफास्ट का आनंद लें।", उसने कहा, लेकिन इतना चिकना भोजन! चीज़ टोस्ट, बीन्स, अवाकाडो, जैम, फ़ेटा चीज़ के साथ सलाद और... मीठी कॉफ़ी, वह सबसे भयानक चीज़ थी।
उससे भी ज़्यादा मुझे अब इस बच्चे की चिंता हो रही थी। वो बस अपने सामने रखी थाल को देखी जा रही थी। हर एक चीज़ दूध या दूध से बनी चीज़े थी और मैंने भी इतने साल बाद फिर से वही स्वाद चखा। (घुटन।)
इतना ही नहीं दिव्या को जैतून नहीं लगता, साक्षी और प्रांजली को भी चीज़ पसंद नहीं। सबको वो खाना परोसा गया जो उन्हे पसंद नहीं या लगता नहीं। मैंने मन मार दो निवाला खा,
"शेफ, आपका खाना स्वादिष्ट है पर मैं भारतीय खाना खाना ज़्यादा पसंद करता हूँ।", मैंने उन्हें कहा,
"सर?", शेफ ने हल्के स्वर में कहा,
"वृषा आप ये क्या कह रहे है? आपको ऐसा खाना खाना पसंद है! इस कारण मैं इन्हें,वर्ल्ड क्लास शेफ को यहाँ खास तौर पर बुलवाया है!", कायल भन्ना उठी,
"बेशक! इसलिए मैं चाहता हूँ कि वो मेरे लिए कुछ भारतीय नाश्ता बनाए। आप अपना वक्त लीजिए। सरयू इन्हें रास्ता दिखाओ।", सरयू शेफ को लेकर रसोई में गया,
"धन्यवाद मिस्टर बिजलानी।", साक्षी और प्रांजली ने कहा,
"सही में। आज लगा था कि मैं भूखी मर जाती या वृषाली के पैंरो पर गिर जाती कहती- इस भिखारन को खाना खिला दो बहन।", दिव्या ने कहा,
उसे सुन मेरी हँसी लगभग छूट गई थी।
मैंने अवचेतन रूप से उसकी ओर देखा, वह बिल्कुल चुप थी। मैं उससे सुनना चाहता था। (क्या वह बीमार है या कुछ और?) उसने मुझसे कुछ नहीं कहा? क्यों? तब मुझे याद आया कि मैं ही था जो उसे नज़रअंदाज कर रहा था। क्या ये मेरी गलती थी कि वो खोई हुई थी? क्या मुझे उससे माफी माँगनी चाहिए?
शेफ भारतीय नाश्ता लाया जो खाने योग्य था। (यह उतना अच्छा नहीं है जितना वो बनाती है।)
नाश्ते के बाद मैं उससे बात करने गया।
मैंने दरवाज़ा खटखटाया, उसने दरवाज़ा खोला और मुझे अंदर आने दिया। मैं अंदर गया लेकिन नहीं जानता कि क्या कहूँ? कैसे शुरू करूँ? मैं जानता था कि मुझे यहाँ नहीं होना चाहिए लेकिन अब मैं था।
"अहम! तुम गुमसुम थी। तुम्हारी तबियत तो ठीक है?", मैंने उससे पूछा,
वो हिचकिचा रही थी। मैं ऐसा करना तो नहीं चाहता पर... मैंने अपनी शक्ति का उपयोग किया, मैंने उसका हाथ पकड़ा और उसकी अंगूठी पर दो बार थपथपाया, "तुम मुझ पर भरोसा कर सकती हो।",
वह पूरी तरह से दुखी थी, "बात..यह है... कि... दो दिनों में जो कुछ हुआ वह मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे साथ ऐसा होगा। मैं निश्चित रूप से जानती हूँ कि यह किसी और के लिए है...लेकिन इसे किसी मनोरंजन कि तरह किसीको रिकॉर्ड करना काफी डरावना था। यह बहुत घृणित है!",
मैं यह जानकर स्तब्ध रह गया कि वह अपने अस्तित्व को लेकर अब भी निराश थी। वह रोने की कगार पर थी।
"मुझे अपने परिवार की इतनी याद आ रही है कि मैं अब अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पा रही हूँ। मैं इमानदारी से आपसे माफी माँगना चाहती हूँ, मैंने आपकी मदद करने का वादा किया था लेकिन...आप भी मुझे नजरअंदाज कर रहे थे। ",
"अगर मैं यह कहूँ कि मुझे खुशी है कि तुम मुझसे अपने दिल की बात कह रही हो तो क्या?", मैंने बिना सोचे समझे बोला। (क्या? क्या मैंने गलती से खुद पर अपनी शक्ति का प्रयोग कर दिया क्या?)
उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखा। मैंने अपने ऊपर नियंत्रण कर लिया। "तुम्हें अब आराम करना चाहिए, तुम मुझ पर भरोसा करो और शांति से रहो। तुम्हारे कुशल होने कि खबर तुम्हारे परिवार के पास पल-पल पहुँचाई जा रही है। वे भी कुशल है और मैं बस थोड़ा व्यस्त था।", उसकी आँखे से आँसू बेलगाम बहने शुरू हो गए। मैं उसे अपनी हाथो में लेकर उसे पुचकारना चाहता था।
मैंने उसके सिर को हल्के से सहलाया और उसके शांत होने तक वही रूका। इस बार वृषाली ने मेरा हाथ कसकर पकड़ लिया।
"तुम्हारी माँ नै कहा था तुम्हें दुखी होने पर मिठाई खाना पसंद है इसलिए...", और ये हमेशा घर जाते वक्त इसे खरीदती थी इसलिए उसका दिल बहलाने के लिए उसका पसंदीदा लॉलीपॉप उसे पकड़ा दिया। यह एक बच्चे का ध्यान भटकाने जैसा था जो काम कर गया। मैं उसके कमरे से सीधा बाहर निकल गया।
(सारी गलती आर्य की है।) उसी कि बात मेरे दिमाग में गूँज रही थी।
उसी वक्त सरयू मेरे पास दौड़ते हुए आया।
"वृषा! हाह...एक बुरी खबर है!", वह बहुत ज़ोर-ज़ोर से हाँफ रहा था,
"क्या हुआ?", मैंने पूछा,
उसने हांफते हुए कहा,"लड़की!- वह लड़की जिसे तुमने मानव तस्करी क्षेत्र पर नज़र रखने के लिए भेजा था-",
"मीरा?", वह एक अंडरकवर पुलिस ऑफिसर थी जिसे मुझपर डोरे डालने के लिए भेजा गया था। मुझे सबकुछ पता था इसलिए मैंने उनसे मिशन के लिए सहयोग माँगा था। उसे, मैंने चार महीने पहले वह पता दिया था जहाँ उन्हें रखा गया था और जहाँ उन्हें पहुँचाया गया था। वह अपने काम में सर्वश्रेष्ठ थी तो क्या हुआ? वह सबको रंगे हाथों पकड़ने के बिल्कुल करीब थी।
"वहाँ क्या हुआ था?", मैंने उसकी पिछली गतिविधियों को देखते हुए उससे पूछा,
"उसका अंतिम स्थान 'मर्यादा' का बैक गेट था।", तब सरयू ने कहा, "उसने तुमसे संपर्क करने कि कोशिश की लेकिन वह पकड़ी गई।",
ऐसा नहीं था कि उसे मेरा साथ चाहिए था। उस दिन के बाद से हमने अपने रास्ते अलग कर लिए थे। वह मैं ही था जो उसकी जिंदगी के लिए परेशान था इसलिए उस पर तिरछी नज़र रख रहा था। वह इस वक्त एक ही से मिलने आ सकती थी।
"-प्रांजली पर नज़र बनाए रखो।", बज़्ज़...संदेश की ध्वनि,
मैंने सरयू को कुछ और निर्देश दिए और नीचे जाने लगे, "क्या नौटंकी शुरू हो गयी?", मैंने सरयू से पूछा,
"हाँ और दर्शक भी आ चुके है।", सरयू ने कहा,
(मुझे लगता है कि कुछ बुरा होने वाला है।)
मैं चाँहू तो इस मूर्खतापूर्ण प्रतियोगिता को तुरंत रद्द करवा सकता था...लेकिन यही एक बहाना था उसे समीर के सामने अपने साथ सुरक्षित रख सकूँ। मुझे खुशी थी कि अब वह अपनी समस्याएं बता सकती थी, भले ही हमारी शुरुआत कुछ ज़्यादा ही गलत थी। (क्या मैं लालची हो रहा हूँ?)
"क्या सभी ने सभी का परिचय कराया?", मैंने नीचे जाते हुए कहा। (वो नीचे कब गयी?)
