Deadly Stories - Alankar Rastogi in Hindi Book Reviews by राजीव तनेजा books and stories PDF | घातक कथाएँ - अलंकार रस्तोगी

Featured Books
  • Secret Affair - 5

    In the days following the interview, Inayat and Ansh found t...

  • Quail Haven,1989

    Our father comes home from work, grumbling and flatulent. He...

  • You, Me and Desert - 16

    Seeing the gathering of people from all over the world, ever...

  • Honeymoon

                                                       Honeymoon...

  • Passion - 7

    Bhatnagar Ji’s mind was spinning as he sat in the washroom....

Categories
Share

घातक कथाएँ - अलंकार रस्तोगी


व्यंग्य से पहलेपहल मेरा वास्ता/परिचय नवभारत टाईम्स में छपने वाले शरद जोशी जी के अख़बारी कॉलम के ज़रिए हुआ। सरल शब्दों में उनकी लेखनी से निकला एक-एक व्यंग्य मुझे कहीं न कहीं..कुछ न कुछ सोचने एवं मुस्कुराने की वजह दे जाता था और मज़े की बात ये कि तब मुझे पता भी नहीं था कि व्यंग्य किस चिड़िया का नाम है और वो कहाँ..किस जंगल में और किस तरह के घोंसले में पाई जाती है।


शरद जोशी जी के लेखन में मुझे उनके द्वारा इस्तेमाल की गयी सरल भाषा एवं पठनीयता आकर्षित करती थी कि किस तरह गंभीर से गंभीर मुद्दों पर भी वे इतनी सरलता से लिख लेते हैं। दरअसल किसी भी कहानी, लेख, व्यंग्य अथवा उपन्यास में तत्व के साथ-साथ अगर मनोरंजन भरी पठनीयता भी हो तो उसे पढ़ना, समझना एवं उससे कुछ ग्रहण करना आसान हो जाता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए बहुत से लेखक/व्यंग्यकार अपनी बात को यथासंभव सरल तरीके से कहने का प्रयास करते हैं।


दोस्तों... आज मैं सरल भाषा में लिखे गए एक ऐसे ही व्यंग्य संग्रह की बात करने जा रहा हूँ जिसमें व्यंग्यकार अलंकार रस्तोगी ने पुरानी धुन 'जातक कथाओं' (बौद्ध धर्म की कथाएँ) के आधार पर अपनी नई धुन 'घातक कथाएँ' रचने का प्रयास किया है।अनेक पुरस्कारों से सम्मानित लेखक अलंकार रस्तोगी का यह सातवाँ व्यंग्य संग्रह है।


इस संकलन के किसी व्यंग्य में प्यासे कौवे के माध्यम से एक तरफ़ पानी की किल्लत से जूझने का मुद्दा उठाया जाता दिखाई देता है तो दूसरी तरफ़ शहर के पॉश इलाकों में स्विमिंग पूल इत्यादि के ज़रिए पानी की बरबादी पर भी तंज कसा जाता नज़र आता है। कहीं किसी व्यंग्य में साँप के माध्यम से डॉक्टरों द्वारा खामख्वाह के टेस्ट लिखे जाने एवं दलबदलू नेताओं की दल बदलने की आदत पर तंज कसने के प्रयास किया जाता दिखाई देता है।


इसी संकलन के एक अन्य व्यंग्य में गधों द्वारा संगठित होकर अपने उत्पीड़न के खिलाफ़ आवाज़ उठाने का प्रयास किया जाता दिखाई देता है। तो किसी अन्य व्यंग्य में पान मसाला चबाने वालों की भैंसों द्वारा जुगाली करने की आदत से तुलना की जाती नज़र आती है। कहीं भैंसों की बीच इस मुद्दे पर गहन चर्चा होती दिखाई देती है कि अक्ल उनसे छोटी होते हुए भी बड़ी कैसे है।


कहीं किसी रचना में कछुए और ख़रगोश के बीच चुनावी जंग का माहौल बनता दिखाई देता है तो कहीं किसी अन्य रचना में पुरानी रचना के विपरीत एक लोमड़ी गधे को मूर्ख बना अंततः ऊँचाई पर लगे अँगूर पा ही लेती है। कहीं शेर, लोमड़ी और गधे के माध्यम से आम जनता के बार-बार नेताओं द्वारा मूर्ख बनाए जाने की बात का उल्लेख होता नज़र आता है।


