प्रकरण - ४
अमिता बोली, "प्यारे दोस्तो! एक छोटे से ब्रेक के बाद मैं एक बार फिर वापस आ गई हूं और मेरे साथ मेरे स्टूडियो में मौजूद है प्रसिद्ध संगीतकार रोशनकुमारजी। ब्रेक पर जाने से पहले हम ये बाते कर रहे थे कि उनकी जिंदगी में उनकी बहन दर्शिनी कैसे आईं? आइए, अब जानते है कि घर में इस नई बहन के आने से दोनों भाइयों की जिंदगी में क्या क्या बदलाव हुए थे? क्या दोनों भाइयों ने बहन का मन से स्वीकार किया, या फिर बहन को भाइयों का प्यार जीतने के लिए संघर्ष करना पड़ा? तो बताईए रोशनजी! घर में नई बहन के आने से आपकी जिंदगी में क्या बदलाव आया है?''
रोशनने कहा, "संघर्ष तो करना ही पड़ा। अमिताजी। ऐसा कौन सा रिश्ता होता है जहां अनुकूलन नहीं साधना पड़ता? हर रिश्ते में एक किरदार या कभी-कभी दोनों किरदारों को किसी न किसी परिस्थिति के अनुरूप ढलना ही पड़ता है। हम दोनों भाईओ को भी बहुत सारा अनुकूलन साधना ही पड़ा।"
हालाँकि रईश और मैं दोनों ही अपनी इस आई नई बहन से तो बड़े ही थे, इसलिए हम थोड़े समझदार भी थे। लेकिन फिर भी अभी भी हम थे तो बच्चे ही न! तो घर में छोटी बहन के आने से हम दोनों भाइयों को लगने लगा कि मम्मी-पापा का सारा ध्यान अब उस पर ज्यादा और हम पर कम है।
माता-पिता तो सदैव ही सभी बच्चों के साथ एक जैसा ही व्यवहार करते हैं, लेकिन हम दोनों भाइयों को लगने लगा था कि उनका सारा ध्यान अब हमसे हटकर दर्शिनी पर ही चला गया है। जब दर्शिनी हमारे घर आई तब वो बहुत ही छोटी थी, इसलिए उस पर भी ध्यान देना जरूरी था। लेकिन उस समय हमारे बालमन को तो यही समझ आता था कि बहन के आने से मम्मी-पापा हम पर कम ध्यान दे रहे हैं। इसलिए हम दोनों भाई लगातार मम्मी पापा का ध्यान हमारी ओर खींचने के लिए कोशिश किया करते थे।
कभी-कभी मुझे और रईश को दर्शिनी पर बहुत ही गुस्सा भी आता था। हम दोनों कई बार उस पर बहुत चीढ़ते और कटु हो जाते थे। हम दोनों में से किसी को भी वो बिल्कुल पसंद नहीं आती थी क्योंकि उसके कारण हमारे माता-पिता का हमारे प्रति प्यार कम जो हो गया था!
