जहां एक तरफ नरेश और उनका परिवार जगदीश प्रसाद और सरोज से विदा लेकर अपने घर चले गये थे वहीं दूसरी तरफ कानपुर के रास्ते में कार चला रहे जतिन ने अपने बगल में बैठे अपने बहनोई सागर से पूछा- सागर जी आप कहां गायब थे जब मैत्री की भाभियां मुझे अंदर ले जा रही थीं तब मैंने बहुत देखा आपको पर आप कहीं दिखे ही नहीं, बिल्कुल अकेला पड़ गया था मैं वहां पर...
जतिन की बात सुनकर विजय बोले- सागर जी और सुनील की काफी अच्छी जम रही थी, दोनों साथ में ही थे....
विजय की बात सुनकर सागर ने हंसते हुये कहा- हां पापा जी अच्छा इंसान है सुनील, उसके साथ बात करके बहुत अच्छा लगा वैसे सुनील तो क्या पूरा परिवार ही बहुत अच्छा है बिल्कुल वैसा जैसा हम जतिन भइया के लिये देख रहे थे....
सागर की बात सुनकर ज्योति ने कहा- हां सच में सब बहुत अच्छे हैं खासतौर से मेरी भाभी तो बहुत ही अच्छी हैं.... (जतिन की चुटकी लेते हुये ज्योति बोली) हैना भइया भाभी बहुत अच्छी हैं ना.....
जतिन समझ गया कि ज्योति उसके मजे ले रही है इसलिये वो हंसते हुये बोला- हाहा हां सब अच्छे हैं...
जहां एक तरफ कानपुर के रास्ते में जतिन और उसका परिवार मैत्री और उसके परिवार की तारीफ करते नहीं थक रहे थे वहीं दूसरी तरफ दिन भर की थकान से चूर नेहा और राजेश अपने कमरे में अपने बिस्तर पर लेटे जतिन और उसके परिवार के बारे में ही बातें कर रहे थे...
आज दिन भर जो कुछ भी हुआ उसके बारे में बात करते हुये नेहा ने राजेश से कहा- बहुत ही अच्छा परिवार है जतिन भाईसाहब का, मैत्री दीदी ने जितने कष्ट सहे उतना ही अच्छा परिवार मिल गया उन्हें, अब सब ठीक हो जायेगा धीरे धीरे...
राजेश ने कहा- हां... बड़ी तसल्ली सी महसूस होती है बबिता आंटी, विजय अंकल और ज्योति को देखकर... और सागर जी भी बहुत अच्छे हैं, दामादों वाला कोई टैंट्रम नहीं है उनका बस हंसते रहते हैं...
नेहा ने कहा- सही बात है... ज्योति दीदी तो मैत्री दीदी का अभी से इतना ध्यान रखती हैं कि कुछ पुछिये मत... (ज्योति की तारीफ करते करते नेहा के मुंह से निकल गया) एक ज्योति दीदी हैं जिनके साथ मैत्री दीदी इतनी जल्दी इतना घुलमिल गयीं और एक वो थी रवि भाई साहब की बहन अंकिता.. कितना परेशान करती थी मैत्री दीदी को....
नेहा के मुंह से रवि की बहन अंकिता का जिक्र सुनकर राजेश ने कहा- हां यार ये अंकिता का क्या चक्कर था? मुझे बस इतना पता है कि अंकिता.. मैत्री को परेशान करती थी पर ऐसा क्या परेशान करती थी जो उसकी वजह से ही कलेश होते थे...?
राजेश के इस सवाल को सुनकर नेहा थोड़ी सकपका गयी और सोचने लगी कि "हे राम... ये मैंने किसका जिक्र कर दिया"
नेहा ये सोच ही रही थी कि राजेश ने फिर से उससे पूछा - तुम्हें तो पता होगा ना क्योंकि तुमसे और सुरभि से तो मैत्री कुछ नहीं छुपाती है...
