Hotel Haunted - 60 in Hindi Horror Stories by Prem Rathod books and stories PDF | हॉंटेल होन्टेड - भाग - 60

Featured Books
Categories
Share

हॉंटेल होन्टेड - भाग - 60

मैं दौड़ते हुए उनकी तरफ गया और उनका रास्ता रोक के अपना सवाल किया,"तुम सब वापिस क्यों आ गए?"
"क्यों बे ये जगह तूने खरीद ली है क्या?" अनमोल ने अपने उसी रवैए के साथ कहा।
"तुम समझ नहीं रहे, मिस. आप तो जानती हैं कि सब क्या हुआ कल,उसके बाद भी आप सब यह वापस आ गए,सब लोग अभी के अभी इस जगह से हो सके उतना दूर चले जाओ।"
"पर श्रेयस आखिर क्या हुआ है तुम इतने क्यूं घबराए हुए क्यूँ लग रहे हो? " मिस के कहते ही श्रेयस उन्हें घूरने लगा जैसे वो कुछ कहना चाहता हो पर शब्द नहीं मिल रहे हो और उसने अपने मन मैं ही सोचते हुए कहा कि अभी इतना वक्त नहीं है।
"जब आप सब खुद अपनी मर्ज़ी से गए थे तो आखिर फिर यहाँ वापस क्यों आये?" श्रेयस ने जान बूझ कर तीखे लहजे में कहा जिससे सब गुस्सा होकर निकल जाए।

"हम यहाँ नहीं आना चाहते थे लेकिन एक के बाद एक ऐसी situation का सामना करना पड़ा जिसने हमे वापस आने पर मजबूर कर दिया,जो रास्ता हाइवे तक जाता है उस रास्ते पे पहाड़ के बड़े पत्थर गिरे हुए है उसे हटाने मैं कितना वक्त लगेगा कह नहीं सकते इसलिए तब तक हम ऊटी के बाहर जा नहीं सकते, ऊपर से यहां से होटल बहुत दूर है और ऊपर से बढ़ती ठंड और खराब मौसम ने हमे मजबूर बना दिया और हमारे कदम यहाँ लाके खड़े कर दिए , हम भी यहाँ आना नहीं चाहते थे श्रेयस , बाहर का मौसम बेहद खराब है बारिश, किसी भी पल हो सकती है ऐसे में अगर हम यहाँ की जगह बाहर ही रह जाते तो शायद जिंदा ना बचते।"अविनाश की बात सुनके श्रेयस कुछ कहता उससे पहले मिस बोल पड़ी।

"और मैं यह भी चाहती थी कि तुम सब हमारे साथ चलो मैं तुमसे वादा करती हूं कि हम सब मदद लेकर फिर आएंगे आंशिका को बचाने।"
"अगर आपको मदद लानी थी तो लेकर क्यूं नहीं आई? " पीछे खड़ी ट्रिश ने आगे बढ़ते हुए कहा।
"मदद....यहाँ कोई मदद के लिए नहीं आने वाला ट्रिश, इस जगह का नाम सुन कर ऊटी का हर इंसान हमें ऐसे घूर रहा था मानो हमने क्या बोल दिया हो, उनसे कुछ पूछो तो वो सिर्फ़ इतना कहते कि 'उन्हें कुछ नहीं पता' इतना कहकर वो हमसे दूर भागने लगता, इसके अलावा हमें कुछ सुनने को मिला तो ये कि ये जगह श्रापित है और इस जगह पर आने से उनके परिवार भी तबाह हो जाते है और जो बच जाते है उनकी जिंदगी भी किसी श्राप से कम नहीं होती।"अविनाश ने तेज़ चलती सांसों के साथ अपनी बात कही, जिसे सुन कर ट्रिश कुछ कह नहीं पायी।

"रास्ते में हमें कुछ पुलिस वाले मिले थे पर उन्होंने भी यहाँ आने से मना कर दिया।" श्रुति ने उस बात को जारी रखा जो सब ने रिज़ॉर्ट से जाने के बाद फेस की थी।
"इसलिए हम सब वापस आए की मैं तुम्हे अपने साथ ले जा सकू अभी भी उम्मीद खत्म नहीं हुई है श्रेयस विवेक का यह के पुलिस स्टेशन मैं एक दोस्त है और उससे बात करने पर कहा है कि वो हमारी जरूर मदद करेगा....so please हमारे साथ होटल चलो।"
"मैने तो जब आंशिका को बचाने का फैसला किया था तभी अपने हाथो से मेरा अंजाम लिख दिया था और आप भी वापस इसलिए नहीं आई कि आपको हम सब की परवाह है पर आपके ऊपर कम लोगो के मरने का ब्लेम आए और आपकी job ना चली जाए इसलिए आप वापस आई है सही कहा ना मैने?" श्रेयस की बात सुनकर जेनी उसे घूरने लगी वो तेज़ चल रही सांसों के साथ सबको देखता रहा और फिर बोला,"No one can help us..... nobody" इतना कहते हुए वो मुड़ गया,वो अपनी नजर इधर उधर दौड़ाए जा रहा था,उसके चेहरे पर हद से ज्यादा घबराहट दिखाई दे रही थी।
"श्रेयस तू इतना डरा हुआ क्यों है और बार बार हमे वापस जाने के लिए क्यों कह रहा है?" आखिरकार हर्ष ने अपना सवाल पूछ डाला।


