रिवान और विराज दोनों रसीली बाई को घर लेकर पहुंचे ।
मेन गेट का वेल बजाया सावरी मितल दरवाजा खोलती है
दरवाजे के बाहर देखकर शौक हो जाती है अपने बड़े आंखे कर के घूंघट में खड़ी लड़की को देखती है ।
" रिवान " क्या हुआ मां ऐसे क्यों देख रही है ?
क्या हुआ आपको ? बेटा ये घूंघट में कौन लड़की है ? ये तो दुल्हन दिख रही है लेकिन ये हमारे घर के दरवाजे के पास क्या कर रही है ??
" विराज " ये मितल खानदान की बहू है आंटी जी , जल्दी से आप आरती की थाली लाइए और भाभी का गृह प्रवेश करवाइए । क्या ये मेरी बहू है? रीवान के तरफ देखते हुए तुमने शादी कर लिया और अपनी मां को बताना जरूरी भी नहीं समझा , वाह बेटा बहुत अच्छा तुमने तो अपनी मां को पल भर में पराया कर दिया मेरे सारे अरमान को तुमने मिट्टी में मिला दिया । कम से कम एक कॉल कर दिया होता मैं तुम्हारे पापा को माना कर ले आती वहां या उनसे तेरे लिए उनकी बेटी का हाथ भी मांग आते पर तुम इस लायक ही नहीं समझा हमें ।
देखिए मां रीवान जी की कोई गलती नहीं है सब कुछ इतनी जल्दी और अचानक हुआ की आपको बताने का वक़्त नहीं मिला है जो भी कुछ कहना है आप मुझे कहिए ... उस वक़्त ऐसा माहौल ही था आज आपके सामने जिंदा घूंघट में खड़ी हूं सिर्फ़ आपके बेटे के वजह से मेरी जान उन गुंडों से इन्होंने ही बचाया , जो मुझसे जबरदस्ती शादी कर रहे थे ।
" रिवान " हमें अंदर तो आने दीजिए आराम से बात करेंगे और आपको मैं सारी बात बताऊंगा । अभी तो आप अपनी बहू का गृह प्रवेश करवा दो , आपको तो खुश होना चाहिए कि आपकी ख्वाइश पूरी हो गई । आप कब से तो बोल रही थी मुझसे बेटा शादी कर लो मेरा हाथ बटाने के लिए बहू ला जिसे मैं अपनी बेटी की तरह प्यार करूं । अब संभालो अपनी बहू को और बेटी बना कर रखो ।
सांवरी झटके से मंदिर के पास गई और वहां से आरती की थाली लेकर अाई , आरती उतारने के बाद सारी विधि पूर्वक गृह प्रवेश करवाया गया ।
" सांवरी मितल " बेटा तुम्हारा नाम क्या है ?? रसीली बाई कुछ बोल पाती उससे पहले रीवान बोल पड़ता है " मां इसका नाम अदिति है " नाम तो बहुत प्यारा है । घूंघट उठा कर सांवरी अपनी बहू का चेहरा देखती है ' इस चांद के टुकड़े को कहां से तोड़ लाया है रीवान बहू तो बहुत ही खूबसूरत है । जितनी इसकी खूबसूरती चेहरे पर झलक रही है उतनी ये मासूम भी है । सांवरी जी के उनकी
बहू पैर छु कर आशीर्वाद लेती है । उसकी वक़्त रीवान के पापा वहां आते है ?
" अरुण मितल " ये लड़की कौन है ? तुम इसे अपनी बहू क्यों कह रही हो ? सांवरी जी मुस्कुराते हुए जी ये आपकी बहू है और रिवान की धर्मपत्नी है । अरुण मित्तल गुस्सा करते हुए ' किसी को भी ये सड़क से उठा कर लाएगा और तुम इसे अपनी बहू मान लोगी । मैं नहीं मानता इस शादी को और ना कभी इसे अपनी बहू मानूंगा । मितल खानदान की बहू कोई सड़कछाप नहीं बनेगी। वहां से चले जाते हैं ।
अरुण मित्तल के जाने के बाद सांवरी जी अपनी बहू से " रिवान के पापा के बात का बुरा मत मानना बेटा वो स्वभाव के ऐसे ही है , धीरे - धीरे वो तुम्हे अपना बहू मान लेंगे चिंता मत करो । चलो मैं तुम्हे तुम्हारे कमड़े तक छोड़ कर अा जाती हूं तुम थोड़ा आराम कर लो ।
अरुण मित्तल अदिति को कभी अपने बहू के रूप में स्वीकार कर पाएंगे ??
Continue ....