कमरे में मौजूद सभी लोगों ने उन्हें प्रणाम किया। वे उस मज़बूत आभा के साथ सीधे खड़े थे जो हर किसी को प्रभावित करती थी। यह उस वृषा से बिल्कुल अलग था जिसे मैं जानती थी। (अम! मुझे उनसे ईर्ष्या महसूस हो रही थी।)
वे हर किसी से बात करने में कितने सहज हैं। दयनीय! यही मेरा अहसास था उन्हें लेकर। कोई उन्हें इंसान की तरह नहीं बल्कि एक चलते-फिरते फायदे की तरह देखता। सभी चीजों में पैसा शामिल था। मैं वहाँ खड़ी थी और सोच रही थी, (अब बस रुक भी जाओ! यह देखना बहुत निराशाजनक है कि इस मूर्खता प्रतियोगिता के लिए पैसा ऐसे ही बहाया जा रहा है।)
जब मैं वृषा के आत्मविश्वास से ईर्ष्या करने में व्यस्त थी तभी एक आदमी मेरे पास आया, "क्या आप वृषा कि... मेरा मतलब वृषाली है?",
वृषा के समान शारीरिक गठन वाला एक अद्भुत व्यक्ति, लेकिन कुछ हद तक अप्रिय लेकिन उसमें कुछ गड़बड़ लगी। वह मुझे सिर से पाँव तक स्कैन किये जा रहा था। वह मुझे जितना घूर रहा था, मैं उतना और असहज हो रही थी। मैं नहीं जानती कि कैसे प्रतिक्रिया दूँ या फिर मुझे प्रतिक्रिया देनी चाहिए या नहीं। इसके अलावा मैं वास्तव में नहीं जानती कि क्या होने वाला था?
“तो क्या तुम वही हो जिसे वह कायर लाया?”, उस आदमी ने कहा,
(कायर?)
"तुम सादी तो हो लेकिन एक बार खेलने में क्या घाटा है?",
(एह! क्या?), उसने एक सेकंड भी नहीं लगाया और मुझे मेरी कमर से पकड़ने की कोशिश की।
मैं पूरी तरह से चौंक गयी और मेरा दिमाग शून्य हो गया। तभी अचानक किसी ने मुझे पीछे कंधे से पकड़ लिया और फिर मैंने देखा कि एक हाथ ने उसे रोक दिया। मैंने अपना सिर थोड़ा घुमाया और देखा कि वृषा उसे गुस्से भरी नज़रों से घूर रहे थे।
"अपने गंदे हाथ उससे दूर रखो।", वृषा ने गुस्से में कहा,
मैंने वृषा को इतने गुस्से में आजतक नहीं देखा। एक पल पहले मैं डर गई थी लेकिन अब मैं सहज महसूस कर रही थी। मुझे राहत मिली कि यह वृषा ही थे जिसने मुझे छुआ...! (स्टॉकहोम सिन्ड्रोम? नहीं, नहीं, नहीं!)
(वह जमी हुई है। क्या वह ठीक है?) मुझे आशा थी कि वह मुझे एक विकृत व्यक्ति के रूप में नहीं लेगी।
"उससे दूर रहो!", उसे पहले चेतावनी दी फिर,
वृषाली को , "मज़बूत बनो!", कह,
"कायल, तुमने सारी तैयारी कर दी?", सबका ध्यान उनसे हटाकर कायल पर भटका दिया,
और कायल ने मुझे अजीब नज़र से देखा और कहा, "हाँ मिस्टर बिजलानी, मैं एक राउंड चाहती हूँ जहाँ सभी प्रतियोगी अपना फैशन सेंस दिखाएँ और उस व्यक्ति के बारे में सवालों के जवाब दें जिसके लिए यह प्रतियोगिता निर्धारित की गई है।", वह तो बस उसे देखती ही रह गयी,
इस राउंड के लिए प्रत्येक प्रतिभागी को एक सहायक मिलेगा, कहने की जरूरत नहीं थी कि, इन सबका चयन कायल का ही होगा। और मैं उसे इतना जानता था कि वह हर किसी को परफेक्ट मैच देगी और केवल इस छोटे कद की लड़की को निशाना बनाएगी।
(लक्ष्यीकरण की पुरानी शैली।)
उनका फैसला करने वाले तीन जज थे, जो कंपनी में डायरेक्टर थे। संक्षेप में, वे समीर के प्यादे थे। वो कायल का ही साथ देंगे और रही बात इस अंगूठी की मुझे अब इसकी सुरक्षा और कड़ी करनी होगी।
"तो मिस्टर बिजलानी सबको उनके सहायक से मिलवा दिया गया है।", डायरेक्टर रमन ने मेरे पास आकर कहा,
तब दिव्या ने कहा, "रुको! उसके पास एक भी नहीं है।", उसने उसकी ओर इशारा किया,
और वह बेवकूफ, एक बेवकूफ की तरह वहाँ खड़ी थी। वह कुछ बोल क्यों नहीं रही।
"ओह! वो? क्या वे नई प्रतिभागी है? हमने तत्काल सहायक ढूंढने की कोशिश की लेकिन दुर्भाग्यवश।", डायरेक्टर राघव ने कहा जिन्हें मैंने बचपन से अपना साथ खड़ा पाया। वे हमेशा दूसरी तरफ़ थे लेकिन मेरे साथ थे।
(क्या उन्होंने राजीव को निपटा दिया?)