"क्यूँकि तुम सब की जान को खतरा है" श्रेयस कि इतना कहते ही सबकी आँखें फट गईं, अभिनव के चेहरे पे डर की लकीरें बन गईं, प्राची की भी यही हालत थी, उसने अपने मुँह पे हाथ रख लिया,"ये... ये.. क्या बोल रहा है...!!?" अविनाश आखिरकार अपने डर को उजागर कर दिया।
"हाँ... इसलिए please... go... go.. इससे पहले कि late हो जाए please जाओ..." श्रेयस ने चिल्लाते हुए कहा लेकिन तभी सब के कानों में आवाज पड़ी।


"धड़ाम्म्म्म्म्म्म् ' आवाज इतनी तेज़ थी कि सभी एक पल के लिए घबरा गए, आवाज सब के पीछे से आई थी जैसे ही सब पीछे मुड़े तो देखा कि रिसॉर्ट का main gate बंद पड़ा था। बंद gate को देखते हुए अभिनव भागता हुआ door के पास पहुँचा और उसे खोलने की कोशिश करने लगा,"कोई.. ..खोलो इसे....उह्ह्ह,कोई खोलो इसे....." उसने चिल्लाते हुए उसे खोलने की कोशिश की लेकिन वह खुला नहीं, बाकी सब कुछ कर पाते उससे पहले एक आवाज़ ने सभी की सांसें थमा दी और उस आवाज़ से श्रेयस के शरीर में भी डर की लहर दौड़ गई।
"हिहिहि......हाहाहाहा....." आवाज सुनते ही सबकी चल रही हरकत थम गई जो जैसे खड़ा था वैसा ही खड़ा रह गया, अभिनव door से चिपक के खड़ा हो गया और बाकी सब की आँखें इधर उधर हिलने लगीं,कोई कुछ करने लायक नहीं बचा और वो सब शायद वहां से हिलते भी नहीं अगर श्रेयस सबको इस घबराहट भरी दुनिया से ना निकलता तो।

"सब के सब अभी उस घेरे में जाओ" श्रेयस के चिल्लाते ही मिलन, ट्रिश और प्रिया तो समझ गए और तीनों जाके घेरे में जा खड़े हुए पर बाकी सब बस ऐसे ही देखते रहे मानों श्रेयस की ही आवाज़ का इंतज़ार कर रहे हो कि वह कुछ कहे और वह सब वही करे अब...."तुम सब ऐसे मेरा मुंह क्या देख रहे हो? घेरे में जाओ अभी " श्रेयस ने सभी की ओर देखकर चिल्लाते हुए कहा और हाथ से घेरे की तरफ इशारा किया तो सब के सब वहाँ जाके खड़े हो गए लेकिन घेरा इतना बड़ा नहीं था कि सब आराम से खड़े हो पाए पर फिर भी सब किसी तरह खड़े हो गए, उन सब के खड़े होते ही श्रेयस की नजर उस कपड़े की रस्सी पे गई जो सीढियों के पिलर से बंधा हुआ हल्का हल्का हिल रहा था जिसे हिलते देख वह समझ गया कि वो पल अब आ चुका है।

"ये लो सब इसे अपने साथ रखना" घेरे में आते ही श्रेयस ने सबसे पहले सबके हाथ में रुद्राक्ष देना शुरू किया, देते हुए उसके हाथ काँप रहे थे जिसे साफ दिख रहा था कि वो खुद डरा हुआ है, वो जान रहा था कि अगर सब को ये दिख गया कि वो खुद डरा हुआ है तो बाकी सब का ना जानने क्या होगा।
"ये क्या है?!!और ये सब क्या हो रहा है?ये घेरा,ये रुद्राक्ष, श्रेयस अखिर क्या हो रहा है?" अविनाश अपने दिमाग में चल रहे डर को दिखाते हुए सवाल पे सवाल पूछा।
"इस वक्त यह सब पूछना बंध करो और मैं जो कह रहा हूं बस उसका ध्यान रखो, ये अपने से अलग मत करना और दूसरी सबसे जरूरी बात चाहे कुछ भी हो जाए कोई भी किसी हालत में इस घेरे के बाहर कदम नहीं रखेगा,एक भी कदम नहीं...." श्रेयस ने अभी इतना ही कहा था कि हॉल की सारी लाइट्स आवाज करने लगी, "ज़र्र----ज़र्र" और फिर लूप झुप होने लगी, सभी लाइट्स में खेल सा शुरू हो गया,यह देख प्राची जोर जोर से चीखने लगी, मिस उसे चुप कराने की कोशिश करने लगी लेकिन वो बहुत डरी हुई थी, वो यहाँ वापिस नहीं आना चाहती थी लेकिन मजबूरी उसे खींच लाई थी, वहीं श्रेयस की नजर उस अंधेरे कॉरिडोर की तरफ थी जिस जगह उसने कपड़े की रस्सी लगाई हुई थी, सभी के चेहरों पे सवाल थे, सभी के चेहरों पे डर था, सब श्रेयस को घूर रहे थे लेकिन वो किसी और चीज़ को देखने की कोशिश कर रहा था,"श्रेयस...."
"श्श्श्श....." मिलन ने अभी श्रेयस का नाम ही लिया था कि श्रेयस ने उसे चुप करवा दिया और सबसे आगे आके खड़ा हो गया, उसकी आंखों ने ये अंदाज़ा लगा लिया था कि सामने से अंधेरे को चीरते हुए कोई आ रहा है तभी आंखों का अंदाज़ सही निकला और लुब झुप होती रोशनी में साया दिखा और जब वो साया शख्सियत के रूप में सबके सामने आया तो सबका कालेजा मुँह को आ गया,सामने अंधेरे में पहले दो चमकती हुई सफेद आंखें दिखाई दी और अगले पल जब जो मंजर सबके सामने आया तो मुँह में कपड़े की वही रस्सी निगलती हुई जमीन पर रेंगते हुए आंशिका अपने पैरो को घसीटते हुए आगे बढ़ रही थी, जैसे जैसे वो आगे बढ़ती वैसे वैसे वो रस्सी का कपड़ा अपने मुँह के अंदर उतरता जाता,सब यह देख के हैरान थे क्योंकि वो कपड़ा करीब २० फीट लंबा था।

कपड़े को निगलते हुए आंशिका की नजर सब पर पड़ी और सबको देख मुस्कुरा पड़ी फिर सीधी खड़ी हो गयी और मुँह में रखे कपड़े को चबाने लगी,सामने फर्श पर गिरे श्रेयस के खून को मुंह से चाटने के बाद उसने कहा,"आहहह.... मज़ा आ गया पहले वाले से ज्यादा मीठा और लजीज़ है।"उसके मुंह से निकलता हुआ थूक खून के साथ लिपटकर उसके मुंह से बहते हुए उसके कपड़ो पर गिर रहा था, आंशिका के इस रूप को देख के सभी के रोंगटे खड़े हो गए, सोचने की शक्ति सभी की खत्म हो गई सिवाय एक बात के जो श्रेयस ने सबसे कही थी,कोई घेरे के बाहर कदम नहीं रखेगा।' आंशिका ने फिर वो कपड़ा आने हाथ में लिया और नजर तिरछी करके कपड़े के उस छोर को देखा जो सीढ़ियों के एक पिलर से बंधा था,उसे देखते ही उसने अपनी गर्दन को झटका और जोरदार आवाज़ करते हुए वो पिलर सीढ़ियों की रेलिंग से अलग हुआ और उखड़ के आंशिका के पास आ पहुँचा, ठीक उसके पैरों के आगे गिरकर हल्का हल्का हिलने लगा,आंशिका की इस ताकत को देख हर कोई अपनी फटी आंखों से इस पल को घूर रहा था, सभी की आंखों में अभी भी वही पल था कि कैसे आंशिका ने सिर्फ गर्दन को हल्का सा झटका देके उस पिलर को उखाड़ फेंका था लेकिन अगले ही पल आंशिका की हंसी ने सबका ध्यान तोड़ दिया। आंशिका ने मुंह से कपड़े को छोड़ दिया और हसने लगी, "हिहिहिहि......" हंसते हंसते उसने पहले गुस्से के साथ श्रेयस को देखा और सामने पड़े उस पिलर को जोर से लाट मार दी जिससे वो पिलर हवा में उड़ता हुआ तेज़ी से सबकी तरफ बढ़ने लगा, कोई हिल पाता या समझ पाता उससे पहले ही वो नुकीलेदार पिलर आगे खड़े श्रेयस के पास जा पहुँचा, कुछ इंच का फ़ासला न होता तो वो पिलर श्रेयस के शरीर के आर-पार हो जाता लेकिन कुदरत के इस दरंदगी के आगे सबने कुदरत का एक करिश्मा भी देखा वह लकड़ी का टुकड़ा ठीक श्रेयस के शरीर में घुसने की बजाय कुछ इंच पीछे रुका हुआ हवा में लहरा रहा था।


To be Continued.......