Fagun ke Mausam - 42 in Hindi Fiction Stories by शिखा श्रीवास्तव books and stories PDF | फागुन के मौसम - भाग 42

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फागुन के मौसम - भाग 42

  भाग- 42

 

अपने कमरे में लेटा हुआ राघव समय काटने के लिए यूँ ही मोबाइल की स्क्रीन को स्क्रॉल कर रहा था कि तभी दरवाज़े की बजती हुई घंटी ने उसे अपनी तरफ बुलाया।

 

उसने उठकर दरवाज़ा खोला तो सामने जानकी को खड़ा देखकर वो हतप्रभ सा हो गया।

 

“मैं अंदर आ जाऊँ?” जानकी के पूछने पर राघव ने कहा, “हाँ-हाँ आओ न लेकिन मैं घर में अकेला हूँ।”

 

“तो क्या हुआ? जब तुम मेरे घर आते हो तब मैं भी तो अकेली होती हूँ।”

 

“नहीं। तुम्हारे वो दोनों विदेशी पहरेदार रहते हैं न हमेशा तुम्हारे आस-पास।”

 

“ओहो तो क्या तुम चाहते हो मैं उन्हें पहरेदारी से हटा दूँ?” जानकी ने राघव की आँखों में देखते हुए कहा तो एक पल के लिए राघव सकपका सा गया और फिर उसने कहा, “ये साड़ी तुम पर बहुत अच्छी लग रही है पर तुम तारा के साथ होने की जगह यहाँ क्यों आई हो?”

 

राघव की उत्सुकता देखते हुए अपने हाथ का पैकेट उसकी तरफ बढ़ाते हुए जानकी बोली, “इसे पहन लो और मेरे साथ चलो।”

 

“क्या है इसमें और कहाँ चलूँ मैं?”

 

“इसमें हल्दी की रस्म में पहनने के लिए तुम्हारे कपड़े हैं और हमें तारा के घर जाना है।”

 

“नहीं जानकी, मेरा कहीं जाने का मन नहीं है।”

 

“अच्छा, क्यों भला? बताओ मुझे।”

 

“मेरे सिर में बहुत दर्द है।” राघव ने कुछ बेरुखी से कहा तो अपने पर्स से बाम निकालकर उसे दिखाते हुए जानकी बोली, “कोई बात नहीं। यहाँ मेरे पास बैठो मैं तुम्हारे माथे पर बाम भी लगा देती हूँ और फिर तुम्हारे बालों की अच्छे से चंपी करके तुम्हारे लिए काली मिर्च और लौंग की चाय बना देती हूँ। फिर देखना यूँ चुटकी बजाते तुम्हारा सिर दर्द गायब हो जाएगा।”

 

“रहने दो। न तुम्हें अपने हाथ खराब करने की ज़रूरत है और न ही इतनी मेहनत करने की।”

 

“तो फिर भाव खाना बंद करो और उठो।”

 

“मैंने कहा न मुझे कहीं नहीं जाना है। मैं कल विवाह के दिन सुबह ही सुबह तारा के पास चला जाऊँगा।” राघव ने अब थोड़ी तेज़ आवाज़ में कहा तो एकबारगी जानकी सहम सी गई लेकिन फिर अचानक अगले ही पल उठकर उसने राघव की आँखों पर अपनी हथेलियां रखते हुए कहा, “तुम मुझ पर फुर्सत में चिल्ला लेना, पहले बंद आँखों से सिर्फ और सिर्फ तारा को देखते हुए मुझे बताओ कि वो तुम्हारे लिए क्या मायने रखती है?”

 

“उसकी दोस्ती के बिना मैं अपनी ज़िंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकता हूँ।” राघव ने अब नरम होते हुए कहा तो जानकी बोली, “राघव, ये कपड़े भले ही मैं लेकर आई हूँ लेकिन इन्हें तुम्हारे लिए तारा ने भिजवाया है, इस उम्मीद के साथ कि उसका बेस्ट फ्रेंड उसकी खुशी में ज़रूर शामिल होगा।

तुम्हारे बिना तारा की ज़िंदगी का इतना स्पेशल दिन अधूरा है राघव।

क्या तुम्हारे अपने पर्सनल इश्यूज इतने बड़े हैं कि उनके आगे तुम अपनी बेस्ट फ्रेंड की फीलिंग्स को भी बिना आह भरे कुचल सकते हो?”

 

जानकी के इन शब्दों का राघव पर सकारात्मक असर हुआ और उसने उसका हाथ अपनी आँखों पर से हटाते हुए कहा, “तुम चाय बनाने वाली थी न, जाओ बनाओ। तब तक मैं तैयार होकर आता हूँ।”

 

“मैं नहीं बना रही चाय-वाय। वो तो मैंने यूँ ही कह दिया था। मेरी साड़ी, ये चूड़ियां और रसोई की गर्मी में मेरा मेकअप... सब खराब हो जाएगा।” जानकी ने इठलाते हुए कहा तो राघव को हँसी आ गई जिसे रोके बिना उसने कहा, “उफ़्फ़ इन लड़कियों के नखरों से भगवान बचाए। ठीक है मेमसाहब, आप बैठिए मैं ही चाय बना लेता हूँ।”

 

“हम्म... ये हुई न एक अच्छे होस्ट वाली बात।” जानकी ने भी हँसते हुए कहा और फिर वो आराम से सोफे पर बैठकर वहीं रखी हुई एक पत्रिका उठाकर पढ़ने लगी।

 

तारा की हल्दी का कार्यक्रम शुरू हो चुका था। उसकी माँ, भाभी, चाचियां, मौसियां, बुआ और दूसरी विवाहित बहनें सब बारी-बारी से उसे शगुन की हल्दी लगाकर उसके और यश के सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए अपना आशीर्वाद दे रही थीं।

 

हल्दी के गीतों के बीच हँसी-ठिठोली और थोड़े-बहुत नृत्य-संगीत का रंग भी अब जमने लगा था।

इस खुशनुमा माहौल में इतने लोगों से घिरे होने के बावजूद तारा बेचैन सी बार-बार दरवाज़े की तरफ देख रही थी।

 

लीजा से समय पूछने के बाद तारा को लगा कि शायद जानकी अपनी कोशिश में हार गई है और इसलिए वो भी यहाँ नहीं आई।

 

अभी उसके चेहरे पर हल्दी के निखार की जगह मायूसी का रंग छाने ही वाला था कि तभी जानकी की खिलखिलाती हुई आवाज़ उसके कानों में पड़ी, “कहाँ है मेरी दुल्हनिया? देखो मैं आ गई हूँ, मेरा मतलब है हम आ गए हैं।”

 

जानकी के साथ ही आ रहे राघव को देखते ही तारा का चेहरा खिल उठा।

नंदिनी जी और दिव्या जी भी राघव को यहाँ देखकर अपनी आश्चर्यमिश्रित खुशी व्यक्त कर रही थीं।

 

राघव को अपने पास बुलाकर तारा ने हल्दी की कटोरी उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा, “मुझे शगुन की हल्दी लग चुकी है इसलिए अब तुम भी मुझे हल्दी लगाकर इस रस्म को पूरा कर सकते हो।”

 

एक पल के लिए तो राघव झिझका लेकिन फिर तारा की आँखों में स्नेह भरा आग्रह देखते हुए वो उसे मना नहीं कर पाया।

जब उसने तारा के गालों पर थोड़ी सी हल्दी लगा दी, तब तारा ने भी उसे ज़रा सी हल्दी लगाते हुए कहा, “लो तुम्हारा शगुन भी मैंने पूरा कर दिया और मैं तुम्हें आशीर्वाद देती हूँ कि जल्दी ही तुम्हारी हल्दी के कार्यक्रम में मैं तुम पर ढ़ेर सारी हल्दी की वर्षा करूँ।”

 

प्रतिउत्तर में कुछ कहने की जगह राघव वहाँ से उठकर अविनाश और मार्क के पास चला गया।

 

अब जानकी ने तारा को थोड़ी सी हल्दी लगाई तो उसके गालों पर भी हल्दी लगाते हुए यकायक तारा की आँखों में आँसू आ गए जिन्हें जानकी और लीजा ने बड़ी मुश्किल से पोंछा।

 

“क्या बात है तारा? इतने शुभ दिन पर ये आँसू?” जानकी के पूछने पर तारा बोली, “अभी मैंने एक बार फिर राघव की आँखों में उदासी और दर्द की वही पुरानी छाया देखी। जानकी मैंने तुम्हें अपना राघव बहुत विश्वास के साथ सौंपा है। देखो, तुम हमेशा उसका ध्यान रखना और उसे कभी चोट मत पहुँचाना।”

 

“मेरी हमेशा यही कोशिश रहेगी तारा।” जानकी ने भी नम आँखों से कहा तो रिश्तों के ये खूबसूरत बंधन देखते हुए लीजा की आँखों में भी आँसू आ गए।

 

जब तारा के हाथों में मेंहदी रचाई जाने लगी तब राघव ने जानकी से कहा कि तारा के बाद वो भी जल्दी ही खाना खाकर अपनी हथेलियों में मेंहदी लगवा ले वर्ना ज़्यादा रात होने से उसे परेशानी होगी।

 

“नहीं, आज मैं मेंहदी नहीं लगाऊँगी।” जानकी ने कहा तो राघव आश्चर्य से बोला, “पर क्यों?”

 

“क्योंकि लीजा रात में यहीं तारा के साथ रहने वाली है और मार्क को भी अविनाश भईया ने कम्पनी देने के लिए रोक लिया है तो मुझे अकेले घर जाने में समस्या होगी।”

 

“ओहो, मैं हूँ न। मैं तुम्हें पहुँचा दूँगा। तुम मेंहदी लगवाओ तब तक मैं भईया के पास जा रहा हूँ।” जानकी को आदेश सा देते हुए राघव वहाँ से चला गया तो तारा ने आहिस्ते से जानकी से कहा, “मेंहदी लगवाने से पहले राघव को हल्दी तो लगा दो।”

 

“हाँ, एक कोशिश करके देखती हूँ।” जानकी ने थोड़ी सी हल्दी अपने हाथों में लेते हुए कहा और फिर वो राघव को ढूँढ़ने चल पड़ी।

 

अभी वो कुछ ही कदम आगे बढ़ी थी कि उसने देखा एक अधेड़ उम्र की महिला अंजली से बात कर रही थीं।

 

उनके मुँह से सहसा राघव का नाम सुनकर जानकी के कदम वहीं ठिठक गए।

 

वो महिला जो रिश्ते में तारा और अविनाश की चाची लगती थीं वो अंजली से कह रही थीं, “बहू, ये जिस लड़की के साथ अपना राघव यहाँ आया है वो कौन है?”

 

“वो तो जानकी है चाचीजी, दफ़्तर में राघव की नई असिस्टेंट।”

 

“नई मतलब?”

 

“मतलब अभी अप्रैल में ही उसने राघव और तारा की कंपनी ज्वाइन की है।”

 

“ओह अच्छा लेकिन बड़ी चालू लड़की दिखती है। बहुत जल्दी ही अपने सीधे-सादे राघव को फँसा लिया उसने वर्ना मैंने तो कभी राघव को किसी लड़की के आगे-पीछे घूमते नहीं देखा था।”

 

“ये आप कैसी बातें कर रही हैं चाचीजी? जानकी हम सबके लिए हमारे परिवार की तरह है।”

 

“हाँ वो तो देखा मैंने जब अभी राघव बेटा उसे पूरे अधिकार से मेंहदी लगवाने के लिए कह रहा था।”

 

“तो ये अच्छी बात है न। अब इस अवसर पर घर की बेटियां-बहुएं मेंहदी नहीं लगाएंगी तो विवाह का माहौल सूना-सूना नहीं लगेगा? मैं भी बस मेहमानों के खाने-पीने के बाद मेंहदी ही लगवाने बैठूँगी। आपका मन हो तो आप भी आ जाइएगा।” अंजली ने दो टूक उत्तर देते हुए कहा और फिर वो खाने के स्टॉल की तरफ बढ़ गई।

 

अपने लिए बोले गए इन शब्दों को सुनने के बाद अब जानकी को एक पल भी यहाँ खड़े रहना असंभव सा लग रहा था।

उसका जी चाहा कि वो चुपचाप बाहर निकल जाए लेकिन फिर तारा का ख़्याल करते हुए उसने उसके पास जाकर कहा, “तारा, मेरी तबीयत अचानक ठीक नहीं लग रही है इसलिए मैं घर जा रही हूँ। कल सुबह मैं फिर आ जाऊँगी।”

 

“अरे क्या हुआ तुम्हें अचानक? अभी तो तुम ठीक थी।” तारा ने घबराकर पूछा तो जानकी ने कहा, “पता नहीं क्यों सिर बहुत भारी लग रहा है और आँखें भी दर्द कर रही हैं।”

 

“सच बताओ तुम्हारे हल्दी लगाने को लेकर राघव ने तुमसे झगड़ा किया न?”

