Heer... - 7 in Hindi Love Stories by रितेश एम. भटनागर... शब्दकार books and stories PDF | हीर... - 7

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हीर... - 7

अंकिता ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये अजीत से कहा- जब तक मैम क्लास में रहीं तब तक तो राजीव बिल्कुल किसी सीधे सादे स्टूडेंट की तरह अपनी चेयर पर बैठा रहा लेकिन वो जैसे ही क्लास से गयीं... उसने अपनी चेयर पीछे करी और एक पैर पर दूसरा पैर रखकर बिल्कुल अग्निपथ के अमिताभ बच्चन की तरह हाथ पीछे करके बड़े स्टाइल में बैठ गया और अपने दूसरे हाथ को टेबल पर रखकर अपनी उंगलियों से ठक ठक करने लगा, उस समय हमें राजीव का एटीट्यूड बहुत ऐरोगेंट सा लगा और ऐसा लगा जैसे वो सिर्फ मैम के सामने ही सीधा बन रहा था बाकी उसे बेकार में लड़ने की आदत है और ये बात हमें थोड़ा इरिटेट करने लगी थी!!
अपने कपड़ों और अपीयरेंस के हिसाब से बड़े दबंग से स्टाइल में राजीव अपनी चेयर पर बैठा क्लासरूम के गेट की तरफ़ अपनी बड़ी बड़ी आंखों से घूरता हुआ सा देख ही रहा था कि तभी सारे सीनियर्स क्लास के आगे और पीछे वाले गेट से क्लास के अंदर आ गये और अंदर आने के बाद उन्होंने दोनों गेट बंद कर दिये..
उन लोगों के अंदर आने के बाद वही हुआ जो हम सब देखना चाहते थे... उन सारे सीनियर्स में सबसे तेज़ जो बंदा था और जो उन लोगों को लीड करता था वो राजीव से बड़े रूखे अंदाज़ में बोला- Hey.. You Mr.!! ये क्लासरूम है कोई पिक्चर हॉल नहीं जो तुम ऐसे बैठे हो और ये मैनेजमेंट कॉलेज है और तुम एमबीए स्टूडेंट हो...ये क्या कुर्ता वुर्ता पहना हुआ है!! Come on you are a management student... कल को ऐसे कपड़े पहन कर ऑफिस भी जाओगे...? स्टैंड अप एंड गिव योर इंट्रोडक्शन!!

उस सीनियर ने राजीव से इंट्रो देने के लिये कहा तो था लेकिन राजीव को देखकर ऐसा लगा जैसे राजीव ने उसकी बात पर ध्यान ही नहीं दिया था वो वैसे ही स्टाइल में बैठे बैठे हल्की सी स्माइल देते हुये उसे बस देखता रहा कि तभी एक सीनियर बंदी ने राजीव से कहा- तुम्हें पिक्चर हॉल और क्लास में बैठने का फर्क नहीं पता.. चलो एक काम करो किसी भी फिल्म का कोई भी डायलॉग बोलो और बिल्कुल वैसे ही बोलना है जैसे फिल्म में बोला गया हो..!!
राजीव ने उस बंदी को भी हल्का सा स्माइल करते हुये देखा और अचानक से ऐसे जैसे गुस्से में आ गया हो वैसे अपनी जगह से उस पहले सीनियर को घूरते हुये और मेज पर हाथ पटकते हुये ऐसे खड़ा हुआ जैसे अभी उसके थप्पड़ जड़ देगा..
ऐसे गुस्से से अपनी चेयर से खड़ा होने के बाद राजीव बड़ी स्टाइल में अपने कंधे हिलाते हुये और उस सीनियर को घूरते हुये उसके बिल्कुल पास गया और दांत भींचकर बोला- हम तुममें इतने छेद करेंगे... कि कन्फ्यूज हो जाओगे कि सांस कहां से लें और.. म्म् म्म् म्म् म्म्!!

राजीव के इस अजीब तरीके से वो डायलॉग बोलते ही वो सारे सीनियर्स और खासतौर पर वो बंदा जिसने राजीव से रफ़ तरीके से बात करी थी वो सब एकदम स्टंड रह गये और थोड़ी देर तक पूरे क्लास में सन्नाटा सा छा गया.. ऐसा लगने लगा जैसे राजीव ने अपना हाथ अभी उठाया कि तभी उठाया लेकिन हुआ उसका उल्टा.. अपने ठीक सामने उतरा हुआ चेहरा लेकर खड़े हुये उस सीनियर को दो मिनट तक घूर कर देखते देखते राजीव ने हंसी का ठसका लिया और ठेठ कनपुरिया स्टाइल में बोला- कइसा लगा हमारा डायलॉग सsssर!!
इसके बाद जिस बंदी ने उससे डायलॉग बोलने के लिये कहा था उसकी तरफ़ देखकर उसने कहा- ठीक बोले ना मयडम... जइसा पिच्चर में है वइसा!!

अपनी बात कहते कहते अंकिता हंसने लगी और हंसते हुये उसने अजीत से कहा- इसके बाद वो सीनियर जिससे राजीव ने इतने खतरनाक अंदाज़ में वो डायलॉग बोला था उसने राहत की सांस लेते हुये ठीक राजीव के ही स्टाइल में उससे कहा- कानपुर से हो का बे...?

राजीव बोला- हां.. पहिचान गये आंय!!
उस सीनियर ने कहा- अउर क्या... हम भी ससुर शुक्लागंज के हैं, पहिचानेंगे काहे नहीं!!

उस सीनियर की बात सुनकर राजीव ने हंसते हुये उससे हाथ मिलाया और उसके गले लगते हुये बोला - आई गज्जब.. गंगापार के पड़ोसी हो तुम तो गुरू!!

इसके बाद वो दोनों ऐसे गले मिले जैसे बरसों से बिछड़े दो भाई मिला करते थे 70s और 80s की फिल्मों में और जो हम सबको लग रहा था कि अगले दो साल अब सीनियर्स और राजीव के बीच आज की बात को लेकर तनातनी होती रहेगी उसका उल्टा हो गया... राजीव की उन सारे सीनियर्स के साथ उसी टाइम दोस्ती हो गयी...

राजीव ने उस दिन जो किया उसके बारे में सोच सोचकर हमें बहुत दिनों तक हंसी आती रही और हम यही सोचते रहे कि कोई इंसान इतना बिंदास कैसे हो सकता है जितना राजीव था... उसमें हैजिटेशन नाम की चीज़ ही नहीं थी, वो किसी से भी बात कर लेता था.. किसी से भी हंसी मजाक कर लेता था और उसके एटीट्यूड में किसी भी बात को लेकर डर तो बिल्कुल भी नहीं था!!

क्रमशः