अमावस्या की रात थी। चारों ओर घुप्प अंधेरा छाया हुआ था, जैसे काले समंदर में डूबा हो सब कुछ। हवाओं की सिसकियाँ एक सिहरन पैदा कर रही थीं। गाँव के बुजुर्ग कहते हैं, ऐसी रात में आत्माएँ जागती हैं। उसी रात, वह पुरानी हवेली अपनी खामोशी के साथ खड़ी थी, जो सालों से वीरान पड़ी थी।
हवेली के टूटे फाटकों से झाँकती परछाइयाँ मानो किसी का इंतजार कर रही थीं। हर कदम पर बिखरे हुए पत्ते और टूटी हुई लकड़ियों की आवाजें उस डरावने माहौल को और भी भयावह बना रही थीं। कोई नहीं जानता था कि हवेली के अंदर क्या रहस्य छिपे थे, पर हर कोई उन कहानियों से वाकिफ था जो उसकी दीवारों में कैद थीं।
उस रात, जब घड़ी ने बारह बजाए, हवेली के दरवाजे अपने आप चरमराते हुए खुल गए। अंदर की खामोशी में अचानक एक चीख गूँज उठी। हवेली के दालान में पुराने चित्र दीवारों से झाँक रहे थे, जैसे किसी खौफनाक घटना के साक्षी हों। सीढ़ियों पर कदम रखते ही, एक ठंडी हवा का झोंका सारे शरीर में सिहरन पैदा कर गया।
अमावस्या की वह रात किसी खौफनाक सपने से कम नहीं थी। हवेली के गलियारों में गूंजती पदचाप, बंद दरवाजों के पीछे से आती रहस्यमयी आवाजें और हर कोने में छिपी अदृश्य निगाहें, सब मिलकर एक ऐसी भयानक कहानी बुन रही थीं, जिसे कभी कोई सुनाने की हिम्मत नहीं कर पाया।
यह रात हमेशा के लिए उस हवेली के अंधेरे में दफन रह गई, जहाँ सिर्फ सन्नाटे की चीखें और भूतिया परछाइयाँ ही रह गईं।
इस रात पे गौतम और जानकी फोन पर बात कर रहे थे।जानकी जो गांव से थी। उसकी सादी को सिर्फ २ ही दिन बाकी थे बहुत खुश थे दोनो। आधी रात हो गई। दोनो को नींद आने लगी। फोन रखते ही दोनो सो गए।
रात के ३ बजे थे। जानकी की नींद खुल गई और उसे प्यास लगी थी। वो पानी पीने गई। पानी पीने के बाद वह सोने जा रही थी। तभी...... अचानक से घर की खिड़की खुल गई.... जानकी डर गई।।। वह खिड़की बंद करने जा ही रही थी तभी अचानक से लाइट चली गई। अब वो बहुत ही डर गई थी।
उसकी सादी गांव मे रखी गई थी । वह रहते तो सहर में थे। लेकिन बड़े बुजुर्ग कहते थे की हवेली देख कर अपना छोटा सा मकान नहीं भूलना चाहिए। इस लिए उसकी सादी गांव में रखी गई।
वो मम्मी पापा को उठाने ही वाली थी।तभी अचानक से उसको गौतम की आवाज सुनाई दी। वह सोच में पड़ गई गौतम अभी यहां कैसे? जब सादी में हमारे शरीर पर हल्दी लग जाती है तो हमे घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए।वैसे ही गौतम की आवाज सुन कर वो खुस हो गई और इधर उधर देखने लगी।
उसने सोचा गौतम मुझे मिलने आए है।
फिर उसने देखा तो घर पे मम्मी पापा सो रहे थे ।और गौतम की आवाज भी नही आई।उसको लगा ये मेरा वहम है । वैसे ही गई हुई लाइट वापिस आ गई।
फिर वह सोने चली गई।लेकिन वह आवाज उसके कानो पर बार बार गूंज रही थी।जैसे उसको कोई बाहर बुला रहा हो। वो बहुत डरने लगी ।और सोचा की गौतम को फोन करू। फिर गौतम को फोन लगाने ही वाली थी तभी फिर से घर की खिड़की खुल गई और उसके हाथ से मोबाइल गिर गया । खिड़की के पास देखा तो वहा गौतम खड़ा था।जानकी को लगा नही नही ये मेरा वहम है।लेकिन गौतम उसको बाहर बुला रहा था
जानकी .....
जानकी......
जानकी......
तीन बार जानकी को आवाज दी।
गांव वाले बुजुर्ग कहते है की हल्दी लगने के बाद हमे कही बाहर नहीं जाना चाहिए। या कोई तीन बार बुलाए तो उसे देखना नही चाइए या इसके पास जाना भी नही चाइए।
यह सब जानते हुए भी जानकी फिर से सो गई।थोड़ी देर बाद जानकी बिलकुल गहरी नींद में सो गई
ऐशे ही अगली सुबह हो गई। जानकी सादी को लेके बहुत खुस थी । घर पर कही सारे लोग आने लगे थे।जानकी सुबह से सोच रही थी ।गौतम से बात कर लेती हू।लेकिन कही सारे लोगो में और रिश्तेदारों में वो भूल ही गई । धीरे धीरे सादी को सिर्फ १ ही दिन बाकी था।......
आगे की कहानी...... अध्याय ३ में पढ़े।
Bhavika Rathod 😊