Bepanaah Mohabbat - 10 in Hindi Love Stories by Anjali Vashisht books and stories PDF | बेपनाह मोहब्बत - 10

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बेपनाह मोहब्बत - 10

अब तक :

शिवाक्ष ने उसे भागते देखा तो उसका दुपट्टा पकड़ लिया । अंजली को दुपट्टे से अपने गले में खिंचाव महसूस हुआ तो वो रुक गई । |

और अपने गले पर लिपटे दुपट्टे को उसने कसकर पकड़ लिया । उसकी धड़कने भी बढ़ने लगी थी ।

अब आगे :

अंजली अपने दुपट्टे को पकड़े हुए पीछे घूमी और दुपट्टा छुड़ाने लगी तो शिवाक्ष ने आगे आकर उसे कमर से पकड़कर अपने करीब खींच लिया । अंजली उसके सीने से जा लगी । शिवाक्ष उसके हाथ से फोन लेने की कोशिश करने लगा ।

अंजली अपने हाथ उपर नीचे ले जाते हुए फोन को उसकी पकड़ से बचाने की कोशिश करने लगी । शिवाक्ष एक हाथ से उसे कमर से पकड़े रहा और दूसरे हाथ से फोन लेने की कोशिश करता रहा ।

शिवाक्ष ने अंजली के फोन वाले हाथ को पकड़ा तो अंजली ने दूसरे हाथ में फोन ले लिया । शिवाक्ष ने उसे पीछे ले जाकर उसकी पीठ को दीवार से लगाया और उसके दोनो हाथों को पकड़ लिया ।

अब दोनो ने फोन को आधा आधा पकड़ लिया था । और अपनी अपनी तरफ खींचने लगे थे ।

खींचते हुए फोन दोनो के हाथ से फिसल गया और उड़ते हुए दूर जाकर बेंच से टकराकर , नीचे गिर गया और दो टुकड़ों में टूट गया ।

" अम्मा... " कहते हुए अंजली बड़ी बड़ी आंखें करके फोन को देखने लगी ।

शिवाक्ष ने फोन को देखा और फिर अंजली को देखने लगा ।

अंजली बस स्तबद होकर दूर पड़े अपने फोन को देखे जा रही थी ।

" टूट गया ना फोन.... मिल गई तसल्ली.. ?? " बोलते हुए शिवाक्ष उसे घूरने लगा ।

" तस्सल्ल्ली " बोलते हुए अंजली ने हैरानी से शिवाक्ष को देखा और बोली " एक तरफ आपने मेरे फोन की पसली निकाल दी और उपर से मुझे ही पूछ रहे है कि तसल्ली मिली या नही.. " । बोलते हुए वो भौहें सिकोड़ कर शिवाक्ष को देखने लगी ।

शिवाक्ष ने उसकी सिकुड़ी हुई भोहों को ठीक किया और बोला " ज्यादा घूरो मत । गलती तुम्हारी थी । अगर प्यार से बोलने पर फोन दे देती तो ऐसा होता ही नही... " ।

अंजली ने कमर पर हाथ रखा और अकड़ते हुए बोली " अरे वाह उल्टा चोर कोतवाल को डांटे.. । आपने मेरा फोन तोड़ा है मैने आपका फोन नही तोड़ा । और मेरा फोन है.. मैं आपको दूं या नही मेरी मर्जी है ना.. " ।

" तुम्हारी मर्जी.. ! " पूछते हुए शिवाक्ष उसके और करीब चला गया और उसके चेहरे पर झुकते हुए बोला " मेरे आगे मैं किसी की मर्जी नही चलने देता । पर अब अगर तुमने अपनी मर्जी चलाई है तो भुक्तो.. । अब रहो सारी रात यहां पर बंद । ना हम किसी को यहां बुला सकते हैं और न ही खुद यहां से बाहर जा सकते हैं... " ।

बोलते हुए शिवाक्ष ने अपना सिर अंजली के सिर से टिका लिया । दोनो एक दूसरे की आंखों में घूरते रहे ।

