Brundha-Ek Rudali - 4 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | ब्रुन्धा-एक रुदाली--भाग(४)

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ब्रुन्धा-एक रुदाली--भाग(४)

ठाकुर रुपरतन के सीढ़ियों से लुढ़क जाने के बाद विद्यावती और जगीरा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो दोनों क्या करें,इसलिए उन दोनों ने जोर जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया कि ठाकुर साहब सीढ़ियों से लुढ़क गए हैं,ठाकुर रुपरतन अब भी बेहोश थे,इसलिए उनका इलाज करने के लिए शहर से एक डाक्टर को बुलवाया गया,डाक्टर आएँ और उन्होंने ठाकुर साहब का चेकअप करना शुरू कर दिया,तब डाक्टर साहब ने सबसे कहा कि शायद उनके सिर पर चोट लगने से उनकी याददाश्त चली गई है,उन्हें कुछ भी याद नहीं है,उन्हें शहर के अस्पताल में भरती करवाना पड़ेगा,ठाकुर रुपरतन की याददाश्त की बात सुनकर ठाकुराइन विद्यावती और जगीरा ने चैन की साँस ली.....
अब शहर में ठाकुर साहब का इलाज चलने लगा,ठाकुर साहब की देखभाल के लिए एक नर्स को रख दिया गया,क्योंकि ठाकुराइन विद्यावती और उनका बेटा नवरतन सिंह ठाकुर साहब की देखभाल करने के लिए अस्पताल में रुकने के लिए तैयार ही नहीं थे और तभी ठाकुर रुपरतन सिंह ने अपना दाँव खेला,चूँकि उनकी याददाश्त नहीं गई थी,उन्होंने तो केवल याददाश्त जाने का बहाना किया था,उनका असली मकसद तो शहर जाकर किसी अच्छे से वकील से अपनी वसीयत बनवाना था,क्योंकि हवेली में रहते हुए वो ऐसा नहीं कर सकते थे,अगर वो वहाँ अपनी वसीयत बदलते तो शायद ठाकुराइन विद्यावती वसीयत अपने बेटे के नाम करवाने के लिए इस हद तक गुजर जाती कि वो ठाकुर रुपरतन का खून भी करवा सकती थी, इसलिए ठाकुर साहब ने ऐसी चाल चली....
और जो डाक्टर उन्हें देखने आया था,वो डाक्टर भी ठाकुर रुपरतन सिंह की जान पहचान का था, इसलिए उन्होंने भी ठाकुर साहब की मदद की,फिर ठाकुर साहब ने अपनी पुरानी वसीयत बदलकर उस में ये लिखवाया कि वो नवरतन सिंह की शादी अपने जिगरी दोस्त दुर्जन सिंह की बेटी पन्नादेवी से करना चाहते हैं,अगर नवरतन ये शादी करने से इनकार करता है तो उसे मेरी वसीयत से बेदखल कर दिया जाएँ और शादी के बाद पूरी जायदाद की मालकिन पन्नादेवी देवी ही होगी,अगर पन्नादेवी की आकाल मृत्यु होती है तो तब भी मेरी सारी जायदाद सरकार को चली जाएँ,उसमें से मेरी पत्नी विद्यावती और मेरे बेटे नवरतन को फूटी कौड़ी ना मिले....
अब जब विद्यावती और नवरतन को पता चला कि ठाकुर रुपरतन ने याददाश्त जाने का झूठा नाटक किया था तो दोनों बौखला गए,लेकिन अब दोनों कुछ भी नहीं कर सकते थे,क्योंकि अगर गुस्से में आकर वे दोनों कोई भी कदम उठाते तो ठाकुर साहब उन्हें दर दर का भिखारी बना देते,इसलिए दोनों ने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी,ठाकुर रुपरतन को पता था कि ठाकुर दुर्जन सिंह और उनकी बेटी पन्नादेवी का व्यवहार अच्छा नहीं है,इसलिए तो उन्होंने नवरतन की शादी पन्नादेवी से करवाने की सोची थी....
फिर क्या था,बड़ी धूमधाम से नवरतन और पन्नादेवी की शादी हो गई,नवरतन ने सोचा था कि उसकी दुल्हन अच्छी होगी,जो हमेशा उसका कहा मानेगी,लेकिन वो तो अव्वल नंबर की घमण्डी और झगड़ालू निकली,जो सीधे मुँह नवरतन से बात ही ना करती थी,पहली ही रात में उसने नवरतन से साफ साफ कह दिया था कि मुझे कमसिन और बेवकूफ समझने की भूल कभी मत करना,मैं घर की चारदीवारी में कैद नहीं रह पाऊँगी और तुम्हारी माँ की गुलामी भी नहीं करूँगी,मुझसे किसी भी तरह की उम्मीद मत करना,कुल मिलाकर ठाकुर रुपरतन सिंह ने माँ बेटे से अपना बदला ले लिया था...
