इसी तरह दिन गुज़रते गए हिमानी सेलनियों को घुमाती, हरि किशन जी भी मंदिर जाते और कुछ थोड़ी बहुत दक्षिणा मिलती उसे घर ले आते ।
मई का महीना आ चुका था। मंदिर के कपाट खुल चुके थे इस बार अनुमान लगाया जा रहा था की अधिक से अधिक श्रद्धालु इस बार दर्शन करने आएंगे।
घाटी में बहार आ चुकी थी श्रद्धालुओं के जथथे आ शुरू हो गए थे। धर्मशाले भरने लगी थी चारो और भीड़ ही भीड़ नज़र आने लगी थी। वहा रहने वालो के चेहरों पर चमक आ गयी थी क्यूंकि जितने अधिक श्रद्धालु वहा आएंगे उतना अधिक उन लोगो का कारोबार होगा ये कुछ महीने ही होते है घाटी वालो के पास वरना कपाट बंद होते ही कुछ दिन बाद बर्फ गिरना चालू हो जाती है तब सिर्फ कुछ सेलानी ही आते है।
हिमानी भी बेहद खुश थी उसके साथ भव्या भी आ जाती कॉलेज से निबट कर उसका हाथ बटाने कभी कभी ।
हरी किशन जी भी अब सारा दिन बाहर ही रहते मंदिर में और श्रद्धालुओं को पूजा पाठ कराते। वैशाली जी और कार्तिक ही अब घर में रहते।
आसमान में बादल छाय रहते दिन भर मौसम बेहद सुहाना होता वहा का जो लोगो को अपनी और आकर्षित करता।
हंशित और उसके दोस्त भी पूरी तरह से तैयार थे। सारी तैयारियां मुकम्मल हो चुकी थी अब बस कुछ गिनती के चंद दिन ही रह गए थे उन लोगो के जाने में। हंशित ने अपने सारे कैमरे कई कई बार चेक कर लिए थे ताकि कोई परेशानी हो तो संभल वा सके ।
श्रुति अपने घर में थी और अपनी पैकिंग कर रही थी तभी दरवाज़े पर उसकी माँ आती और कहती "बेटा मुझसे मिले बिना ही चली जाओगी क्या, एक बार मुझे गले लगा कर नही जाओगी "
श्रुति अपनी पैकिंग छोड़ कहती है " माँ, मुझे अपने सीने से तुमने खुद दूर किया था मैं खुद नही हुयी थी, मेरा साथ छोड़ कर तुमने उस आदमी का हाथ थाम लिया और उसे मेरे पापा की जगह दी"
"बेटी तू समझा कर बात को, मैं मजबूर थी मैं अकेले तेरी परवरिश नही कर सकती थी, मुझे भी किसी के सहारे की ज़रुरत थी और आनंद मुझे पसंद करता था इसलिए मैंने उससे शादी कर ली ताकि मेरा अकेला पन दूर हो सके और तुझे माँ और बाप दोनों का प्यार मिल जाए" श्रुति की माँ शेफाली ने कहा
"माँ तुमने उस आदमी का साथ पाने के लिए मेरा साथ छोड़ दिया, तुम एक स्वार्थी माँ हो, क्या मैं तुम्हारा सहारा नही बन सकती थी, क्या हम दोनों एक दूसरे का सहारा नही बन सकते थे लेकिन आप सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए उस आदमी को हमारे बीच ले आयी जिसका अस्तित्व मुझे स्वीकार्य नही था। वो भले ही आपका पति होगा लेकिन वो मेरा कोई नही लगता मेरे पापा सिर्फ वही थे जो अब इस दुनियां में नही रहे ।
और उन्ही के साथ साथ मेरी माँ भी मर चुकी है मैं अब अनाथ हूँ। जिसका कोई नही है अपना इस दुनियां में ना बाप और ना ही माँ" श्रुति ने कहा रोधी आवाज़ में
"भगवान के लिए ऐसा मत कहो श्रुति, मुझे अपने आप से जुदा मत करो मुझे इतनी बड़ी सजा मत दो उस गलती की" शेफाली ने कहा रोते हुए