अंजली ने शिवाक्ष को अपने से दूर धकेलना चाहा । शिवाक्ष ने realise किया कि उसने अभी भी अंजली को कमर से पकड़ा हुआ है और दोनो एक दूसरे के बोहोत करीब हैं तो उसने उसे खुद ही उसे छोड़ दिया और दूर हट गया । ।

अंजली ने उसे गुस्से से घूरा और फिर अपने फोन की तरफ चली गई ।

उसने Phone को उठाकर देखा तो phone की स्क्रीन पूरी तरह से टूट चुकी थी और बैटरी भी निकलकर बाहर आ गई थी ।

" मेरा फोन.. " बोलते हुए अंजली ने रोनी सूरत बनाकर फोन को देखा । " अब अगर मां या बाबा कॉल करेंगे तो मैं कैसे फोन उठाऊंगी... ?? " बोलते हुए उसका चेहरा उतर गया ।

शिवाक्ष " और खींचो फोन... फिर हो सकता है दुबारा से जुड़ जाए... " ।

शिवाक्ष के बोलने पर अंजली चिढ़ गई और गुस्से से बोली " मैने नही आपने फोन खींचा था.. । अगर आप नही खींचते तो अभी ये ठीक होता । " ।

" oh hello.. " इसमें मेरा सिर्फ एक हाथ था । दूसरा हाथ तुम्हारी कमर पकड़े हुए था। दोनो हाथों से तुम खींच रही थी । और ये फिसला भी तुम्हारी ही वजह से.. " बोलकर शिवाक्ष बैंच पर बैठ गया ।

अंजली ने अब कुछ नही कहा ।

उसने अपना फोन उठाया और जाकर बेंच पर बैठ गई ।

शिवाक्ष ने गहरी सांस ली और बोला " अब तो हो गया जो होना था. । और अब हम लोग बाहर भी नही निकल सकते.. । आज की रात यहीं पर गुजरेगी.. " बोलकर शिवाक्ष बैंच पर लेट गया और एक पांव के उपर दूसरा पांव चढ़ा लिया ।

" पता नही क्यों अभी भी लग रहा है कि ये इन्हीं लोगों की कोई शरारत है । हो सकता है थोड़ी देर में कोई आकर दरवाजा खोल दे... " सोचते हुए अंजली बेंच पर सिर टिकाए बैठ गई।

धीरे धीरे बाहर से आती रोशनी कम होने लगी और कमरे में हल्का अंधेरा छाने लगा । दिन ढल चुका था और शाम हो चुकी थी ।

ढलते दिन के साथ अंजली के बाहर निकलने की उम्मीद भी खतम होने लगी थी ।

उसने दरवाजे की तरफ कदम पढ़ा दिए और एक दो बार दरवाजा खटखटा दिया और रुंझी हुई आवाज में बोली " क्या बाहर कोई है.. ?? हमे बाहर निकालिए.. प्लीज" । अंजली मदद मांग तो रही थी पर वहां पर उनकी आवाज सुनने वाला और कोई नही था ।

शिवाक्ष ने अंजली की बुझी हुई सी आवाज सुनी तो आवाज में नरमी लाकर बोला " यहां कोई नहीं है , सिर्फ मैं और तुम हैं । College बंद हो चुका है , और सब लोग जा चुके है " ।

अंजली " पर वॉचमैन तो होंगे ना... " ।

शिवाक्ष " हान बिल्कुल होगा.. । पर क्या है ना. 70 बीघा जमीन में बना हुआ कॉलेज है और हम इसके पिछले हिस्से में है.. जहां पे अगर तुम गोलियां भी चला दो तो भी वॉचमैन के कमरे तक आवाज नही जायेगी.. । तो अभी भी अगर आवाज़ें देनी है तो वो तुम्हारी मर्जी है... " ।

अंजली ने उदास नजरों से शिवाक्ष को देखा जो बेंच पर आराम से लेटे हुए ceiling की तरफ देखे जा रहा था।

" क्या सच में ये इनकी कोई खुराफात नही थी... ? अब तो ऐसा ही लग रहा है कि ये सब इन्होंने नही किया वर्ना अभी तक इनके बाकी दोस्त भी यहां आ चुके होते । " सोचते हुए अंजली धीमे कदमों से वापिस आकर बेंच पर बैठ गई । और अपने चेहरे को हाथों में भरकर धीरे से बोली " काश तू फोन दे देती अंजली.. तो हो सकता है अभी बाहर होती.. " । बोलकर उसने रोशन दान की तरफ देखा जिसमे से आ रही रोशनी पल पल घटती जा रही थी ।

और अब कुछ ही पल में कमरे में पूरी तरह से अंधेरा छाने वाला था ।

अंजली चेहरे को हाथों में भरकर बैठ गई ।

शिवाक्ष ने उसे देखा तो दिमाग में शरारत सूझ गई । वो बेंच से उठा और अपने बाल बिखेरते हुए जेब में हाथ डाले अंजली की ओर चल दिया ।

अंजली ने उसके कदमों की आहट सुनी तो उसकी ओर देखने लगी ।

शिवाक्ष उसे देखते हुए गुनगुनाने लगा

" बाहर से कोई अंदर ना आ सके

अंदर से कोई बाहर ना जा सके

सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो

सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो । " बोलते हुए शिवाक्ष अंजली के पास पहुंच गया और उसके दोनो और बेंच पर अपने हाथ टिका दिए ।

अंजली आंखें बड़ी किए उसे देखने लगी ।

शिवाक्ष उसके चेहरे पर झुका और आगे बोला

" हम तुम

एक कमरे में बंद हो

और चाबी खो जाए "

गाना गाते हुए शिवाक्ष उसके ऊपर झुकता जा रहा था । अंजली पीछे बेंच से हाथ टिकाए साइड को खिसकने की कोशिश करने लगी लेकिन शिवाक्ष ने उसके दोनो और हाथ रखे हुए थे तो वो पीछे भी नही जा पा रही थी ।

अंजली ने उसकी आंखों में देखा और फिर उसे खुद से दूर धकेल कर उठ कर जाने लगी । शिवाक्ष ने उसका हाथ पकड़ लिया । और घुमाकर उसकी पीठ को अपने सीने से लगा लिया ।

" ये ये आप क्या कर रहे हैं.. " अंजली ने हकलाते हुए पूछा ।

शिवाक्ष उसे पकड़े झूमते हुए बोला " मैं क्या कर रहा हूं.... " ।

" यही जो आप अभी कर रहे हैं.. " बोलते हुए अंजली ने छूटना चाहा ।

" और मैं अभी क्या कर रहा हूं.. " बोलते हुए शिवाक्ष ने उसे अपनी ओर घुमा लिया और उसकी दोनो बाजुओं को पकड़ लिया ।

" द.. द... देखिए दूर रहिए मुझसे । मेरे पास मत आइए वर्ना... " बोलते हुए अंजली उसे घूरने लगी ।

" वर्ना. ! " बोलते हुए शिवाक्ष ने उसके चेहरे पर अपना चेहरा झुका लिया ।

" वरना मैं.. मैं चिल्लाऊंगी " अंजली ने आवाज तेज करते हुए कहा ।

" oh really... " बोलते हुए शिवाक्ष हंस दिया । और आगे बोला " अच्छा चलो.. चिल्लाओ.. lets begin.. । "

बोलते हुए शिवाक्ष ने शर्ट की स्लीव्स उपर कर दी । अंजली कुछ नही बोली और चुप ही रही तो शिवाक्ष फिर बोला " अरे चिल्लाओ.. शुरू करो... " ।