नेहा ने थोड़ा सकपकाते हुये कहा- अरे छोड़िये रहने दीजिये सब अच्छा अच्छा हो रहा है, ऐसे में उस अंकिता के बारे में बात करके क्या करना...
राजेश ने कहा- हां वो तो ठीक है पर बताओ तो सही बात क्या थी...?
राजेश के बार बार इस तरह से दबाव बना के अंकिता के बारे में पूछने पर नेहा ने सोचा कि अब ये जाने बिना नहीं मानेंगे, यही सोचकर थोड़ा हिचकिचाते हुये उसने कहा- अरे वो... अम्म् ऐसी ही थी, हद से जादा गंदी लड़की...
राजेश ने कहा- हां हां वो तो मुझे भी पता है कि जो मेरी इतनी सीधी सादी संस्कारी बहन को दुख दे वो अच्छी कैसे हो सकती है पर समस्या क्या थी...
नेहा बोली- अरे वो... असल में वो जो है,अ...अअंकिता लेस्बियन थी!!! उसे लड़कियां पसंद थीं और मैत्री दीदी तो वैसे ही सुंदर हैं तो वो मैत्री दीदी के साथ शारीरिक संबंध बनाना चाहती थी और दीदी विरोध करती थीं, बस यही झगड़ा था....
नेहा की बात सुनकर राजेश हतप्रभ सा हुआ बोला- हे भगवान छी छी!! कैसे कैसे लोग हैं दुनिया में!! कितना कुछ सह गयी मेरी गुड़िया लेकिन उसने कभी किसी से ये सब बातें नहीं बतायीं...
नेहा ने कहा- कैसे बतातीं और ये बात वैसे भी बताने लायक नहीं है, ये बात सिर्फ मुझे और सुरभि को ही पता है और मैत्री दीदी ने ये बात ताई जी को भी नहीं पता चलने दी, उन्होंने हम दोनों को भी कसम दी थी कि हम ये बात किसी से ना कहें पर अब जब वो रिश्ता ही नहीं रहा तो कसम का क्या मतलब लेकिन प्लीज आप कभी दीदी पर ये बात जाहिर मत होने देना कि मैंने आपको ये बात बता दी है वरना उनका विश्वास मुझपर से उठ जायेगा...
राजेश ने कहा- नहीं नहीं मैं कतई नहीं जाहिर करूंगा लेकिन एक बात और बताओ कि मैत्री की कलाई मे ऊपरी तरफ जो गांठ है वो कैसे है? पहले तो ऐसी कोई गांठ नहीं थी..
राजेश की ये बात सुनकर नेहा चौंकते हुये बोली- आपने वो गांठ देख ली...!!
राजेश ने कहा- हां... ताऊ जी जब हॉस्पिटल में थे तब मैंने ध्यान दिया था वैसे तो मैत्री छुपाये रहती है वो हाथ लेकिन उस दिन जब वो हॉस्पिटल में सोई तो मैंने ध्यान दिया था....
नेहा ने कहा- वो भी उसी अंकिता की वजह से है, हुआ यूं कि अंकिता मैत्री दीदी को बार बार गलत तरीके से छूने की कोशिश करती थी, एक दिन जब उसने हद पार करदी तो मैत्री दीदी उसपर चिल्ला उठीं और अपनी मर्यादा मे रहने के लिये बोलीं, अंकिता इतनी नौटंकीबाज थी कि शाम को जब रवि ऑफिस से घर आये तो उनके घर में घुसते ही वो रोते हुये उनसे बोली "आपकी बीवी अपने आप को पता नहीं क्या समझती है, इसे मेरा यहां रहना भारी लगता है, आप मेरा कहीं और इंतजाम कर दो, मैं आप लोगों पर बोझ नहीं बनना चाहती हूं...." दिन भर की थकान के बाद घर में घुसते ही अपनी बहन के मुंह से ये बात सुनकर रवि को गुस्सा आ गया और वो अपने कमरे में जाकर वहां बैठीं मैत्री दीदी पर चिल्लाने लगे, जब मैत्री दीदी ने भी गुस्से में अंकिता की करतूत उनको बताई तो वो और आग बबूला हो गये कि "तेरी हिम्मत कैसे हुयी मेरी बहन के लिये ऐसा बोलने की" और ऐसा बोलते हुये उन्होंने पास ही पड़ा डंडा उठाया और मैत्री दीदी की बांहो में जोर से मार दिया, उस डंडे से बचने के लिये दीदी ने जब अपनी हथेली अपनी बांहो पर रखी तो वो डंडा दीदी की कलाई में लग गया बस उसी की वजह से वहां एक गांठ बन गयी चूंकि रवि मैत्री दीदी से प्यार करते थे लेकिन अपनी मम्मी और अंकिता की वजह से मैत्री दीदी पर गुस्सा कर देते थे इसलिये वो खुद ही तुरंत दीदी को लेकर डॉक्टर के पास गये और एक्स रे वगैरह करवाया और बाद में माफी भी मांगी लेकिन गांठ तो बन ही गयी ना....
अपनी प्यारी बहन मैत्री के ऊपर हाथ उठाने की बात सुनकर राजेश को बहुत दुख हुआ, उसकी आंखो मे आंसू आ गये और थोड़ा सा झुंझुलाते हुये राजेश.. नेहा से बोला- ये सब बातें मुझे क्यों नहीं बताई गयीं... मैं बात करता रवि से कि ऐसे कैसे वो मैत्री पर हाथ उठा सकता है....
नेहा ने कहा- मैत्री दीदी रवि से बहुत प्यार करती थीं और वो आपसे भी बहुत प्यार करती हैं, ऐसे में वो नही चाहती थीं कि आप दोनों के बीच तनातनी हो और वो भी उनकी वजह से, वो सबको साथ लेकर चलना चाहती थीं लेकिन उनके साथ ये सब हो गया....
मैत्री के स्याह अतीत का एक किस्सा सुनकर राजेश का मन बहुत व्यथित हो गया और वो नेहा से बोला- मेरा मन हो रहा है मैत्री से मिलकर उसे प्यार देने का!! गोद में खिलाया है मैंने उसे और इतना सब कुछ अकेले झेल गयी मेरी बच्ची, वो वैसे ही इतने सॉफ्ट दिल की प्यारी सी इंसान है और इतना अत्याचार सहना पड़ गया उसको.... नेहा तुम एक काम करो रात काफी हो गयी है तुम कॉल मत करो लेकिन अपने फोन से मैत्री को वॉट्सएप पर मैसेज करदो कि हम दोनों सुबह ही उससे मिलने आ रहे हैं और मै वहीं पर नाश्ता करके ऑफिस जाउंगा...
राजेश के कहे अनुसार नेहा ने मैत्री को मैसेज कर दिया, इधर दूसरी तरफ जगदीश प्रसाद अपने घर में खुशी के मारे आज अलग ही रंग में थे चूंकि सरोज काफी थक गयीं थीं तो वो अपने कमरे में जाकर आराम कर रही थीं वहीं जगदीश प्रसाद बाहर कमरे में बैठे टीवी पर कोई मूवी देख रहे थे, जब काफी देर हो गयी और वो सोने के लिये अपने कमरे में नहीं आये तो ये सोचकर कि कहीं इनकी तबियत ना खराब हो जाये सरोज बिस्तर से उठीं और उनके पास जाकर बोलीं- सो जाइये, क्यों जाग रहे हैं? तबियत खराब हो जायेगी आपकी...
सरोज के ऐसे थोड़ा तेज लहजे में अपनी बात कहने के बाद अलग ही मूड में बैठे जगदीश प्रसाद बोले- गुस्सा क्यों करती हो बेगम आपका हुक्म सर आंखो पर, मैं अभी आया...
जगदीश प्रसाद के इस तरह से अपनी बात कहने पर सरोज हंसने लगीं और वापस अपने कमरे में चली गयीं, दो मिनट बाद कोई गाना गुनगुनाते अपनी छड़ी के सहारे धीरे धीरे अपने कमरे में आते जगदीश प्रसाद ने सरोज को देखकर गाया- रुख से जरा नकाब हटा दो... मेरे हुजूर...!!
जगदीश प्रसाद को इतने लंबे समय बाद इतना खुश होकर गाना गाते देख सरोज को बहुत अच्छा लगा और वो मजाकिया लहजे में बोलीं- मैंने कौन सा नकाब पहना हुआ है जो हटा दूं जहांपनाह!!
सरोज के ऐसा कहने पर जगदीश प्रसाद उनके पास गये और उनकी साड़ी का पल्लू पकड़ कर उनका मुंह सिर से ढकते हुये फिर से गाने लगे- रुख से जरा नकाब हटा दो मेरे हुजूर...!!
जगदीश प्रसाद के इस रोमांटिक अंदाज को देखकर सरोज शर्मा गयीं और बोलीं- हटिये आप भी क्या इस उम्र में ये सब कर रहे हैं.... सो जाइये...
सरोज की उम्र वाली बात सुनकर जगदीश प्रसाद बोले- अरे अभी उम्र ही क्या है मेरी... अभी तो मेरे दूध के दांत भी नहीं टूटे....
ऐसे ही आपस मे हंसी मजाक करते करते सरोज और जगदीश प्रसाद अपने बिस्तर पर लेट गये, अपने बिस्तर पर लेटने के बाद राहत की सांस लेते हुये जगदीश प्रसाद ने कहा- बहुत तसल्ली हो रही है, इतनी खुशी हो रही है कि मन कर रहा है मैं जम के नाचूं, मेरी गुड़िया को इतने कष्टों के बाद इतना अच्छा परिवार मिला है...
सरोज ने कहा- सच में सब लोग इतने अच्छे हैं खासतौर से जतिन जी.. वो तो बिल्कुल भगवान की तरह हमारे सूने जीवन में उम्मीद की किरण की तरह प्रकट हो गये....
थोड़ी देर तक ऐसे ही बातें करते करते सरोज और जगदीश प्रसाद सो गये इधर दूसरी तरफ इन सब बातों और खुशियों से दूर अपने मन में एक बोझ लिये अपने कमरे मे ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठकर अपने को देखती मैत्री यही सोच रही थी कि "जतिन जी और उनका परिवार मुझे इतना प्यार इतना सम्मान दे रहे हैं और एक मैं हूं जो इस रिश्ते को दिल से स्वीकार नहीं कर पा रही हूं, कहीं ऐसा तो नहीं कि भावनाओ में बहकर और अपनी खुशियों के लालच में हम सब जतिन जी के साथ कुछ गलत कर रहे हैं!! क्यों मैं लाख कोशिशों के बाद भी जतिन को एक पति के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रही हूं, वो बहुत अच्छे इंसान हैं फिर भी मैं उन्हे क्यों नहीं स्वीकार कर पा रही हूं शायद मैं उनके साथ और उनके परिवार के साथ धोखा कर रही हूं!! नहीं नहीं मैं उन्हें धोखा नहीं दे सकती, इस रिश्ते के प्रति अपनी अस्वीकार्यता को मुझे अपने दिल में ही दफ्न करना होगा, हां मैं कभी किसी पर भी अपनी मनस्थिति जाहिर नहीं होने दूंगी!! मैं सच्चे दिल से जतिन का साथ निभाउंगी, मैं सच्ची श्रद्धा से अपनी सास और अपने ससुर की सेवा करूंगी, मैं उन लोगो को हमेशा खुश रखूंगी, हां मैं अपने आप से वादा करती हूं कि मैं जतिन जी को कभी कोई तकलीफ नही पंहुचाउंगी.....
क्रमशः