"माँ अगर आप चाहती हो कि मैं आप को और कुछ ना कहु तो प्लीज् यहाँ से चली जाइये अपने पति घर और यहाँ कभी मत आना, मैं मर भी जाऊ तब भी मत आना क्यूंकि अनाथ बच्चों का कोई अपना नही होता, उसी तरह चली जाओ जैसे दस साल पहले गयी थी मुझे इस घर में अकेला नौकरानी के हवाले करके "श्रुति ने कहा
शेफाली हाथ जोड़े उससे माफ़ी मांगने के लिए खड़ी थी लेकिन श्रुति ने जाकर दरवाज़ा बंद कर दिया और दरवाज़े पर बैठ कर बहुत रोई।
शेफाली ने बहुत देर इंतज़ार किया लेकिन दरवाज़ा ना खुलने पर शेफाली वहा से चली गयी।
घर आकर उसके पति आनंद ने कहा " मिल आयी अपनी बेटी से माफ कर दिया उसने, आखिर क्यू जाती हो तुम उसके पास जब पता है की वो तुम्हे अब माँ नही समझती है "
वो भले मुझे अपनी माँ समझें या ना समझें लेकिन वो मेरी बेटी है, थी और रहेगी जिसे मैं दस साल पहले अपने स्वार्थ के खातिर उस घर में छोड़ आयी थी की शायद वक़्त के साथ साथ वो समझ जाए।
लेकिन नही जानती थी की वक़्त के साथ साथ वो और मुझसे दूर हो जाएगी। मेरी बेटी ने बारह साल की उम्र से अकेला रहना सीख लिया और उसे ऐसा करने पर मैंने मजबूर किया आज अगर मैं तुमसे शादी ना करती अपने बहकते कदमो को पीछे मोड़ लेती तो आज मेरी बेटी मेरे साथ होती, माँ होते हुए भी वो खुद को कभी अनाथ ना कहती।
ये सब मेरी ही गलती थी जो में स्वार्थ में आकर अपना अकेला पन दूर करने के लिए अपनी बेटी को अकेला छोड़ आयी उस घर में शायद इसी बात की सजा मुझे ईश्वर ने दी है की वो आज मुझसे इतना दूर हो गयी की चाहती है की जब वो मर जाए तब भी मैं उसका चेहरा ना देखु ।
आंनद उसके पास आया और बोला " जो हुआ उसे जाने दो,
"कैसे जाने टू वो मेरी बेटी है नो महीने उसे कोख में पाला है मैंने, मेरे शरीर का एक हिस्सा है उसे इस तरह तकलीफ में देख मेरा सीना जल उठता है " शेफाली ने कहा
"शेफाली अब तुम ज्यादा ही भावुक हो रही हो अपनी बेटी के लिए, तुमने कोई गलत काम नही किया था तुमने उसका भला ही चाहा था और अपनी ज़िन्दगी के सूने पन को मेरे साथ बाटने की कोशिश की थी मुझसे शादी करके। अब वो अगर इसे गलत समझती है तो समझने दो क्या कर सकते है क्यू अपने आप को परेशान कर रही हो, जाओ अंदर कमरे में जाकर मेरे कपड़ो पर स्त्री कर दो कल एक जरूरी मीटिंग है बेवजह उस गुस्सैल और नकचढ़ी लड़की के खातिर अपने घर का माहौल खराब मत करो जाओ ऊपर जाओ" आनंद ने कहा
शेफाली उसके मुँह से निकल रहे अल्फाज़ो को बारीकी से सुन रही थी और समझ रही थी। और सोच रही थी की आखिर इसके लिए उसने अपनी बेटी का साथ छोड़ा था जो बल्कि इस मुसीबत घड़ी में उसे समझाने के बजाये उसका साथ देने के बजाये उस की ही बेटी को ना जाने क्या कुछ कह रहा है। शेफाली ख़ामोशी से बिना कुछ कहे वहा से अपने कमरे में चली गयी।
हंशित, लव, कुश, जॉय और श्रुति सबकी पैकिंग हो चुकी थी। एक रात पहले सब लोग हंशित के घर आ गए अपना समान लेकर सब खुश थे मौसम भी सुहाना था ।
आसमान में बादल थे मानसून का आगाज़ हो चुका था लेकिन अभी बारिशें शुरू नही हुयी थी। रात का खाना खा कर सब लोग बाहर बगीचे में बैठे थे हंसराज जी को छोड़ कर घर के सभी सदस्य उन लोगो के साथ बैठे थे सब लोग खाने के बाद चाय का आंनद ले रहे थे।
