The world of children is from their mother... in Hindi Moral Stories by Purnima Kaushik books and stories PDF | मां से ही बच्चों की दुनियां होती हैं ....

Featured Books
Categories
Share

मां से ही बच्चों की दुनियां होती हैं ....

मां एक ऐसा शब्द है, जिसे कभी भी किसी भी परिभाषा में आंका जाना संभव नहीं है। मां तो अपने में समस्त संसार को समेटे हुए है। जिनके होने से कभी अकेला महसूस नहीं होता और न ही कभी डर भी लगता है। उनकी गोद में लेट कर, उनकी वो मीठी सी लोरी सुनकर, मन एक दूसरी दुनिया में चला जाता हैं। घर में कोई हो न हो लेकीन अगर मां ही न दिखे तो घर एकदम वीरान सा लगता है। मां अपनेबच्चे की खुशी के लिए और उसकी रक्षा के लिए पूरी दुनिया से लड़ जाती हैं। एक बच्चे के चहरे की हंसी, उसकी हिम्मत, उसका बल और उसकी दुनियां सब मां से ही होती हैं।

ऐसी ही एक कहानी है उस मां की, जो अपने बच्चों के लिए सब कुछ कर जाती हैं। बच्चों की ख़ुशी के लिए हर आंसू भी पी जाती हैं मां। एक महिला (रमा), जिसके चार बच्चे थे (राजेश, रमेश, अनुराग और अवंतिका)। वह अपने चारों बच्चों से बहुत प्यार करती थी। उनके लिए वह सब कुछ करती, उनकी खुशी के लिए उनकी मां हर दर्द, हर गम खुशी खुशी सह लेती।
हर सुबह बच्चों के लिए जल्दी उठना और उनके लिए खाना तैयार करना, गर्मी की तपती दोपहरी में स्वादिष्ट भोजन बनाना, बच्चों को पढ़ाना, उन्हें अच्छी अच्छी बातें सिखाना और उन्हें भविष्य के लिए एक योग्य इंसान बनाना। ये सभी काम एक मां बिना किसी शिकायत के कर जाती है। इसी तरह से रमा भी करती। बच्चों की ख़ुशी में ही उसे अपनी खुशियां दिखाई पड़ती। उनके खिलखिलाते हुए चेहरे देख कर उसे मन ही मन सुकून मिलता।

रमा के चारों बच्चे भी अपनी मां से बहुत प्यार करते थे लेकिन सिर्फ बड़े होने तक। जब वे सभी बड़े हो गए और अपने जीवन में सफलता पाने लगे तो वे मां से दूर होने लगें। उन्हें अब लगने लगा कि वे अब सब कुछ खुद ही कर सकते हैं। उन्हें किसी की आवश्यकता नहीं है। जो बच्चे पहले हर समय मां के आस पास ही रहा करते थे, हर पल जिन्हें केवल मां ही चाहिए थी, जो उनकी हर ख्वाइश पूरी किया करती थी और जो उनके हर काम किया करती थी। आज उन बच्चों को मां की कोई परवाह नहीं रही थीं। उन्हें अब अपनी मां की कोई जरूरत नहीं थी। अवंतिका, रमा की सबसे छोटी बेटी है। जिसे वह सबसे ज्यादा प्यार करती है और प्यार से उसे (अवनी)पुकारती है। वैसे तो एक मां अपने हर बच्चे से एक समान ही प्यार करती है। लेकिन अवंतिका सबसे छोटी होने के कारण सबसे लाड़ली थी। रमा ने अवनी को हर काम में निपुण किया हुआ था। सब अवनी को रमा की परछाई कहा करते थे। लेकिन बड़े होते होते अवनी ने मां के साथ रहना, उनसे बातें करना कम कर दिया। राजेश, जो घर का सबसे बड़ा बेटा है, जिसके कंधो पर घर की सारी जिम्मेदारी होती है। वह भी अब उन जिम्मेदारियों से भागने के लिए विदेश में जाकर बस गया और अपनी मां को याद नहीं करता, उनसे बात नहीं करता। रमेश और अनुराग भी हमेशा घर से बाहर ही रहते और अपनी मां की एक न सुनते।