एक बार तो ऐसा हुआ की वो बहुत ही रो रही थी तब रईश और मुझे उस पर बहुत ही गुस्सा आया। गुस्से में मैंने उसके हाथ को दांत से काट लिया। जिसकी वजह से तो वो और भी ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। उसे रोता हुआ देख रईश और मैं खूब हंस रहे थे। हम दोनों भाई उसे परेशान करने के लिए बार बार उसे काटने लगे और उसे रोती देखने का मज़ा लेने लगे।
जब हम दोनों भाई उसे इस तरह रुलाने का आनंद ले रहे थे, तभी अचानक मेरी माँ ने हमारी हरकत देख ली और यह देखकर उसने मुझे और रईश दोनों को थप्पड़ मारा और कहा, "अब बस भी करो तुम दोनों भाई। रोशन! रईश! दर्शिनी तुम दोनों की छोटी बहन है। तुम दोनों इतने बड़े हो गए हो फिर भी ऐसी हरकते कर रहे हो? क्या तुम दोनों में किसी तरह की कोई समझ ही नहीं है? इतनी छोटी सी बच्ची के साथ ऐसी हरकत करते हुए शर्म नहीं आती? मैं कई दिनों से देख रही हूं कि, तुम दोनों भाई दर्शिनी को लगातार परेशान कर रहे हो। अब यदि दोबारा ऐसा हुआ तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा ये याद रखना तुम दोनों। वह तुम दोनों की बहन है। तुम दोनों उसके साथ प्रेम से बर्ताव करो।”
हमने इससे पहले कभी भी माँ को इतना गुस्से में नहीं देखा था। उस दिन के बाद हममें से किसी की भी दर्शिनी को परेशान करने की हिम्मत नहीं हुई। हम दोनों अब समझ गए थे और उस दिन से हमने दर्शिनी को परेशान करना बंद कर दिया। लेकिन फिर भी हम दोनों में से कोई भी भाई उसे पूरे दिल से स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। लेकिन वो कहते है न कि जैसे-जैसे समय बीतता है, भावनाएँ जुड़ती जाती हैं और जितना अधिक समय एक साथ बिताया जाता है, उतनी ही अधिक भावनाएँ भी जुड़ती जाती हैं। आगे चलकर हमारे मामले में भी कुछ ऐसा ही होने वाला था।
हम दोनों भाइयों के बीच भावनात्मक बंधन पहले से ही मजबूत था, लेकिन दर्शिनी के आने से भले ही हम दोनों पहले खुश नहीं थे लेकिन आज हमारे मन में अपनी बहन के लिए बहुत प्यार है। और वह प्यार का रिश्ता कैसे बना वह भी मैं आगे आपको बताऊंगा।"
अमिताने पूछा "तो फिर दर्शिनी के प्रति आप दोनों भाइयों की भावनाएँ अचानक से कैसे बदल गई? क्या ऐसा कुछ हुआ था या सिर्फ माँ की चीढ़ और उनके डर के कारण ही आप दोनों दर्शिनी को पसंद करने लगे थे?'' अमिताने पूछा।
रोशनने कहा, "हाँ! उस दिन की घटना के बाद ऐसा हुआ कि हम दोनों भाई अब दर्शिनी के आसपास भी नहीं भटकते थे। और हम दोनों अब उससे एकदम दूर दूर ही रहने लगे। मानो वह घर में है ही नहीं, ऐसा सोचकर हम दोनों अपनी-अपनी दुनिया में ही मस्त रहने लगे और अपना सारा ध्यान पढ़ाई की ओर लगाने लगे। लेकिन फिर भी अभी भी दर्शिनी के साथ हमारा रिश्ता नहीं सुधरा था। रिश्ता ठीक होने का वक्त भी बहुत ही जल्दी आनेवाला था।
वक्त को बीतने में कहाँ देर लगती है? धीरे-धीरे वक्त बीतने लगा। दर्शिनी भी धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। वह भी अब स्कूल जाने लगी थी और जल्द ही हम दोनों भाई-बहन के बीच रिश्ते भी सुलझनेवाले थे।