तब ही हेमलता जी बोल उठी " बेटा कल तुम लोग निकल जाओगे तुम सब के जाने के बाद ये घर सूना हो जाएगा तुम लोग जल्दी आना "
"और अगर आये ही नहीं तब क्या करोगी दादी" हंशित ने पूछा मज़ाक में
"हंशित तुमसे कितनी बार मना किया है कि इस तरह कि बाते मत किया करो हमारे सामने" रुपाली जी ने कहा
"सॉरी सॉरी, भूल गया था, अच्छा दादी आपको क्या चाहिए वहा से क्या लाऊ, कहो तो एक दादा जी ले आऊ आपके लिए " हंशित ने कहा सब लोग हसने लगे
"बेशर्म दादी से किस तरह की बाते कर रहा है, अब तू कहा से मेरे लिए अपने दादा ढूंढ कर लाएगा अब तो मेरा ही समय आ गया है उनके पास जाने का नही पता कब यमराज जी आ जाए मुझे लेने" हेमलता जी ने कहा
"ओह दादी इस तरह की बाते ना करो अभी तो आपको बहुत कुछ देखना है, अभी तो आपको मेरा फोटो अख़बार में छपते देखना है " हंशित ने कहा
"माँ इस तरह की बाते मत करो, आप ही तो हो जो हम सब को बुरे वक़्त में हौसला देती हो आपको कुछ हो गया तो हमारा क्या होगा" रुपाली जी ने कहा
और भी सब ने दादी को प्यार करते हुए उन्हें इस तरह की बाते करने से मना किया।
तब हेमलता जी बोली ठीक है नही करती हूँ इस तरह की बाते लेकिन तू मुझसे वायदा कर " मुझे जल्द पोत बहु का मुँह दिखायेगा और अपने छोटे छोटे बच्चों को मुझे अपनी गोदी में लिटायेगा "
रजनी जो की बच्चों की बात सुन कर उदास सी हो गयी उसने रजत की तरफ देखा और रजत ने उसकी तरफ वो वहा से उदास होकर जाना चाहती थी लेकिन रजत ने उसका हाथ थाम लिया और वही बैठने को कहा क्यूंकि वो जनता था अंदर जाकर रजनी सिर्फ उदास होगी और कुछ नही बच्चों को लेकर।
"ओह दादी ये क्या ख्वाहिश जाहिर करदी आपने मुझसे " हंशित ने कहा
"अब जा रहा है तो पहाड़ से कोई लड़की ले आना पसंद करके हम उससे तेरी शादी करा देंगे सुना है पहाड़ो पर रहने वाली लड़कियां बेहद खूबसूरत और चंचल होती है तितली की तरह ताकि मैं भी अपनी सास की ज़िम्मेदारी अपनी बहुओ को देकर आराम करू " रुपाली जी ने कहा
शादी के लिए पहले प्यार होना जरूरी है किसी लड़की के साथ, मुझे ये अरेंज मैरिज के झांसे में नही फसना जिस दिन कोई लड़की मुझे पसंद आ जाएगी उस दिन आप लोगो को उससे मिलवा दूंगा अगर मेरी मोहब्बत पहाड़ो में छिपी होगी तो मेरी तक़दीर मुझे वहा ले जाएगी उससे मिलवाने नही तो वो खुद चल कर सामने आ जाएगी" हंशित ने कहा
"ओह हो बड़ा फ़िल्मी अंदाज़ में कह रहा है चल इंतज़ार रहेगा भाभी का " लव ने कहा
उस रात उन लोगो ने खूब मस्ती करी और ढेर सारी बाते करी, रुपाली जी कई बार हंसराज जी को बुलाने गयी की आकर वो भी बच्चों के साथ बैठ जाए सुबह वो लोग जा रहे है ना जाने कब लोट कर आये लेकिन अपने बेटे से ज़िद्द के चककर में वो बाहर नही आये और खिड़की से उन्हें देख कर सोने चले गए।
रुपाली जी उदास थी बाप बेटे के बीच अनबन की वजह से अब जाकर वो उस सपने को भूल चुकी थी सब लोग काफी देर तक वहा बैठे रहे और फिर नींद आने पर वहा से चले गए और जाकर सो गए क्यूंकि सुबह ट्रैन भी थी।
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