Brundha-Ek Rudali - 1 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | ब्रुन्धा-एक रुदाली--भाग(१)

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ब्रुन्धा-एक रुदाली--भाग(१)

इन्सान सरलता से झूठी हंँसी हँस तो सकता है, लेकिन बिना बात के बड़े बड़े आंँसुओं के साथ उसके लिए रोना लगभग कठिन सा हो जाता है,अगर आपसे कोई कहे कि अब रोने लगो, तो शायद आपके लिए ऐसा कर पाना सम्भव नहीं होगा,लेकिन दुनिया में ऐसे भी लोग हैं, जिनका पेशा ही रोना होता है और इन लोगों को रुदाली कहा जाता है, ये बिना किसी वजह के रो सकते हैं,अनजान लोगों की मृत्यु पर इन्हें ऐसा रुदन करना होता है कि देखने वालों की आंँखों में भी आंँसू आ जाये,ऐसा करने के लिए इन्हें पैसे दिए जाते हैं, पुराने समय में किसी के मरने पर रुदालियों को बुलाना,एक परम्परा थी, लेकिन अब ये परम्परा कहीं लुप्त सी हो गयी है,
इन्हें बुलाने के पीछे कई सामजिक और मनोवैज्ञानिक कारण होते थे, जिनके बारे में लोग नहीं जानते, इसलिए इनको बुलाने की परम्परा ख़त्म होती गयी और इन्हें बुलाना इसलिए ज़रूरी होता था क्योंकि मृतक के परिजन कई बार सदमें के कारण रोते नहीं थे और शोक को अपने अन्दर ही दबा कर रखते थे और ऐसा करना मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है,दुख से उबरने की प्रक्रिया में रोने की बहुत एहमियत होती है,रुदाली जब रुदन करते हैं, तो रोने का माहौल सा बन जाता है, जो लोग रो नहीं पा रहे होते हैं, वो भी इन्हें देखकर रो पड़ते हैं और उनके अन्दर का दर्द बाहर निकल जाता है,आज भी राजस्थान के कई गांँवों और कस्बों में ये परम्परा बरक़रार है,
यह रुदन का अभिनय रुदालियों को काले कपड़ों में करना होता था, क्योंकि यह धारणा थी कि काला रंग यमराज का पसंदीदा रंग होता है,दुख का प्रदर्शन करने वाली ये रुदालियांँ सामन्तवादी प्रथा का प्रतीक थीं, किसी भी मांगलिक व शुभ प्रसंग पर इनका साया भी ठाकुर या जमींदार की हवेली पर पड़ने नहीं दिया जाता था,दूसरों की मौत पर वेदना के आंँसू बहाकर वे अपने पापी पेट की अग्नि को शान्त करती थीं, समाज में उनको सदैव ही हीन नजरों से देखा जाता था और उनके साथ ऐसा ही क्रूरता से भरा व्यवहार भी किया जाता था, इनके घर भी गांँव की सरहदों के बाहर बने होते थे,
ऐसी ही ये कहानी एक रुदाली की है जिसका नाम है ब्रुन्धा और ब्रुन्धा का मतलब होता है बुलबुल, जो कि मीठा गीत गाती है,हमारी कहानी की नायिका ब्रुन्धा अपनी माँ और नानी की भाँति रुदाली नहीं बनना चाहती,उसे रोने से नफरत है,वो हमेशा खुशी के गीत गाना चाहती है,खुलकर जीना चाहती है और खुलकर मुस्कुराना चाहती है,उसे अपनी माँ और नानी की तरह घुटन भरी जिन्दगी नहीं चाहिए,इसलिए वो अपनी सहेलियों से कहती थी कि वो चाहे तो तवायफ़ बन जाऐगी लेकिन रुदाली कभी नहीं बनेगी,उसे झूठे रोने से नफरत है,कम से कम तवायफ़ बनकर वो नाच गा तो सकेगी,उसकी ये बातें सुनकर उसकी सहेलियाँ उस पर हँसतीं हैं,उसका मज़ाक बनातीं हैं,तो देखते हैं कि हमारी कहानी की नायिका जो चाहती है क्या वो कर पाती है या नहीं,तो चलते हैं कहानी की ओर....
ये ब्रिटिश शासन के युग की कहानी है,जब राजघरानों और जमींदारों का राज चलता था,लेकिन राजघराने और जमींदारों को भी ब्रिटिश शासन के नियमों को मानना पड़ता था,राजघरानों और जमींदारों के लिए ब्रिटिश राज्य के सख्त नियमों का उलंघन करना आसान बात नहीं थी,इसलिए मजबूर होकर राजघराने और जमींदारों को उनके नियम मानने पड़ते थे......
