Shuny se Shuny tak - 48 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 48

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शून्य से शून्य तक - भाग 48

48===

“क्या बात है आशी? ”मनु भी दरवाज़े से हटकर अंदर आ गया| 

“इतना घबरा क्यों रहे हो? डरते हो मुझसे? ”उसने सहज होकर पूछा| 

मनु के लिए आशी का यह व्यवहार अप्रत्याशित था| कहाँ तो वह उससे बात तक नहीं करती थी, ज़रा सी भी लिफ़्ट नहीं देती थी, जहाँ उसे देखते ही वह वहाँ से ऐसे गायब हो जाती थी जैसे गधे के सिर से सींग!फिर आज ऐसा क्या प्यार आ गया था उसे जो मनु के कमरे में, वो भी अकेले में बिंदास चली आई थी| वह तो पहले से ही उसके सामने आने से बचता रहा था, सोनी आँटी कितना प्यार करती थीं लेकिन उनके जाने के बाद तो जैसे पूरा ही उलट-फेर हो गया| 

आशी से न जाने कितने सालों से उसने बात नहीं की थी और अकेले में तो बिलकुल भी नहीं| अब इस तरह से अगर माधो या किसी और घर के सेवक ने या फिर दीना अंकल ने ही देख लिया तो उसकी बनी बनाई इज़्ज़त तो गई| वह अंदर आ तो गया था लेकिन अपने पलंग के पास खड़ा हुआ असमंजस में कभी आशी के चेहरे को देखता तो कभी अपनी नजरें इधर-उधर घुमाने लगता| 

“अब बैठोगे भी या खड़े ही रहोगे? भई, तुम्हारा ही कमरा है, मैं ही आई हूँ तुमसे बिलकुल अकेले में बात करने| ” वह इतनी सहज, सरल होकर बोल रही थी कि मनु को अपनी आँखों और कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था| सकपताते हुए मनु ने अपनी कुर्सी , जिस पर वह बैठकर कुछ पढ़ रहा था, उसे घुमाया और उसके सामने बैठ गया| क्या-क्या कह रही थी आशी!!वह आश्चर्य से भर रहा था और लगभग डेढ़/दो घंटे बाद आशी एक लंबी साँस खींचकर उठ खड़ी हुई| उसने मनु के कमरे का दरवाज़ा खोल, लॉबी में इधर-से उधर एक लंबी निगाह डाली और धीरे से अपने कमरे की ओर बढ़ आई| 

मनु पशोपेश में ताकता रह गया, आशी उसके मन में एक गुत्थियों का गोला बनाकर चली गई थी| मनु उसी गोले को अपने मन की मुट्ठी में पकड़े इधर से उधर कर रहा था| आशी ने कुछ इस प्रकार से पापा की बात उसके सामने रखी थी कि मनु घबरा उठा था| उसे लगा कि आशी उसे भी अपने साथ अंधकार में ढकेल रही है| वह घबरा उठा था लेकिन उसने जो दीना अंकल की बात की थी वह भी महत्वपूर्ण थी| आज सबके जीवन की डोर दीना अंकल के चारों ओर बंधकर रह गई थी | 

‘क्या मुझे दीना अंकल के लिए आशी की बात स्वीकार कर लेनी चाहिए? ’आशी की बात स्वीकार करनी आसान नहीं थी| आसान नहीं थी इसीलिए मनु के सामने एक कठिन समस्यापूर्ण जीवन की तस्वीर आकर खड़ी हो गई थी| एक बार इस फ्रेम में चिपक जाने के बाद पूरे जीवन इसीमें चिपका रहना पड़ेगा| उसे अपने पापा-मम्मी की याद बरबस हो आई और वह बिस्तर में करवटें बदलने लगा| पापा–मम्मी की अनुपस्थिति ने उसे बहुत असहज बना दिया था| वह बिस्तर में करवटें बदलते हुए बड़बड़ करने लगा और इसी दशा में न जाने उसे कब निद्रा रानी ने घेर लिया| 

प्रतिदिन की भाँति आशी अपने समय पर उठकर तैयार होने लगी| रात में जब वह मनु से बात करके आई थी तब से अपने आपको कितना हल्का महसूस कर रही थी!चैन की नींद जहाँ आशी का चेहरे पर एक सुकून ले आई थी वहीं पूरी रात करवटें बदलते मनु के चेहरे पर से जैसे ताज़गी उड़नछू हो गई थी| आराम से तैयार होकर ताजगी के साथ वह अपने कमरे से तैयार होकर बाहर निकल ही रही थी कि उसी समय रेशमा के कमरे का भी दरवाज़ा खुला| 

“गुड मॉर्निंग दीदी” रेशमा ने प्यार से आशी को पुकारा | 

“गुड मॉर्निंग रेशमा, तैयार हो गई हो? ”

“जी, दीदी—चलिए, नाश्ता कर लेते हैं| सब आ गए होंगे| ”

“हाँ, चलो—”आगे बढ़ते हुए उसने एक चुप सी दृष्टि मनु के कमरे की ओर फेंकी| उसके कमरे में किसी भी प्रकार के हलचल के आसार नज़र नहीं आ रहे थे| रेशमा से बातें करते हुए वह सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी| 

डाइनिंग हॉल में दीना जी चिंतित सी मुद्रा में बैठे हुए थे| उन्होंने सामने से दोनों लड़कियों को आते हुए देखा और अपने चेहरे को मुस्कान से ढकने की कोशिश की| 

“गुड मॉर्निंग अंकल---”

“गुड मॉर्निंग पापा ---”

“गुड मॉर्निंग बच्चों---आज देर हो गई क्या? ”

“नहीं अंकल, आठ बजे हैं| ”दीवार-घड़ी ने अचानक ही आठ के घंटे बजाए| बरसों पुरानी यह घंटे बजाने वाली दीवार घड़ी सोनी की पसंद की थी| कितनी पुरानी हो गई थी यह लेकिन इसके घंटे सुने बिना दीना को चैन ही नहीं आता था| उन्हें लगता घंटे बजते ही सोनी उनसे कह रही है, 

”देखा, कितनी देर हो गई है!”देर हो या न हो, यह उसका पैट डायलॉग था| 

“शायद मैं ही जल्दी आ गया हूँ—”दीना जी बड़बड़ाते हुए बोले फिर एकदम से पूछ बैठे;

“मनु कहाँ है? ”

“मैं देखती हूँ अंकल---”कहती हुई रेशमा डाइनिंग टेबल के पास पहुँचने से पहले ही पीछे घूमकर भाई के कमरे में जाने के लिए सीढ़ियाँ चढ़ने लगी| 

आशी आगे बढ़कर पिता के सामने टेबल पर आ बैठी थी| आँखें उठाकर उसने उनकी ओर देखा जो उसके चेहरे पर ही आँखें गड़ाए बैठे थे| आशी से आँखें मिलते ही वे हड़बड़ा से उठे, उन्होंने आशी को रात को मनु के कमरे में जाते देखा था तब वे न केवल मन में घबरा से गए थे, न जाने लड़की क्या करके आएगी इसीलिए चिंता में थे| अब आशी की बात सुनकर थोड़े से निश्चिंत हुए लेकिन उनका मस्तिष्क उलझनों से ही भरा रहा| यह कैसा काया पलट था? क्या आशी उनकी बात पर सच में ही गंभीरता से गौर कर रही है? शायद ‘हाँ’ उन्होंने अपने सिर को हिलाया और फिर से रात की घटना पर विचार करने लगे| संभवत:आशी इसीलिए रात को अकेले में मनु से बात करने गई होगी, पर क्या ये संभव है? एकाएक उनका मन धड़कने लगा ‘is it really possible? ’ उनके मन में बार-बार यही विचार घूम रहा था| भीतर का उत्साह, बेचैनी, घबराहट उनके मुँह पर थिरकने लगी थी| पता नहीं, कैसे होगा सब? 

“गुड मॉर्निंग अंकल” मनु खड़ा था| रेशमा कुर्सी पर बैठकर टोस्ट लगाने लगी थी | 

“गुड मॉर्निंग। बैठो बेटा—”वे बौखलाए हुए से लग रहे थे| 

“ क्या बात है अंकल? आर यू नॉट वैल ? ”मनु ने बैठते हुए पूछा| 

वह उनकी सकपकाहट देख रहा था, रेशमा भी टोस्ट खाते हुए उनका मुँह देखने लगी| 

“नहीं, नहीं मैं बिलकुल ठीक हूँ, आओ नाश्ता करो , मैं ठीक हूँ---ऑलराइट---”

दोनों नाश्ता करने लगे| रेशमा नाश्ता कर चुकी थी;

“मैं निकलती हूँ ---बाय सबको---”कहकर वह निकल गई| 

माधो ऑफ़िस ले जाने के लिए लंच पैक करने लगा था|