कहीं किसी रचना में लेखक गधे के सिर से सींगों के ग़ायब होने वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए राजनीति के लंपट नेताओं का उदाहरण देते नज़र आते हैं कि शरीफ़ दिखने के लिए उन्होंने अपने सींग कटवा कर ग़ायब किए हुए होते हैं। तो कहीं किसी व्यंग्य में जंगल के विभिन्न जानवरों की तुलना उनकी आदतों को ध्यान में रखते हुए इंसान के साथ की जाती दिखाई देती है।


कहीं इंडियन आइडल सरीखे कार्यक्रमों में किसी प्रतिभागी को दीन-हीन दिखा, टीआरपी का खेल खेल जाने पर जनवरों के माध्यम से तंज कसने के साथ-साथ बिल्ली के गले में घंटी बाँधी जाती नज़र आती है। कहीं किसी रचना में कोई कुत्ता नदी में गिरी अपनी रोटी को फ़िर से पाने के लिए मछलियों को बरगलाता दिखाई देता है।


कहीं अजगर, शेर के साथ मिलकर अपनी सात पुश्तों के लिए भोजन का जुगाड़ करता दिखाई देता है। तो कहीं चींटी और टिड्डे के माध्यम से भारतीय राजनीति में सत्तापक्ष द्वारा बाँटे जाने वाले फ्री राशन इत्यादि पर हल्के फुल्के अंदाज़ में तंज कसा जाता दिखाई देता है। कहीं बिल्ली और चूहे का माध्यम से देश में बनने वाले मिलावटी दूध व अन्य चीज़ो के साथ-साथ देश के भ्रष्टतंत्र पर भी कटाक्ष किया जाता नज़र आता है।

कहीं कौवे के काले रंग को ज़रिया बना देश भर में बिक रही फेयरनैस क्रीमों की व्यर्थता पर सवाल उठता दिखाई देता है।


कहीं रोटी के पिछले बँटवारे से आहत बिल्लियाँ आपस में एका कर बन्दर को सबक सिखाने के लिए कमर कसती नज़र आती हैं। तो कहीं नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली के हज पर चले जाने वाली कथा के माध्यम से इन्सान की तुलना विभिन्न जानवरों की डसने, रंग बदलने, धूर्तता आदि से की जाती नज़र आती है। कहीं रँगा सियार अपनी पिछली कथा से सबक लेता हुआ इस बार साधु का वेश बना जंगल-जंगल घूम कर अपने शिकार का प्रबंध करता दिखाई देता है।


कहीं बन्दर की नकलची प्रवृति और टोपीवाले की टोपियों से प्रभावित रचना मोदी जी द्वारा वरिष्ठ लालकृष्ण आडवाणी जी को साइड लाइन कर अपने रास्ते से हटाने की घटना पर भी कटाक्ष करती दृष्टिगोचर होती है। साथ ही कुएँ में शेर के प्रतिबिंब और खरगोश की कहानी से प्रेरित एक अन्य रचना में शेर, मीडिया को अपने काबू में कर ख़रगोश की जंगल मे चल रही वर्तमान सरकार के खिलाफ़ अनर्गल एवं झूठी बातें फैला तथा जनता को अच्छे दिनों का झुनझुना दिखा सत्ता पर काबिज़ हो अपने विरोधियों को देशद्रोही बता जेल में ठूँसता दिखाई देता है।


कहीं किसी रचना में अपनी रंग बदलने की खूबी का कॉपीराइट करवाने को आतुर गिरगिट उस वक्त शर्मिंदा हो उठती है जब वो देखती है कि इन्सान तो रंग बदलने की कला में उससे भी ज़्यादा माहिर हो चला है।


इस व्यंग्य संग्रह को पढ़ते वक्त मुझे कुछ एक जगहों पर तथ्यात्मक रूप से ग़लतियाँ दिखाई दीं जैसे कि

पेज नंबर 10 की अंतिम पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..


'तब शायद अब की तरह लोगों का पानी मरा नहीं था'


यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि असली कहावत 'पानी मरना' नहीं बल्कि'आँख का पानी मरना' अर्थात बेशर्म होना है।


इसलिए यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..


'तब शायद अब की तरह लोगों की आँख का पानी मरा नहीं था'


इसी तरह पेज नम्बर 72 में लिखा दिखाई दिया कि..


