Fagun ke Mausam - 43 in Hindi Fiction Stories by शिखा श्रीवास्तव books and stories PDF | फागुन के मौसम - भाग 43

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फागुन के मौसम - भाग 43

भाग- 43

 

अपने अशांत और उद्विग्न मन को शांत करने की कोशिश करते हुए जानकी ख़ामोश लेटी अपना पसंदीदा संगीत सुन रही थी कि तभी दरवाज़े की घंटी सुनकर वो चौंक गई।

 

“अभी कौन आया होगा?” सोचते हुए उसने दरवाज़ा खोला तो सामने राघव को खड़ा देखकर उसने कहा, “तुम यहाँ क्यों आए हो?”

 

“क्यों? मेरे यहाँ आने पर कोई रोक है?”

 

“नहीं... बस वो...।”

 

“ये-वो बाद में करना पहले मुझे अंदर आने दो।”

 

“हाँ आओ।” जानकी ने अब किनारे होते हुए कहा तो अंदर आते हुए राघव सीधे रसोई में चला गया।

 

जानकी उसके पीछे-पीछे वहाँ गई तो उसने देखा राघव उसके और अपने लिए दो थालियों में खाना निकाल रहा था।

 

“राघव सुनो, मैंने खाना खा लिया है। अब मुझे भूख नहीं है।” जानकी ने कहा तो एक नज़र उसे देखने के बाद राघव बोला, “मुझे कभी अकेले खाने की आदत नहीं रही, इसलिए चुपचाप चलकर अपनी जगह पर बैठो।”

 

“राघव प्लीज यार, कहा न मैंने कि मुझे नहीं खाना है।” जानकी ने अब गुस्से में कहा तो थालियों को मेज़ पर रखकर राघव उसका चेहरा अपनी हथेलियों में थामते हुए बोला, “तुम किसी भी फालतू इंसान के बकवास की सज़ा अपने आप को दो ये मैं हरगिज सहन नहीं करूँगा समझी।”

 

“क्यों? आख़िर मैं तुम्हारी हूँ कौन?”

 

जानकी के इस प्रश्न ने एकबारगी राघव को बेचैन कर दिया लेकिन फिर अगले ही पल उसने कहा, “मेरी असिस्टेंट, मेरा दाहिना हाथ जिसके बिना अब मैं अपने दफ़्तर की, अपने केबिन की और शायद ख़ुद अपने आप की भी कल्पना नहीं कर सकता हूँ।

अब या तो तुम चुपचाप खाने बैठो या फिर मुझे बदमाश बच्चों की पिटाई करके उन्हें ज़बरदस्ती खाना खिलाना भी आता है।”

 

अब जानकी के अंदर और प्रतिरोध करने का साहस नहीं बचा था इसलिए वो कुर्सी की तरफ बढ़ ही रही थी कि तभी राघव ने उसका हाथ थामते हुए कहा, “रुको।”

 

जानकी ने उसकी तरफ देखा तो राघव अपनी जेब से एक छोटा सा डिब्बा निकालकर उसकी हथेली पर रखते हुए बोला, “तारा ने बताया कि तुम मुझे हल्दी लगाने आ रही थी और फिर...।”

 

जानकी ने हैरत से इस डिब्बे को खोलकर देखा तो उसमें थोड़ी सी हल्दी थी।

इस हल्दी को राघव के गालों पर लगाते हुए यकायक जानकी उसके गले लगते हुए रो पड़ी।

 

“शशश... चुप हो जाओ मेरी गुड गर्ल। यूँ ज़रा-ज़रा सी बातों पर अपने कीमती आँसू इस तरह खर्च मत करो।

जब हमारे अपनों ने, तुम्हारे या मेरे परिवार ने कभी हमारे साथ पर ऊँगली नहीं उठाई तो तुम दुनिया की परवाह क्यों कर रही हो?”

 

“हाँ, ठीक कह रहे हो तुम। आई एम सॉरी, मैंने तुम्हें भी परेशान कर दिया।”

 

“अब छोड़ो ये सब और चलो खाना खा लो वर्ना तुम्हारे पेट के चूहे कूद-कूदकर तुम्हें मेरे कंधे पर सिर रखकर सोने भी नहीं देंगे।” राघव ने जानकी के आँसू पोंछते हुए मुस्कुराकर कहा तो जानकी भी अंततः मुस्कुरा ही पड़ी।

 

जब राघव ने भी उसके गालों पर थोड़ी सी हल्दी लगाई तब जानकी को महसूस हुआ कि अब शायद उसके और राघव के रिश्ते को जल्दी ही एक पहचान मिल जाएगी।

 

इस अहसास के साथ जब वो खाने के लिए बैठी तब उसका मन अब पूरी तरह शांत हो चुका था।

 

जब उन दोनों का डिनर खत्म हो गया तब राघव ने कहा, “तुम्हें अभी नींद आ रही है क्या?”

