Fagun ke Mausam - 34 in Hindi Fiction Stories by शिखा श्रीवास्तव books and stories PDF | फागुन के मौसम - भाग 34

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फागुन के मौसम - भाग 34

शाम में जब राघव जानकी के घर पर आया तब तारा को भी यहीं देखकर वो एक पल के लिए सकपका सा गया लेकिन फिर अगले ही पल सहज होते हुए उसने कहा कि उसे विशेष रूप से लीजा और मार्क के कहने पर यहाँ आना पड़ा।"हाँ तो अच्छी बात है न। तुम मुझे सफाई क्यों दे रहे हो? वो हमारे देश के मेहमान हैं तो हमें उनकी खातिरदारी करनी ही चाहिए।" तारा की बात सुनकर राघव हल्के से मुस्कुरा दिया।जब जानकी कमरे से बाहर आयी तब राघव ने उससे लीजा और मार्क को बुलाने के लिए कहा।"बुलाने की ज़रूरत ही नहीं है।" जानकी ने दरवाजे की तरफ संकेत किया तो राघव ने देखा लीजा और मार्क वहाँ खड़े थे।आज लीजा ने साड़ी पहन रखी थी जिसमें वो बिल्कुल अलग लग रही थी।उसे देखकर तारा ने उसकी तारीफ़ करते हुए कहा, "वाह लीजा, आज तो बनारस में सब तुम्हें ही देखेंगे।""थैंक्यू-थैंक्यू। एक काम करो न तुम और जानकी भी साड़ी पहन लो।" लीजा ने कहा तो तारा असमंजस से बोली, "पर इसके लिए मुझे मेरे घर जाना होगा।""नहीं जाना होगा, तुम मेरे साथ आओ। हमारा फिगर लगभग एक जैसा ही तो है।" लीजा तारा का हाथ पकड़कर उसे अपने साथ ले गयी तो मार्क को बैठने के लिए कहकर जानकी ने राघव से चाय के लिए पूछा।उसके हामी भरने पर जानकी ने धीमी आँच पर चाय चढ़ायी और ख़ुद भी तैयार होने चल पड़ी।थोड़ी देर में जब वो चाय की ट्रे लेकर बाहर आयी तब हल्के गुलाबी रंग की शिफॉन साड़ी में उसे देखकर राघव मानों अपनी पलकें झपकाना ही भूल गया।मार्क ने जब उसे टोका तब राघव ने चाय की प्याली लेते हुए अपने पास बैठी जानकी के कान में धीरे से कहा, "बाहर इतनी गर्मी नहीं है कि तुम्हें चोटी बनानी पड़े।"प्रतिउत्तर में मुस्कुराते हुए जानकी ने अपनी चोटी में लगा हुआ रबर बैंड खोलकर जब उसकी हथेली पर रख दिया तो राघव ने चुपचाप उसे अपनी शर्ट की जेब में डाल लिया।लीजा के साथ तैयार होकर जब तारा वापस आयी तब उसने देखा राघव का पूरा ध्यान जानकी की तरफ था।सहसा तारा ने अपना गला साफ करने का अभिनय करते हुए कहा, "वैसे लीजा, कभी-कभी दोस्तों की खूबसूरती की तारीफ़ भी की जा सकती है। महादेव इससे हमें पाप नहीं चढ़ायेंगे।""मैं तुम्हारी तारीफ़ क्यों करूँ? ये ड्यूटी तो अब यश की है।" राघव ने अभी कहा ही था कि तभी यश भी अंदर आते हुए बोला, "हाँ भाई, कौन सी ड्यूटी दी जा रही है मुझे?""तारा की तारीफ़ करने की।" मार्क ने कहा तो यश ने तारा की ओर देखा और फिर उसने सीटी बजाते हुए कहा, "ये गर्म मौसम में बासंती हवा के झोंके लेकर कौन आ गया है?""अरे वाह यश भाई, क्या लाइन बोली है आपने।" लीजा ने मुस्कुराते हुए कहा तो तारा बोली, "शर्म करो, सीबीआई ऑफिसर हो तुम। कभी तो गंभीर भी रहा करो।""अब कल से अपने दफ़्तर में गंभीर ही तो रहना है, इसलिए आज तो बंदे को जी भरकर जी लेने दो।"यश की इस बात पर इस बार मार्क ने भी ऐसी सीटी बजायी कि तारा और लीजा के साथ जानकी भी हँस पड़ी।