Pyaar Huaa Chupke Se - 29 in Hindi Fiction Stories by Kavita Verma books and stories PDF | प्यार हुआ चुपके से - भाग 29

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 29

शिव और अजय ने रति को ओंकारेश्वर के हर मन्दिर में तलाशा, पर उन्हें रति कहीं नही मिली। थककर शिव नर्मदा नदी के किनारे एक घाट पर आकर बैठ गया। तभी अजय दो दोने लेकर वहां आया और शिव की बगल में आकर बैठ गया। उसने एक दोना उसकी ओर बढ़ाया और बोला- ये लीजिए, पोहे-जलेबी खाइए शिव।

"भूख नही है मुझे अजय"- शिव नदी की ओर देखकर बोला। अजय ये सुनकर परेशान हो गया, पर फिर उसने मुस्कुराने की कोशिश की और बोला- सुबह चार बजे से हम सारे शहर में भटक रहे है शिव। नाश्ता किए बिना ही घर से निकले थे। भूख लगी होगी आपको, प्लीज़ खा लीजिए क्योंकि भूखे रहने से आपकी मुश्किलें कम नही होगी, बल्कि बढ़ेगी। महाकाल पर भरोसा रखिए, आपकी पत्नि मिल जाएगी।

"मैं जानता हूं अजय कि रति मिल जाएगी। अगर इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद भी उसे कुछ नही हुआ, तो महाकाल ने उसे मेरे लिए ही बचाया है, पर मेरी मुश्किल ये है कि अगर आज वो हमें नही मिली, तो सब कुछ खत्म हो जाएगा क्योंकि शक्ति का मक़सद एमडी की कुर्सी नही, बल्कि मुझसे मेरा सब कुछ छीनना है। अपने गुस्से अपने अहम में वो ये भूल चुका है कि उसे कंस्ट्रक्शन की फील्ड में डील करना, ना कल आता था और ना आज आता है। वो मेरा बिज़नेस कभी नही संभाल सकेगा। पंद्रह दिन नही लगेंगे और उसके गलत फैसले मेरे पूरे परिवार को सड़क पर ले आयेगे और मैं ऐसा नही होने दे सकता। मुझे हर हाल में शक्ति को एमडी की कुर्सी पर बैठने से रोकना होगा अजय"

शिव की बातों ने अजय की भी परेशानी बढ़ा दी और वो भी सोच में पड़ गया, पर फिर मुस्कुराते हुए बोला- महाकाल के भक्त है ना आप, तो भरोसा रखिए उन पर....वो कुछ गलत नही होने देंगे, सब कुछ जल्दी ही ठीक हो जायेगा। आप इसे जल्दी से खाइए, क्योंकि अभी चौबीस घंटे पूरे होने में सात घंटे और बचे है। इन सात घंटो में रतिजी ज़रूर मिल जाएगी और अगर नही मिल पाई, तो आपकी मुश्किल से बाहर आने का कोई ना कोई रास्ता ज़रूर मिल जायेगा। प्लीज़ खा लीजिए,

शिव ने उसकी ओर देखा, तो अजय ने उसे खाने का इशारा किया। शिव ने रति के बारे में सोचते हुए पोहे खाने शुरु कर दिए। दूसरी ओर रति ऑफिस में अपनी डेस्क पर बैठी काम कर रही थी, पर बार-बार वो अजय के कैबिन की ओर देख रही थी। वो मन ही मन बोली- पता नही अजय सर आज ऑफिस क्यों नही आए? आज तो उनकी इतनी ज़रूरी मीटिंग है और मुझे उन्हें ये अकाउंट की फाइल भी तो दिखानी है।

तभी उसकी नज़र सामने से चले आ रहे दीनानाथजी पर पड़ी, जो शायद उसे ही तलाश रहे थे। वो तुरंत उठकर उनके पास आई और उसने पूछा- बाबा आप यहां??