 

“बिल्कुल भी नहीं।”

 

“फिर ठीक है। अब तुम फटाफट अपना हाथ मुझे दो।”

 

“मतलब?” जानकी ने हैरत से पूछा तो राघव अपने कुर्ते की जेब से मेंहदी के कोन निकालते हुए बोला, “कल सबके बीच में तुम्हारी हथेलियां सूनी रह जाएं अच्छा लगेगा क्या?”

 

“पर तुम मुझे मेंहदी कैसे लगाओगे? क्या तुम्हें ये सब भी आता है?”

 

“कोशिश करने दो न और अब चुप रहो। बोल-बोलकर मेरा कॉन्फिडेंस डाउन मत करो।”

 

“अच्छा बाबा, लो अब मेरे ये हाथ तुम्हारे हुए। तुम्हें इनके साथ जो करना है करो।”

 

जानकी के इन शब्दों को सुनकर राघव ने एक पल ठहरकर उसकी आँखों में देखा और फिर अपने मोबाइल पर मेहंदी की एक डिजाइन गूगल करने के बाद वो तल्लीनता से उसे जानकी की हथेली पर कॉपी करने में लग गया।

 

एक हथेली पर अपनी कलाकारी दिखाने के बाद अब उसने जानकी की दूसरी हथेली थामी और उस पर भी वो अपनी कला के नमूने को अंकित करने में जुट गया।

 

लगभग एक घंटे के बाद जब राघव ने मेंहदी के कोन को किनारे रखते हुए अपनी ऊँगलियां चटकाईं तब अपनी हथेलियां देखते हुए जानकी का चेहरा खिल उठा।

 

“राघव तुमने कितनी सुंदर मेंहदी लगाई है। यू आर ग्रेट, सच्ची।” जानकी ने उल्लास भरे स्वर में कहा तो राघव बोला, “मैडम, अब आज की सेवा यहीं समाप्त हुई। आप जाकर आराम से दोनों हाथ फैलाकर सो सकती हैं।”

 

“और तुम कहाँ जाओगे?”

 

“कहीं नहीं। आज तुम्हारे दोनों पहरेदार अपनी ड्यूटी से गायब हैं तो उनका चार्ज मैं सँभाल लेता हूँ।”

 

“लेकिन राघव कल भी तुम्हें पूरा दिन तारा के यहाँ व्यस्त रहना है। ऐसे में अच्छी नींद तो ज़रूरी है न।”

 

“हम्म... इसका उपाय है न मेरे पास। बस तुम बताओ लीजा के फ्लैट की चाभी कहाँ है?”

 

“मेरे कमरे की मेज़ के ड्रावर में।”

 

जानकी के बताने पर राघव ने वहाँ से चाभी निकाली और फिर लीजा का फ्लैट खोलकर वो वहाँ से उसके बेड पर बिछा हुआ गद्दा उठाकर ले आया, और जानकी ने मन ही मन लीजा को धन्यवाद दिया कि उसने अपने घर में भी उसकी नृत्य साधना से संबंधित सारी चीजें और सभी तस्वीरें ये सोचकर एक अलमारी में बंद करके रख दी थीं कि अब जब राघव उसका और मार्क का भी अच्छा दोस्त बन चुका है तब हो सकता है वो कभी उनके फ्लैट में भी आ जाए।

 

जानकी के ड्राइंग रूम में गद्दा लगाने के बाद राघव ने उससे कहा, “अब मुझे कोई समस्या नहीं होगी। बस तुम्हारे कमरे से मैं एक तकिया और कंबल ले लेता हूँ।”

 

राघव को इतना सहज देखकर इस क्षण जानकी ने मन ही मन सोचा, “थैंक गॉड राघव कि भले ही तुम नहीं जानते कि मैं ही तुम्हारी वैदेही हूँ पर हूँ तो मैं वही। अगर आज मेरी जगह यहाँ कोई और लड़की होती और मुझे पता चलता कि तुम उसके साथ इतने कंफर्टेबल हो तो कसम से मैं तुम्हारा बहुत बुरा हाल करती।”

 

“क्या हुआ? घूर क्यों रही हो मुझे वो भी आँखें इतनी बड़ी-बड़ी करके?”

