Tera Bimar Mera Dil - 2 in Hindi Love Stories by Wishing books and stories PDF | तेरा बीमार मेरा दिल - 2

The Author
Featured Books
  • उजाले की ओर –संस्मरण

    मनुष्य का स्वभाव है कि वह सोचता बहुत है। सोचना गलत नहीं है ल...

  • You Are My Choice - 40

    आकाश श्रेया के बेड के पास एक डेस्क पे बैठा। "यू शुड रेस्ट। ह...

  • True Love

    Hello everyone this is a short story so, please give me rati...

  • मुक्त - भाग 3

    --------मुक्त -----(3)        खुशक हवा का चलना शुरू था... आज...

  • Krick और Nakchadi - 1

    ये एक ऐसी प्रेम कहानी है जो साथ, समर्पण और त्याग की मसाल काय...

Categories
Share

तेरा बीमार मेरा दिल - 2

अब तक :

" आज शादी हुई है और कल सुहागरात होगी । आज आप सो सकती हैं । तो आराम कर लीजिए " बोलकर उत्कर्ष ने उसका हाथ छोड़ा और कमरे से बाहर निकल गया ।

राधिका बेवाक सी उसे देखती रह गई । उसे समझ नही आया था कि इतनी जल्दी ये सब क्या होने लगा था उसके साथ । कोई अनजाना आदमी इस तरह से कैसे हक जताने आ गया था ।

अब आगे :

राधिका असमंजस से उसे जाते हुए देखती रही । वो उसके पीछे बाहर जाने लगी तो दरवाजा बंद हो गया।

राधिका दरवाजा खटखटाते हुए बोली " दरवाजा खोलिए , हमे जाना है यहां से । आप हमें कैद करके नही रख सकते । हम नही मानते इस शादी को "

वो पुकारती रही लेकिन बाहर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई ।

" आप इतने निर्दई नही बन सकते । हमारे मां बाबा ढूंढ रहे होंगे हमें । शादी नही हुई तो क्या मुंह दिखाएंगे वो लोग । जाने दीजिए हमें । आप जो कहेंगे हम मान लेंगे लेकिन प्लीज हमें हमारे घर जाने दीजिए "

वो चिल्लाती रही लेकिन जवाब नही आया। शायद उत्कर्ष जा चुका था , उसे उन चार दिवारी में कैद करके ।

थक हारकर राधिका बेड के किनारे बैठ गई वो बेड के कोने से सिर टिका लिया ।

" ये हम कहां फंस गए ? मां बाबा कितना परेशान होंगे हमारे लिए । और हमारी शादी का क्या होगा ? " यही सब सोचते हुए उसकी आंखों में नमी आ गई थी ।

कुछ ही देर में उसे नींद आ गई ।

अगली सुबह जब राधिका की नींद खुली तो उसने पाया कि वो बेड के उपर सो रही थी । कसमसाते हुए उसने आंखें खोली तो पाया कि उसका दुपट्टा उसके सीने पर नही था बल्कि खोलकर बेड पर उससे दूर रखा हुआ था ।

उसने याद किया तो उसे अच्छे से याद था कि वो बेड के उपर आकर नही लेटी थी ।

तो क्या उत्कर्ष ने उसे बेड पर लेटाया था ! सोचते हुए उसकी धड़कने बढ़ चुकी थी उसने मुट्ठी बना ली और बोली " इनकी हिम्मत कैसे हुई हमें हाथ लगाने की । एक तो बंद कमरे में छोड़ गए और उपर से हमे बेड के उपर भी लेटाया । इसका जवाब देकर रहेंगे हम " बोलकर वो बेड से नीचे उतरी और अपना दुपट्टा ओढ़कर दरवाजा खटखटाने लगी ।

काफी देर तक दरवाजा खटखटाने के बाद भी किसी ने आकर दरवाज़ा नही खोला और ना ही उसकी आवाज तो सुना मानो वहां और कोई रहता ही ना हो ।

दरवाजा पीटते हुए राधिका के हाथ लाल पड चुके थे । हाथों में दर्द बढ़ने लगा तो वो रुक गई । उसका लहंगा भी काफी भारी था और उसने कल से लेकर उसी को पहना हुआ था जिस वजह से उसका दम भी घुटने सा लगा था ।

हार मानकर वो बेड पर आकर बैठ गई । फिर अपने आस पास कमरे को देखा तो अब वो बहुत आकर्षक नजर आ रहा था।

रात में लाइट की रोशनी में वो सिर्फ कमरे को देख पा रही थी लेकिन अभी सूरज की रोशनी में उसका दिल उस बड़े से खूबसूरत कमरे को निहारने का कर रहा था ।

जितना बड़ा कमरा उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत उसकी सजावट । सीलिंग पर एक बड़ा सा लटकता घूमर कमरे की शान को कई गुना बढ़ा रहा था।

कुछ पल कमरे की सुंदरता में खोए हुए वो वापिस अपनी अभी की परिस्थिति के बारे में सोचने लग गई । उसका दिल बहुत ज्यादा घबरा रहा था ।

वो बिस्तर से नीचे उतरी और सामने की बड़ी सी दीवार को देखने लगी । दीवार पर एक बड़ी सी फोटो फ्रेम थी जो उत्कर्ष की थी।

उसे घूरते हुए राधिका की नजर एक बड़े से ड्रेसिंग टेबल पर पड़ी जिसके शीशे को परदे से ढका गया था ।

राधिका ने जाकर उस परदे को हटाया तो उसे अपना अक्स शीशे में दिखाई देने लगा ।

पूरा दुल्हन का लिबास । शादी का लाल जोड़ा , हाथों में चूड़ियां , मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र । बाल हल्के बिखर गए थे लेकिन उन्हें सख्त चोटी में बांधा गया था इसलिए वो ज्यादा खराब नही हुए थे । अपने आप ही राधिका के हाथ अपने गले के मंगलसूत्र पर चले गए ।

क्या वाकई में उत्कर्ष उसके साथ धोखे से शादी कर चुका था । क्या इतना आसान था किसी को शादी के मंडप से अगवा कर लेना और उसकी मर्जी के बिना उसके साथ शादी कर लेना ।

खुद को देखते हुए राधिका ये सोच ही रही थी कि तभी कमरे का दरवाजा खुला । राधिका ने झट से दरवाजे की तरफ देखा ।

सामने उत्कर्ष खड़ा था । उसे देखते ही राधिका की भौहें तन गई । वो गुस्से से उसे देखने लगी । राधिका पर नजरें जमाए हर वो उसकी तरफ कदम बढ़ाने लगा ।

" आपकी हिम्मत कैसे हुई हमें हाथ लगाने की ? किस हक से आपने हमे बेड के उपर लेटाया ? आपको किसने इजाजत दी हमें छूने की " राधिका ने गुस्से से कहा ।

उत्कर्ष शांत लहजे में बोला " किसी ने नहीं । हमने खुद इजाजत ले ली "

" कितने बेशर्म हैं आप । एक लड़की के साथ ऐसा सुलूक करके हुए आपको शर्म नही आई क्या ? किसी की मजबूरी का फायदा कैसे उठा सकते हैं आप "

उत्कर्ष उसके बिल्कुल सामने आकर खड़ा हुआ और बोला " अगर फायदा उठाना इसे कहते हैं तो फिर तो शायद आप इस दुनिया से बुरी तरह अंजान हैं । क्योंकि जिन हालातों में आप हैं उसमे अगर आपके साथ कुछ भी गलत किया जाता है तो किसी को भी कानों कान खबर नही होगी । हमने तो बस आपको आराम से सुलाया था । "

राधिका ने सुना तो उसके दिल में उत्कर्ष के लिए गुस्सा और बढ़ गया ।

" आप क्यों हमारे करीब आ रहे हैं ? दूर रहिए " राधिका ने उससे दूर जाते हुए कहा ।

उत्कर्ष ने बाजुएं बांधी और बोला " लहंगा बहुत भारी है ना आपका । साड़ी भिजवा रहे हैं , पहनकर तैयार हो जाइए । हमे पूजा में बैठना है "

" कैसी पूजा ? "

" हमारे यहां शादी के बाद पति पत्नी कुल देवी की पूजा करते हैं । उसके बाद निजी जिंदगी की शुरुवात " बोलकर वो राधिका के और करीब बढ़ने लगा ।

" देखिए , हम पति पत्नी नही हैं । आप हमारे पास नही आ सकते "

बोलते हुए राधिका पीछे की तरफ कदम लेने लगी ।

उत्कर्ष बिना कुछ कहे उसकी तरफ बढ़ता रहा । उसकी आंखें लगातार राधिका को निहार रही थी जिससे राधिका को उससे डर भी लग रहा था ।

थोड़ा पीछे जाकर राधिका खिड़की से टकरा गई ।

उत्कर्ष उसके बेहद करीब आकर खड़ा हुआ और बोला " माफ कीजिएगा राधिका जी ,लेकिन करीब आने से आप हमें नही रोक सकती । ये हक है हमारा । मिला नही तो छीन लेंगे " बोलकर उसने चेहरा आगे बढ़ाया तो राधिका ने कसकर आंखें बंद कर ली।

अगले ही पल राधिका को हल्की सी हलचल सुनाई दी तो उसने आंखें खोल दी । उत्कर्ष अभी भी सामने था लेकिन पीछे खिड़की के परदों को खोल रहा था ।

ये देखकर राधिका की सांस में सांस आई ।

परदों को खोलते वक्त उत्कर्ष का सीना राधिका के चेहरे से लग रहा था ।

राधिका बहुत करीब से उसे देख पा रही थी । परदे खोलकर उत्कर्ष ने राधिका को देखा और बोला " get ready "

" हम नही होंगे तैयार । हमे हमारे घर भेज दीजिए "

" अगर नही हुई तो हम अपने हाथों से आपको तैयार करेंगे । अगर आपको वो चाहिए तो आप जिद्द कर सकती हैं । पर बाद में हम भी पीछे नहीं हटेंगे " बोलकर वो उसे देखते हुए कुछ कदम उल्टे चला और फिर सीधे कदम लेते हुए कमरे से बाहर निकल गया ।

राधिका बेबस सी बस उसे जाते देखती रही । इस शादी को वो मानना नही चाहती थी पर उत्कर्ष की बातों को वो टाल नहीं पा रही थी । क्या पता वो जो कह रहा था उसे सच में कर जाए ।

अगले ही पल दो से तीन मेड कमरे के अंदर चली आई । सबके हाथों में बड़े बड़े थाल थे ।

उन्होंने दरवाजा बंद किया और बोली " आइए साहिबा , हम आपको तैयार कर देते हैं "

राधिका ने कुछ जवाब नही दिया ।

मेड उसे तैयार करने लगीं ।

कुछ देर बाद राधिका पूरी तरह से तैयार हो चुकी थी ।

लाल रंग की खूबसूरत सी साड़ी जो उसके गोरे बदन पर बहुत खिल रही थी । आधी बाजू तक पहनी हुई लाल रंग की चूड़ियां , मांग में सिंदूर और गले में सुंदर सा मंगलसूत्र और हीरों का हार जिसकी चमक देखकर ही उसकी ऊंची कीमत का अंदाजा लगाया जा सकता था । सिर पर ओढ़ाई गई लाल रंग की चुनरी , जिससे उसके चेहरे पर भी घूंघट डाला गया था ।

वो चुनरी किसी रानी के लिबास की तरह लग रही थी और नीचे फर्श पर भी फैली हुई थी ।

राधिका को तैयार करने वाली मेड भी उसके उपर से नजरें नही हटा पा रही थी । वो भी उसकी सुंदरता पर मोहित हो चुकी थी । शायद ही उन्होंने किसी इतनी सुंदर लड़की को पहले देखा था ।

राधिका में अभी सब कुछ बिलकुल सही था सिवाय उसके उतरे हुए चेहरे के ।

वो तैयार हुई तो तीनों मेड कमरे से बाहर निकल गई । राधिका अब कमरे में अकेली थी । वो अपने हालात के बारे में सोच ही रही थी जिससे उसकी आंखें नम होती जा रही थी और उनमें आसूं भरते जा रहे थे ।

तभी उत्कर्ष दरवाजे के पास आया तो उसके कदमों की आहट राधिका के कानों में सुनाई पड़ी ।

वो भी पूजा के लिए तैयार हो चुका था । रेड शर्ट और ब्लैक पैंट पहने वो दरवाजे से टिककर खड़ा राधिका को उपर से नीचे तक निहार रहा था ।

राधिका को देखते हुए उसकी आंखों में चमक थी मानो आंखें भी मुस्कुरा रही थी ।

वहीं राधिका को उत्कर्ष को देखकर सिर्फ गुस्सा आ रहा था । वो उसे जबरदस्ती अपनी जिंदगी में शामिल कर रहा था ।

क्या वापिस अपने घर जा पाएगी राधिका ? या बंधकर रह जायेगी उत्कर्ष के साथ ?

......

.....

.....

कैसा लगा आज का चैप्टर ? Please like comment and share