उस दिन रईश का जन्मदिन था। हमारे घर पर उसके जन्मदिन की पार्टी थी। हम सभी दोस्त उस दिन बहुत ही खुश थे। हम लोग केक काटने के बाद घर के बाहर खेल रहे थे। दर्शिनी तब पांच साल की हो चुकी थी। हम सभी का ध्यान खेलने में था, लेकिन तभी अचानक दर्शिनीने देखा कि खेत में एक सांप निकल आया है।
अचानक छोटी सी दर्शिनी वहाँ आ गई और साँप साँप ऐसे चिल्लाने लगी। पहले तो हममें से किसी ने उसके चिल्लाने पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन अचानक ही रईश की नजर भी जब सांप पर पड़ी तो वह बहुत ही बुरी तरह से डर गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा। उसकी ये चीख सुनकर हम सभी दोस्त बहुत ही डर गए। हम सभी की चीखने चिल्लाने की आवाज़ सुनकर हमारे माता-पिता भी घर से बाहर हमारे पास दौड़े चले आए।
सांप को देखकर मेरे पिताने सबसे पहले हम सभी बच्चों को शांत किया और फिर उन्होंने हमारे घर के सामने रहते मोहनभाई को बुलाया जो सांप को पकड़ना जानते थे और उन्होंने आकर सांप को बाहर निकाला। उस सांप के बाहर निकलने के बाद ही हम सभी को बेहतर महसूस हुआ और हम सब शांत हुए। लेकिन उस घटना के बाद हमें एहसास हुआ कि अगर उस दिन दर्शिनीने उस सांप को नहीं देखा होता तो उस सांप ने किसी को तो काट ही लिया होता।
उस दिन की उस घटना के बाद हम दोनों भाइयों ने दर्शिनी को सही मायनों में अपनी बहन मान लिया।”
ये सुनकर अमिता बोल पड़ी, "वाह! यह तो बहुत अच्छा काम किया था तुम्हारी बहनने।"
रोशनने कहा, "हाँ। बिल्कुल।"
अमिता बोली, "हमें यह सुनकर बड़ी खुशी हुई कि आपकी बहन के साथ आपके रिश्ते में सुधार आया। अब ये बताईए रोशनजी! उसके बाद आप लोगों के जीवन में क्या हुआ, इसके बारे में भी कुछ बताइये।"
रोशनने अब आगे की बात शुरू की और बोला, "अब मैं आपको उस घटना के घटित होने के कुछ सालों के बाद की बातो के बारे में बताता हूँ। रईश अब दसवीं कक्षा में था और मैं आठवीं में था। रईश की उस साल बोर्ड की परीक्षा थी इसलिए वह बहुत ही कड़ी मेहनत कर रहा था। विज्ञान हमेशा से ही उसकी रुचि का विषय रहा है, इसलिए ये तो पहले से ही तय था कि उसे विज्ञान के विषय में ही आगे पढ़ाई करनी है और इसके लिए वो दसवीं में कड़ी मेहनत कर रहा था।
वो दिन-रात देखे बिना बहुत ही मेहनत कर रहा था। फिर एक दिन उसकी दसवीं की बोर्ड परीक्षा भी आ गई। उसने दसवीं की परिक्षा दी। उसके पेपर भी बहुत ही अच्छे गए थे। अब तो बस नतीजे का ही इंतज़ार था और वो दिन भी जल्दी ही आ गया। उस दिन उसका नतीजा था।”
अमिताने पूछा, "तो फिर क्या आया रईश का परिणाम? रोशनजी! और हमारे दर्शक भी अब रईश का परिणाम जानने के लिए बहुत ही उत्सुक है।"
रोशनने कहा,"अमिताजी! मैं आपको परिणाम तो जरूर बताऊंगा लेकिन उससे पहले एक छोटा सा ब्रेक ले ले?"
ये सुनकर अमिता बोली, "जी हां बिल्कुल रोशनजी! देखिए न आपसे बातचीत करते करते वक्त का कुछ पता ही नही चला। देखिए न मुझे आप से बाते करने में इतना मज़ा आ रहा था कि मैं ब्रेक लेना ही भूल गई! आपको मुझे याद करवाना पड़ा। लेकिन ब्रेक तो बनता है। तो चलो दोस्तों! अब हम लेते है एक छोटा सा ब्रेक। ब्रेक के बाद फिर जानेंगे क्या आया रईशभाई का रिजल्ट? तो दोस्तों !अब कहीं मत जाना। चलो एक छोटे से ब्रेक के बाद जल्द ही फिर मिलते है।
(क्रमश:)