 

राघव के टोकने पर अपने ख़्यालों से बाहर आते हुए जानकी ने कहा, “नहीं, कुछ नहीं। गुड नाईट एंड ऑन्स अगेन थैंक्यू फॉर दिस ब्यूटीफुल मेहंदी।”

 

“रुको, मुझे अपनी हथेलियों की एक तस्वीर लेने दो।” राघव ने अपना मोबाइल निकालते हुए कहा तो जानकी ने मुस्कुराते हुए अपनी मेंहदी के साथ अलग-अलग पोज़ में तस्वीरें खिंचवाईं और फिर जब वो अपने कमरे में गई तब उसका जी चाहा कि वो घुँघरू पहनकर पूरे बनारस को अपने कदमों की ताल पर थिरका दे, फिर अपनी इस कल्पना पर ख़ुद ही हँसती-मुस्कुराती और थोड़ा शर्माती हुई वो धीरे-धीरे नींद की आगोश में समाती चली गई।

 

आज राघव को इतना सुकून महसूस हो रहा था कि उसे सोने के लिए कोई विशेष प्रयत्न नहीं करना पड़ा।

 

अभी आसमान में चाँद ने अपना आधा ही सफ़र तय किया था कि गला सूखने के अहसास से राघव की नींद खुली।

 

पानी पीने के लिए वो रसोई की तरफ गया तो न चाहते हुए भी उसकी नज़र जानकी के कमरे की तरफ चली गई जिसने दरवाज़ा बंद करने की जगह बस हल्का सा परदा खींच रखा था।

 

परदे की ओट से राघव ने देखा जानकी एक तकिये पर सो रही थी और दूसरा तकिया उसने अपने सिर के पीछे भी लगाया हुआ था।

 

उसे सहसा याद आया कि उसने बचपन में कई बार वैदेही को भी बिल्कुल इसी तरह दो तकियों के साथ सोते हुए देखा था।

 

इस याद ने राघव को एक बार फिर बेचैन कर दिया लेकिन फिर जब उसका ध्यान नींद में भी जानकी के होंठों पर छाई हुई मुस्कुराहट पर गया तब वो सब कुछ भूलकर कुछ क्षण उसे अपलक देखता रहा और फिर पानी पीने के बाद अपने बिस्तर पर आकर लेट गया।

 

सुबह जानकी के आवाज़ देने पर जब राघव की नींद खुली तब उसने देखा सुबह के सात बज चुके थे।

 

उसने तुरंत अविनाश को फ़ोन करके उससे कहा कि वो बस एक घंटे में तैयार होकर उसके पास आ जाएगा।

 

फिर उसने जानकी से पूछा कि वो कब तक तारा के घर आएगी तो जानकी ने कहा, “मैं तो दफ़्तर जा रही हूँ, शाम में देखते हैं।”

 

“तुम भूल गई क्या आज और कल दोनों दिन दफ़्तर में सबकी छुट्टी है।” राघव ने उसे याद दिलाया तो जानकी ने कहा, “अच्छा मैं घर पर तो काम कर सकती हूँ।”

 

पिछली रात की बात याद करते हुए राघव समझ गया कि जानकी तारा के पास क्यों नहीं जाना चाहती है, इसलिए उसने जानकी के हाथों को अपने हाथों में थामकर उस पर रची हुई मेहंदी देखते हुए कहा, “देखो, मैं चाहूँ तो गूगल करके मेंहदी लगाने के साथ-साथ यू ट्यूब देखकर तुम्हें साड़ी भी पहना सकता हूँ पर ये बहुत ज़्यादा हो जाएगा, है न।

इसलिए तुम चुपचाप तैयार होकर पहुँच जाना, आज हम सब नाश्ते में वहीं विवाह वाली स्पेशल कचौड़ी-सब्जी और रायता खायेंगे।”

 

जानकी के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही राघव वहाँ से चला गया तो जानकी समझ गई कि बचपन की तरह आज भी वो राघव की ज़िद से नहीं जीत सकती है, इसलिए उसने अलमारी से राघव की ही दी हुई हरी साड़ी निकाली और तैयार होने चल पड़ी।

 

आज राघव और जानकी के रिश्ते पर टिप्पणी करने वाली चाचीजी को पूरे दिन में ऐसा कोई अवसर नहीं मिल पाया कि वो जानकी के विषय में कुछ कह सकें क्योंकि जानकी घर के अंदर तारा के साथ थी तो राघव अविनाश और मार्क के साथ उस वेडिंग हॉल में सारी तैयारियां करवाने में व्यस्त था जहाँ शाम में यश बारात लेकर आने वाला था।

