Fagun ke Mausam - 31 in Hindi Fiction Stories by शिखा श्रीवास्तव books and stories PDF | फागुन के मौसम - भाग 31

Featured Books
  • आखेट महल - 19

    उन्नीस   यह सूचना मिलते ही सारे शहर में हर्ष की लहर दौड़...

  • अपराध ही अपराध - भाग 22

    अध्याय 22   “क्या बोल रहे हैं?” “जिसक...

  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

Categories
Share

फागुन के मौसम - भाग 31

गोरखपुर पहुँचने के बाद जब राघव और जानकी खाना खाने के लिए रुके तब राघव ने तारा को फ़ोन किया।

"क्या हाल-चाल है मैनेज़र मैडम?"

"सब ठीक है बॉस। आप बताइये कहाँ हैं आप?"

"मैं तो गोरखपुर में हूँ। रात तक बनारस पहुँच जाऊँगा।"

"अरे इतनी जल्दी? काम खत्म हो गया क्या?"

"बिल्कुल। मेरी असिस्टेंट इतनी स्मार्ट है कि हमने एक दिन में ही सारा काम निपटा लिया।"

"ओहो बढ़िया है। देखकर अच्छा लगा कि बॉस अपनी नयी एमप्लॉयी से ख़ुश हैं।"

"हाँ, अब हम सोमवार से इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर देंगे।"

"बढ़िया है। हमारी पूरी टीम भी इस नये प्रोजेक्ट को लेकर बहुत उत्साहित है।"

"सही है, बस और क्या चाहिए।"

"अच्छा राघव, मेरी बात सुनो। आज रात डिनर का तुम्हारा क्या प्लान है?"

"प्लान तो कुछ नहीं है। जानकी को उसके घर छोड़कर मैं भी सीधे अपने घर जाऊँगा। माँ अपने भूखे बेटे को दो रोटी तो खिला ही देगी।"

"फिर ठीक है। तुम एक काम करना जानकी को लेकर पहले अपने घर ही आ जाना। मैं और यश भी वहीं आ जायेंगे। फिर साथ में डिनर करके तब हम जानकी को उसके घर छोड़ देंगे।"

"अच्छा ठीक है लेकिन तुम जानकी से तो पूछ लो वो आना चाहती है या नहीं।" कहते हुए राघव ने मोबाइल जानकी की तरफ बढ़ा दिया।

"हैलो तारा मैम, कैसी हैं आप?" जानकी के पूछने पर तारा ने कहा, "मैं बिल्कुल ठीक हूँ और उम्मीद है कि तुम भी अच्छी होगी।"

"हाँ, बहुत अच्छी।"

जानकी के शब्दों में उसकी भावनाओं को महसूस करते हुए तारा ने आगे कहा, "अच्छा सुनो, आज मैंने और यश ने राघव के घर पर फैमिली डिनर रखा है तो तुम भी राघव के साथ सीधे वहीं आ जाना।"

"ठीक है, नो प्रॉब्लम।" जानकी ने अपनी सहमति देते हुए मोबाइल वापस राघव को दिया तो राघव ने कहा, "अच्छा तारा, हमारा खाना आ गया है। अब मैं फ़ोन रखता हूँ।"

"ठीक है, एंजॉय योर फूड एंड ट्रिप विथ योर असिस्टेंट।" तारा ने शरारत से कहते हुए जब फ़ोन रख दिया तब राघव ने अपनी थाली पास खिसकायी और खाना खाते हुए बीच-बीच में चोरी से जानकी को देखने लगा जो इतनी रफ़्तार से खाना खा रही थी जैसे उसे प्लेटफार्म पर खड़ी कोई ट्रेन पकड़नी हो।

"भगवान जाने इस लड़की को हमेशा इतनी हड़बड़ी क्यों रहती है?" राघव ने मन ही मन कहा और फिर वो भी तेज़ी से खाने लगा ताकि जानकी को उसके कारण फ़िजूल में बैठना न पड़े।

खाना खाने के बाद जब वो दोनों गाड़ी में बैठे तब इस बार ड्राइविंग सीट पर जानकी थी और राघव सुकून से उसकी बगल वाली सीट पर था।

बातों-बातों में जानकी ने कहा, "तुम्हें तो पता ही होगा तारा मैम ने मुझे तुम्हारे घर बुलाया है। तुम्हें मेरे आने से कोई दिक्कत तो नहीं है न?"

"बिल्कुल भी नहीं। माँ भी तुमसे मिलकर बहुत ख़ुश होगी।"

"अच्छा, आई होप सो। वैसे तुम्हारे घर में और कौन-कौन है?"

"कोई भी नहीं। बस माँ और मैं। वैसे माँ जहाँ काम करती है वहाँ की मालकिन दिव्या मौसी भी हमारे फैमिली मेंबर जैसी ही हैं।"

"अच्छा। वैसे तुम्हारी माँ ने कभी तुमसे विवाह करने के लिए नहीं कहा? अब तो तुम सेटल हो चुके हो। उन्हें भी तो घर में बहू की कमी ख़लती होगी।"

जानकी की ये बात सुनकर यकायक राघव ख़ामोश हो गया तो जानकी ने उसके सर्द चेहरे की तरफ देखते हुए कहा, "सॉरी मुझे इतना पर्सनल नहीं होना चाहिए था।"

"नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। माँ जानती है जिस दिन मुझे विवाह करना होगा मैं ख़ुद अपनी पसंद की लड़की से उसे मिलवा दूँगा, इसलिए वो इस विषय में मुझसे कुछ नहीं कहती है।"

"मतलब तुमने ये सोच रखा है कि तुम अरेंज मैरिज नहीं करोगे।"

"हाँ, ऐसा ही कुछ है। क्या इसमें कुछ गलत है?"

"बिल्कुल भी नहीं। वैसे क्या तुम किसी को पसंद करते हो? चाहो तो मुझे बता सकते हो।" जानकी ने गहरी नज़रों से राघव की तरफ देखते हुए पूछा तो राघव को पहले समझ में ही नहीं आया कि वो क्या कहे, फिर अपना पर्स निकालकर उसमें रखी हुई अपनी और वैदेही की तस्वीर देखते हुए उसने कहा, "हाँ करता हूँ, बस मुझे ये नहीं पता कि उसके दिल में क्या है?"

"तो तुम उससे पूछ क्यों नहीं लेते हो?"

"पूछ लूँगा, पहले वो मेरे सामने तो आ जाये।"

"मतलब? क्या वो यहाँ नहीं रहती है?"

"नहीं।"

"तो तुम उससे फ़ोन पर पूछ लो।"

"मेरे पास उसका फ़ोन नंबर नहीं है।"

"ओह अच्छा। वैसे अगर उसने तुम्हें न कह दिया तो?"

"तो मैं तुम्हें प्रपोज कर दूँगा। तुम मुझे हाँ कह देना।" कहते-कहते राघव हँस पड़ा तो जानकी भी ख़ुद को हँसने से रोक नहीं पायी।

चूँकि अभी रास्ता अच्छा-ख़ासा लंबा था इसलिए बातचीत आगे बढ़ाते हुए जानकी ने कहा, "वैसे राघव तुम्हें अपनी लाइफ पार्टनर में कौन सी खूबियां चाहिए?"

"ऐसी कोई लिस्ट मैंने बनाकर नहीं रखी है। वो जैसी भी हो बस मेरी हो मुझे और कुछ नहीं चाहिए। जिससे मेरा दिल हमेशा मोहब्बत कर सके और जिसकी आँखों में मैं अपने लिए मोहब्बत देख पाऊँ इससे ज़्यादा की क्या ही ज़रूरत है ज़िन्दगी में?"

"मतलब अगर उसका कैरियर किसी और फील्ड में हो, वो तुमसे विवाह करने के बाद भी अपना काम ज़ारी रखना चाहे तो क्या तुम उसे सपोर्ट करोगे?"

"बिल्कुल। हर किसी की अपनी पसंद होती है और लाइफ पार्टनर होने का ये मतलब तो नहीं होता कि हम अपने पार्टनर पर अपनी मर्ज़ी थोपे।"

"बढ़िया है। तुम्हारी सोच तो बहुत अच्छी है। तुम्हारी पार्टनर तुम्हारे साथ बहुत ख़ुश रहेगी।" कहते हुए जानकी ने सोचा कि वो राघव से ये भी पूछ ले कि अगर वो लड़की नृत्यांगना हुई तो उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी लेकिन फिर उसने सोचा कि इतनी जल्दी इस प्रश्न तक आना सही नहीं होगा। ऐसा न हो कि राघव भड़क जाये और उनकी जो ये दोस्ती शुरू हुई है वो यहीं पर खत्म हो जाये।

जानकी को अपने ख़्यालों में खोया हुआ देखकर राघव ने उसे टोकते हुए कहा, "अब तुम बताओ, तुम्हारी माँ तुम्हारे विवाह को लेकर चिंतित नहीं होती है?"

"होती है लेकिन मैं पहले अपने जीवन में कुछ हासिल तो कर लूँ। आख़िर मैं अपनी माँ का इकलौता सहारा हूँ।"

"अच्छा, डोंट वरी मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ। तुम्हें जब भी मेरी मदद की ज़रूरत हो तुम बेझिझक मुझसे बोल सकती हो।"

"थैंक्स राघव।" जानकी ने मुस्कुराते हुए कहा तो राघव बोला, "अच्छा तुम अरेंज मैरिज करोगी या...?"

"मैं उससे विवाह करूँगी जिसके लिए मेरी माँ मंजूरी देगी।"

"मान लो जिसे तुम पसंद करती हो वो तुम्हारी माँ को पसंद न आया तो?"

"मेरी पसंद ऐसी बुरी नहीं है।"

"ओहो इतना कॉन्फिडेंस।"

"बिल्कुल। इसलिए तो माँ ने मुझे यहाँ भेजा है।"

"मतलब?"

"अरे मतलब मेरी माँ को अपनी बेटी पर पूरा भरोसा है कि उसकी बेटी ऐसा कोई काम नहीं करेगी जिससे उसका दिल दु:खे।"

"ये तो अच्छी बात है। ऐसा विश्वास सभी पैरेंट्स और उनके बच्चों के बीच में होना चाहिए।"

"हम्म... लो हम बातें करते-करते अब बनारस की सीमा पर भी पहुँच गये।
अब तुम ड्राइविंग सीट पर आ जाओ क्योंकि मुझे तुम्हारे घर का रास्ता नहीं पता है।" जानकी ने गाड़ी रोकते हुए कहा तो राघव चौंककर बोला, "अरे हम कुछ ज़्यादा जल्दी नहीं पहुँच गये?"

"जल्दी? रात के आठ बज रहे हैं जनाब।"

"तुम्हारे साथ रास्ते का पता ही नहीं चला, सच्ची।"

"पहली बार किसी ने मुझे ऐसा कॉम्प्लीमेंट दिया है वर्ना तो सबको मैं बोर ही लगती हूँ।"

"शायद उनके दिमाग का स्क्रू ढीला होगा।" राघव ने मुस्कुराते हुए कहा तो जानकी को ये सोचकर संतोष की अनुभूति हुई कि राघव को उसका साथ अच्छा लगने लगा है।

राघव जब जानकी को साथ लेकर अपने घर पहुँचा तब वहाँ दिव्या जी के साथ-साथ यश और तारा का भी पूरा परिवार मौजूद था।

जब राघव के साथ जानकी ने भी घर में उपस्थित सभी बड़ों को प्रणाम करके उनका आशीर्वाद ले लिया, तब तारा ने जानकी के पास आते हुए कहा, "चलो मैं तुम्हें वाशरूम दिखा दूँ। हाथ-मुँह धोकर तुम फ्रेश हो जाओ, फिर हम डिनर शुरू करेंगे।"

राघव ने भी अपने कमरे की तरफ जाते हुए संकेत से नंदिनी जी को अपने पास बुलाया और उनसे पूछा, "क्या बात है माँ? अचानक सब लोग यहाँ क्यों आये हैं?"

"अरे अब तारा की सगाई में दिन ही कितने रह गये हैं? इसलिए मैंने सोचा मुझे भी एक बार उसके पूरे परिवार को खाने पर बुलाना चाहिए।"

"अकेले सारी तैयारी करने में तुम्हें परेशानी नहीं हुई माँ?"

"मैं अकेली कहाँ थी? यश और तारा शाम से यहीं हैं। सारा इंतज़ाम उन दोनों ने ही किया है।"

"अच्छा, फिर ठीक है। तुम सबके साथ बैठो, मैं अभी आता हूँ।"

"ठीक है बेटा।" कहकर नंदिनी जी वहाँ से चली गयीं तो राघव भी सफ़र के कपड़े बदलने के बाद तरोताज़ा होकर बाहर पहुँचा।

उसके आने के बाद तारा ने उससे कहा, "पहले सभी बड़ों को खाना खिला देते हैं, फिर हम सब खा लेंगे। तुम्हें जल्दी तो नहीं है?"

"बिल्कुल नहीं, लाओ मैं भी तुम्हारे साथ सर्व करता हूँ।" राघव ने सब्जी का डोंगा हाथ में लेते हुए कहा तो यश, जानकी, अविनाश और अंजलि भी उनकी मदद के लिए उठकर आ गये।

तारा के माँ-पापा समेत दिव्या मौसी, यश के माँ-पापा और दीदी-जीजाजी ने खाने की तारीफ़ की तो नंदिनी जी ने कहा, "ये तारीफ़ तो यश और तारा को मिलनी चाहिए। मुझे तो इन दोनों ने रसोई में चम्मच को भी हाथ नहीं लगाने दिया।"

"बढ़िया है। अपने बेटे-बहू की तरफ से तो चलिये मैं निश्चिंत हो गयी पर राघव बेटे को भी दफ़्तर के काम के अलावा कुछ आता है या नहीं?" मिसेज मेहता ने पूछा तो तारा बोली, "बिल्कुल माँ, मैं कभी आपको राघव के हाथ का पनीर काठी रोल खिलाऊँगी। और इसके साथ-साथ वो अपना कमरा भी बिल्कुल साफ रखता है।"

"बस फिर उसकी पत्नी को ख़ुश रहने के लिए और क्या चाहिए होगा?" मिसेज माथुर ने कहा तो उनसे सहमत होते हुए मिसेज मेहता ने कहा, "चलो फिर हम सबको अगली स्नैक्स पार्टी का इंतज़ार रहेगा।"

"और फिर घर जाकर अपनी-अपनी पत्नियों से ताने सुनने का हमें इंतज़ार रहेगा कि सीखो कुछ अपने बच्चों से।" माथुर जी ने कहा तो उनके साथ बैठे हुए मेहता जी भी इस बात पर हामी भरते हुए हँस पड़े।

उनकी हँसी में शामिल होते हुए कीर्ति ने राघव से कहा, "राघव, तुम ज़रा प्रकाश को कुछ दिन अपने साथ रखो।"

"क्यों दीदी? जीजाजी ने ऐसी क्या ख़ता कर दी जो आप उन्हें घर निकाला दे रही हैं? राघव के पूछने पर कीर्ति ने शरारत से कहा, "अरे भाई, तुम इन्हें बस ये ट्रेनिंग दे दो कि कमरे को साफ कैसे रखते हैं। मैं तो तंग आ गयी बाबा।"

उसकी बात पर जहाँ सब लोग हँस पड़े वहीं जानकी ने कहा, "वैसे मुझे बिल्कुल सजा-सँवरा हुआ कमरा अच्छा नहीं लगता है।
अरे भाई कमरे को देखकर लगना तो चाहिए कि उसमें कोई रहता है।
अगर हर चीज़ हर समय अपनी जगह पर होगी तो लगेगा यहाँ रहने वाला बस साँस लेने भर को ही जीवित रहना मानता है।"

"कमाल की फिलॉसफ़ी है ये तो। लगता है तुम्हारी और मेरी बहुत बनेगी।" प्रकाश ने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो जानकी ने भी उससे हाथ मिलाते हुए कहा, "बिल्कुल जीजाजी।"

"इसे फिलॉसफ़ी नहीं अपने आलस को शब्दों के खूबसूरत जाल से डिफाइन करना कहते हैं।" राघव ने हँसते हुए कहा तो तारा, यश और कीर्ति ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलायी।

सहसा अंजली ने जानकी से कहा, "जानकी, फिर तो हम सबको तुम्हारे लिए राघव जैसा ही लड़का ढूंँढ़ना पड़ेगा। कम से कम किसी एक को तो सफाई से प्यार हो वर्ना पता चला तुम्हारे घर आने पर पहले हमें ही सफाई करके अपने बैठने की जगह बनानी पड़ रही है।"

"ओहो भाभी, मैं इतना भी बेतरतीब नहीं रहती हूँ। आप तारा से पूछ लीजिये।" जानकी ने रुआँसी आवाज़ में कहा तो सब उसकी इस भोली शक्ल को देखकर हँस पड़े।

दिव्या जी ने जानकी को समझाया कि सब उसकी खिंचाई कर रहे हैं, इसलिए उसे सीरियस होने की ज़रूरत नहीं है तो जानकी ने हामी भरते हुए स्नेह से तारा को गले लगाकर कहा कि वो उसके लिए बहुत ख़ुश है कि उसे बहुत ही सुलझा हुआ परिवार मिला है जिसके साथ वो भी अजनबी और बाहरी होने के बावजूद इतना सहज महसूस कर रही है।

तारा भी उसकी बात से सहमत होते हुए मुस्कुरायी तो इस क्षण उन दोनों को देखते हुए राघव ने मन ही मन अपनी वैदेही से कहा, "वैदेही, तारा की तरह मैं तुम्हारी आँखों में भी ऐसी ही ख़ुशी देखना चाहता हूँ। तुम बस वापस आ जाओ। फिर तुम देखना न तुम्हें मुझसे या अपने नये परिवार से शिकायत होगी और न ही नयी ज़िन्दगी से।"
क्रमश: