पहला भाग: मुलाकात की पहली कहानी
अक्षत, प्रिया और एकलव्य की उम्र लगभग 10 साल थी। अक्षत एक नेकदिल और चंचल स्वभाव का लड़का था और प्रिया एक प्यारी और मासूम लड़की थी। यह आधुनिक प्रकार का प्रेम नहीं था, बल्कि सच्ची दोस्ती, देखभाल और एक-दूसरे की परवाह करने का भाव था। एकलव्य, अक्षत का सबसे अच्छा दोस्त था और इनकी दोस्ती की तिकड़ी बहुत खुशमिजाज थी।
मुलाकात:
यह एक खुशनुमा सुबह थी जब प्रिया पहली बार स्कूल आई। स्कूल में लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग लाइनों का सख्त अनुशासन था। जैसे ही प्रिया स्कूल के गेट से अंदर आई, उसकी आँखों में थोड़ी सी नर्वसनेस और कन्फ्यूजन थी। उसकी आँखों में नई जगह, नए चेहरे और नए माहौल की झलक साफ दिखाई दे रही थी।
एकलव्य ने उसे देखा और मुस्कुराते हुए अक्षत का ध्यान उसकी ओर खींचा। अक्षत ने पहली बार जब प्रिया को देखा, तो उसके मासूम चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी। प्रिया का पहला दिन था और वह थोड़ी नर्वस थी। जब वह रोने लगी, तो अक्षत ने उसे मुस्कराते हुए देखा और धीरे से मुस्कान दी। उसकी मुस्कान में ऐसा जादू था कि प्रिया की आँखों में चमक आ गई और उसके होंठों पर भी हल्की मुस्कान बिखर गई।
प्रिया ने अपनी आँखें पोंछी और कक्षा में जाने के लिए तैयार हो गई। शिक्षक ने उसे सबके सामने परिचय कराया। "बच्चों, यह प्रिया है, हमारी नई छात्रा।" हम टॉपर्स तो नहीं थे, लेकिन टॉपर्स से कम भी नहीं थे। प्रिया भी कन्फ्यूज थी लेकिन खुश थी क्योंकि अब लंच का समय हो गया था। प्रार्थना के बाद प्रिया ने अपना लंच खत्म किया और हमसे हमारे नाम पूछे। हमने उसे बताया कि उसे हिचकिचाने की जरूरत नहीं है, हम अच्छे दोस्त बन सकते हैं।
प्रिया ने मुस्कुराते हुए पूछा, "क्या आप मुझे अपने लंच में से कुछ देंगे?" हम हंसते हुए बोले, "हाँ, अगर तुम्हारे पास हमारा लंच से ज्यादा स्वादिष्ट कुछ है।" प्रिया हंस पड़ी और बोली, "चलो, अब दोस्ती की शुरुआत करते हैं।"
एस दिन अक्षत और एकलव्य को स्कूल आने की जो खुशी थी वो शब्दो में नहीं कही जा सकती थी ।
स्कूल खत्म होने के बाद, उसके पिता उसे घर ले जाने आए। उसने हमें अपने पिता से मिलवाया। हमने उसके पिता को नमस्ते किया। उसके पिता ने हमें प्यार भरी नज़रों से देखा ।
इस तरह से हमारी पहली मुलाकात हुई। प्रिया ने इस मुलाकात को अपनी डायरी में लिखा और इस तरह हमारी दोस्ती की शुरुआत हुई। ये डायरी ही एक दिन तीनो को एक दूसरे की सच्चाई का सामना करवाने वाली थी ।
इस तरह तीनों की दोस्ती की कहानी अब शुरू हो चुकी थी, दिन की समाप्ति पर, तीनों के दिलों में एक नई ऊर्जा और दोस्ती की मिठास थी। अक्षत, प्रिया और एकलव्य की दोस्ती हर दिन के साथ और गहरी होती जा रही थी, और उनकी छोटी-छोटी कहानियों में बंधी यह दोस्ती जीवनभर की यादें बन रही थी।
एक ऐसी कहानी जो जितनी जल्दी मित्र बने उतनी ही जल्दी कठिनायों का आगमन हुआ । वे किस तरह एक एक करके बिखरे और जब मिले ; तो क्या मिले .....