द नाईट, ऑफ ब्रोकन ग्लासेज..
1933 में नाजी सत्ता में आ गए। अब अपना एजेंडा लागू करना था...
जो था एब्सोल्यूट पॉवर..
शुद्ध जर्मन खून का देश, और वहां से यहूदियों का सफाया..
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और तुरत फुरत ही, यहूदी दुकानों, व्यापारियो, कर्मचारीयो के बायकॉट का आव्हान कर दिया गया। उनके दुकानों, होटलों, रेहड़ियों पर "जूड" लिखा जाने लगा।
नाजी समर्थंक तो बरसो से इस दिन की प्रतीक्षा में थे, अभी आम जर्मन की रीढ़ सीधी थी।
वे अड़ गए।
अखबारों ने आलोचना की,रेडियो ने विरोध किया। पढ़े लिखे लोग जब मूर्खता का विरोध करते है, तो ऐसे प्रयास, फेल हो जाते है।
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गोयबल्स को समझ आ गया कि यह काम जरा धीरे होगा। जहर हर दिमाग मे डालना होगा। नफरती विचारों की बारिश करनी होगा।
एक सस्ते रेडियो डिजाइन हुआ, मिलियन्स में उत्पादन हुआ। घर घर सस्ते रेडियो पहुचे।
फिर सभी रेडियो स्टेशन नेशनलाइज्ड किये।वहां नाजी प्रोपगंडिस्ट बिठाये। अखबारों के एडिटर्स के लिए कानून लाया। अब वे सिर्फ वही लिख सकते थे, जो सरकार की प्रोपगंडा टीम बताती।
उभरते हुए सिनेमा बिजनेस में नाजियों ने कब्जा कर लिया गया।
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अब आप घर मे रेडियो पर प्रोपगंडा सुनते। अखबार में प्रोपगंडा पढ़ते, और आनंद के लिए जो फिल्में देखते, वह भी प्रोपगंडा होता।
मनोरंजन के बीच स्लोगन होता, कोई न्यूजरील होती, वे खबरें जो देश मे विकास की तस्वीर खींचती। और किसी यहूदी के लूट हत्या डकैती में पकड़े जाने की खबर भी। मूवी में विलेन भी एक यहूदी ही होता।
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1935 में नरेम्बर्ग रैली हुई। यह पार्टी की ताकत का शोकेस था। फ्यूहरर के अलावे इस रैली मे यादगार भाषण गोयबल्स का था।
उसने बताया कि महान जर्मन जनता, कैसे हर क्षेत्र में प्रगति कर रही है। दुनिया मे कैसे डंका बज रहा है।
और उसने कुछ फेलियर भी स्वीकारे। और सभी फेलियर के मूल में कारण थे- यहूदी।
तथा ऐसे जर्मन,जो यहूदियो को प्रोटेक्ट करते थे, उन्हें मानव समझते थे। ये थे गद्दार वामपन्थी..
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इस भाषण को जो सपोर्ट मिला, साफ था कि एजेंडा बढाने का वक्त आ गया है।
कानून बने, इन्हें नरेम्बर्ग लॉ कहा गया। इसमे ज़्यूस को बिजनेस करने, नौकरी करने, वोट सहित सभी नागरिक अधिकार छीन लिए गए।
जहां कही भी विरोध हुआ, लोगो को बंदी बना लिया गया। ज्यूस तो खैर अपराधी थे ही, उनके समर्थंक जर्मन भी वामपन्थी बताकर बंदी बना लिये गए।
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लेकिन केवल रोजगार, बिजनेस और नागरिक अधिकार छीनने से "सदियो के शोषण" का बदला कहाँ पूरा होता है।
इससे आगे भी बढ़ना था। तो 1938 में इसका मौका मिला। एक जर्मन डिप्लोमेट, कहीं राहजनी का शिकार होकर घायल हो गया। एक यहूदी शक के आधार पर पकड़ा गया।
देश भर में इस घटना का खूब प्रचार हुआ। हर दिन उसकी हालत अखबारों में बताई जाती।
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डिप्लोमेट कुछ दिन बाद मर गया।
देश के चांसलर को बड़ा दुख हुआ। उन्होंने गुस्से में कहा- हटा लो पुलिस, और जो होता है, इन लोगो को झेलने दो।
यह आमंत्रण था, और अभयदान भी। जो चाहो, करो। नाजी समर्थंक टूट पड़े। लाठी, बल्लम, रॉड, पेट्रोल, पत्थर लेकर...
यहूदी प्रोपर्टी को पहचानना कठिन न था। उनपर ज्यूड लिखना होता था। उन्हें अपने कपड़ो में अपने धार्मिक चिन्ह लगाने होते थे।
9 की रात, दस हजार से ज्यादा प्रॉपर्टीज जला दी गयी, ज्यूस के धार्मिक स्थल फूंके गए। पांच हजार से ज्यादा लोग पीट पीटकर मार डाले गए।
औरतों के बलात्कार हुए, वस्त्रहीन कर दौड़ाया गया।
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10 नवम्बर की सुबह, जर्मन शहरों की सड़कें टूटे कांच, जली सम्पत्ति से अटी पड़ी थी।
यह इतिहास में "नाइट ऑफ ब्रोकन ग्लासेज कहलाती" है। रात खत्म हो चुकी थी, पर ज्यूस के दुखों का अंत नही हुआ था।
दरअसल आज से शुरुआत हुई थी।
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अब ज्यूस से नफरत का मतलब केवल केवल समाज मे अलग करने, उनकी दुकानों का बायकॉट, नौकरी से हटाने, गालियां देने और बेइज्जत करने तक न था।
अब तो उन्हें मारना था। जर्मनी से खत्म करना था। तो कंसन्ट्रेशन कैम्प बने, जो कुशल जर्मन इंजीनियर बना रहे थे।
जहरीले इंजेक्शन बने, जो सुशिक्षित डॉक्टर लगा रहे थे। उनकी लाशों से वैल्युबल नोचकर हिसाब, प्रशिक्षित एकाउण्टेंट रखते।
वैज्ञानिक जाइक्लोन बी, और हड्डियाँ तक राख करने वाली फर्नेस बना रहे थे। जर्मन समाज का पतन हो चुका था।
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हमारे देश मे दुकानों पर अपने धर्म का नाम लिखने का आदेश आ चुका है। नाजी जर्मनी का दोहराव अपने देश मे होते देख रहे हैं।
कभी जो असमान्य था, असम्भव था, घृणित था, अधर्म था- वह धीमे धीमे सामान्य बन चुका है।
धर्म हो चुका है।
अखबार, टीवी और सोशल मीडिया ने, मन की जहरीली बात, बूंद बूंद आपकी नसों मे भर दी है।
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जहर धीमा हो, या तेज। नतीजा एक ही होता है। आज हम भी वही पतनशील समाज है।
जो विनाश के लक्ष्य की ओर सरक रहा है।