जब वो सब नीचे पार्किंग में आयें तब लीजा ने कहा, "यार, अलग-अलग गाड़ियों में जाने पर मज़ा नहीं आयेगा। अगर हम सब थोड़ा-बहुत एडजस्ट कर लें तो एक ही साथ चलते हैं न।""ठीक है, तुम तीनों लड़कियां और यश भाई पीछे बैठ जाओ, मैं और राघव बाबू आगे बैठ जायेंगे।" मार्क ने सुझाव दिया तो सब उसकी इस बात पर सहमत हो गये।जब उनकी गाड़ी कुछ आगे बढ़ी तब लीजा ने धीरे से तारा के कान में कहा, "हम छः एक गाड़ी में तो आ गये अब बस राघव से इस गाड़ी को बड़ी करवाना बाकी रह गया है।""डोंट वरी वो भी हो जायेगा।" तारा ने जानकी का हाथ थामते हुए कहा तो जानकी ने आईने में राघव की तरफ देखकर मन ही मन अपनी ख़ामोश अर्जी महादेव के चरणों में रख दी।बनारस के प्रसिद्ध काशी चाट भंडार में वहाँ के मशहूर टमाटर चाट का लुत्फ़ उठाते हुए दोस्तों की इस मंडली को देखकर कोई कह भी नहीं सकता था कि इनमें से कुछ लोगों की जान-पहचान बस हाल-फ़िलहाल की ही है।यहाँ से निकलकर उन सबने कुछ देर गंगा घाट पर अपना समय बिताया, और फिर अगले दिन समय पर दफ़्तर पहुँचने के विषय में सोचते हुए बारी-बारी से सबने अपने-अपने घर की राह ली।घर आने के बाद यकायक राघव को ख़्याल आया कि जानकी का रबर बैंड उसकी जेब में ही रह गया था।उसे निकालकर देखते हुए राघव ने अपने आप से कहा, "उफ़्फ़ ये मुझे क्या होता जा रहा है? मैं क्यों जानकी को देखते ही सब कुछ भूल जाता हूँ और जो मुँह में आता है उसे बोल देता हूँ। पता नहीं वो क्या सोच रही होगी मेरे बारे में?"फिर अगले ही पल उसने ख़ुद को समझाते हुए कहा, "वैसे अगर वो मेरे बारे में बुरा सोचती तो पूरी शाम मेरे साथ सहज कैसे रहती? मैं कुछ ज़्यादा ही सोच रहा हूँ।लेकिन...लेकिन वैदेही? जब उसे मेरी इन हरकतों के बारे में पता चलेगा तब क्या होगा?नहीं...चाहे जो हो जाये अब मैं जानकी से काम के अलावा कोई बात नहीं करूँगा, कभी नहीं।"जानकी के रबर बैंड को किनारे रखकर उसने पर्स से अपनी और वैदेही की तस्वीर को निकालकर देखा और उसे आख़िरी बार सॉरी बोलते हुए वो ख़ामोशी से अपने बिस्तर पर लेट गया।सोमवार की सुबह वैदेही गेमिंग वर्ल्ड के दफ़्तर में ख़ासी चहल-पहल थी।सारे एम्पलॉयी नये गेम पर काम शुरू करने के लिए बहुत उत्साहित थे।दफ़्तर आने के बाद राघव ने तेज़ी से जानकी की बनायी हुई फ़ाइल को एक बार पढ़ा और फिर उसने उन तस्वीरों को देखा जो उसने लुंबिनी में वहाँ की अथॉरिटी से स्पेशल परमिशन लेकर क्लिक की थी।सब कुछ दुरुस्त पाकर उसने जानकी को अपने साथ कांफ्रेंस रूम में चलने के लिए कहा जहाँ तारा पहले ही बाकी टीम मेम्बर्स के साथ पहुँच चुकी थी।जानकी की सहायता से राघव ने अब पूरा प्रोजेक्ट विस्तार से अपनी टीम को समझाना शुरू किया।वो सब इस डिस्कशन में ऐसे डूब गये थे कि कब लंच का समय पार हो गया किसी को आभास भी नहीं हुआ।तीन बजे के आस-पास जब उनकी मीटिंग खत्म हुई तब सबको क्लियर हो चुका था कि इस प्रोजेक्ट में किसे कौन सी जिम्मेदारी निभानी है।कांफ्रेंस रूम से निकलकर अब सब लोग अपनी-अपनी डेस्क पर बैठकर खाना खाते हुए बातें कर रहे थे।