Pardafash - Part - 9 - Last part in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | पर्दाफाश - भाग - 9 (अंतिम भाग)

Featured Books
  • મૃગજળ

    આજે તો હું શરૂઆત માં જ કહું છું કે એક અદ્ભુત લાગણી ભરી પળ જી...

  • હું અને મારા અહસાસ - 107

    જીવનનો કોરો કાગળ વાંચી શકો તો વાંચજો. થોડી ક્ષણોની મીઠી યાદો...

  • દોષારોપણ

      अतिदाक्षिण्य  युक्तानां शङ्कितानि पदे पदे  | परापवादिभीरूण...

  • બદલો

    બદલો લઘુ વાર્તાએક અંધારો જુનો રૂમ છે જાણે કે વર્ષોથી બંધ ફેક...

  • બણભા ડુંગર

    ધારાવાહિક:- ચાલો ફરવા જઈએ.સ્થળ:- બણભા ડુંગર.લેખિકા:- શ્રીમતી...

Categories
Share

पर्दाफाश - भाग - 9 (अंतिम भाग)

आहुति की दर्द और डर से भरी बातें सुनते ही वंदना वह पत्र लेकर अंदर कमरे में आ गई और वहाँ खड़ी होकर रोने लगी। उसे देखते ही आहुति और पार्वती उठकर बैठ गए।

आहुति ने पूछा, "मम्मा क्या हुआ? आप क्यों रो रही हैं?"        

वंदना ने वह पत्र आहुति और अपनी माँ के सामने रखते हुए कहा, " इसका फैसला कल होगा माँ।"

आहुति चौंक उठी और पूछा, "मम्मा, यह पत्र आपके पास कैसे आया?"

"बेटा, तुम्हारी अलमारी साफ़ करते समय यह पत्र आज ही मुझे मिला है। मेरी बच्ची," कहते हुए उसने आहुति को अपने सीने से लगा लिया और कहा, "मुझे नहीं पता था कि मैं इस घर में अपनी बेटी को लेकर एक चरित्रहीन के साथ रह रही हूँ।"

अगली सुबह जब रौनक उठा, तो उसने देखा कि आहुति, वंदना और पार्वती हॉल में बैठे थे। सेंटर टेबल पर एक पत्र रखा था। रात के तनाव पूर्ण माहौल को हल्का करने के लिए रौनक ने आवाज़ लगाई, "अरे, आज चाय और नाश्ता नहीं मिलेगा क्या? क्या आज आप लोगों ने हड़ताल कर रखी है?"

किसी ने भी उत्तर नहीं दिया। रौनक हॉल में आया और वहाँ के माहौल को देखकर थोड़ा सहम गया, फिर उसने पूछा, "क्या हुआ, सब इतने गंभीर क्यों बैठे हैं?"

तब वंदना ने कहा, "एक चिट्ठी आई है, ज़रा पढ़ो।"

"चिट्ठी में क्या है?" कहते हुए वह टेबल के पास आया, चिट्ठी उठाई और पढ़ने लगा।

पूरी चिट्ठी पढ़ने के बाद उसने आहुति की ओर देखते हुए कहा, "यह सब क्या है आहुति? तुम अपनी मम्मी को क्यों परेशान कर रही हो?"

वंदना ने कहा, "पत्र अभी पूरा नहीं हुआ है रौनक पेज पलटाओ?"

रौनक ने पेज पलटाया और बड़े-बड़े अक्षरों में लिखे उस वाक्य "आई हेट पापा … नहीं पापा नहीं … आई हेट रौनक!" पढ़कर वह हक्का बक्का रह गया।

तब वंदना ने आगे बढ़कर उसके गाल पर एक तमाचा मारते हुए कहा, "तुम एक नीच व्यक्ति हो। मैंने तुम्हें क्या समझा था और तुम क्या निकले! मुझे तो लगा था तुम आहुति का कन्यादान करोगे पर तुम तो छीः … “ 

तब आहुति ने आगे बढ़कर कहा, "अगर मैंने तुम्हें उस महिला के साथ नहीं देखा होता, तो शायद मैं कभी भी तुम्हारी इन हरकतों को किसी को बता ना पाती। लेकिन मुझे न केवल अपने आपको बल्कि मेरी माँ को भी तुमसे बचाना था। इसी वजह से मुझमें इतनी हिम्मत आई।"

पार्वती ने उसके दूसरे गाल पर तमाचा मारते हुए कहा, "अगर तुम्हारी माँ जीवित होतीं, तो यह तमाचा उन्हीं के हाथों से तुम्हें पड़ता, पर क्योंकि वे नहीं हैं, इसलिए यह काम मुझे करना पड़ रहा है। तू मेरी बेटी और नातिन दोनों का गुनहगार है, अब तू हमारे घर से चला जा। तुझे क्या लगा था कि झूठी इज़्ज़त का चोला पहन कर तू बच जाएगा? लेकिन तू गलत था, रौनक।"

रौनक ने तब वंदना की ओर देखा, वंदना ने कहा, "तुम्हारी इस गलती की न तो माफी है और न ही कोई पश्चाताप का रास्ता। मेरी आहुति को छूने की सजा सिर्फ एक है, वह है बहिष्कार। आज से मैं और मेरी बेटी तुम्हारा बहिष्कार करते हैं।"

रौनक के पास अब कोई जवाब नहीं था, न ही आंखें उठाने की हिम्मत। उसकी असलियत का पर्दाफाश हो चुका था। आहुति की हिम्मत ने उसे ऐसा तीर मारा था, जिससे बचने का कोई भी रास्ता नहीं बचा था।

जैसे ही रौनक निराशा और अपमान के साथ अपने सामान को लेकर घर से बाहर निकला, आहुति ने दरवाज़ा जोर से बंद कर दिया।

इस समय आहुति की नानी सोच रही थीं यह जीत है आहुति की। यह जीत है उसकी हिम्मत की। यह जीत है डर के ऊपर निडरता की। यदि हर बच्चे में ऐसी निडरता और हिम्मत आ जाए तो इस तरह की अश्लील घटनाएँ अवश्य ही कम हो जाएगी।

वंदना ने आहुति को अपने सीने से लगाते हुए कहा, "शाबाश आहुति।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
समाप्त