"अब क्या किया जा सकता है?", डायरेक्टर नीरज ने पूछा,
"आज ही समीर सर ने इसका सबसे अच्छा समाधान दिया है।", नीरज ने कहा,
"और वह क्या है?", राघव ने पूछा,
"बस उसे मुख्य कार्यालय को सौंप दे।", डायरेक्टर नीरज को डायरेक्टर राघव और रमन ने घुरकर देखा,
(इसका मतलब है, देह व्यापार!)
भीड़ में से किसी ने कहा, "यह कोई बुरा विचार नहीं है।",
हर कोई एक-दूसरे को ऐसे देख रहा था जैसे 'ऐसा किसने कहा।',
"वृषाली राय आपका क्या कहना हैं?", उन्होंने सीधे उससे पूछा,
और उस बेवकूफ ने कहा, "किस लिए? ऐसा नहीं है कि हमारे देश में कोई बेरोज़गार नहीं है। बस एक शब्द बोलिए, कुछ ही सेकंड में आपको हज़ार प्रतिक्रियाएँ मिलेंगी। ",
मैं जानता था कि उसने जो कहा वह सच था लेकिन उसे पता होना चाहिए कि उसे कहाँ, कैसा और कितना बोलना चाहिए। मुझे उसे पहले ही चेतावनी दे देनी चाहिए थी लेकिन किसने सोचा था कि वह इस तरह बात करेगी।
"आख़िर आपके कहने का मतलब क्या है?",
"क्या आपको लगता है कि जनशक्ति से काम करवाना बच्चों का खेल है?",
"वास्तविकता के प्रति जागें मैडम।",
"यह बच्चों का खेल नहीं है।", ओह! प्रत्येक डायरेक्टर अब वास्तव में उत्साहित हो गये थे पर गलत तरीके से।
"तो आपको क्या लगता है कि आप हमारी जगह पर क्या कर सकती हैं?", डायरेक्टर रमन से पूछा,
मैं भी उसका जवाब सुनना चाहता था, "सर, आपने जनशक्ति के बारे में बात की? इसके लिए, हाल ही में मैंने आपके डायरेक्टर की बैठक में भाग लिया था और एक सी.एम.ए के रूप में मैं आपको बताना चाहती हूँ कि आपको अपने प्रबंधन में और अधिक विकेंद्रीकृत होने की आवश्यकता है। आपको दोतरफा संचार की आवश्यकता है। और रोज़गार के बारे में-मैं उन बेरोज़गार उम्मीदवारों में से एक हूँ जो छोटी-मोटी नौकरियाँ करने के लिए भी तैयार हैं ताकि उन्हें किसी भी प्रकार का अनुभव मिल सके, सर।", अब वह चेहरे पर करारा तमाचा था,
"तुमने अभी क्या कहा लड़की?!", नीरज, समीर के पालतू ने चिल्लाते हुए कहा। वे गुस्से से भरे हुए थे क्योंकि नीरज डायरेक्टरों के प्रमुख थे।
"तुम्हें, जिसे इन सबका रद्दी भर का भी ज्ञान नहीं वो कहेगी एक मल्टी बिलियनेयर बिज़नेस को कैसे ऑपरेट किया जाता है और विदेशो में अपनी शाखाएँ कैसे बढ़ाएँ? तुम्हें पता है कि वास्तविक व्यापार कैसे किया जाता है?",
मैं जानता था कि वह सही थी। लेकिन लड़की कृपया चुप रहो। (क्या तुम नहीं देख सकती कि वे तुम्हें बहुत बुरी तरह से बेचना चाहते हैं और मैं हस्तक्षेप नहीं कर सकता, इससे स्थिति और खराब हो जाएगी।)
"यदि तुम्हें यह आसान लगता है तो तुम अपना सहायक खुद क्यों नहीं ढूँढ लेती? और एक घंटे में हमें चमत्कार क्यों नहीं दिखा देती?", उसे जीवन में पहली बार खुली चुनौती मिली,
"ह-", वो कुछ बोले उससे पहले,
"इसकी आवश्यकता नहीं होगी, मैं अपनी बह- इस प्रतिभागी की सहायता करूँगा।", सरयू ने ज़ोर से कहा,
सब कुछ पहले से भी अधिक शांत हो गया। वह बिना लड़े जीत गयी? सरयू को स्वेच्छा से काम करते देख सारे डायरेक्टर आश्चर्यचकित रह गए। वह उस प्रकार का व्यक्ति नहीं है जो किसी और की स्थिति में हस्तक्षेप करे।
डायरेक्टर नीरज ने गुस्से में लेकिन धीमी आवाज़ में कहा, "तुम नहीं!",
"कारण?", सरयू ने पूछा,
"तुम पहले से ही बिजलानी के अधीन काम कर रहे हो। ", नीरज बहुत ज़्यादा ही इसके खिलाफ थे,
"मैं किसी अन्य सहायक की तरह ही बिजलानी के अधीन काम कर रहा हूँ। इससे क्या फर्क पड़ेगा?", सरयू ने सारे पत्ते साफ कर दिये,
"सही तो है। और शर्त के अनुसार उसे एक घंटे से कम समय में एक को भर्ती करना था।", दिव्या ने कहा,
"हाँ, और उसने यह किया!", साक्षी ने भी उसका साथ दिया,
(उसे बस हाँ कहना होगा या कम से कम अपना सिर हिलाना होगा।)
सभी ने उसकी ओर देखा और उसने सिर हिलाया। सरयू उसका आधिकारिक सहायक बन गया। उसके चेहरे से ऐसा लग रहा था जैसे उसे अपनी बहन पर गर्व था। वे कब इतने करीब कब आ गए?