 

लीजा और तारा ने जब जानकी के हाथों में रची हुई मेहंदी देखी तब जानकी पहले तो चुप रही लेकिन फिर उसे बताना ही पड़ा कि ये राघव की कलाकारी है।

 

“वाह-वाह! फिर तो मैं अपनी चाची को आज अपने हाथ से लड्डू खिलाऊँगी क्योंकि अगर वो तुम्हें अपसेट नहीं करतीं तो हम कैसे जान पाते कि राघव महाशय किस कदर तुम्हारे प्रेम में डूबते जा रहे हैं।”

 

तारा के इन शब्दों को सुनकर जानकी की धड़कनें भी अंजानी खुशी की तरंगों पर हिलोरें लेने लगीं और फिर इस खुशी का सारा श्रेय तारा को देते हुए वो अंजली के पास उसका हाथ बँटाने चली गई।

 

दोपहर में जब अविनाश, मार्क और राघव खाना खाने घर आए तब तारा के कहने पर मिसेज माथुर ने जानकी को उन्हें खाना खिलाने की ज़िम्मेदारी दे दी।

 

जानकी को खाना लेकर आते हुए देखकर राघव को ऐसा महसूस हुआ मानों उसकी थकान पल भर में ही उतर गई है।

 

ये अहसास उसके लिए बहुत ख़ास बनता जा रहा था कि जानकी हमेशा उसकी भावनाओं का ख़्याल रखती थी और आज भी उसकी बात का मान रखते हुए वो यहाँ तारा के घर पर थी।

 

अभी उन सबने खाना शुरू ही किया था कि तारा भी वहीं आकर बैठ गई।

 

बातों-बातों में सहसा तारा ने धीरे से राघव के कान में कहा, “राघव बाबू, हरी साड़ी तो जानकी ने पहनी है लेकिन मुझे हरियाली आपकी आँखों में दिख रही है।”

 

“तुम पहले अपनी आँखें देखो जो यश को दूल्हे के रूप में देखने के लिए इतनी बेकरार हैं कि इनका वश चले तो यहाँ से उसके घर तक लंबी सी दूरबीन लगाकर बस उसके सामने ही बैठ जाएं।”

 

राघव के इस मज़ाक पर यकायक तारा की आँखों में आँसू आ गए तो राघव के साथ-साथ अविनाश और जानकी भी घबरा गए।

 

जानकी ने तारा के आँसू पोंछे तो तारा बोली, “कल तक तो सब कुछ कितना अच्छा लग रहा था लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि मैं अपना सब कुछ पीछे छोड़कर कुछ ही घंटों के बाद यहाँ से चली जाऊँगी और इस घर के साथ-साथ यहाँ रहने वाले सब लोग मेरे लिए पराए हो जाएंगे।”

 

उसकी बात सुनकर जहाँ राघव एकदम से गंभीर हो गया, वहीं अविनाश ने अपनी आँखों की नमी छिपाकर मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा, “मेरी पगली बहन, तुम उल्टा क्यों सोच रही हो? तुम बस ये सोचकर खुश रहो कि अब तुम्हारे दो-दो घर होंगे।”

 

अंजली ने भी वहाँ आकर तारा के पास बैठते हुए कहा, “बिल्कुल सही कहा तुम्हारे भईया ने। सोचो अगर मैं भी अपना मायका छोड़कर यहाँ नहीं आती तो मुझे तुम्हारे जैसी ननद कहाँ मिलती?”

 

“भाभी...।” तारा ने स्नेह से कहा तो अंजली ने उसे अपनी बाँहों में भर लिया।

 

जानकी को भी अपनी आँखें पोंछते हुए देखकर जब अंजली ने उसे भी दुलार से गले लगाया तो जानकी ने महसूस किया कि वो भी तारा की तरह खुशकिस्मत है कि भारत आने के बाद उसके अपनों की सूची भी ख़ासी लंबी हो गई है और इस सूची पर उसे नाज़ है।

 

एक के बाद एक जब विवाह पूर्व होने वाली सभी रस्में संपन्न हो गईं और तारा को दुल्हन के रूप में तैयार होने के लिए भेज दिया गया तब जानकी भी लीजा और मार्क के साथ थोड़ी देर के लिए अपने घर चली गई ताकि वो तीनों भी तैयार होकर बारात के आने से पहले वेडिंग हॉल पहुँच सकें।