तारा भी अपना लंच लेकर राघव और जानकी के पास आ गयी।बातों-बातों में उसने जानकी से कहा, "राघव ने बिल्कुल ठीक तारीफ़ की थी तुम्हारी। आज तो मैं भी तुम्हारे काम की मुरीद हो गयी।""मैं आपके और राघव सर के कुछ काम आ सकी यही मेरे लिए बहुत है मैम।" जानकी ने सहजता से कहा तो प्रतिउत्तर में तारा ने स्नेह से उसका हाथ थपथपा दिया।लंच खत्म करने के बाद राघव ने अपने सभी एमोलॉयीज़ को जब उनके और उनके परिवार के लिए लाये हुए उपहार दिये तब सबने उसे दिल से धन्यवाद देते हुए कहा कि उसके इसी व्यवहार के कारण उन सबको ये दफ़्तर अपना घर लगता है।राघव ने भी दिल से इस धन्यवाद को स्वीकार किया और एक बार फिर वो सब पूरे जोश से अपने-अपने काम में लग गये।अचानक एक साथ तीन ज़रूरी केसेज़ की जिम्मेदारी मिलने के कारण यश को अपनी और तारा की सगाई लगभग पाँच महीने के लिए टालनी पड़ी।तारा ने भी सोचा कि अच्छा ही है, इसी बहाने इतने समय में उसके भी दफ़्तर का नया प्रोजेक्ट पूरा हो जायेगा।देखते ही देखते समय बीतता गया और वैदेही गेमिंग वर्ल्ड का नया प्रोजेक्ट लगभग समाप्ति की कगार पर पहुँच गया।तारा और यश की सगाई का दिन भी अब बस आ चुका था जिसके लिए तारा ने दफ़्तर से चार दिन की छुट्टी ली थी।उसकी सगाई के एक दिन पहले जब दफ़्तर में लंच ब्रेक हुआ तब राघव ने देखा जानकी अपना टिफिन निकालने की जगह बैग समेट रही थी।"क्या हुआ मिस जानकी? आप लंच पर कहीं बाहर जा रही हैं?" राघव के पूछने पर जानकी ने कहा, "नहीं सर, मैं घर जा रही हूँ। मैंने आज आधे दिन की छुट्टी ली है और कल पूरे दिन की।""लेकिन मैंने तो आपकी छुट्टी मंजूर नहीं की।""तारा मैम अपनी छुट्टी पर जाने से पहले मेरी भी छुट्टी मंजूर करके गयी हैं।""तारा मैम... ठीक है, जाइये फिर।""ओके सर।" इतना कहकर जब जानकी चली गयी तब राघव अपना टिफिन लेकर बाहर अपने बाकी टीम-मेट्स के पास पहुँचा।उन सबके साथ खाना खाने के दौरान हर्षित ने उससे कहा, "सर कल लंच ब्रेक के बाद हम सब छुट्टी पर हैं।""हम्म... और ये छुट्टी भी तारा मैम मंजूर करके गयी होंगी।" राघव ने सबकी तरफ देखते हुए कहा तो सबने समवेत स्वर में हामी भर दी।शाम में दफ़्तर से निकलने के बाद अपने घर जाने से पहले जब राघव तारा के घर गया तब उसने देखा वहाँ तारा के साथ-साथ जानकी भी अपनी हथेलियों में मेंहदी रचाकर बैठी हुई थी।"तो कैसा रहा आज दिन?" तारा ने राघव को अपने पास बैठने का संकेत करते हुए पूछा तो राघव बोला, "दो बकबक मशीनों के बिना बहुत ही अच्छा था मेरा दिन।""राघव...।" तारा ने उसे घूरते हुए कहा तो राघव बोला, "हिम्मत है तो आज मारकर दिखाओ मुझे।""डोंट वरी मैं कल बदला ले लूँगी।" तारा ने हँसते हुए कहा तो जानकी बोली, "वो भी सूद समेत।"फिर सहसा जानकी ने तारा से किसी को बुलाने के लिए कहा क्योंकि उसे तेज़ प्यास लगी थी।तारा के बुलाने पर भी जब कोई कमरे में नहीं आया तब राघव ने पानी का ग्लास उठाकर उसे जानकी के होंठो तक ले जाते हुए कहा, "मैं पहला बॉस होऊँगा जो अपनी असिस्टेंट की इतनी सेवा कर रहा है।""फ़िक्र मत करो इस सेवा का फल भी तुम्हें जल्दी ही मिलेगा।" तारा ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा तो राघव ने संशय से उसकी तरफ देखा।"अरे मेरा मतलब है हमारा नया प्रोजेक्ट, जिसकी सीडी हम बस लॉन्च ही करने वाले हैं।"तारा के इस उत्तर से राघव के होंठो पर मुस्कुराहट आ गयी।"चलो अब मैं बाहर सबसे पूछ लेता हूँ मेरे लायक कोई काम है क्या, फिर मैं अपने घर निकल जाऊँगा।"राघव ने उठते हुए कहा तो तारा बोली, "सुनो न राघव, तुम जा ही रहे हो तो ऐसा करो जानकी को भी उसके घर तक छोड़ देना।""हाँ, ठीक है।" राघव ने कहा तो तारा जानकी के पर्स की तरफ संकेत करते हुए बोली, "इसे तो उठा लो, जानकी बेचारी कैसे उठायेगी।"राघव ने अभी पर्स उठाया ही था कि अविनाश ने वहाँ आते हुए कहा, "बस भाई, अब यही करना बचा था हम लड़कों को।""हाँ तो क्या हुआ? अब आप लोग हमारा साथ नहीं देंगे तो क्या हम पड़ोसियों को बुलायेंगे?" अंजली ने भी राघव के लिए चाय-नाश्ते की ट्रे लाते हुए कहा तो तारा बोली, "बिल्कुल सही कहा आपने भाभी।"जब तक राघव चाय पीता रहा तब तक उसके और अविनाश के बीच अगले दिन होने वाले फंक्शन की तैयारियों को लेकर चर्चा होती रही।कुछ काम जो अविनाश ने पहले ही राघव को सौंपे हुए थे उनके पूरे होने के बाद उसने कुछ और जिम्मेदारियां राघव को देने के बाद राहत की साँस लेते हुए कहा, "तारा ने अपनी ज़िन्दगी में बस एक ही अच्छा काम किया है और वो है राघव से दोस्ती।ये न होता तो मैं अकेला क्या-क्या करता? न तो ये रिश्तेदार किसी काम के हैं और न ही इन इवेंट मैनेजमेंट वालों से बिना दस बार एक ही बात कहे कुछ काम ठीक से होता है।"अपनी इस प्रशंसा पर राघव ने बस मुस्कुराते हुए सिर झुका लिया।थोड़ी देर के बाद जब वो जानकी को लेकर उसके घर पहुँचा तब उसके फ्लैट का ताला खोलते हुए उसने देखा सामने लीजा और मार्क के फ्लैट पर भी ताला लगा हुआ था।ये देखकर उसने जानकी से कहा, "तुम्हारे दोस्त तो शायद बाहर गये हैं। तुम्हें अकेले परेशानी नहीं होगी?""नहीं, अब बस कुछ देर की ही बात है। फिर तो मेरी मेंहदी सूख ही जायेगी।""अच्छा, फिर भी मैं उनके आने तक रुक जाता हूँ क्योंकि अभी तो तुम अंदर से दरवाजा भी लॉक नहीं कर सकती।""तुम्हें मेरी इतनी परवाह है राघव?" यकायक जानकी ने कहा तो पहले राघव सकपका सा गया फिर उसने कहा, "अभी तुमसे अगले प्रोजेक्ट पर भी मेहनत करवानी है न इसलिए तुम्हारा ख़्याल तो रखना ही पड़ेगा।""ये सही है, स्वार्थी इंसान।" जानकी हँसते हुए बोली और फिर उसने राघव से लीजा को फ़ोन करने के लिए कहा।जब लीजा ने कहा कि वो और मार्क डिनर करके लौटेंगे तब राघव ने जानकी से कहा, "फिर मैं एक काम करता हूँ, पहले माँ को फ़ोन कर देता हूँ और फिर तुम्हारे और मेरे लिए डिनर बना लेता हूँ।""तुम क्यों परेशान हो रहे हो? मैं बाहर से कुछ ऑर्डर कर लूँगी न।""ओहो कितना बाहर का खाना खाओगी? सेहत खराब हो जायेगी तो फिर तुम छुट्टी लेकर दफ़्तर से गायब हो जाओगी। इसलिए बस मुझे बता दो किचन में कहाँ क्या रखा है और फिर शांति से बैठो।""जो हुक्म बॉस।" जानकी ने किचन की तरफ जाते हुए कहा तो राघव भी उसके साथ चल पड़ा।क्रमश: