Fagun ke Mausam - 33 in Hindi Fiction Stories by शिखा श्रीवास्तव books and stories PDF | फागुन के मौसम - भाग 33

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फागुन के मौसम - भाग 33

लगभग एक घंटे तक लगातार काम करने के बाद जानकी पानी पीने के लिए उठी तो राघव भी उठकर बालकनी की तरफ चला गया जहाँ लगातार चिड़ियों के चहचहाने की आवाज़ें आ रही थीं।

वहाँ जाकर राघव ने देखा जानकी ने चिड़ियों के लिए एक कटोरी में अनाज के दाने और दूसरी कटोरी में पानी भरकर रखा हुआ था।

कुछ चिड़िया जब वहाँ पानी पीने आयीं तब पहले उन्होंने एक पल राघव को संशय से देखा और फिर उसकी तरफ से निश्चिंत होने के बाद वो आराम से पानी पीकर उड़ गयीं।

राघव को उनका यूँ आना-जाना और चहचहाना इतना भला लग रहा था कि वो वहीं रखी हुई कुर्सी पर बैठकर उन्हें देखने लगा।

जानकी जब वापस आकर काम करने बैठी तब उसने देखा लैपटॉप स्टैंडबाय मोड में चला गया था।

उसने राघव से को आवाज़ देते हुए कहा कि वो आकर लैपटॉप का पासवर्ड डाल दे तो राघव ने वहीं से कहा, "तुम डाल लो न, पासवर्ड है वैदेहीराघव0214।"

इस पासवर्ड ने जानकी को एक पल के लिए चौंका दिया क्योंकि राघव ने इसमें उन दोनों के नाम के साथ जो अंक लिखे थे वो उसके और राघव के जन्मदिन की तारीख थी।

"राघव, तुम्हें सब कुछ याद है तो एक बार तुम ध्यान से मेरी तरफ देखते क्यों नहीं? इतने हिंट दे चुकी हूँ मैं तुम्हें, फिर भी लगता है जैसे तुम्हारे दिमाग में भूसा ही भरा है।" जानकी ने चिढ़ते हुए मन ही मन कहा और एक बार फिर वो अपने काम में लग गयी।

फ़ाइल पूरी होने के बाद जब उसने राघव से कहा कि वो एक बार इसे पढ़ ले तो राघव ने कहा, "आज मैं छुट्टी पर हूँ, इसलिए कल दफ़्तर में ही मैं इसे पढूँगा।"

"कमाल है, फिर तुमने छुट्टी के दिन मुझसे काम क्यों करवाया? अब तो मैं इस ओवरटाइम का चार्ज अपनी सैलरी में जोड़ूँगी।"

"हैलो मैडम, कल आपने ख़ुद बिना किसी शिकायत के काम करने के लिए हाँ की थी इसलिए नो एक्स्ट्रा सैलरी।"

"भगवान बचाये ऐसे बॉस से।" जानकी ने बनावटी गुस्से से कहा तो राघव बोला, "और भगवान करे कि मेरे सारे एम्पलॉयीज़ तुम्हारी तरह मेहनती हो जायें तो एक प्रोजेक्ट में हमें पाँच की जगह चार महीने ही लगेंगे।"

"हम्म...तथास्तु, जा बच्चा तेरी मुराद पूरी होगी।" जानकी ने आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ उठाते हुए कहा तो राघव एक बार फिर वैदेही के ख़्यालों में डूब गया जो अक्सर बचपन में उसे ऐसे ही तथास्तु बोलकर कहती थी कि उसकी हर इच्छा पूरी होगी।

उसे उसके ख़्यालों के साथ छोड़कर जानकी ने अब घड़ी की तरफ देखा और तैयार होने चल पड़ी।

जब वो तैयार होकर बाहर आयी तब राघव ने उससे कहा, "सुनो, अगर तुम्हें दिक्कत न हो तो जाने से पहले मुझे एक कप चाय और मिल सकती है क्या?"

"बिल्कुल, अभी लाती हूँ मैं।" जानकी ने रसोई की तरफ जाते हुए कहा तो राघव ने लैपटॉप को बैग में रखने से पहले सरसरी नजर से जानकी की तैयार की हुई फ़ाइल को देखा और मन ही मन उसकी प्रशंसा करने से वो ख़ुद को रोक नहीं पाया।

चाय पीने के बाद जानकी ने अपना फ्लैट लॉक किया और राघव के साथ वो यश और तारा से मिलने चल पड़ी।

यश और तारा की गाड़ी के साथ ही राघव और जानकी की गाड़ी पार्किंग में लगी तो इस संयोग पर मुस्कुराते हुए वो चारों तारा की बतायी हुई साड़ी की फैक्ट्री की तरफ चल पड़े।

एक के बाद एक कई डिज़ाइन्स देखने के बाद तारा ने अपने लिए चार साड़ियां पसंद कीं।

इन सारी डिज़ाइन्स के बीच जानकी को भी लाल रंग की एक बनारसी साड़ी काफ़ी पसंद आयी।
उसने उस साड़ी की कीमत पूछी तो दुकानदार ने उससे कहा कि अगर वो इसे लेना चाहती है तो वो दस प्रतिशत डिस्काउंट दे सकता है लेकिन जानकी ने विनम्रता से उसे मना कर दिया।

उसने एक नज़र साड़ी को देखा और फिर शारदा जी के कहे हुए शब्दों को मन ही मन दोहराया कि जब तक वो राघव के साथ अपने रिश्ते को लेकर किसी निश्चित फैसले पर नहीं पहुँच जाती तब तक उसे भारत में अपने सारे खर्चे फिर चाहे वो फ्लैट का रेंट हो, रसोई और बाकी खर्चे हों या लीजा और मार्क की सैलरी सब अपने स्टेज शोज़ और राघव की कंपनी से मिलने वाली सैलरी से ही पूरा करना होगा।
फ़िलहाल अपनी माँ से उसे किसी तरह की कोई मदद नहीं मिलेगी।

इस स्थिति में जानकी के लिए एक साड़ी पर लगभग ग्यारह हज़ार रुपये खर्च करना नामुमकिन था।

उसने अपने आप को समझाया कि जिस तरह अर्जुन की नज़र बस चिड़िया की आँख पर टिकी थी, उसी तरह उसे अपना पूरा फोकस बस राघव और अपनी नृत्य साधना पर रखना है, बाकी इन भौतिक चीज़ों का क्या है ये तो नश्वर हैं।

सहसा उसे अपने बचपन की एक घटना याद आयी जब उसे बाज़ार में एक गुड़िया इतनी पसंद आ गयी थी कि उसे लिए बिना उसने एक कदम भी आगे बढ़ने से इंकार कर दिया था, और तब हारकर उसकी शारदा माँ को उसे वो गुड़िया दिलानी ही पड़ी थी।

इस याद पर मुस्कुराते हुए जानकी ने मन ही मन मुस्कुराते हुए शारदा जी से कहा, "देखिये माँ, अब तुम्हारी बेटी बच्ची नहीं रही। उसने अपने आप को ख़ुद ही समझाना और बहलाना भली-भाँति सीख लिया है।"

राघव, जिसका पूरा ध्यान जानकी पर ही था वो उसकी मन:स्थिति का कुछ-कुछ अंदाज़ा लगा पा रहा था कि शायद फाइनेंशियल प्रॉब्लम के कारण जानकी ने न तो लुंबिनी में अपने ऊपर कुछ खर्च किया और न ही इस समय वो कुछ खर्च करने की स्थिति में है।

तारा की खरीददारी पूरी होने के बाद जब वो चारों वहाँ से बाहर निकले तब अचानक राघव ने कहा, "लगता है मैं अपनी चाभी अंदर फैक्ट्री में ही भूल गया हूँ। तुम लोग रुको मैं बस अभी आया।"

"ओहो ये चाभी और चश्मा भूलने की तुम्हारी आदत कब जायेगी राघव?" तारा ने झल्लाते हुए कहा तो राघव बस उससे बस दो मिनट की मोहलत लेकर तेज़ी से दुकान के अंदर चला गया।

जब वो वापस आया तब यश ने कहा कि अब लंच का टाइम हो गया है तो कहीं इकठ्ठे लंच करने के बाद ही अपने-अपने घर के लिए निकला जाये।

राघव ने सहमति के लिए जानकी की तरफ देखा तो हामी भरते हुए उसने कहा कि वो किसी ऐसी जगह जाना चाहेगी जहाँ अच्छी बिरयानी मिलती हो।

"हाँ, हमने भी बहुत समय से बिरयानी नहीं खायी।" तारा ने भी कहा तो राघव बोला, "चलो फिर जल्दी ड्राइव करो यश वर्ना ये दोनों लड़कियां बिरयानी की याद में यहीं ताजमहल बना देंगी।"

"राघव के बच्चे, सुधर जा।" तारा ने राघव की पीठ पर एक मुक्का मारते हुए कहा तो यश बोला, "थैंक्स यार राघव, तुम्हें देख-देखकर मैं ये सीख रहा हूँ कि मुझे भविष्य में तारा के सामने क्या बोलना है और क्या नहीं ताकि मुझे इस तरह उसके ढ़ाई किलो वाले हाथों के मुक्के न खाने पड़े।"

इससे पहले कि तारा इस बात पर कोई प्रतिक्रिया देती, जानकी ने कहा, "हाउ मीन यश भैया। अगर मुझे मेरे पति ने ऐसा कॉम्प्लीमेंट दिया होता तो मैं...।"

"तो क्या करतीं आप मैडम जानकी?" राघव ने शरारत से मुस्कुराते हुए पूछा तो जानकी बोली, "इन हाथों की ऊँगलियों में ये जो खूबसूरत नाखून हैं न उससे मैं मुँह नोच लेती उसका।"

"ओह बाबा! तुम इतनी खतरनाक हो ये तो हमें पता ही नहीं था। राघव तुम बचकर रहना ज़रा।" यश ने डरने का अभिनय करते हुए कहा तो राघव चौंककर बोला, "पर मैं क्यों बचकर रहूँ?"