चारों बच्चों की इन सभी बातों से रमा का दिल बहुत दुखता। वह मन ही मन बहुत उदास रहती थी। जिन बच्चों की खुशियों के लिए रमा ने सब कुछ त्याग दिया। रातों की नींद, दिन में सुकून से बैठना,अपनी सेहत का ध्यान। बच्चे खुश रहे, उनकी हर ख्वाइश पूरी हो, समय से पहले उनकी हर जरूरत का ध्यान और वे बड़े हो कर अपने सपनों को पूरा कर सके ..... इसके लिए रमा ने अपनी भी और परवाह नहीं की और धीरे धीरे वह बीमार पड़ने लगी। हर समय बच्चों की चिंता में, उनकी याद में रमा हसना ही भूल गई। उसे न अपने खाने का ध्यान रहता न समय पर सोने का, न ही वह किसी से बातें भी करती। बस बच्चों की याद में हमेशा खोई रहती। हमेशा सोचती कि सब कैसे होंगे? उन्होंने समय पर खाना खाया होगा या नहीं, वे सब अब कैसे होंगे? स्वस्थ तो होंगे। बच्चों की ख़ुशी के लिए वह ईश्वर से हर रोज प्राथना भी करती। बस बच्चों की ही चिंता में डूबी रहती थी।

एक दिन विदेश में रह रहे बड़े बेटे राजेश को अपनी मां की याद आई जब वह खुद को हारा हुआ और हर ओर से निराश महसूस करने लगा। उसे याद आने लगा कि कैसे उसकी मां उसके लिए सब कुछ करती थी। बिन कहे ही उसकी हर ख्वाइश पूरी करती थीं। जब वह बचपन खेलते हुए चोट लग जाती थी तो उसकी मां आकर उसके घाव पर दवा लगाती और उसे कहती कि "मेरा बेटा तो बहुत बहादुर हैं, शेर है मेरा बेटा "। सब लोगो से मेरी बहादुरी की बातें करती। लेकिन मैं (राजेश) तो बहुत कमजोर था। छोटी छोटी बातों पर रोने लगता था। इन सब बातों को याद कर राजेश की आंखों में आंसू आने लगे। उसने मन बनाया कि वह अब अपने घर वापस लौटेगा और सबसे पहले अपनी मां को गले लगाएगा। इसी तरह अवंतिका को भी मां की याद आने लगी। वो याद करने लगी कि कैसे मां उसे सबमें सबसे ज्यादा प्यार करती थी, कैसे उसके लिए सबसे लड़ जाया करती। उसकी ख्वाइश को सबसे उपर रखती थी। कैसे मां बस हमेशा अवनी ही पुकारती थी। अब उसका मन भी मां से मिलने का करने लगा। वह भी मां से मिलने को आतुर होने लगी। राजेश और अनुराग भी अब मां के बिना नहीं रह पा रहे थे। उन्हें भी अपनी मां की याद सताने लगी। दोनों अपनी मां से मिलने घर की जाने लगे।

जब चारों मां से मिलने घर पहुंचे और उन्होंने देखा कि मां तो घर पर नहीं है। यह जान कर सब परेशान होने लगे और हर ओर मां को खोजने लगे। घर के मंदिर में, घर के आंगन में, उनके कमरे में, घर के बाहर बगीचे में, हर ओर देखा लेकिन उन्हें उनकी मां कहीं नजर नहीं आ रही थी। मां के न मिलने से चारों परेशान और निराश हो गए। कुछ देर बाद जब किसी महिला ने उन्हें परेशान देखा, जो कि उनकी मां की सहेली थी, तो उन्होंने बताया कि उनकी मां पास में एक मंदिर में पूजा कर रही है।

जब चारों को यह मालूम हुआ तो सभी दौड़ते हुए मंदिर पहुंचे। अपनी मां को देखते ही तीनों बेटे उनके पैरों में गिर गए और अपनी की हुई गलतियों की माफी मांगने लगे। रमा ने जब तीनों बेटो को अपने पास देखा तो वह उन्हें देखते ही रोने लगी और उसने तीनों को गले से लगा लिया व खुशी से उनका माथा चूमने लगी। रमा ने ने उनकी सभी गलतियों को माफ कर दिया और बार उन्हें देख कर रो रही थी। जब रमा ने पीछे मुड़कर देखा कि उसकी छोटी और लाड़ली बेटी अवनी भी वहां हैं तो उसने उसे झट से गले लगा लिया। अवनी को देख कर रमा की आंखों से आंसू नहीं रुक रहे थे। अवंतिका (अवनी) भी अपनी मां को देख कर रो रही थी। अब उन चारों ने हमेशा अपनी मां के साथ रहने का वादा किया। अपने चारों बच्चों को अपने पास पा कर रमा ने ईश्वर को बार बार प्रणाम किया और उन्हें धन्यवाद दिया।

"बच्चों की खुशियों में ही मां अपना पूरी दुनिया देखती है, मां का दिल कभी न दुखाना क्योंकि मां में ही ईश्वर
का वास होता है।"