Fagun ke Mausam - 36 in Hindi Fiction Stories by शिखा श्रीवास्तव books and stories PDF | फागुन के मौसम - भाग 36

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फागुन के मौसम - भाग 36

 भाग- 36

 

राघव जब दफ़्तर पहुँचा तब उसने देखा जानकी आकर अपनी कुर्सी पर बैठ चुकी थी।

 

“बॉस, आप पूरे पाँच मिनट लेट हैं।” जानकी ने घड़ी की तरफ संकेत करते हुए कहा तो राघव बोल, “सॉरी मैम, क्या है न कि कल रात किसी की मेहरबानी से सोफे पर मेरी नींद अच्छी तरह पूरी नहीं हुई।”

 

“हम्म... ठीक है चलिए आज आपको रियायत दी जाती है। आप चाहें तो आज घर जा सकते हैं।”

 

“क्यों? आज हमारे पास कोई काम नहीं है क्या?”

 

“कुछ ख़ास नहीं। विकास सर ने गेम का फाइनल ट्रायल ले लिया है और सब कुछ दुरुस्त है। कल तारा मैम अपनी छुट्टी से वापस आ जाएंगी तब हम मीटिंग में सीडी लॉन्च की तारीख तय कर लेंगे।

और हर्षित सर ने इस गेम के लिए जो मार्केटिंग प्लान बनाकर इसका प्री-प्रमोशन शुरू किया था उसके भी रिजल्ट्स काफ़ी पॉजिटिव रहे हैं और हमारे पास एडवांस में इस गेम के लिए अच्छे-ख़ासे ऑर्डर्स आ चुके हैं।”

 

“अरे बस-बस, एक ही साँस में कितना बोलती हो यार तुम।

मैं सच्ची अपने इस प्रोजेक्ट को लेकर बहुत एक्साइटेड हूँ।

हम इसके लॉन्च के लिए एक शानदार इवेंट रखेंगे। कैसा रहेगा?”

 

“बहुत अच्छा रहेगा। मैं सोच रही थी अगर हम ये इवेंट आपके जन्मदिन पर रखें तो कैसा रहेगा?”

 

“ठीक है, वैसे तुम्हारा जन्मदिन कब है?”

 

“वो तो अब अगले वर्ष आएगा।”

 

“ओह! कोई बात नहीं। जब आएगा तब हम फिर एक नया गेम लॉन्च कर लेंगे।”

 

“अच्छा वो तो बाद की बात है, फ़िलहाल क्या मैं हमारे इवेंट मैनेज़र को फ़ोन करके बुला लूँ?”

 

“बिल्कुल मिस असिस्टेंट, नेक काम में देर कैसी?”

 

एक घंटे बाद ही राघव, जानकी और उनकी पूरी टीम पांडेय के साथ बैठकर राघव के जन्मदिन के दिन गेम लॉन्च की पार्टी से सम्बन्धित डिस्कशन करने में जुट चुकी थी।

 

सब कुछ तय होने के बाद जब जानकी और राघव अपने केबिन में आए तब जानकी ने राघव से कहा कि अब वो घर चला जाए और अच्छी तरह आराम करे।

 

उसकी बात मानते हुए राघव ने कहा, “ठीक है, तुम चाहो तो तुम भी छुट्टी ले लो।”

 

“नहीं, मेरी नींद पूरी हो चुकी है इसलिए मेरे दिमाग में हमारे अगले प्रोजेक्ट के लिए जो आइडियाज़ हैं मैं उन पर काम करूँगी।”

 

“अच्छा फिर तुम मेरा लैपटॉप रख लो।”

 

“ठीक है।” जानकी अपनी कुर्सी पर बैठते हुए बोली तो एक भरपूर नज़र उसे देखने के बाद राघव अपने घर के लिए निकल गया।

 

तारा जब अगले दिन दफ़्तर आई तब विकास ने उसके साथ-साथ पूरी टीम के लिए गेम का फुल ट्रायल शुरू किया जिसके खत्म होते-होते शाम ढल चुकी थी।

 

वैदेही गेमिंग वर्ल्ड की पूरी टीम फाइनली स्क्रीन पर अपने इस नए गेम को देखकर बहुत ही ज़्यादा खुश थी।

 

जानकी ने गेम लॉन्च की तारीख और पांडेय से हुई सारी बातचीत जब तारा को बताई तब उसने अपनी सहमति देते हुए फटाफट ख़ास मेहमानों की एक लिस्ट बना ली जिन्हें इस इवेंट का निमंत्रण भेजा जाना था।

 

इस लिस्ट में जिले और राज्य के कई बड़े अधिकारियों के साथ पर्यटन राज्य मंत्री के पीए का भी नाम था।

 

“मुझे लगता है कि चूँकि हमारे इस गेम का बैकग्राउंड एक तरह से इतिहास की सैर पर आधारित है तो पर्यटन विभाग ज़रूर ही पड़ोसी देश के साथ संबंध मजबूत करने की दिशा में हमारे इस गेम को तवज्जो देगा।”

 

उसकी बात से सहमत होते हुए राघव ने कहा, “हाँ बिल्कुल, ऐसा हो सकता है। हमें अपनी तरफ से निमंत्रण भेजने में क्या दिक्कत है।

और रही बाकी अधिकारियों वगैरह की बात तो वो तो हमारी पिछली पार्टी में भी आए थे। और उसके बाद से अब तक वैदेही गेमिंग वर्ल्ड का नाम और भी बड़ा हो चुका है।”

 

“फिर मैं ख़ुद ही इस पार्टी के लिए एक स्पेशल इन्विटेशन कार्ड डिज़ाइन करूँगा।” हर्षित ने उत्साह से कहा तो राहुल बोला, “और मैं आज से ही विकास के साथ मिलकर पार्टी को अच्छे से अच्छे तरीके से होस्ट करने की तैयारी में लग जाता हूँ।”

 

“और मैं इस बार प्रवेश द्वार पर सभी मेहमानों को बिना घबराए गुलदस्ता देकर उनका स्वागत करने की प्रैक्टिस कर लेता हूँ।” मंजीत ने कहा तो जानकी बोली, “सबने तो अपने-अपने काम बाँट लिए, अब मैं क्या करूँ? मुझे भी कुछ बताइए आप लोग।”

 

“मैडम, आप कल हमारे नए प्रोजेक्ट के लिए जिस आइडिया पर काम कर रही थीं बस उसे ज़ारी रखिए क्योंकि आपका दिमाग हमारे लिए बहुत लकी साबित हुआ है।” मिश्रा जी ने कहा तो तारा बोली, “अरे हाँ जानकी, तुम अपना आइडिया हम सबको बताओ तो।”

 

“एक बार तुम सब ज़रा घड़ी भी देख लो, शाम के सात बजने जा रहे हैं। अब एक दिन में हम कितना काम करेंगे? फ़िलहाल घर जाओ सब लोग।” राघव ने अपनी कुर्सी से उठते हुए कहा तो एक-एक करके बाकी सब लोग भी उठ गए।

 

राघव के पीछे-पीछे उसके केबिन में आते हुए तारा ने कहा, “राघव, चलो न थोड़ी देर अस्सी घाट चलते हैं।”

 

“ठीक है, जानकी से पूछ लो अगर वो भी आना चाहे।”

 

“नहीं, उसे कुछ काम है तो वो घर जाएगी।”

 

“ठीक है, चलो फिर।” राघव ने अभी अपना बैग उठाया ही था कि जानकी भी वहाँ आ गई।

 

उसने राघव से उसका लैपटॉप माँगा तो राघव बैग उसके हवाले करके तारा के साथ बाहर चला गया।

 

जानकी ने भी लैपटॉप बैग के साथ अपना पर्स सँभाला और घर के लिए निकल गई।

 

अस्सी घाट पर राघव के साथ बैठी हुई तारा ने कहा, “मेरे ख़्याल से हमें जानकी को एक लैपटॉप गिफ्ट कर देना चाहिए। अब तो वो हमारे दफ़्तर में परमानेंट ही हो गई है। फिर कब तक वो तुम्हारा लैपटॉप बॉरो करती रहेगी?”

 

“जब एक लैपटॉप से काम चल ही जा रहा है तो बेकार में फ़िजूलखर्ची करने की क्या ज़रूरत है तारा? जानकी को गिफ्ट ही देना है तो कुछ और दे दो।”

 

“बात सिर्फ पैसों की है?” तारा ने गहरी नज़रों से राघव की तरफ देखते हुए पूछा तो राघव बोला, “और क्या बात होगी भला?”

 

“अच्छा, चलो फिर आज तुम्हारे घर पर डिनर बनाते हैं।”

 

“चलो। वैसे तुम क्या बनाने वाली हो?”

 

“छोले-भटूरे। मैंने चाची को सुबह ही छोले भिगाकर रख देने के लिए कहा था।”

 

“बढ़िया है। फिर मैं एक काम करता हूँ लीजा को भी फ़ोन करके बुला लेता हूँ।”

 

“क्यों?” तारा ने हैरत से पूछा तो राघव बोला, “उसे भी छोले-भटूरे बहुत पसंद हैं न।”

 

“अच्छा, ठीक है।” तारा ने गाड़ी में बैठते हुए कहा तो राघव ने भी अपनी सीट पर बैठने के बाद पहले लीजा को डिनर पर इन्वाइट किया और फिर उसने गाड़ी अपने घर की दिशा में मोड़ दी।

 

घर पहुँचने के बाद जब तक तारा ने गैस पर छोले चढ़ाए तब तक राघव भी भटूरे का आटा गूँधकर सेट होने के लिए रख चुका था।

 

अब थोड़ी देर आराम करने के ख़्याल से वो दोनों ड्राइंग रूम में आकर नंदिनी जी के पास बैठे ही थे कि तभी लीजा के साथ मार्क भी वहाँ आ गया।

 

उन दोनों के साथ जानकी को न देखकर राघव के चेहरे पर जो निराशा उभर आई थी उसे पढ़ते हुए मार्क ने कहा, “हमने जानकी से भी आने के लिए कहा था लेकिन वो लैपटॉप में उलझी बैठी है।”

 

“हाँ इसलिए हम टिफिन लेकर आए हैं। उसके लिए खाना पैक करके ले जाएंगे अगर आप लोगों को कोई प्रॉब्लम न हो तो।” लीजा ने कहा तो नंदिनी जी बोलीं, “इसमें प्रॉब्लम की क्या बात है बेटा? अब तुम लोग बातें करो मैं कुछ देर आराम करूँगी।”

 

नंदिनी जी उठकर चली गईं तो तारा भी टीवी बंद करके लीजा और मार्क के साथ बैठ गई।

 

जानकी के विषय में सोचते हुए सहसा राघव बुदबुदाया, “ऐसी पागल लड़की मैंने आज तक नहीं देखी।”

 

इन शब्दों को सुनकर तारा ने चौंककर राघव की तरफ देखा और फिर जो वो लीजा और मार्क के साथ बातों में लगी तो उसे समय का होश ही नहीं रहा।

 

तारा को अपनी ही धुन में मगन देखकर राघव किचन में गया और उसने कुछ भटूरे बनाने के बाद उन्हें छोलों के साथ टिफिन में पैक किया, और फिर नंदिनी जी के पास जाकर उसने कहा कि वो किसी ज़रूरी काम से बाहर जा रहा है और वहीं डिनर कर लेगा, तो वो और तारा उसके लिए परेशान न हों।

 

राघव के जाने के थोड़ी देर बाद लीजा ने कहा, “अब चलकर भटूरे तलें क्या? भूख लग रही है।”

 

“हाँ चलो।” तारा ने उठते हुए कहा और फिर सहसा उसे राघव का ध्यान आया।

 

उसे उसके कमरे में भी न पाकर तारा ने नंदिनी जी से उसके विषय में पूछा तो उन्होंने उसे बता दिया कि वो कहीं बाहर गया है और खाना भी वहीं खाएगा।

 

“ये लड़का न अजीब ही होता जा रहा है।” बड़बड़ाते हुए तारा किचन में आई तब भटूरे के आटे और गरम कड़ाही को देखकर सारा माजरा समझते हुए उसने लीजा से कहा, “तो जनाब हमारी कम्पनी छोड़कर जानकी को कम्पनी देने गए हैं।”

 

“अच्छा है न, हम भी तो यही चाहते हैं।” लीजा ने मुस्कुराते हुए कहा तो तारा बोली, “चलो फिर एक काम करते हैं डिनर करने के बाद आज जानकी के घर पर ही इकट्ठे रात बिताते हैं।

फिर तो डेढ़ महीने बाद मेरा विवाह हो जाएगा और तब कहाँ मुझे दोस्तों का ये साथ नसीब होगा?”

 

“तब तुम्हें दोस्तों के साथ की ज़रूरत ही नहीं महसूस होगी तारा।” लीजा ने शरारत से तारा को चिकोटी काटते हुए कहा तो तारा को हँसी आ गई।

 

राघव ने जब जानकी के फ्लैट की घंटी बजाई तब जानकी ने दरवाज़ा खोलते हुए कहा, “तुम दोनों इतनी जल्दी कैसे आ गए?”