"अब जब हर कोई अपने सहायक से मिल चुके है तो मुझे प्रतिभागियों और उनके सहायक का परिचय कराने की अनुमति दें।", एक अलग आवाज़ कमरे से आई।
मैंने उसकी जानकारी जाँची, वह एक प्रशिक्षु अभिनेता था।
कैमरा और लाइटे तैयार थी और प्रतियोगी भी।
"अब मुझे हमारे प्रतिभागियों और उनके सहायकों का परिचय देने की अनुमति दें।
पहली है, स्वयं रचित प्रांजली और उनका सहायक है राहुल,
दूसरी है, शीतल जल सी शांत, अंजली और उनकी सहायक है रत्ना,
तीसरी है चुलबुली दिव्या अपनी सहायक तारिका के साथ,
चौथी हैं, हमारी सदाबहार एक्ट्रेस कायल राज! अपने सहायक सक्षम के साथ,
पाँचवी है इस दशक की हमारी नंबर वन मॉडल, साक्षी अपने सहायक सारांश के साथ,
छठी है समझदार प्रतिज्ञा अपने सहायक तनीश के साथ,
और हमारी आखिरी प्रतियोगी है वृषाली अपने सहायक सरयू जी के साथ।
तो ये है हमारे सात प्रतियोगी। खेल तो बहुत पहले शुरू हो गया था पर अब यह और रोमांचक होने वाला। कैसे? ऐसे! हर प्रतियोगी को अच्छे से तैयार हो 'वर' से जुड़े प्रश्नो के उत्तर देने होंगे। ज़्यादा कुछ नहीं, बस आपको यह दिखाना है कि आप उस व्यक्ति को कितनी गहराई से समझते हैं जिसके लिए आप प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।", उसका नाम था, श्रीकांत,
जैसे ही श्रीकांत ने अपनी बात पूरी की तब नीरज ने आगे आकर कहा, " 'स्वयंवधू' का आधिकारिक पहला दौर सोमवार को आयोजित किया जाएगा। प्रतियोगी को जिन चीज़ों की ज़रूरत होगी, उनके सहायक द्वारा संभाला जाएगा। इसलिए, शुभकामनाएँ! उम्मीद है सब अपने सहायक के साथ अच्छा वक्त गुजारेंगे।", कह सब सहायक को पीछे छोड़ वहाँ से जाने,
(अब मेरे घर में और भी शोर होगा!) हर तरफ हलचल की आवाज़ और पूरे घर में बकबक की आवाज़ थी।
मैं ऊपर गया और वहाँ मैंने देखा कि वृषाली बाल्कनी में खड़ी थी। मैं उसे देखने गया क्योंकि ऐसा रोज़ नहीं होता कि वह पहेली को बगल छोड़ दिन के उजाले में बाल्कनी में चली जाए। उसके साथ ज़रूर कुछ गलत हुआ होगा, पहेली भी चिंतित थी और अपना रोना बंद नहीं कर रही थी। मैंने जाकर पहेली को उठाया और वृषाली का ध्यान आकर्षित करने के लिए उसके कंधे को थपथपाया। वह चौंक गई और अपनी घबराई हुई आँखों से मेरी ओर देखा, मैं उसे इस तरह देखकर थोड़ा आश्चर्यचकित हुआ, वह वहाँ कांप रही थी। उसे देख पहेली मेरी गोद से नीचे उतर गई। फिर मैंने वृषाली की कंपकंपी रोकने के लिए उसे पकड़ा, ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी चीज़ से डर रही हो शायद कुछ क्षण पहले जो हुआ उसके कारण?
