Pill in Hindi Film Reviews by Dr Sandip Awasthi books and stories PDF | Pill वेब सीरीज - Review

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Pill वेब सीरीज - Review

रिव्यू - बीमारी बढ़ाती दवाएं, Pill वेब सीरीज

By - डॉक्टर संदीप अवस्थी, 

Created by Rajkumar Gupta, IMDb rating 8.5

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"आजकल देश में लोग दुआओं से ज्यादा दवाओं पर भरोसा करते हैं।हम आम आदमी की जिंदगी से हो रहे इस खिलवाड़ से चिंतित हैं। इसलिए हम फॉरेवर फार्मा की कैंसर वेक्सिन पर रोक, स्टे, लगाते हैं।और अगले सप्ताह इस कम्पनी को कोर्ट में हाजिर होने का नोटिस देते हैं।" वेब सीरीज में सुप्रीम कोर्ट के इस दृश्य से सभी कुछ साफ हो जाता हैं।

बुद्धिमान फिल्ममेकर इंडस्ट्री में बहुत बहुत कम है। वर्ना अधिकतर अनुराग कश्यप या करण जोहरनुमा हैं जिन्हे अतिशय हिंसा बेचनी है या ऐसी रईसों की दुनिया दिखानी है जहां चार लोगों के लिए पंद्रह कमरे, दस गाडियां और सैंकड़ों पोशाकें हैं।

राजकुमार गुप्ता, जिनका सराहनीय काम आप no one killed Jessika और कुछ समय पहले आई अजय देवगन अभिनीत "रेड" फिल्म में देख चुके हैं, द्वारा क्रिएटेड यह वेबसीरीज pill, उस अंधेरे जगत को सामने लाती हैं जिसे हम भगवान मानते हैं। जिसे हम चुनकर भेजते हैं सरकार में की यह हमारे हित, स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा की चिंता करेंगे।

और वही लोग अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेते हैं।वेब सीरीज राजकुमार गुप्ता और उनकी टीम की बहुत अच्छी रिसर्च और व्यवहारिकता का परिणाम है की कहीं भी यह देखने वाले को निराश नही करती। परत दर परत खुलती हैं और हम आप उससे खुद को रिलेट करते हैं, कि ऐसा हमारे साथ, हमारे घर में हुआ की निरंतर इलाज के बाद भी, गोलियों, दवाई के बाद भी कोई फायदा नही हुआ । और हमारे अपने चले गए। जिंदगी भर हम अपराधबोध, गिल्ट में रहते हैं की हमने और बेहतर और अच्छा इलाज कराया होता तो बच जाते।

यह वेब सीरीज बताती है की डॉक्टर्स, उनकी महंगी और अनाव्यश्क जांचें तो जिम्मेदार हैं ही।परंतु उसके अलावा बेहद जरूरी कारण है लाइफ सेविंग दवाइयों में से लाइफ सेविंग तत्व ही गायब। जी हां, दवाइयों का जल्दबाजी में और बिना ढंग से रिसर्च, सुधार किए मोटे मुनाफे के लिए बाजार में उतारा जाना।लोग मरे तो मारे जाएं।

 

हम सब गिनी पिग हैं

_________________ पिल वेब सीरीज बताती है की जो आम व्यक्ति है मजदूर, किसान, झुग्गी झोंपड़ी का वह तो बना दिया गया है गिनी पिग, जिस पर दवाइयों की टेस्टिंग जो पहले चूहों, कोकरोचों पर होती थी, वह अब इन पर होती है। दूसरे स्तर पर बड़ा मध्यमवर्गीय तबका है जिसे इलाज के लिए अच्छे डॉक्टर्स और दवाई की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है।और वह हर छोटी मोटी बीमारी पर डॉक्टर के पास जाता है, विश्वास करके। और वह धीर, गंभीर डॉक्टर पूरे भरोसे और विश्वास के साथ, वही दवाई लिखता है जिस पर उसे अधिकतम कमीशन, गिफ्ट, फॉरेन trip से लेकर गाड़ी तक मिलती है। तो होता यह है की आप ठीक होने की जगह आगामी, गंभीर बीमारी के साइड इफेक्ट्स लेकर आते हैं। जो आगे और दो तीन बार बीमार पड़ने पर आपको अपनी गंभीर चपेट में ले लेती है। चाहे डायबिटीज, हार्ट, स्किन की बीमारी हो या फिर किडनी, डिप्रेशन, मां नही बन पाना, इंपोटेंसी, लीवर, ओवरवेट आदि।आम आदमी सोचता रहता है की यह मुझे कैसे हो गई?