ऐसे ही दिन बीते लेकिन नवरतन को पन्नादेवी से प्यार ना हो पाया,क्योंकि उसे भी पता चल गया था कि वो ठाकुर रुपरतन का नहीं जगीरा का बेटा है,इसलिए ठाकुर साहब ने उससे बदला लेने के लिए उसकी शादी पन्नादेवी से करवाई है,अपनी पत्नी के प्रति नवरतन की नफरत कभी भी प्यार में नहीं बदल पाई, जब कि पन्नादेवी नवरतन को चाहने लगी थी और जब भी पन्नादेवी नवरतन के करीब जाना चाहती तो नवरतन उसे झिड़क देता,जिससे पन्नादेवी भी नीरस होती चली गई,उसकी सारी उमंग ओर खुशियाँ धीरे धीरे मरती चलीं गईं,जब रात को नवरतन के बिस्तर पर कोई लड़की जाती तो पन्नादेवी के सीने पर साँप लोटने लगते, कुछ भी हो कोई भी पत्नी अपनी पति को पराई स्त्री के साथ नहीं बाँटना चाहेगी,इसलिए पन्नादेवी भी धीरे धीरे जहरीली नागिन बनती चली गई....
और फिर एक दिन ठाकुराइन विद्यावती ठाकुर रुपरतन को जान से मारने में कामयाब हो गई,वो महीनों से उनके खाने में थोड़ा थोड़ा जहर मिला रही थी,जिससे उन्हें कुछ भी पता नहीं चला और एक दिन उनकी मौत हो गई,जब ठाकुर रुपरतन सिंह मरे तो उनकी मौत पर मातम मनाने के लिए रुदालियों को बुलाया गया,तब उस वक्त मंगली सबसे अच्छी रुदाली मानी जाती थी,वो ऐसे रोते थी कि वहाँ मौजूद लोगों की दुख के मारे छाती फट जाती थी और वे खुदबखुद रो पड़ते थे,मंगली भी रुदाली बनकर वहाँ आई,जब मंगली हवेली में मातम करने आई तो उसके साथ उसकी चौदह साल की बेटी गोदावरी भी आई,मंगली गोदावरी को अपने संग इसलिए लाई थी कि वो रुदालियों को रोते हुए देख देखकर सीख जाएँ कि रुदालियाँ कैंसे रोतीं हैं और उसी दिन नवरतन की घाघ नजर चौदह साल की गोदावरी पर पड़ गई और वो उसे अपने बिस्तर पर लाने की सोचने लगा....
मंगली इस बात के लिए कतई राजी नहीं थी,लेकिन वो बेचारी करती भी क्या,विधवा और गरीब जो ठहरी, दिल पर पत्थर रखकर रोते हुए सँजा धँजाकर उसने आखिरकार गोदावरी को नवरतन की हवेली भेज ही दिया,उस रात नवरतन सिंह चौदह साल की गोदावरी को बिस्तर पर रौंदता रहा और वो चीखती रही,फिर इसके बाद जब भी उसका मन होता तो वो गोदावरी को हवेली बुलवा लेता,उसने गोदावरी का ब्याह भी नहीं होने दिया,उसे पता था कि अगर गोदावरी का ब्याह हो गया तो फिर वो उसके हाथ नहीं लगेगी और इसी तरह तीन चार साल गुजर गए और जब ठाकुर नवरतन को पता चला कि गोदावरी गर्भ से है तो फिर उसने आननफानन में गोदावरी का ब्याह किशना से करवा दिया.....
ठाकुर रुपरतन की मौत के बाद ठाकुराइन विद्यावती को तपैदिक हो गया था और वो तपैदिक होने के बाद एक डेढ़ साल तक जिन्दा रहीं थीं,विद्यावती की मौत के बाद जगीरा बिलकुल अकेला पड़ गया था और फिर कुछ दिनों बाद वो भी मर गया और अब उस पूरी हवेली में कुछ नौकर-नौकरानियाँ, ठाकुर नवरतन सिंह और ठाकुराइन पन्नादेवी ही रहते हैं....
तो ये थी ठाकुर नवरतन सिंह की जिन्दगी,खैर उनके बारें में बात करना बंद करते हैं अब हम चलते है किशना और गोदावरी की बेटी की ओर....
तो फिर किशना ने बड़े उल्लास के साथ बेटी के जन्म की खुशियाँ मनाईं,अपने सभी दोस्तों को शराब और गोश्त की दावत दी,गाँव भर के लोगों का भोज करवाया और अपनी बेटी का नाम रखा ब्रुन्धा.... जिसका मतलब होता है बुलबुल....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....