" आप सही नही कर रहे हैं.. आप इस तरह से मुझे परेशान नहीं कर सकते... " अंजली ने मासूमियत से कहा और उसे दूर धकेलकर जाने लगी तो लड़खड़ा कर पीछे की तरफ गिरने लगी ।

शिवाक्ष ने जल्दी से आकर उसे बाहों में थाम लिया और गिरने से बचा लिया । अंजली ने हाथ उसके कंधों पर चले गए और शिवाक्ष के हाथ उसकी कमर पर लिपट गए ।

अंजली तेज तेज सांसें लेते हुए उसे देखने लगी ।

शिवाक्ष ने उसकी पीठ को दीवार से लगाया उसे कमर से पकड़े हुए वैसे ही खड़ा रहा ।

अंजली ने उसे दूर धकेलना चाहा लेकिन शिवाक्ष को थोड़ा सा भी नही हिला पाई ।

अंजली का चेहरा लाल पड़ चुका था " देखिए आप सही नही कर रहे हैं.. " ।

शिवाक्ष एक टक उसके चेहरे को देखता रहा फिर उसके चेहरे पर आ रही बालों की लटों को उसके कान के पीछे करते हुए बोला

" ये आंखों की चमक..

ये बातों की महक...

कहां से चुराई है आपने.... ?? " ।

शिवाक्ष ने शायराना अंदाज में कहा तो अंजली का दिल जोरों से धड़क उठा । उसने शिवाक्ष की आंखों में देखना चाहा तो देख नही पाई । उसने एक झलक देख कर ही नजरें फेर ली ।

अपनी सांसों पर काबू करना उसके लिए मुश्किल सा हो गया था। अपने ही दिल के धड़कने की आवाज उसके कानों में जोरों से सुनाई देने लगी थी । उसे लगा मानो अब दिल निकलकर बाहर ही आ जायेगा ।

शिवाक्ष उसके चेहरे पर झुकने लगा तो उसने आंखें बंद कर ली । शिवाक्ष की सांसें उसे अपने चेहरे से टकराती हुई महसूस होने लगी ।

शिवाक्ष उसके चेहरे को ध्यान से देखने लगा । बड़ी बड़ी पलकें , छोटी सी नाक, सुर्ख गुलाबी होंठ.. , अनजाने डर से कसकर मीची हुई आंखें और चेहरे पर बिखरी हुई मासूमियत... । शिवाक्ष उसके चेहरे में खो सा गया ।

शिवाक्ष ने अपने उसके चेहरे से नजर हटाई और उसके चेहरे पर फूंक मार दी ।

फूंक से अंजली ने चौंक कर अपनी आंखें खोल दी । शिवाक्ष उसे देखकर मुस्कुरा दिया । फिर उससे अलग होते हुए बोला " i am Shivaksh Rajvansh , और जो तुम सोच रही हो शिवाक्ष राजवंश वैसी हरकत नही करता.. । मेरे साथ तुम safe हो.. " । बोलकर शिवाक्ष अपने गिटार की ओर चला गया ।

अंजली की सांसें अभी भी बोहोत तेज़ी से दौड़े जा रही थी । वो आंखें बंद करके खुद को शांत कराने लगी ।

शिवाक्ष अपने guitar के पास जाकर बैठ गया । अंजली भी अपने पास रखे बेंच पर बैठ गई ।

शिवाक्ष ने गिटार को बैग से बाहर निकाला और बजाने लगा । अंजली उसकी ओर देखने लगी । शिवाक्ष ने गाना शुरू किया

“ अरे अभी अभी प्यारा सा चेहरा दिखा है

जाने क्या कहूँ उसपे क्या लिखा है

गहरा समंदर दिल डूबा जिसमें

घायल हुआ मैं उस पल से इसमें

नैना दा क्या कसूर वे कसूर वे कसूर

नैना दा क्या कसूर वे कसूर वे कसूर

नैना दा क्या कसूर वे कसूर वे कसूर

ऐ दिल तू बता रे.. हाय.. “

शिवाक्ष आंखें बंद किए गाता रहा । वहीं अंजली भी आंखें बंद करके उसके गाने को सुने जा रही थी । शिवाक्ष का गाना इस फिक्र भरे माहौल को काफी हल्का कर रहा था ।