"क्योंकि जानकी की कुर्सी तुम्हारे केबिन में है न।" तारा ने कहा तो उसकी बात से सहमत होते हुए राघव हाँ में सिर हिलाते हुए बोला, "हम्म... बॉस होने के बावजूद अब मुझे अपना वर्क रूटीन दुरुस्त करने की ज़्यादा ज़रूरत है वर्ना जानकी ने अभी-अभी जो कहा है वो उसका डेमो भी किसी दिन दिखा सकती है।"

"क्या यार, तुम लोग तो मेरे पीछे ही पड़ गये। जाओ मुझे नहीं खानी बिरयानी। मैं घर जा रही हूँ।" जानकी ने चिढ़ते हुए अपने कदम आगे बढ़ाये ही थे कि तभी राघव ने पीछे से उसका हाथ थाम लिया।

राघव की आँखों में इस समय मौन आग्रह का जो भाव था उससे जानकी मुँह नहीं मोड़ पायी और उसके हाथ से कार की चाभी लेकर उसे अनलॉक करके वो चुपचाप जाकर कार में बैठ गयी।

"राघव बाबू, बढ़िया सीन था ये तो।" तारा ने चुहल करते हुए कहा और इससे पहले कि राघव बदले में उससे कुछ कहता वो भी यश के साथ जाकर अपनी कार में बैठ गयी।

जब उन चारों का लंच खत्म हो गया तब तारा ने यश से कहा कि वो राघव को उसके घर छोड़ता हुआ अपने घर चला जाये क्योंकि वो राघव की गाड़ी लेकर जानकी के साथ उसके घर जा रही है।

"जो आज्ञा मैडम।" यश ने अदब से अपना सिर झुकाते हुए कहा और फिर वो राघव से मुख़ातिब होकर बोला, "राघव बाबू, आप भी मुझसे थोड़ी-थोड़ी ट्रेनिंग लेते चलिये ताकि भविष्य में आपको भी किसी परेशानी का सामना न करना पड़े।"

"बढ़िया है। दोनों मिलकर एक-दूसरे को सीख देते रहो और लेते रहो, हम तो अब चले बाबा।" तारा ने उठते हुए कहा तो जानकी भी राघव और यश को बाय बोलकर उसके साथ ही निकल गयी।

जानकी के फ्लैट पर आने के बाद उसके कमरे में आराम से पैर फैलाकर लेटते हुए तारा ने कहा, "तो अब बताओ कैसा रहा लुंबिनी ट्रिप?"

"बहुत ही अच्छा, इतना कि राघव आज सुबह आठ बजे से मेरे साथ ही था।"

"क्या बात कर रही हो तुम। जबकि राघव मेरे अलावा ज़्यादा किसी से मिलता-जुलता नहीं है, और उसे कहीं किसी से मिलने जाना भी होता है तो ज़्यादातर मैं उसके साथ रहती हूँ। और आज तो उसने मुझे कुछ बताया भी नहीं।"

"शायद उसे लग रहा होगा कि तुम क्या सोचोगी इसलिए।"

"हम्म... तो अब तुम उसे सच कब बताने वाली हो?"

"बस वो मेरे साथ-साथ नृत्य और संगीत को भी लेकर थोड़ा सा और सहज हो जाये तब।"

"थोड़ा सा और मतलब?"

"मतलब लुंबिनी में मेरे कहने पर वो बाँसुरी की धुन से नहीं भाग सका। बस इसी तरह धीरे-धीरे मैं उसके मन में बसा हुआ गुस्सा पूरी तरह निकाल देना चाहती हूँ ताकि वो सहजता से अपनी वैदेही को उसके असली अस्तित्व के साथ अपना सके, न की ज़बरदस्ती।"

"जब तुम्हें इतनी सफ़लता मिल गयी है तो बाकी की सफ़लता भी जल्दी ही मिल जायेगी।"

"आई होप सो।"

"चलो अब थोड़ी देर सोया जाये, फिर मैं शाम में अपने घर चली जाऊँगी।" तारा ने जम्हाई लेते हुए कहा तो जानकी बोली, "शाम में राघव लीजा और मार्क को बाहर ले जाने वाला है, तो हम भी चलेंगे न। उसके बाद तुम अपने घर चली जाना।"

"हाँ ये सही है। चलो तब तक तुम भी सो जाओ।"

"हाँ, आज सुबह से बस मैं भाग ही रही हूँ।" जानकी ने अपनी आँखें बंद करते हुए कहा तो तारा भी सोने की कोशिश करते हुए जल्दी ही नींद की गोद में समा गयी।
क्रमश: