Hotel Haunted - 61 in Hindi Horror Stories by Prem Rathod books and stories PDF | हॉंटेल होन्टेड - भाग - 61

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हॉंटेल होन्टेड - भाग - 61

वो लकड़ी का टुकड़ा श्रेयस से कुछ ही दूरी पर हवा में लहरा रहा था,ये देखकर आंशिका के चेहरे की मुस्कान गायब हो गई,उसकी आँखें फैल गई और माथे पे शिकन उभर आई,वो फुर्ती के साथ दौड़ते हुए और उस टुकड़े को श्रेयस के शरीर की ओर बढ़ाने की कोशिश करने लगी,उसने इतनी ताक़त लगा दी कि उसकी वजह से उस टुकड़े को पकड़ा था वहां दरारें पड़ने लगी और इतना जोर लगाने की वजह से उसके हाथ से भी खून आने लगा था लेकिन वो लकड़ी का टुकड़ा टस से मस नहीं हुआ, धीरे-धीरे आंशिका के माथे पर शिकन बढ़ती गई, उसके चेहरे पर गुस्सा बढ़ता गया।


"उग्घ.....उग्घ..." गुराते हुए वो उस लकडे को फिर आगे की तरफ खिसकाने की कोशिश लगी लेकिन वो फिर भी नहीं हिला,आखिर जब वो नहीं हिला तो आंशिका ने श्रेयस की तरफ देखा जो उसे ही देख रहा था पर आज उसके चेहरे पर एक विश्वास था और फिर उसे देखते हुए कहा,"आज चाहे जितनी भी कोशिश कर लो पर ना तो तुम भाग पाओगे और ना ही आंशिका को नुकसान पहुंचा पाओगे।" श्रेयस की बात सुनते ही उसने दो छलांग लगाई और वो उस घेरे से दूर हो गई,उसके चेहरे पर बहोत गुस्सा छाया हुआ था जिसकी वजह से एक भारी और बेहद खौफनाक आवाज़ उसके मुंह से निकाली,"आआआहह......"इस चीख ने सबको अपने कान पर हाथ रखने के लिए मजबूर कर दिया,वो इतनी ताक़त के साथ गुराह रही थी कि उसके गले से लेकर चेहरे तक शरीर की नसे उभर आई थी,उसके गुस्से की वजह से सभी बल्ब पटाके की तरह आवाज़ करते हुए 'धुम-धुम' करके फूट पड़े,उसके साथ ही सभी के पास ऊपर लटक रहा झूमर नीचे गिरकर चकनाचूर हो गया और पूरे रिजॉर्ट मैं अंधेरा फैल गया, सभी ने अपनी गर्दन झुका रखी थी और अभी भी सभी के हाथ अपने-अपने कानों पर थे।आखिरकार उसने चिल्लाना बंद किया और वह सब को घूर घूर कर देखने लगी।
श्रेयस भी सर झुकाए खड़ा था लेकिन जब उसे महसूस हुआ कि आवाज आनी बंद हो गई तब अपनी नजरें ऊपर उठाई तो उसे सामने कोई खड़ा हुआ नहीं दिखाई दिया,यानी कि आंशिका वहाँ से जा चुकी थी, मैं फौरन मुड़ा और इधर उधर देखने लगा लेकिन उसे बस कुछ लाइट में से निकलती चिंगारियाँ और चारो तरफ फर्श पर बिछा कांच ही कांच दिखाई दिया।


"अब...!?अब क्या होगा श्रेयस, आंशिका हमारे हाथ से फिर निकल गई" प्रिया ने आंशिका के गायब होते ही श्रेयस तरफ घूरते हुए कहा।
मिलन: "वो यहाँ नहीं है तो क्या मैं बाहर निकलकर देखूं?"
"नहीं...ये गलती कभी मत करना,वो बस हमारी एक गलती का इंतेज़ार कर रही है" मैंने मिलन को घूरते हुए कहा और फिर आसपास नजर घुमाने लगा,"अगर मेंरा अंदाजा सही है तो वो कहीं नहीं गई, यहीं है हमारे आसपास.....चाहे पूरी रात खड़े रहना पड़े कोई भी अपने कदम यहाँ से बाहर नहीं निकालेगा।" मैंने सभी को घूरते हुए कहा और सभी की आंखों में छुपे डर और चुप्पी ने ये बता दिया कि सब मेरी बात को समझ रहे हैं।मैने अपनी नजर फिर हॉल में घुमाई,मुझे इस बात का Doubt था इसलिए मैने पहले ही कुछ जगह पर बड़ी कैंडल्स लगवा दी थी जिसकी वजह से वहां थोड़ी बहुत रोशनी छाई हुई थी।मैं बस उसकी चल को समझने की कोशिश कर रहा था पर दिल के एक कोने मैं यह भी डर था कि वो हमेशा मुझसे एक कदम आगे रहती है।
सब लोग अपने आसपास आंशिका को ढूंढ रहे थे पर वो ऊपर छत पर अपने पांव गढ़ाए अपनी लाल आंखो से श्रेयस को देख रही थी,उसका गुस्सा इतना बढ़ गया था जिसकी वजह से अंदर का पूरा माहौल गरम हो चुका था,इसका बस चलता तो वो अभी श्रेयस के टुकड़े कर देती पर वो मजबूर थी तभी उसके दिमाग़ में कुछ आया जिसकी वजह से उसके चेहरे पर शैतानी मुस्कान फैल गई।


मैं इधर उधर इसलिए देख रहा था जिससे मैं इन मोमबत्तियों की रोशनी में आंशिका की परछाई देख पाऊं,अगर वो इसी हॉल में है तो उसकी परछाई जरूर दिखेगी, मैंने हॉल के सभी कोनों में कैंडल्स लगाई ही कुछ इस तरह से थी कि वो जहाँ कहीं भी होगी उसकी परछाई मुझे दिखेगी, लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं हो पा रहा था, मैं कुछ देर सोच रहा था कि ऐसा क्यूँ नहीं हो रहा कि तभी दिमाग में कुछ आया जिसे सोचते ही मैंने अपनी नजर ऊपर छत की तरफ की, लेकिन वहाँ कोई नहीं था, फिर मैंने पीछे मुड़ के देखा और तब मेरी नजर दाहिने ओर की परछाई पे गई, जिसे देखते ही मैं समझ गया कि आंशिका उस दीवार के पीछे खड़ी है, मैं किसी को इस बारे में बताता उससे पहले मुझे एक और परछाई दिखी जो ठीक उस परछाई के सामने थी, ये देख मेरी धड़कन तेज़ हो गई,"ये कैसे हो सकता है?" खुद से अभी इतना कहा था कि मिलन की आवाज़ कान में पड़ी।
"वो देख श्रेयस आंशिका की परछाई" उसने बेहद हल्की आवाज़ में मुझसे कहा, मैं उसकी बताई हुई जगह मुड़ा तो देखा कि परछाई सीढ़ियों के पास थी,"श्रेयस....." ट्रिश ने मेरे कंधे पर हाथ ही रखा कि मैं समझ गया उसने भी कुछ देखा है, मैं दूसरी तरफ मुड़ा तो देखा कि वहाँ भी आंशिका की परछाई थी, यानी चारों दिशाओं में उसकी परछाई दिख रही थी, जो सोचा था ये बिल्कुल उसका उल्टा था, ये सब देख सर घूम गया, कुछ समझ नहीं आया कि उसकी इस चाल को कैसे समझू, मैंने ट्रिश,मिलन और बाकी सभी की तरफ देखा जो मुझे ही देख रहे थे क्योंकि सब मुझ से ही उम्मीद बांधे बैठे थे कि मैं सब ठीक कर दूंगा।



इन सबके बीच प्राची सबसे प्राची सबसे ज्यादा घबराई हुई लग रही थी, डर के मारे उसका पूरा शरीर कांप रहा था और वह हल्का हल्का सुबक भी रही थी, उसने अपने दोनों हाथों से सीने को समेटा हुआ था,पर कांपते हाथों ने एक छोटी सी चीज़ को पकड़े रहना कबूल न किया और उसके हाथ से वो छोटा रुद्राक्ष फिसल के नीचे ज़मीन पर आ गिरा, गिरते ही वो कुछ फीट ऊपर उछला और फिर वापिस ज़मीन पर गिरते हुए वो फिसलता हुआ घेरे के बाहर निकल गया और कुछ दूरी पे जा रुका।
रात के इस सन्नाटे में वो आवाज़ सभी के कानो मैं तीर की तरह चुभी,डरी सहमी प्राची ने जब ये आवाज़ सुनी तो वो एक पल के लिए डर गई लेकिन तभी उसे महसूस हुआ कि उसके हाथ में रुद्राक्ष नहीं है, उसने फौरन इधर उधर देखा कि तभी उसकी नजर उस रुद्राक्ष पर पड़ी।'डर' एक कैसा श्राप है जो बसता इंसान के दिमाग में है पर उसका असर उसके पूरे शरीर पर दिखता है,वो हर बात और पल को भुला देता है जो उसके लिए मैने रखती है और तब वो इंसान उससे लड़ने की बजाय भागने की कोशिश करता है,इस वक्त पर प्राची से भी यही गलती हो गई और वही भूल उसकी जिंदगी पर भारी पड़ गई।


"प्राच्ची नहीइइई......" ये देखते ही मैं चिल्लाते हुए उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़ा लेकिन जब तक उसे पकड़ पाता उससे पहले बहुत देर हो चुकी थी, रूद्राक्ष घेरे से कुछ ही दूरी पर पड़ा हुआ था इसलिए प्राची को लगा वो जल्दी से उसे लेकर घेरे मैं वापस आ जाएगी और जैसे ही वो उस रूद्राक्ष को उठाने के लिए जुकी एक हाथ ने जमीन से निकलते हुए उसके चेहरे को पकड़ लिया,मैं अभी कुछ करता उससे पहले हॉल के चारो और आंशिका की हंसी गूंजने लगी,उसने प्राची के चेहरे को पकड़कर 3-4 बार जमीन पर जोर से पटका और उसे चेहरे से पकड़कर घेरे से दूर फेंक दिया,जिससे उसका शरीर हवा में उड़ते हुए एक पिलर से टकराया और वही गिर गया। जहां बाकी सब आंखें फाड़े देख रहे थे और अब उनके साथ में भी शामिल हो चुका था क्योंकि मैं भी देखने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था।आंशिका को जो मौका चाहिए था वो प्राची ने ख़ुद उसे दे दिया था।

जमीन पर पड़े हुए प्राची को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसके साथ उसके कमर की पसलियों पर भी तेज़ दर्द महसूस होने लगा इसलिए उसने बहती आंखो से सबकी ओर देखकर कहा,"somebody plzz.....help me" कोई कुछ बोल पाता उससे पहले उस पिलर के पीछे से आंशिका हंसती हुई बाहर निकली और उसने अपने एक हाथ से प्राची को गले से पकड़कर ऊपर उठा लिया।


"प्राची...." मिस चिल्लाई लेकिन चिल्लाने से क्या होना था,आंशिका ने प्राची के मुंह को पकड़कर हल्का सा खोला और अपनी दो उंगलियां उसके मुंह में घुसा दी,शुरू मैं तो कोई कुछ समझ नहीं पाया पर धीरे धीरे वो अपना हाथ प्राची के गले तक उतारने लगी,प्राची को अब सांस लेने में दिक्कत होने लगी थी इसीलिए वो बिना पानी की मछली की तरह छटपटा रही थी और उसकी आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे,उसको ऐसा तड़पता देख आंशिका मुँह उपर करके जोरो से हंसने लगी।
"छोड़ दो इसे प्लीज़.." मिस ने आखिर अपनी गुहार लगाई।
"छोड़ दूं?!!....ले छोड़ देती हूँ,आ वहां से बाहर आकर ले जा इसे,यहाँ आकर....ले..." आंशिका ने प्राची के मुँह से उंगली निकाल दी, उंगली निकालते ही प्राची की तो मानो जान में जान आई, उसने गहरी गहरी सांसें लेने लगी और कांपते शरीर के साथ बड़ी मुश्किल से अपना चेहरा पीछे घुमा के आंशिका को देखा जो कि उसे बेहद डरावने तरीके से देख रही थी, उसके चेहरे को देख प्राची की आंखों से आंसू टपक गए, "प्लीज़ मुझे छोड़ दो, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है,जाने दो मुझे प्लीज़...." उसका दिल जोरो से धड़कने की बजाये कांप रहा था।


"प्लीज़" उसने फिर से अपने कांपते होठों से कुछ कहा और आंशिका बिना कुछ बोले उसे घूरती रही, हम सब ऐसे ही खड़े देखते रहे,एक अजीब खामोशी सब लोगो के बीच छाई हुई थी मेरे पास अब एक ही रास्ता बचा था, मैं जानता था कि आंशिका को और प्राची को चोट लगने का खतरा है लेकिन प्राची की जिंदगी के लिए मैं ये रिस्क लेना चाहता था।
"तुम्हे मासूम और कमजोर लोगो के ऊपर वार करने के सिवा आता ही क्या है?"मेरी बात सुनकर आंशिका के साथ सब लोग मेरी ओर देखने लगे,"शुरू से ही बस तुम इन दीवारों और कितने चेहरों के पीछे छुपकर अपना खेल,खेल रही हो,"मेरी बात सुनकर आंशिका मेरी ओर गुस्से से घूरने लगी,"क्या फायदा इतनी ताक़त का अगर तुम्हें यही लुका छिपी खेलनी थी,अगर हिम्मत है तो प्राची को छोड़ दो और इस घेरे को तोड़कर बताओ।" मेरी बात सुनकर उसने प्राची को जोर से धक्का दिया जिसकी वजह से वो जमीन पर घसीटती हुई कुछ दूरी पर जा गिरी।

" जा....छोड़ दिया इसे" आंशिका ने उसी गुस्से भरे अंदाज़ में कहा,बाकी सभी के चेहरे पे थोड़ी राहत दिखी लेकिन मुझे इसमें कुछ गड़बड़ लग रही थी इसलिए मैं अपने पीठ पीछे छिपाई हुई कुल्हाड़ी बाहर निकाली और उस रस्सी की ओर देखने लगा जो उस कार्पेट के नीचे से होती उस बड़े से झूमर के साथ बंधी हुई थी।



To be Continued.......