 

ऐसा गुनाह जिसमें विक्टिम को ही गुनाहगार बताते हैं

__________________________हम सोचते रह जातें हैं की मैं तो वर्षों से एक नियमित दिनचर्या का पालन कर रहा हूं, और सच भी है हमारे घरों में बचपन से ही घर का खाना और बाहर के खाने, अधिक तेल चिकनाई के नुकसान बताए समझाए जाते हैं। पर फिर भी जिंदगी में हम इनकी चपेट में आते हैं। और खुद को ही दोष देते हैं। डॉक्टर से पूछते हैं एक संवाद मेरा देखें, "डॉक्टर साहब, मुझे शुगर कैसे हो गई? मैं चीनी, आलू, चावल कुछ भी अधिक नही खाता। सुबह तो नही पर रात को वॉक करता हूं। ओवरवेट भी नही?"

डॉक्टर, पर्चे पर याद कर करके हर महंगी दवाई लिखता हुआ, " आप ही बताएं हुई कैसे? यह तो आपकी दो हजार की जांच रिपोर्ट बता रही है।"(अरे डॉक्टर मैं हूं या आप, कहना यह चाहता हूं पर निकलता कुछ है)

"सर, अभी यह प्रारंभ ही है तो कारण पता चल जाए तो? "

अब डॉक्टर सड़क छाप तोते वाला ज्योतिष बन गया है, "आपके खानदान में किसी को?"

किसी को नही सर, सोचने के बाद।

फिर ननिहाल पक्ष में किसी को?

(अरे भले आदमी, ननिहाल पक्ष का मुझसे क्या लेना देना?)

"फिर आपके नजदीकी समूह में किसी को होगी, उससे आपको हुई।" खतम बातचीत और लाखों लोग बिना यह जाने की उन्हे इन गंभीर बीमारियां, बिना ट्रायल, बिना उच्च कोटि के टेस्ट पास किए बाजार में उतार दी दवाइयों से हुई हैं, घर आ जाते हैं। और हर माह नियम से दवाई लेते हैं। और दवाई कम्पनियों के मुनाफे और डॉक्टर के कमीशन को बढ़ाने में योगदान देते हैं।

वेबसीरिज रितेश देशमुख, जो एक दवाइयों की जांच करने वाला ईमानदार डॉक्टर अधिकारी है, की पड़ताल को आगे बढ़ाती है। किस तरह ड्रग फैक्ट्री में जांच के लिए एम ए आई की अनुमति जरूरी है और वह हायर बॉस नही देते। फिर भी वह जांच जारी रखता है और हाई कोर्ट के ऑर्डर से दस्तावेज जब्त करके जब आ रहा होता है तो दो दिन में दवा कम्पनी के मालिक गिल साहब, जिनके मंत्री से लेकर विदेशों तक में अच्छे संपर्क हैं, के दबाव में कोर्ट में ही इस जांच को गलत सिद्ध कर दिया जाता है।

और दफ्तर पहुंचते ही जब्त किए कागजात, सैंपल से भरे सारे बॉक्स खुद सरकारी दवा जांच का बिग बॉस ले जाकर नष्ट करवा देता है। और जांच करता देशमुख को सस्पेंड।

आगे वह ईमानदार भारतीय, होते हैं ऐसे कुछ जी देश हित और सर्वहारा का हित खुद ही सोचते हैं, हमारे आपकी तरह इंतजार नही करते की कोई हमें कहेगा तो हम अच्छा कार्य या गलत बात का विरोध करेंगे, अन्यथा जो चलता है चलने दो । यह केंद्रीय पात्र हार नही मानता। राह में ईमानदार रिपोर्टर, जूनियर कुलीग का सहयोग मिलता है परंतु हर व्यक्ति जिस पर यह भरोसा करते हैं, वह आगे खबर कर देता है और यह हर बार मात खाते हैं।

उधर गिल, के माध्यम से एक बड़ी बात राजकुमार गुप्ता सामने रखते हैं की कुछ नही बल्कि एक या दो ड्रग कंपनियों का अलग अलग एक्सपोर्ट में हिस्सा सौ प्रतिशत है। और उनकी मोनोपॉली या कहें उनके पे रोल पर वह सरकारी एजेंसी काम कर रहीं हैं जिन्हे उनकी जांच करनी और उन पर एक्शन लेना है।

बहुत बारीकी से दिखाया गया है की एक ईमानदार दिखता, मेडिकल अथॉरिटी ऑफ इंडिया का हैड सेवानिवृत्ति के अगले ही सप्ताह उसी फार्मा कम्पनी को एस ए एडवाइजर ज्वाइन कर लेता है दस गुना सैलरी पर, जिसके खिलाफ खुद उसने जांच की थी।

इन्हीं उठापटक के मध्य में एक पूरी गरीबों की बस्ती एकता नगर आती है जहां के लोगों को चंद रूपयों की खातिर सरकारी हॉस्पिटल में भर्ती किया गया और उन पर बिना अनुमति नई नई कैंसर की दवाई का ट्रायल किया। जिससे उनकी स्किन, आंखे, लंग खराब हो गई।कइयों की मृत्यु हुई और जब खबर मीडिया में आई तो क्या हुआ?

जो हुआ वह आप और हम रोज नब्बे के दशक से अभी तक सुनते आए हैं, की स्वास्थ्य मंत्री को दवा कंपनी के मालिक का कॉल गया, याद दिलाया करोड़ों का चंदा और ऐसा कहलवाया गया की किसी को शक नही हुआ।सरकार भी खुश, दवा कम्पनी भी और आम जनता भी। सरकारी हॉस्पिटल और स्वास्थ्य सचिव आईएएस ने बयान दिया की, इन लोगों की मौत का कारण दवाई नही बल्कि पहले से ही इन लोगों की किडनी फेल होना है।

इसे आप यह भी पढ़ें की "neet की परीक्षा में अब सामने आ रहा है की पेपर कोई खास आउट नही हुआ। लीपा पोती हो रही। यह वाला तो आप वर्षों से पढ़ रहे की गरीबों की मृत्यु, हर राज्य और पिछली सरकारों में तो हद से ज्यादा, कुपोषण या भुखमरी से नही हुई बल्कि शराब की अधिकता से या फूड पॉयजिंग से हुई।

वर्डिक्ट

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राजकुमार गुप्ता, सत्य घटनाएं ही नही लेते बल्कि समाज से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों को बेहद रोमांचक अंदाज और प्रतिबद्धता के साथ उठाने वाले फिल्मकार हैं। इसमें भी यही किया इस डेयरिंग फिल्म मेकर ने।

शिवेंद्र सिंह और मानवेंद्र सिंह, दोनो भाई, फार्मा कम्पनी मालिको की कहानी हर अखबार में आई थी।जब दोनो ने एक दुसरे पर घटिया दवाई और ट्रायल में लोगो के मरने का आरोप लगाया। फिर हम सभी ने अभी पिछले पांच वर्षों में यह पढ़ा है की भारत सरकार ने इन पचास से अधिक दवाइयों को भारत में बेचने पर प्रतिबंध लगाया है। और उसमें जो दवाइयां शामिल है वह हम सभी बरसों से काम में लेते थे कफ सिरप से लेकर सर दर्, बदन दर्द की दवाइयों तक। अर्थात यह पचास दवाइयां हम बीस वर्षों से गलत और नुकसानदायक खा रहे थे।

मित्रों, यह सोचें आज तक कोई भी डॉक्टर यह कहता नही मिला की यह दवाई नुकसानदायक है बंद करो। बल्कि वह चुप रहता है और अपने प्रोफेशन और उसके बड़े बड़े लोगों के साथ खड़ा होता है बस चंद रूपयों के लिए। तो हमारे पास क्या विकल्प है? डॉक्टर या दवाई जब तक जीवन है हम छोड़ नही सकते।

विकल्प यह है की सीमित करें इनका उपयोग, आयुर्वेद को जरूर इस्तेमाल करें। और अच्छे, उम्रदराज होमयोथिक वाले को अपनी दिनचर्या से जोड़ें लाभ होगा। जिस तरह पिल में नायक सुप्रीम कोर्ट जाता है और हार नही मानता हम सबके लिए। उसके लिए निसंदेह राजकुमार गुप्ता, उनके सहायक निर्देशक और सीरीज निर्देशक, लेखक टीम बधाई के पात्र हैं।

भारतीय सिने दृश्य निसंदेह ओटीटी के आने के बाद बदला है। हमें अच्छे, जरूरी और नए विषयों पर कॉन्टेंट के साथ साथ खतरों से भी सावधान कराता हैं।

सभी को यह वेब सीरीज जियो सिनेमा पर जरूर देखनी चाहिए।

साथ ही रोज ताजी हवा और सहज योग को अपने जीवन में शामिल करना चाहिए। जिससे आपके शरीर की सुरक्षा आप खुद कर सके। हमारा शरीर हमारी पूंजी है और उसकी रक्षा, उसे खुश रखना हमें करना है और दूसरों को भी जागरुक करना है।

यही इस वेब सीरीज का सार्थक और बेहद जरूरी संदेश है।

मेरी तरफ से इसे चार स्टार।

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