 

“मैं आया हूँ, वो दोनों नहीं।”

 

सहसा राघव की आवाज़ सुनकर जानकी ने हड़बड़ाते हुए उसकी तरफ देखा।

 

“मैं अंदर आ जाऊँ?” राघव ने पूछा तो जानकी किनारे होते हुए बोली, “हाँ, आओ न।”

 

अंदर आने पर राघव ने देखा जानकी ने सोफे पर लैपटॉप, डायरी और कई रंग-बिरंगी कलमें बिखरा रखी थीं।

 

लैपटॉप को ऑन देखकर राघव ने कहा, “जानकी, अब बस भी करो यार। तुम्हें इतना काम करने की कोई ज़रूरत नहीं है।”

 

“अच्छा, बस मैं ये ओपन फ़ाइल सेव कर देती हूँ।”

 

फटाफट फ़ाइल सेव करके लैपटॉप बंद करने के बाद जानकी ने कहा, “तो तुम इस समय अचानक कैसे आ गए?”

 

“सोचा तुम अकेले डिनर करोगी इससे बेहतर है मैं तुम्हें कम्पनी दे दूँ।

तुम हाथ-मुँह धोकर आओ, तब तक मैं खाना निकालता हूँ।”

 

राघव इतने अधिकार से कहता हुआ रसोई की तरफ बढ़ गया कि जानकी से उससे कुछ भी बोलते नहीं बना।

 

उन दोनों का डिनर खत्म ही हुआ था कि तभी तारा ने राघव को फ़ोन किया।

 

“हाँ तारा बोलो, फुर्सत मिल गई तुम्हें?”

 

“चुप रहो तुम और मेरी बात सुनो, जानकी से कहना कि वो अभी चाय न बनाए। हम भी वहीं आ रहे हैं, फिर इकट्ठे चाय पिएंगे।”

 

“तुम्हें कैसे पता चला कि मैं यहाँ हूँ?”

 

“तुम्हारी बेस्टी हूँ मैं राघव, इसलिए तुम्हारी रग-रग से वाकिफ़ हूँ समझे।”

 

“समझ गया मेरी माँ। अब ये फ़ोन पर ही मुझे घूरना बंद करो।”

 

“हाँ-हाँ ठीक है। चलो थोड़ी देर में मिलते हैं।”

 

तारा के फ़ोन रखने के बाद जानकी ने राघव से पूछा, “क्या कह रही थी तारा?”

 

“वो भी यहाँ आ रही है।”

 

“बढ़िया है। मज़ा आएगा फिर।” जानकी ने अपनी खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा तो राघव की नज़रें उसके चेहरे पर ठहर सी गईं।

 

आजकल उसे हर पल ये महसूस होता था कि जानकी का चेहरा वो चेहरा है जिसे वो अनवरत बिना ऊबे देख सकता है।

 

“क्या देख रहे हो?” जानकी के टोकने पर राघव ने अपनी नज़रें फेरते हुए कहा, “कुछ भी तो नहीं।”

 

“अच्छा, अब वो सब आते ही होंगे तो मैं जाकर चाय बनाती हूँ।” जानकी उठने को हुई तो उसका हाथ थामकर उसे बैठाते हुए राघव ने कहा, “बैठो न यार, काम करने का नशा है क्या तुम्हें? जब देखो तब काम-काम-काम।”

 

“अच्छा बाबा, नहीं करती मैं काम। अब खुश?”

 

“हाँ बहुत।” राघव ने मुस्कुराते हुए कहा तो सहसा जानकी बोली, “अच्छा, कल मैंने जो फ़ाइल बनाई थी आज तुमने उसे देखा क्या?”

 

“फिर शुरू हो गई तुम? इस काम के अलावा कोई और टॉपिक नहीं है तुम्हारे पास बात करने के लिए?’

 

“है न। मैं सोच रही थी तारा के विवाह से पहले मैं एक सप्ताह के लिए घर होकर आ जाऊँ। मेरे पास यहाँ कुछ ख़ास कपड़े भी नहीं हैं पार्टी-वार्टी में पहनने के लिए तो मैं माँ की कुछ साड़ियां भी ले आऊँगी।”

 

“तुम अपनी माँ को यहीं क्यों नहीं बुला लेती?”

 

“वो नहीं आएंगी। उन्हें अपना गाँव ही पसंद है।”

 

“अच्छा तो कब जाने वाली हो तुम?”

 

“अभी नहीं, पहले हमारा ये गेम लॉन्च हो जाए और अगले प्रोजेक्ट के लिए मैंने जो सोचा है वो मैं अपनी टीम को अच्छी तरह समझा दूँ तब।”

 

“ठीक है लेकिन तुम वापस तो आओगी न?”

 

“अरे इतनी अच्छी नौकरी छोड़कर मैं कहाँ जाऊँगी? इतनी मुश्किल से तो मैं कुछ हासिल कर पाई हूँ वर्ना पता नहीं अभी मैं कहाँ भटक रही होती।” कहते-कहते जानकी भावुक हो गई तो राघव ने आहिस्ते से उसका हाथ अपने हाथ में थाम लिया।