गाना खतम होते ही शिवाक्ष जमीन पर दीवार से पीठ लगाकर बैठ गया।

गाना बंद हुआ तो अंजली ने आंखें खोली । कमरे में पूरा अंधेरा छा चुका था । रोशनदान से अब बस हल्की सी चांद की रोशनी अंदर आ रही थी ।

बाहर से कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें आने लगी थी और साथ ही मौसम खराब होने की वजह से तेज हवाएं भी चल रही थी ।

अंजली को अकेले बेंच पर बैठे डर सा लगने लगा था तो वो धीमे धीमे चलकर शिवाक्ष के बगल में जाकर बैठ गई ।

शिवाक्ष आंखें बंद करके बैठा हुआ था। किसी के पास बैठने की आहट सुनी तो उसने आंख खोलकर देखा । अंजली को अपने बगल में बैठता देखकर शिवाक्ष के चेहरे पर हल्की सी स्माइल आ गई।

बाहर से आ रही आवाजों से डरकर अंजली थोड़ा सा और शिवाक्ष की तरफ को खिसक गई ।

शिवाक्ष ने देखा तो सीधा होकर बैठ गया । दोनो खामोश बैठे रहे ।

अंजली ने गहरी सांस ली और बोली “ आप अब चुप क्यों हो गए । कुछ बोलिए ना.. “ ।

अंजली की बात सुनकर शिवाक्ष बोला “ क्यों.. ? खामोशी अच्छी नहीं लग रही क्या.. ? फिर से लड़ना चाहती हो क्या ? “ ।

“ नहीं.. “ बोलकर अंजली अपने हाथ आपस में मिलाकर अपनी उंगलियों के साथ खेलने लगी और आगे बोली “ ऐसा नहीं है.. । मुझे ऐसे अंधेरे कमरे में रहने से डर लग रहा है... । कुछ बुरे एहसास होने कहते हैं.. । तो इसलिए खामोशी अच्छी नहीं लग रही.. “ ।

शिवाक्ष ने हल्की सी चांद की रोशनी में उसे देखा और पूछा “ तुम्हे अंधेरे कमरे में रहने से डर लग रहा है और तुम एक अंजान लड़के के साथ एक कमरे में अकेली बंद हो इस बात से तुम्हे डर नही लग रहा... ?? “ ।

अंजली ने उसे जवाब देते हुए कहा “ अभी तो आपने कहा कि मैं आपके साथ बिल्कुल safe हूं... । “ ।

“ मैने कहा और तुमने मान भी लिया... “ शिवाक्ष में एक और सवाल करते हुए उसे देखा ।

“ पता नही क्या माना है और क्या नही.. लेकिन अंधेरे में अकेले रहने से अच्छा आपका साथ लग रहा है.. “ अंजली ने सहजता के साथ जवाब दिया ।

शिवाक्ष “ और ऐसा क्यों.. ? “ ।

अंजली “ ऐसा इसलिए क्योंकि इंसान की नियत उसकी नजरों से पता चल ही जाती है । आप मुझे परेशान करते हैं लेकिन आप नजरें मुझे खराब नही लगी । मुझे कोई बुरी वाइब नही आ रही और मेरा six sense कह रहा है कि मैं आपके साथ safe हूं... “। ।

अंजली की बात सुनकर शिवाक्ष सोच में पड़ गया । क्या उस पर विश्वास करना किसी के लिए इतना आसान है.. ?? सोचते हुए उसने गहरी सांस ली और अपने बालों में हाथ घुमा दिया ।

क्या इन दोनो में बढ़ने लगी है नजदीकियां ?? क्या अंजली का विश्वास करना शिवाक्ष के दिल में उसके लिए कुछ फीलिंग्स ले आएगा.. ?