'मैं पहले ही काले रंग के कारण सामाज से बेदखल हूँ और उस पर तुर्रा ये कि मैं हंस कि चाल भी नहीं उड़ सकता हूँ'


यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि किसी की चाल, चला जाता है ना कि उड़ा जाता है। पुरानी कहावत 'कौवा चला हंस की चाल' है ना कि 'कौवा उड़ा हंस की उड़ान'


पढ़ते वक्त इस व्यंग्य संग्रह में जायज़ जगहों पर भी नुक्तों का प्रयोग ना किया जाना बहुत खला। साथ ही प्रूफ़रीडिंग और वर्तनी की स्तर पर हद से ज़्यादा त्रुटियाँ दिखाई दीं। जिससे ऐसा प्रतीत हुआ कि जैसे इस किताब की प्रूफ़रीडिंग की ही नहीं गयी है। किसी भी किताब में इतनी ज़्यादा प्रूफ़रीडिंग एवं वर्तनी की त्रुटियों का होना लेखक एवं प्रकाशक की साख पर बट्टा तो लगाता ही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस व्यंग्य संग्रह के आने वाले संस्करण एवं अन्य किताबों में इस तरह की कमियों को दूर करने का सार्थक प्रयास किया जाएगा।


पेज नंबर 21 में लिखा दिखाई दिया कि..


'एक गधे के लिए 'गठबंधन' जैसा भारी भरकम शब्द दिमाग दस हज़ार वाट का लोड डाल गया'


यहाँ 'दिमाग दस हज़ार वाट का लोड डाल गया' की जगह 'दिमाग में दस हज़ार वाट का लोड डाल गया' आएगा।


पेज नंबर 28 में लिखा दिखाई दिया कि..


'तुम्हें नहीं मालूम की नेता के लिए किसी को भी गधा बनाना कितना आसान काम है'


यहाँ 'तुम्हें नहीं मालूम की नेता के लिए' की जगह 'तुम्हें नहीं मालूम कि नेता के लिए' आएगा।


पेज नम्बर 29 की पहली पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..


'शेर की तरह सत्ता पाने वाल बन जाता है'


यहाँ 'सत्ता पाने वाल बन जाता है' की जगह 'सत्ता पाने वाला बन जाता है' आएगा।


पेज नंबर 38 में लिखा दिखाई दिया कि..


'वैसे भी उस पर रोटी गंवाने के बावजूद लालची का ठप्पा लगाने ही वाला था'


यहाँ 'लालची का ठप्पा लगाने ही वाला था' की जगह

'लालची का ठप्पा लगने ही वाला था' आएगा।


पेज नंबर 41 में लिखा दिखाई दिया कि..


'जिसमे उसे भी खानदानी रवायत के कारण 'सन बाथ' लेते हुए गुनगुनाने का पूरा मूड कर रहा था'


यहाँ 'जिसमे उसे भी खानदानी रवायत के कारण' की जगह 'जिसमें उसका भी खानदानी रवायत के कारण' आएगा।


पेज नंबर 45 में लिखा दिखाई दिया कि..


'उसे लगने लगा मानो पूरी चिड़िया जाति पर नजर ना लगे इसी लगे इसलिए उसे नजरबट्टू बनाकर भेजा गया है'


नुक्तों की कमी के अतिरिक्त इस वाक्य में 'इसी लगे' शब्दों की कोई ज़रूरत नहीं थी।


पेज नंबर 55 में लिखा दिखाई दिया कि..


'बच्चे का नाम सुनते ही बकरी इमोशनल अत्याचार के आगे सियार के आगे नतमस्तक होते हुए बोली'


यहाँ 'इमोशनल अत्याचार के आगे' की जगह 'इमोशनल अत्याचार से डर कर' आएगा।


पेज नंबर 67 में लिखा दिखाई दिया कि नेताजी ने अपने श्रीमुख में पिछले आधे घंटे से भरे हुए पान मसाले पर रहम करते हुए उसे थूकते हुए कहा'


यहाँ 'पान मसाले पर रहम करते हुए उसे थूकते हुए कहा' की जगह 'पान मसाले पर रहम कर उसे थूकते हुए कहा' आएगा।


इससे अगली पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..


'तुम सबसे एक ठौ सवाल पूछ रहा हूँ देखे कौन बता लेता है'


यहाँ ' देखे कौन बता लेता है' की जगह 'देखें कौन बता पाता है' आएगा।


पेज नंबर 70 की अंतिम पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..


'कुत्ते के जलवे घर में भी है'


यहाँ 'कुत्ते के जलवे घर में भी है' की जगह 'कुत्ते के जलवे घर में भी हैं' आएगा।


पेज नंबर 72 में लिखा दिखाई दिया कि..


'वहाँ तो नेता से लेकर अभिनेता तक सब अपनी समस्या का समाधान करवाने के लिए वहाँ लाइन लगाए खड़े थे'


इस वाक्य में दो बार 'वहाँ' शब्द छप गया है जबकि दूसरे वाले 'वहाँ' शब्द की यहाँ कोई ज़रूरत ही नहीं थी।


इसी पेज पर आगे लिखा दिखाई दिया कि..


'मैं पहले ही काले रंग के कारण सामाज से बेदखल हूँ और उसे पर तुर्रा ये कि मैं हंस कि चाल भी नहीं उड़ सकता हूँ'


यहाँ 'सामाज' की जगह 'समाज' आएगा।

साथ ही 'हंस कि चाल' की जगह 'हंस की चाल' आएगा।


पेज नंबर 77 में लिखा दिखाई दिया कि..


'किसी ने शेर के खिलाफ खिलाफ परचा तक दाखिल नहीं किया'


इस वाक्य में 'खिलाफ' शब्द ग़लती से दो बार छप गया है।


पेज नंबर 80 के अंतिम पैराग्राफ में लिखा दिखाई दिया कि..


'ना रहने की जगह है और खाने-पीने का सामान बचा है'


यहाँ 'और खाने-पीने का सामान बचा है' की जगह 'और न खाने-पीने का सामान बचा है' आएगा।


यूँ तो यह संग्रह मुझे विमोचन के दिन, हिंदी भवन - दिल्ली में आयोजकों की तरफ़ से उपहारस्वरूप मिला मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा कि इस 84 पृष्ठीय व्यंग्य संग्रह के पेपरबैक संस्करण को छापा है इंडिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड ने और इसका मूल्य रखा गया है 200/- रुपए जो कि मुझे कंटेंट की दृष्टि से बहुत ज़्यादा लगा। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखक एवं प्रकाशक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।


* बर्दास्त- बर्दाश्त

* उत्पीडन - उत्पीड़न

* फुल प्रूफ़ - फूलप्रूफ

* ख्रफिफ्टी - फिफ्टी

* अंतरमन - अंतर्मन

* बरसो से- बरसों से

* सिटी स्कैन - सी.टी स्कैन

* केचुल - केंचुल

* इन्ही - इन्हीं

* भैस - भैंस

* छटाक - छटाँक

* अकल - अक्ल

* डबल डोज - डबल डोज़

* झाडी - झाड़ी

* अशाश्वत - आश्वस्त

* अश्वासन - आश्वासन

* हडपने - हड़पने

* जिसमे - जिसमें

* चीटी - चींटी

* चौक कर - चौंक कर

* गाने गुनगाने - गाने गुनगुनाने

* गुनगुनी धुप - गुनगुनी धूप

* नजरबट्टू - नज़रबट्टू

* येन केन प्रकारेण - येन केन प्रकरेण

* साथ ख्रसाथ - (साथ-साथ)

* बाते - बातें

* कुंवे - कुँए

* नियत पाली हुई थी - नीयत पाली हुई थी

* मिडिया - मीडिया

* पलके - पलकें

* रिर्सर्च - रिसर्च

* श्री मुख - श्रीमुख

* देखे - देखें

* रिसोर्ट - रिज़ॉर्ट

* लुवी डुवी - (लवी-डवी)

* सोलहवे दिन - सोलहवें दिन

* लोमड - लोमड़

* कपडे - कपड़े

* जित्तना - जितना

* उन्ही - उन्हीं

* दिलावाओं - दिलवाओ

* (खुशी-खुसी) - (खुशी-खुशी)

* सामाज - समाज

* समस्या ग्रस्त मिले - समस्याग्रस्त मिलें

* ग्यारहवे - ग्यारहवें

* पैसा वसूल लेते है - पैसा वसूल लेते हैं

* खिलाफ - ख़िलाफ

* बढाने - बढ़ाने

* कोसो - कोसों

* सिलिब्रिटी - सैलिब्रिटी