उसने मेरी तरफ एकटक देखा, फिर मैंने उससे धीरे से पूछा, "क्या तुम पहले जो हुआ उससे डरी हुई हो?",
उसने हाँ में सिर हिलाया,
"लेकिन तुमने एक पूर्ण बहिर्मुखी की तरह अपना बचाव करते हुए जो बहुत अच्छा काम किया।", मैंने आदत में उसके सिर को सहलाते हुए कहा,
उसने भी अपने दोंनो कांपते हुए हाथो से मेरे दोंनो हाथो को पकड़ लिया। मैं इंतज़ार कर रहा था कि वह कुछ बोलेगी लेकिन वह नहीं बोली। मैंने धैर्य बनाए रखा और पूछा, "अगर तुम्हारे मन में कुछ है तो कह दो।"
जिस होंठ को उसने कसकर दबाकर रखा था, उसे धीरे से हिलाते हुए कहा, "क-क्या मैंने फिर से कुछ गलत कर दिया?",
उसकी कांपती हुई हाथो को संभालते हुए कहा, "तुमने बस खुद को बचाया। अपनी सुरक्षा करने में कुछ भी गलत नहीं है, और तुमने कुछ भी गलत नहीं कहा इसलिए चिंता मत करो।", वह एक छोटे बच्चे की तरह थी जिसे हमेशा लाड़-प्यार की ज़रूरत होती थी।
जब मैं स्थितियों पर नज़र रख रहा था तो मैंने उसे अपने दिमाग को आराम देने के लिए भेजा, मुझे एक संदेश मिला जिसमें लिखा था कि 'सरयू अगला लक्ष्य हो सकता है!' मैंने उसकी सुरक्षा अब और कड़ी कर दी।
(क्या होगा?) मैं यह सोच रहा था और नीचे चला गया जहाँ मैंने देखा कि उसने तीन-कोर्स भोजन बनाया गया था।
(उसकी तनावपूर्ण स्थिति भी काफी उपयोगी है।) खाने की मेज़ पर सभी लोग थे, अब भीड़ अधिक थी। पहेली भी मज़े से खा रही थी। वह थक कर अपनी कुर्सी पर बैठी थी, वह सही थी वह अदृश्य थी। वह वाकई में लोगों के साथ अच्छी नहीं थी, उसे अब भी लंबा रास्ता तय करना था। जब हम खाना खा रहे थे तो वह टिकने के लिए संघर्ष कर रही थी। ख़त्म करने के बाद मैंने उसे हाथ धोने के लिए उठाया। मैंने उनसे पूछा, "सरयू कहाँ है?",
वृषाली ने पीछे से जवाब दिया, "वो...जब हम किचन में थे तब भैय्या को अचानक बाहर जाना पड़ा।",
"अचानक?", मैंने पूछा,
तब उसने कहा, "आपके किसी सहायक ने कहा कि उनसे उनका कोई रिश्तेदार मिलने आया है...ऐसा ही कुछ",
उसके रिश्तेदार कब पैदा हो गए?
"रिश्तेदार? कब?", मुझे हैरानी हुई,
"खाने के कुछ पल पहले ही पर वृषा, भैय्या थोड़े परेशान लग रहे थे।", उसे भी उसकी चिंता थी,
"उसे होना भी चाहिए क्योंकि वह एक अनाथ है जिसे मेरी दादी ने तब गोद लिया था जब वह पाँच साल का था।", अब उसका तथाकथित रिश्तेदार कौन था? मैं इसे नजरअंदाज नहीं कर सकता!
"वृषाली, मैं काम से बाहर जा रहा हूँ, बस डेस्क पर रिपोर्ट है, उसे खत्म कर लेना।", मैं बाहर जाने के लिए निकल रहा था,
"समझ गई। फोन लेकर जाइए।", उसने मुझे मेरा फोन दिया,
मैं फोन लेकर निकला, "चिंता मत करना।"
लेकिन मुझे घबराहट महसूस हो रही थी, मुझे बहुत गलत अहसास हो रहा था। मैं शायद फिर से ज़्यादा सोच रही थी लेकिन...
"वृषाली क्या हम भी तुम्हारे साथ चले?", दिव्या ने मुझसे आकर पूछा,
"हाँ क्यों नहीं पर तुम दोंनो को प्रतियोगिता की तैयारी नहीं करनी?", मैंने दिव्या और साक्षी से पूछा,
उन्होंने मुझे बिल्कुल भी परेशान नहीं किया जैसा उन्होंने वादा किया था। वह दोंनो सोफे पर थी और मैं वृषा की कुर्सी पर बैठ अपना काम कर रही थी।
मैंने तीन मोटी फाइलों के लिए अपना काम बहुत जल्दी पूरा कर लिया। अब तीन घंटे से अधिक हो गए थे लेकिन वे अभी तक घर नहीं आए। हमने इस प्रतियोगिता के लिए अपने दृष्टिकोण के बारे में भी बात की, जैसा कि अपेक्षित था, यहाँ सभी लोग सोचते थे कि यह हास्यास्पद था। वे पहले दौर के बारे में चर्चा कर रहे थे जबकि मैं पूरे घर के सी.सी.टी.वी फुटेज की जाँच कर रही थी जिसे मैंने गलती से खोल दिया था। मैंने गलती से चयनित फुटेज से पहले वाले पर क्लिक कर दिया। यह घर के पीछे का हिस्सा था जहाँ मैंने भैय्या को कुछ संदिग्ध लोगों से मिलते और कहीं जाते देखा। मैंने वृषा को फोन करके उन्हें इस बारे में बताने के बारे में सोचा, जबकि दूसरी लाइव स्क्रीन पर मैंने देखा कि वे वापस आ चुके थे।
वे अंदर आए और हम सभी को बाहर निकाल दिया। यह इतनी तेज़ी से हुआ कि हम समझ ही नहीं पाए कि अभी क्या हुआ था?
हम अनजान, पहेली के साथ नीचे चले गए। बाहर निकालते समय हम केक बनाने पर सहमत हुए। हम सीधे रसोई में गए, रसोई में किसी को ना देखना बहुत असामान्य था क्योंकि यह रात के खाने के लिए सामान तैयार करने का समय था। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था, इसलिए कुछ देर इंतजार करने के बाद हम वृषा को बुलाने के लिए ऊपर गए। उस समय भैय्या कमरे से बाहर आ रहे थे तभी साक्षी ने चिंतित स्वर में पूछा, "क्या सब ठीक है?",
"ह-हाँ।", उन्होंने मुझसे कहा, "आएँ शुरू करें।",
"आज नहीं। आपको आराम करने की ज़रूरत है।", मैंने उन्हें साफ मना कर दिया फिर भी उन्होंने पर-वर करते रहे। धीरे-धीरे मेरा पारा बढ़ रहा था,
"भैय्या मुझे गुस्सा नहीं आता मतलब ये नहीं कि मैं गुस्सा नहीं कर सकती। आपको आराम की ज़रूरत है इसलिए आराम कीजिए।",
"...पर-",
"पर-वर कुछ नहीं। सीधे बिस्तर!", मैंने भैय्या कि एक नहीं सुनी और साक्षी से शांति से, "साक्षी, क्या तुम इन पर नज़र रख सकती हो?", (इतनी मरी हुई हालत में वो कर क्या पाएंगे?)
उसने खुशी-खुशी हामी भर दी। वृषा वहाँ खड़े होकर मज़े ले रहे थे। मैं उनके पास गई और कहा,
"आप दोंनो दोस्त कम नहीं। क्या गड़बड़ है?",
"क्यों?", उन्होंने पूछा,
दिव्या ने कहा, "हमने कई बार पुकारा पर एक सहायक नहीं आए, यहाँ तक कि, धर्म और पृथा भी नहीं थे।",
वृषा चिंतित दिखे, उन्होंने भैय्या कि तरफ देखा। भैय्या ने कहा, "अगर वो यहाँ नहीं है तो... मेरे और वृषा के अलावा उन्हें मुख्य घर से हटाया जा सकता है।",
"मुख्य घर?", हमे समझ नहीं आया,
वृषा ने पता लगाया तो अचानक सभी को तत्काल वहाँ अकारण बुला लिया गया था।
"हम बड़ी मुसीबत में हैं, मैं इस हालत में उसकी मदद नहीं कर सकता।", भैय्या बहुत चिंतित थे,
"हमें बस किसी सहायक और रसोइये की आवश्यकता है?", साक्षी ने पूछा,
"शायद...", दिव्या ने सोचते हुए कहा,
"वृषा आप रसोइयों की व्यवस्था कर सकते हो ना?", मैंने उनसे पूछा,
उन्होंने हाँ कहा, फिर दिनचर्या के काम के लिए और आदमी चाहिए,
"क्या दैनिक आवास सुविधा जैसी कुछ है क्या? ", यह बस मेरे मन में आया,
"यह बहुत खतरनाक है क्योंकि प्रतिद्वंद्वी कंपनियां इसे अपना एकमात्र मौका मान सकती हैं, इसलिए नहीं।", भैय्या ने मन कर दिया,
"अगर हम किसी भरोसेमंद व्यक्ति का उपयोग करे तो...लेकिन कौन?", साक्षी ने कहा,
हम सब हमारे बारे में सोचने लगे थोड़ी देर बाद में याद आया, "वृषा आपकी दोस्ती एक होटल मालिक से है ना?",
उसी वक्त दिव्या ने खुली आवाज़ से कहा, "आर्य इसमे हमारी मदद कर सकते है और वो करेंगे।",
"बढ़िया!", दिव्या, साक्षी और वृषाली तीनों निश्चित हो गए पर हमे पता था कि हम सीधे जाल की ओर चल रहे थे। मैंने सरयू की ओर देखा, वो भी हार मान गया। मैंने आर्य को काॅल कर कल से कुछ सहायक भेजने के लिए कहा, "सर्तकता से!"
रात में मैंने बिजलानी फ़ूडज़ से खाना ऑर्डर किया और उसके लिए विशेष एलर्जी अनुकूल खाना ऑर्डर किया। वह इसके ख़िलाफ़ थी लेकिन वस्तुतः उसके पास अकेले इतनी शक्ति नहीं थी कि वह सभी को खाना खिला सके। वह सूरजमुखी के बीज खाने वाले हम्सटर की तरह थी। जबकि सरयू तीसरी बार वृषाली से डांट मिलने के बाद भी ड्यूटी मोड में था। सारी चीजें अब सरयू पर केंद्रित हो गई थी और अब उसे निशाना बनाया जा रहा था। खाना खाने के बाद सभी लोग सोने चले गये जबकि हमारे लिये तो अभी रात शुरू ही हुई थी। हम योजना समीक्षा के लिए एक बजे तक थे, जिसमें वह महत्वपूर्ण सदस्य थी। वह ऊँग रही थी इसलिए मैंने उसे कुछ पानी और नाश्ता लाने के लिए भेजा ताकि वह जागती रह सके, केवल लॉलीपॉप उसके लिए काफी नहीं था। सच में लोग लड़कियाँ क्यों माँगते है अब समझ आया।
मैं ऊपर काम कर रहा था, तभी मैंने नीचे से ऐसी आवाज़ सुनी जैसे कोई गिर गया हो, दौड़ रहा हो और चिल्ला रहा हो।
मुझे बेचैनी महसूस हुई, मैं आवाज़ की ओर तेज़ी से दौड़ा, तो देखा सरयू भैय्या नीचे जख्मी था और उसकी बहन, किसीको जख्मी कर रखी थी।
सरयू हिल नहीं रहा था। मैं उसकी ओर भागा जबकि अन्य लड़कों ने घुसपैठिए को पकड़ लिया। मैंने उसे उठने में मदद की, उसके टखने में कुछ समस्या लग रही थी।
"वृषाली जाओ मेरी कार की चाबियाँ और मोबाइल ले आओ।", वह ऊपर गई और सब कुछ ले आई। फिर मैं उसे अस्पताल ले गया जबकि मेरे लोग उसे पूछताछ के लिए ले गए। जब मैंने सरयू से पूछा, तो उसे पता नहीं था कि क्या हुआ था... उसे बस इतना पता था कि किसी ने उसे ज़ोर से धक्का दिया था।
पहले हम अस्पताल गए फिर हमने घुसपैठिये की जाँच की। वह एक ढीठ था, इसलिए हमने उसे अंधेरे कमरे में एक मंद दीये और यातना वाली आवाज़ों के साथ कैद कर छोड़ दिया।
हम वापस गए। वहाँ बहुत से लोग काम कर रहे थे। सुबह के छह बज रहे थे और कई दिनों से हमें पर्याप्त नींद नहीं मिल पाई और अब नई समस्या हमारा इंतजार कर रही थी।
"ठीक है, यह हमारा पहली बार जैसा नहीं है, चलो देखते हैं।", सरयू ने हँसते हुए कहा,
हम अंदर गए और वहाँ लड़कियों को उनके साथ पाया। मैंने वृषाली को बुलाया और उससे स्थिति के बारे में पूछा,
उसने कहा, "आधे आपके आदमी है और आधे आपके दोस्त के।",
तो आर्य ने अपना काम कर दिया, "पर तुमलोगो को ऐसे ही किसीको अंदर नहीं आने देना चाहिए था।",
"अत्यधिक चिंता ना करे चिंतामणि। मिस्टर खुराना खुद आए थे आपके आदमियों को भी साथ लेकर और उन्हें आने देने के पहले मैंने दिव्या से सुनिश्चित कर लिया था।", वृषाली ने कहा पर...
"अगली बार अधिक सावधान रहना।",
"वो सब छोड़िए और पहले मुझे बताइए भैय्या कहाँ है कैसे है?", इस वक्त तक साक्षी, दिव्या और प्रांजलि भी आ गए।
"वो ठीक है। बस कलाई और पैरों पर हल्का मोच और कुछ खरोंचे है और... बाकी सब ठीक है। सरयू का कमरा तैयार करवा सकती हो?", मैंने उससे पूछा,
"वृषा ज़रा नीचे छुकना।", उसने मुझसे पूछा,
"क्यों?", मुझे कुछ समझ नहीं आया,
"ऐसा लगता है जैसे भैय्या के गिरने कि वजह आपके सिर में चोट लगी है।", उसने मुस्कुराते हुए कहा,
तुम छोटी...बदमाश!
"बहुत बढ़िया वृषाली!", सरयू मेरे पीछे से निकलकर अपनी बहन की पीठ थपथपाने चला गया,
सबको बड़ा मज़ा आ रहा था। थोड़ी बातचीत के बाद वृषाली गंभीर हो गयी।