Poetry collection of Poetry Purnimajali in Hindi Book Reviews by Sudhir Srivastava books and stories PDF | पूर्णिमांजलि काव्य संग्रह

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पूर्णिमांजलि काव्य संग्रह

पुस्तक समीक्षा
"पूर्णिमांजलि" काव्य संग्रह
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✍️ समीक्षक - सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश

गतवर्ष जब आ.डॉ पूर्णिमा दीदी के काव्य संग्रह " * पूर्णिमांजलि* का विमोचन समारोह हो रहा था, तब निश्चित अनुपस्थित के बावजूद आत्मिक सुकून का अहसास हो रहा था। तब से इस संग्रह के बारे में कुछ तो लिखने की इच्छा थी, मगर कुछ अपरिहार्य कारणों से संभव न हो सका।
.... और अंततः आज वह समय आ ही गया।जब मुझे अपने कुछ विचार रखने का दुस्साहस कर रहा हूंँ। क्योंकि अपने वरिष्ठों के सृजन की समीक्षा हमेशा ही असहज करता है। फिर भी इस दुस्साहस का एक अलग ही अनुभव होता है। जिसे छोड़ने की गल्ती मैं कभी करना भी चाहता । बस इस कड़ी को और मजबूत करने की श्रंखला में आज " पूर्णिमांजलि" काव्य संग्रह की समीक्षा की आड़ में कुछ अपने मन के निजी विचार रखने की कोशिश कर रहा हूँ। वैसे तो आप सबको पता है कि मेरा व्यक्तित्व ही आड़ा टेढ़ा है, उसी तरह मेरे मन के भाव भी उसी तरह होते हैं, जो आपको पसंद आए, यह जरूरी भी नहीं। फिर भी मुझे जो कहना है कह के रहूंगा।
सेवानिवृत्त शिक्षिका, वरिष्ठ कवयित्री और सरल सहज व्यक्तित्व की धनी, हमारी प्यारी दीदी डा. पूर्णिमा पाण्डेय पूर्णा जी ने अपना काव्य संग्रह अपने पूज्य ससुर जी (पिताजी) पंडित अमरनाथ पाण्डेय जी को समर्पित किया है। नये दौर में बेटियां अपने श्रद्धासुमन अपने माता पिता को अपनी विशिष्ट पहचान से जोड़कर दे रही हैं, लेकिन बेटियां हो या बेटे सास, ससुर को अपवाद स्वरूप समर्पित करते मिलते हैं। ऐसे में एक बहू का अपने स्वर्गीय ससुर जी को अपनी लेखनी की ओट से लंबे समय तक के लिए उन्हें जीवंत रखने का जो आधार दिया है वह नमन योग्य होने के साथ प्रेरक भी है।
संभ्रांत परिवार की लाड़ली पूर्णिमा को साहित्यिक परिवेश घर में ही मिला, क्योंकि उनके घर में विद्वतजनों का आवागमन होता रहा, जिसका असर उनके मन मस्तिष्क में उतरता चला गया और फिर उनकी सृजनात्मक शक्ति का विकास परिलक्षित होता गया, काव्य, लेख के माध्यम से पूर्णिमा की लेखनी विकास यात्रा पर चल पड़ी और विद्यायलीय पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं छपती रही। शिक्षा पूर्ण होने के उपरांत विवाह बंधन और सामाजिक, पारिवारिक, व्यवहारिक, व्यस्तता और फिर शिक्षिका पद पर नियुक्ति के साथ शिक्षण यात्रा के साथ यथा संभव सृजन यात्रा जारी रही ।यह और बात है कि समयाभाव के कारण सृजनात्मक क्षमता की गति मंद रही। लेकिन मन में साहित्य का अंकुरण हरा भरा ही रहा। जिसका परिणाम यह हुआ कि सेवानिवृत्त के बाद खुला आकाश मिला और आप विभिन्न साहित्यिक पटलों से जुड़ती गईं और स्वच्छंदता संग सृजन पथ पर दौड़ने लगीं। शिक्षिका होने का लाभ भी उन्होंने अनुशासन के साथ परिवेश की गहराई का भाव अपने जीवन में उतारा। जिसका आभास उनके रचनात्मक चिंतन में मिलता है। साथ ही आपको उनकी रचनाओं के पाठक के रूप में देवर का संबल ऐसा मिला कि "पूर्णिमांजलि' काव्य संग्रह मूर्तरूप से सबके सामने है।
70 रचनाओं को समेटे इस संग्रह की शुरुआत गणेश वंदना से शुरू होकर मेरी माँ प्यारी माँ पर जाकर समाप्त हुआ। प्रस्तुत संग्रह की रचनाओं में माँ शारदे, माँ शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, मैय्या कुष्मांडा, स्कंद माता, कात्यायनी माता, महागौरी, माँ सिद्धिदात्री, माँ आ जाओ एक बार फिर, प्रसिद्ध ठुमरी गायिका गिरिजा देवी, किसान चाची राजकुमारी जी, आज की नारी हूँ मैं, माँ दुर्गा, मेरी प्यारी माँ विषयक देवी शक्ति और मातृशक्ति को प्रमुखता दी है। इसके अतिरिक्त विविध विषयों को भी अपनी लेखनी का आधार बना कर अपने व्यापक दृष्टिकोण का उदाहरण पेश किया है। उनके अंर्तमन की वेदना यह है कि जहां उन्हें बहारों से डर लगता है, वहीं न जाने क्यों जिंदगी उधार सी लगती है। समय के सत्य पर आया सावन सुहाना, राधा कृष्ण खेलें होली परंपराओं से जोड़ने के साथ रिश्तों की परिधि में सजना है मुझे सजना के लिए नारी की सार्वभौमिकता का उदाहरण देते हुए नागपंचमी, धनतेरस, रंगपंचमी, भैया दूज और होली, दीप, दीपोत्सव के बीच आँख का तारा पिता को भी महसूस करती कराती कर्तव्य बोध से भरी होने का भाव जम्मू कश्मीर तक ले जाकर तंबाकू छोड़ने का आवाहन, अभिभावक संग आजादी की ख्वाहिश में डूबते सूर्य के सपनों के संसार के साथ काश हम बच्चे होते तो रसीले आम , बाल दिवस और वृक्ष, चिड़िया सहित पर्यावरण के बहाने प्रकृति का श्रृंगार ही नहीं जीवन साथी सहित डाकिया का शब्द चित्र खींचने का बखूबी प्रयास किया है।
पूर्णिमा पाण्डेय जी ने अपनी बातें भले ही कम शब्दों में कहा हो, लेकिन उनकी रचनाएं बहुआयामी दृष्टिकोण के साथ संजोयी गई हैं। साथ ही जीवन के विविध रंगों का इंद्रधनुषी रंग बिखेरने का प्रयास किया गया है। सरल,सहज और सलीके से उनके शब्द चित्र पाठकों को आकर्षित करने में सक्षम हैं।
मेरा विश्वास है कि "पूर्णिमांजलि" से कवयित्री की एक अलग पहचान बनने का मार्ग प्रशस्त होने जा रहा है। संग्रह की सफल ग्राह्यता की कामना के साथ पूर्णिमा पाण्डेय जी को बधाइयां शुभकामनाओं सहित।

गोण्डा उत्तर प्रदेश
८११५२८५९२१