राजस्थान के एक इलाके में तूफानी बरसाती रात एक गाँव के किसी घर में एक स्त्री प्रसवपीड़ा से लगातार दो दिनों से तड़प रही है और प्रसव है कि होने का नाम ही नहीं ले रहा है,ऐसा लगता है कि आने वाला शिशु इस धरती पर अपने पग नहीं धरना चाहता,प्रसवपीड़ा से तड़प रही स्त्री की बूढ़ी माँ बार बार ईश्वर को सुमर रही है,उससे अब अपनी बेटी की तकलीफ़ नहीं देखी जाती,चिन्ता के मारे उसका दिल बैठा जा रहा है कि अब क्या होने वाला है और तभी आसमान में जोर की बिजली कड़की और बिजली की कड़क के साथ सौरी घर से नवजात शिशु के रोने की आवाज़ आई और तभी प्रसूता स्त्री की माँ ने हाथ जोड़कर ईश्वर का शुक्रिया अदा किया,इसके बाद सौरीघर के दरवाजे के पास जाकर उसने दाईमाँ से पूछा....
"मन्तो! सब ठीक तो है ना!",
"हाँ! मंगली! सब ठीक है चाँद सी नातिन आई है तेरे घर,नाल काट देने दे फिर दिखाती हूँ तेरी नातिन का चाँद सा मुखड़ा",दाईमाँ मन्तो ने भीतर से कहा..
"और मेरी गोदावरी तो ठीक है ना,होश में तो हैं ना वो",मंगली ने पूछा....
"हाँ! वो भी ठीक है",दाईमाँ मन्तो ने भीतर से कहा....
फिर ये खबर अपने दमाद किशना को सुनाने के लिए मंगली ऐसी बारिश में नंगे पैर ही घर से निकल पड़ी और भागकर किशना के पास पहुँची,जहाँ किशना अपने दोस्त यारों के साथ चिलम पी रहा था,किशना को देखते ही मंगली उससे बोली....
"चाँद सी छोरी आई है तेरे घर,चल जल्दी घर चलकर उसका मुँह देख ले",
"क्या सच में माँ सा"!
और ऐसा कहकर किशना मंगली को गोद में उठाकर जोर जोर से नाचने लगा,तब मंगली उससे बोली...
"छोड़....ये क्या कर रहा है तू!,उतार नीचे, गिरा मत देना,मेरी बूढ़ी हड्डियों में इतना दम नहीं रह गया है कि अब कोई भी चोट बरदाश्त कर सकें"
"अरे! नहीं गिरोगी माँ सा! मुझ पर भरोसा करो,मुझे जरा खुशी तो मना लेने दो",किशना मंगली से बोला....
"बस! बहुत हो गया,अब मुझे नीचे उतार",मंगली झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोली...
"अच्छा! चल अब घर चलते हैं"
और ऐसा कहकर किशना घर चलने को हुआ तो उसके यार दोस्तों में से एक बोला...
"और हम सबकी दावत"
"वो भी होगी,शराब से नहला दूँगा,तुम सबको"
और फिर ऐसा कहकर मुस्कुराते हुए किशना ऐसी बारिश में मंगली के साथ घर आ गया ,उसने जल्दी से गीले कपड़े बदले और उसके गीले कपड़े बदलते ही दाईमाँ एक साफ चादर में बच्ची को लपेटे हुए उस दोनों के सामने हाजिर हुई,वो पहले मंगली के पास पहुँची,मंगली ने बच्ची की बलैया लेकर अपने हाथ का एक कंगन उतारकर दाईमाँ मन्तो को दे दिया और मन्तो से बोली...
"जा! उसके बाप के पास ले जा,वो कब से इसका मुँह देखने के लिए तड़प रहा है,उसे भी अपनी छोरी के संग थोड़ा लाड़ जता लेने दे"
इसके बाद मन्तो ने किशना के हाथों में वो नवजात बच्ची थमा दी,जिसे देखकर किशना की आँखें भर आईं और उसने उसे अपने सीने से लगा लिया,उसकी नम आँखों ने बच्ची का बड़े प्यार से स्वागत किया,किशना की भावनाएंँ देखकर दाई माँ मन्तो किशना से बोली...
"जा! इसे गोदावरी के पास ले जा,दो दिन से दर्द से तड़प रही थी,इसे देख लेगी तो उसे थोड़ी राहत मिल जाऐगी"
और फिर किशना बच्ची को लेकर गोदावरी के पास पहुँचा और घुटनों के बल उसकी चारपाई के पास बैठते हुए बोला....
"देख गोदावरी! हमारी बेटी,कितनी सुन्दर है"
और फिर गोदावरी ने उस बच्ची को देखकर दूसरी ओर मुँह फेर लिया,उसके ऐसा करने पर किशना उससे बोला...
"पगली! मुँह क्यों फेरती है इसे देखकर"
"जब तुझे पता है कि ये तेरा खून नहीं है,तब भी तू इसे पाकर इतना खुश क्यों है"?, गोदावरी दुखी होकर बोली....
गोदावरी की बात सुनकर किशना मौन सा हो गया ....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....