 

“नहीं, वो तो मुझे मिला ही नहीं।” जानकी ने अपनी हथेलियां तारा को दिखाते हुए कहा जिन पर अब भी राघव के नाम की हल्दी जस की तस थी।

 

“अच्छा तुम दो मिनट रुको मैं राघव से कहती हूँ वो तुम्हें घर छोड़ देगा।”

 

“नहीं प्लीज, मैं चली जाऊँगी उसे परेशान मत करो।” जानकी ने अपने हाथ साफ करते हुए कहा तो तारा बोली, “ठीक है मैं भईया से कहती हूँ वो ड्राइवर भेज देंगे तुम्हारे साथ। कहीं रास्ते में तुम्हें कुछ हो गया तो?”

 

“कुछ नहीं होगा मुझे। बस तुम मुझे जाने दो।” कहते-कहते जानकी की आवाज़ भर्रा सी गई तो तारा अब आगे कुछ नहीं बोल पाई।

 

लीजा और मार्क ने भी जानकी के साथ जाना चाहा तो उसने उन्हें भी मना करते हुए कहा कि वो आराम से फंक्शन एंजॉय करें।

 

“अच्छा मैं तुम्हारे लिए खाना पैक करवा देती हूँ।” तारा ने उठते हुए कहा तो उसे अपनी मेंहदी पर ध्यान लगाने के लिए कहते हुए जानकी बोली, “मैं घर पर कुछ हल्का खा लूँगी डोंट वरी।”

 

“अच्छा कम से कम घर पहुँचकर मुझे एक फ़ोन कर देना।” तारा ने कहा तो हामी भरते हुए जानकी वहाँ से चली गई।

 

थोड़ी देर बाद जब राघव तारा के पास आया तब वहाँ जानकी को न देखकर वो अभी तारा से उसके विषय में पूछने ही जा रहा था कि अंजली ने वहाँ आकर तारा के पास बैठते हुए कहा, “क्या ही अजीब घटिया लोग होते हैं इस दुनिया में?”

 

“मैं तो यहाँ बैठी हूँ भाभी फिर आप यूँ गुस्से में किसकी बात कर रही हैं?” तारा ने चुहल करते हुए कहा तो अंजली बोली, “अरे ये तुम्हारी चाची। जानकी के बारे में उल्टी-सीधी बकवास किए जा रही थी।”

 

“मतलब?” तारा और राघव ने लगभग एक साथ ही चौंककर कहा तो अंजली ने उन्हें सारा किस्सा कह सुनाया।

 

“लगता है जानकी ने ये सब सुन लिया है इसलिए वो अचानक ही तबियत खराब होने का बहाना बनाकर चली गई।” तारा ने जैसे ही कहा अंजली अफ़सोस भरे स्वर में बोली, “ओह बेचारी बच्ची। अगर कल भी वो नहीं आई तो मैं तुम्हारे भईया को भेजूँगी उसे लाने। देखते हैं कौन क्या कर लेता है।”

 

“ठीक है भाभी। अब आप भी शांत हो जाइए और मेंहदी लगवा लीजिए।” तारा ने राघव की तरफ देखते हुए कुछ यूँ कहा जैसे वो अंजली से नहीं राघव से शांत रहने की विनती कर रही हो।

 

उसकी अनकही बात समझते हुए राघव ने भी आँखों ही आँखों में उसे तसल्ली दी कि वो इन बातों की वजह से कोई बखेड़ा खड़ा नहीं करेगा और उठकर वहाँ से चला गया।

 

थोड़ी देर के बाद जब अविनाश ने राघव को खाने के लिए बुलाया तब राघव ने थकान का बहाना बनाते हुए कहा कि वो खाना पैक करवाकर ले जा रहा है और घर पर आराम से पैर फैलाकर खा लेगा।

 

“ठीक है भाई जाओ क्योंकि कल सुबह से ही तुम्हें भी मेरे साथ मोर्चा सँभालना है तो आज की रात आराम से सो जाओ।” अविनाश ने राघव की पीठ थपथपाते हुए कहा तो राघव खाने के स्टॉल की तरफ बढ़ गया।