रति की आवाज़ सुनकर दीनानाथजी ने तुरंत उसकी ओर देखा और इधर-उधर देखकर बोले- बिटिया मुझे तुझसे कुछ ज़रूरी बात करनी है। ज़रा मेरे साथ आ,

"क्या हुआ बाबा? सब ठीक है ना?"- रति ने पूछा। दीनानाथजी ने कोई जवाब नही दिया और उसका हाथ पकड़कर उसे एक कोने में ले आए। रति परेशान सी उन्हें ही देख रही थी। दीनानाथजी ने फिर से अपने आसपास देखा और आहिस्ता से बोले- बिटिया, आज कुछ गुंडे तुझे मन्दिर में तलाशने आए थे।

उनके इतना कहते ही रति की आँखें खुली की खुली रह गई। दीनानाथजी फिर से बोले- तेरी तस्वीर लेकर, तेरे बारे में सबसे पूछताछ कर रहे थे। उन्होंने मुझसे भी पूछा पर मैनें उन्हें कुछ नही बताया और तेरी तस्वीर भी जला दी। बिटिया मुझे लगता है कि शायद तेरे जेठ को पता चल गया है कि तू ज़िंदा है और उसी ने तुझे ढूंढने के लिए उन गुंडों को भेजा होगा।

"पर बाबा मैं ज़िंदा हूं। ये बात तो मेरी खास सहेली गौरी के अलावा कोई नही जानता और उसे मैं बहुत अच्छे से जानती हूं। वो किसी को नही बताएगी कि मैं ज़िंदा हूं"- रति की बातें सुनकर दीनानाथजी सोच में पड़ गए और फिर बोले- तो फिर वो लोग कौन हो सकते है बिटिया?

"कहीं शिव तो मुझे नही ढूंढ रहे बाबा?"- रति तुरंत बोली। दीनानाथजी ने परेशान होकर जवाब दिया- पर बिटिया उनके हाथों में बंदूके थी और शक्ल से ही वो सारे गुंडे मवाली लग रहे थे। उन्हें देखकर मुझे एक पल के लिए भी नही लगा कि वो तेरे हितेशी है। मेरा दिल कहता है कि वो तुझे नुकसान पहुंचाने के इरादे से ही आए थे। उनकी बातें सुनकर रति सोच में पड़ गई। उसे ये सोच कर घबराहट होने लगीं कि कहीं शक्ति को सच में तो पता नही चल गया कि वो ज़िंदा है। उसे उस रात का पूरा हादसा याद आने लगा। जब वो नर्मदा नदी में कूदी थी। उसके कदम लड़खड़ाने लगे पर वो गिरती उसके पहले ही दीनानाथजी ने उसे पकड़ लिया और उसे वही एक कुर्सी पर बैठाकर बोले- बिटिया घबराने वाली कोई बात नही है। मैंने मन्दिर और घाट पर सबको बता दिया है कि अगर तेरे बारे में कोई पूछताछ करे, तो उसे कुछ ना बताए। बस तू कुछ दिनों के लिए घर से बाहर मत निकलना और अपने दफ्तर भी मत आना। चल मेरे साथ, मैं तुझे लेने आया हूं। मेरे रहते तेरा कोई कुछ नही बिगाड़ सकेगा। चल बेटा...

रति कुछ नही बोल पाई, पर दीनानाथजी ने उसे सहारा देकर उठाया और उसे अपने साथ ले जाने लगे। उन्होंने ऑफिस के बाहर से एक ऑटो रोकी और रति को वहां से लेकर चले गए। दूसरी ओर अजय ने बाज़ार में अपनी गाड़ी रोकी और शिव से बोला- एक बार यहां भी पूछकर देख लेते है। आप उस ओर पूछिए। मैं इस तरफ पूछता हूं। शिव ने खुद को संभालकर आहिस्ता से हां में अपनी गर्दन हिलाई और बाज़ार में लगी दुकानों पर, रति का हुलिया बताकर उसके बारे में पूछताछ करने लगा। एक दुकान पर पूछताछ करते हुए, अचानक उसकी नज़र एक दुपट्टों की दुकान पर पड़ी। वो आहिस्ता-आहिस्ता उस दुकान की ओर बढ़ने लगा, तो उसे वो दिन याद आ गया। जब वो रति को इस बाज़ार में लेकर आया था।

"रति बहुत हुआ यार, और कितनी खरीदारी करनी है तुम्हें? तीन घण्टे तो तुमने बाजार में ही लगा दिए है। हम महेश्वर कब पहुंचेंगे"- शिव ने चिढ़कर पूछा, तो रति ने दुकान पर रखा एक दुपट्टा उठाया और उसे अपने कन्धे पर डालकर बोली- बस शिव दुपट्टे और ले लूं, फिर चलते है।

"पर तुम्हें दुपट्टे की क्या ज़रूरत है? तुम तो साड़ी पहनती हो। हमारी शादी के बाद से तो तुमने सलवार-कुर्ती पहनना बंद कर दिए है। मेरे कहने पर भी नही पहनती हो और अगर पहनती भी हो, तो हमारे कमरे से बाहर नही निकलती हो"- शिव की बातें सुनकर रति ने मुस्कुराते हुए उस दुपट्टे को रखा और दूसरा दुपट्टा देखते हुए बोली- वो इसलिए क्योंकि मेरी मां कहती है कि शादीशुदा लड़कियों को ये याद रखना चाहिए कि वो अब किसी के घर की बेटी नही, बल्कि किसी के घर की बहू भी है और बहुओं की अपनी एक मर्यादा होती है, जो उन्हें कभी पार नही करनी चाहिए वर्ना एक नही... बल्कि दो कुल के संस्कारों पर सवाल उठते है।

उसकी बातें सुनकर शिव ने मुस्कुराते हुए आहिस्ता से अपनी गर्दन हिलाई और बोला- तो फिर क्यों मेरा और अपना टाइम वेस्ट कर रही हो? रति ने पलटकर उसकी ओर देखा- ससुराल में सूट नही पहनती हूं, पर अपने मायके में तो पहन ही सकती हूं ना। उसकी ये बात सुनकर शिव के चेहरे पर मुस्कुराहट की जगह उदासी ने ले ली, पर रति फिर से अपने लिए दुपट्टे देखने लगी। वो दुपट्टे दुकानदार को देते हुए बोली- भईया ये दोनों दे दीजिए। कितने रुपए हुए?

"दोनों के पचास रुपए"- दुकानदार ने जवाब दिया। रति ने शिव की ओर देखकर, उसे रूपये देने का इशारा किया। शिव ने तुरंत अपने वॉयलेट से पचास रुपए निकालकर दुकानदार को दे दिए, तो रति ने दुपट्टे की थैली उठाई और उसकी बांह पकड़कर आगे बढ़ते हुए बोली- चलिए, हो गई मेरी खरीददारी। अब महेश्वर चलते है और वहां से सबके लिए महेश्वरी साड़ियां खरीदते है।

शिव के कदम रुक गए। रति ने तुरंत पलटकर उसकी ओर देखा और पूछा- क्या हुआ? आप रुक क्यों गए? शिव ने उसके सवाल का तो कोई जवाब नही दिया, पर उदास होकर बोला- रति ऐसे सपने मत देखा करो, जो कभी पूरे ना हो सके। रति मुस्कुराते हुए उसके करीब आई और बोली- शिव सपने तो किसी के पूरे नही होते। जानते है क्यों? क्योंकि नींद में देखे सपने ज़्यादातर लोग आंख खुलने के साथ ही भूल जाते है, पर जो इंसान अपने सपनों को हर पल जीते है ना। उनके सपने एक ना एक दिन सच ज़रूर होते है। मेरे पापा भी मुझे एक दिन माफ ज़रूर कर देंगे और हमें आशीर्वाद भी देंगे और फिर मेरी पग फेरों की रस्म भी ज़रूर पूरी होगी।

उसकी पॉजिटिव बातें शिव के चेहरे पर मुस्कुराहट ले आई। उसने अपना एक कदम और उसकी ओर बढ़ाया और उसके करीब आकर बोला- तुम्हें पता है रति? तुम मेरे लिए महाकाल का वो आशीर्वाद हो। जिसे पाने के बाद ज़िंदगी में और कुछ पाने की तमन्ना नही रही। ये सुनकर रति मुंह बनाकर उसे देखने लगी। उसका चेहरा देखकर शिव ने पूछा- क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रही हो? क्या मैनें कुछ गलत कह दिया?

"आपको सच में मेरे अलावा और कुछ नही चाहिए?"- रति ने मासूमियत से पूछा। शिव ने अपनी नज़रें घुमाकर दो पल सोचा और बोला- नही....मुझे तुम मिल गई। मेरे लिए बहुत है। रति की आंखें बड़ी-बड़ी हो गई और उसने एक बार फिर से अपना सवाल दोहराया- आपको सच में और कुछ नही चाहिए?

"तुम्हारे सिवाय और क्या चाहिए होगा रति? सब कुछ तो है मेरे पास"- शिव ठीक उसी तरह बोला, जैसे रति ने पूछा था। रति को उस पर बहुत गुस्सा आया और वो चिढ़कर बोली- शिव आप बहुत बुरे है। मुझे आपसे ये सवाल ही नही करना चाहिए था।

इतना कहकर वो वहां से जाने लगी। शिव उसके पीछे आते हुए बोला- रति मेरी बात तो सुनो। साफ-साफ बताओ तो सही कि क्या कहना चाह रही हो। रति गुस्से में आगे बढ़ते हुए बोली- साफ-साफ कह पाती, तो अब तक कह नही देती। शिव मुस्कुराते हुए उसके पीछे आते हुए बोला- रति तुम्हारे अलावा मुझे और क्या चाहिए होगा?

रति मुंह बनाकर बड़बड़ाई- दुनिया के पहले इन्सान होंगे ये जिन्हें पत्नी के अलावा और कुछ नही चाहिए। हे महादेव, अब समझा इए इन्हें कि मैं इनसे क्या कहना चाहती हूं। तभी शिव ने उसकी बांह पकड़ी और उसे अपने करीब ले आया। रति ने गुस्से में अपना मुंह फेर लिया। शिव के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। उसने बहुत प्यार से उसके चेहरे को छूआ और अपनी ओर करके बोला- रति मुझे एक बेटी चाहिए, जो हूबहू तुम्हारी कॉपी हो।

उसके इतना कहते ही रति ने तुरन्त नज़रें उठाकर उसकी ओर देखा, तो शिव उसके चेहरे पर आ रहे बालों को हटाते हुए बोला- शिव कपूर हूं मैं, बुद्धू नही हूं। समझी?? रति का चेहरा शर्म से झुक गया और उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। शिव उसे अपने और करीब लाकर बोला- अपने सवाल का यही जवाब सुनना चाहती थी ना? रति कोई जवाब नही दे सकी क्योंकि शिव के सामने उसकी झुकी हुई नज़रे उठ ही नही रही थी।

"एक बार मेरी तरफ़ देखो ना रति"- शिव बोला। रति ने आहिस्ता से ना मैं अपनी गर्दन हिला दी, तो शिव फिर से बोला- प्लीज़....उसके प्लीज़ कहते ही रति ने आहिस्ता-आहिस्ता अपनी नज़रें उठाई, पर इससे पहले की वो शिव की ओर देखती। उसकी नज़र आसपास खड़े लोगों पर पड़ी, जो उन्हें ही देख रहे थे। उसकी आँखें खुली की खुली रह गई। उसने तुरंत शिव को खुद से दूर धकेला और वहां से भाग गई। शिव उसके पीछे भागते हुई बोला- रति, रति मेरी बात तो सुनो। तभी अजय ने भागकर शिव को पकड़ा और तेज़ रफ़्तार से आ रही एक गाड़ी के नीचे आने से उसे बचा लिया।

"शिव बीच सड़क पर क्यों भाग रहे थे आप? अगर मैं वक्त पर नही आता, तो वो गाड़ी आपको कुचलते हुए निकल जाती"- अजय के इतना कहते ही। शिव ने अपने चारों ओर देखा, तो उसे रति कहीं नज़र नही आई। उसने अपनी आँखें बन्द कर ली। अजय ने उसे ऐसे देखा तो उसे बहुत तकलीफ हुई। उसने शिव को पकड़ा और बोला- चलिए घर चलते है। सुबह से ऐसे ही सड़कों पर घूम रहे है, आइए....

अजय उसे लेकर अपनी गाड़ी की ओर बढ़ने लगा। तभी उसके करीब से रति दीनानाथजी के साथ ऑटो में निकल गई। दूसरी ओर हॉस्पिटल में शिव का पूरा परिवार परेशान बैठा था, क्योंकि अभी तक किरन को होश नही आया था। शक्ति भी परेशान वहीं टहल रहा था। तभी डॉक्टर रूम से बाहर आए। अधिराज तेज़ी से उठकर उनके पास आए और उन्होंने पूछा- अशोक, किरन कैसी है अब? होश आ गया उसे?

डॉक्टर अशोक उसके कन्धे पर हाथ रखकर बोले- मैं तुम्हें झूठा दिलासा नही दूंगा अधिराज। किरन भाभी की हालत कुछ ठीक नही है क्योंकि उन्हें कोई शारीरिक बीमारी नही है। उन्हें शिव की मौत का गहरा सदमा पहुंचा है, जिसे वो बर्दाश्त नहीं कर पा रही है। उनकी हालत दिन-ब-दिन गिरती जा रही है। अगर जल्द से जल्द उन्हें इस सदमे से बाहर नही निकाला गया, तो उनकी जान भी जा सकती है। कल रात से बेहोश है वो और बेहोशी की हालत में सिर्फ शिव को पुकार रही है।

डॉक्टर अशोक की बातें सुनकर अधिराज सिर पकड़कर वही एक बेंच पर बैठ गए। पास खड़े अरूण ने उन्हें हौसला देने के लिए, उनके कन्धे पर हाथ रख दिया। तभी शिव के चाचा गोपाल बोले- प्लीज़ अशोक भईया कुछ तो करिए। आप तो जानते है कि शिव अब इस दुनिया में नही रहा। हम उसे वापस नही ला सकते क्योंकि हमें उसे बचाने का मौका नहीं मिला, पर भाभी को तो आप बचा सकते है ना? प्लीज़ भईया उन्हें बचा लीजिए।

"गोपाल मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा हूं, पर भाभी खुद होश में नही आना चाहती। उन्हें सिर्फ उनका बेटा चाहिए"- डॉक्टर के इतना कहते ही शक्ति उनके पास आकर चीखा- अरे मैं हूं तो सही उनका बेटा। मुझे बताइए कि मुझे क्या करना है। मैं अपनी मां के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं। डॉक्टर अशोक ने उसके कन्धे पर हाथ रखा और बोले- उन्हें शिव चाहिए... शक्ति नही। ला सकते हो शिव को वापस?

उनके इस सवाल को सुनकर शक्ति ने मुंह फेर लिया। डॉक्टर अशोक ने अधिराज की ओर देखा और बोले- अगर किरन भाभी को अगले चौबीस घंटो में होश नही आया, तो उनके कोमा में जाने का डर है।उनके इतना कहते ही वहां मौजूद हर शख्स के चेहरे के जैसे रंग ही उड़ गए। वही एक बेंच पर बैठी तुलसी ये सुनकर रोने लगी। पायल भी परेशान हो गई। गौरी ने तुरंत आकर तुलसी को संभाला और अपने पापा की ओर देखने लगी, जो परेशान खड़े कुछ सोच रहे थे। डॉक्टर अशोक ने अधिराज के कन्धे पर हाथ रखा और फिर से बोले- जितना मैं कर सकता था अधिराज, उतना कर चुका हूं। अब हम सब बस भगवान से ये प्रार्थना कर सकते है कि वो कोई चमत्कार कर दे और किरन भाभी शिव की मौत के सदमे से बाहर आ जाए। भरोसा रखो उन पर... इतना कहकर वो वहां से चले गए।

लेखिका
कविता वर्मा