The journey from tea to coffee in Hindi Love Stories by Kamini Trivedi books and stories PDF | चाय से कॉफी तक का सफर

Featured Books
Categories
Share

चाय से कॉफी तक का सफर

चाय, कॉफी और हम

दोस्तों ये कहानी बस मनोरंजन के उद्देश्य से लिख रही हूं । इसका किसी भी सत्य घटना से कोई संबंध नहीं । और अगर ये किसी से रिलेट भी करती है तो वो बस एक संयोग हो सकता है । मुझे एक टॉपिक दिखा कॉफी और हम तो उस पर लिखने को दिल किया इसलिए ये कहानी लिख रही हूं ।
उम्मीद करती हूं आपको मेरी ये छोटी सी कहानी पसंद आयेगी ।

चाय बहुत पसंद थी उसे। हद से ज़्यादा।

कभी अनायास ही कोई उससे पूछे चाय पिएगी?
तो आसपास सुनने वालों का एक ही जवाब होता ,, चाय के लिए इसे पूछना क्या , इसे तो हाथ में लाकर दे दो।
या कोई कहता , इसको पूछना ही बेकार है, चाय के लिए कब ना कहती है।

"थोड़ी चाय कम कर दे,, काली हो जायेगी" उसकी मां कहा करती थी ।

"चाय पीने से कौन काला होता है मां ? अब चाय ना पिलानी हो तो ना ही कह दो मगर ये बेकार की बातें ना किया करो। " गुनगुन ऊर्फ गुंजन ने कहा।
गुंजन अभी कॉलेज के प्रथम वर्ष में थी। रंग गेहुंआ मगर नयन नक्श बला के खूबसूरत,, आंखे जैसे मछली के समान , नाक सुराहीदार, होठ गुलाब की पंखुड़ियों की तरह गुलाबी , लंबी गर्दन काले घने बाल, बालों की लंबाई बहुत ज्यादा तो नहीं थी मगर बहुत घने बालों की वजह से वह कभी उन्हें खुला नही छोड़ पाती थी। अक्सर पंजाबी सूट पहना करती थी। और सीने पर हमेशा दुपट्टा लिए रहती ।

"ले चाय तेरी" गुंजन की मां गीता ने उसे चाय देते हुए कहा ।

"नही पीनी अब " उसने गुस्से से मुंह मोड़ लिया था ।

"ठीक है मत पी मैं पी लेती हूं " कहकर वो चाय का कप गीता के हाथों से रिंकू ने ले लिया । रिंकू गुंजन की चचेरी बहन थी लेकिन उसकी हमउम्र और हमराज भी वही थी। पक्की दोस्ती थी दोनों की ।

गुंजन ने तुरंत उसके हाथों से कप लिया और बोली "अब मां इतने प्यार से लाई है तो पी लूंगी "
उसकी इस हरकत पर गीता और रिंकू दोनों ही हंस पड़े।
और गुंजन ने चाय का एक घूंट लेकर अपनी आंखे बंद कर उस घूंट को जैसे मन में बसा लिया हो । उसकी हर एक बूंद का स्वाद लिया हो ।

"ओ मेरी मां , इतनी आराम से जायका ले ले कर चाय पिएगी तो आज फिर हम लेट हो जायेंगे । " रिंकू ने कहा ।

"चाची इसे पानी की नही चाय की बॉटल दिया करो" रिंकू गीता की और मुड़कर बोली ।
गीता ने उससे पूछा – "रिंकू तू चाय पिएगी?"
"चाची मन तो बहुत है पर अभी लेट हो रहा है तो शाम को आऊंगी" रिंकू ने कहा ।

"रुक चाय की टोक लेकर नही जाते , एक घूंट पी ले " कहकर गुंजन ने उसे चाय दी।

"तेरी झूठी?" गीता ने गुंजन को इस तरह अपनी चाय देते देख पूछा।

"खुशकिस्मत है मां, जो मेरी झूठी चाय मिल रही है इसका जीवन धन्य हो जायेगा "
रिंकू ने एक घूंट चाय गुंजन के कप में से पीते हुए कहा "धन्य हो गया मेरा जीवन आपको पाकर माता " और उसने अपने हाथ जोड़कर कहा – अब चले ?

गीता जोर जोर से हंसने लगी । दोनों जल्दी से अपनी कॉलेज के लिए निकली ।

रिंकू पीछे बैठी थी और आगे स्कूटी पर गुंजन।

ट्रैफिक सिग्नल पर वह रुकी थी । और जैसे ही सिग्नल स्टार्ट हुआ ।
उसने गाड़ी स्टार्ट की ही थी कि तेज गति से दो लड़के बाइक लेकर निकले जिससे उसका बैलेंस बिगड़ा और वो गिरते गिरते बची। लेकिन उसने चिल्ला कर कहा – अंधा है क्या डफर।

इतना कहकर वह तो वहां से चली गई ।मगर एक बाइक पर खड़ा वसंत उसकी और देख रहा था । वह उसकी खूबसूरती में ऐसा खोया की सिग्नल चालू होने पर हॉर्न की तेज आवाजों ने भी उस पर असर ना किया। उसके पीछे बैठा दर्पण पीछे वाले से बोला – हां हां भैया रुको । और उठकर आगे आया वसंत को पीछे धकेलते हुए उसने आगे बढ़कर बाइक स्टार्ट की और फिर थोड़ी दूर जाकर साइड में बाइक खड़ी करके पूछा – क्या हो क्या गया था तुझे पागल हो गया है तू? ध्यान कहां था तेरा?

वसंत अब भी खोया हुआ था । दर्पण ने उसे टपली पर मारकर कहा – मैं तुझे बेवकूफ दिखता हूं? कब से कुछ पूछ रहा हूं ।

अब जाकर वसंत को एहसास हुआ कि वो जा चुकी है और वो खयालों में खो गया था। सर खुजाता हुआ वह बोला – हां दिखता तो तु बेवकूफ ही है पर क्या करूं दोस्त है मेरा।

दर्पण गुस्से में उसे घूरने लगा तो वसंत ने उससे कहा – भाई बाइक आज ही चलाएगा न?हमको आज ही कॉलेज पहुंचना है ।

उसकी बात पर दर्पण ने बाइक स्टार्ट की और चल दिए ।

कॉलेज पहुंच कर वसंत तेजी से क्लास की और बढ़ने लगा । वहीं दर्पण बाइक पार्क करने में लगा था । दर्पण ने कहा – वसु, रुक यार , मेरे लिए तो रुक।

वसंत पलटा और उल्टे कदमों से चलता हुआ उसे कहने लगा – मुझे लेट नही होना है तू आ जा अपने हिसाब से।

लेकिन अगले ही पल वह किसी से टकरा गया। जिससे भी वो टकराया उसकी किताबें सारी बिखर गई। उसने पलट कर देखा तो वही ट्रैफिक वाली लड़की । वो उसे देखता ही रह गया । गुंजन परेशान सी अपने बालों को ठीक करते हुए किताबें उठा रही थी मगर उसके चेहरे पर परेशानी के भाव थे।

वसंत उसे देखे ही जा रहा था । तभी दर्पण आया उसने देखा वसंत एक टक गुंजन को देख रहा है मगर उसकी किताबें उठाने में मदद नहीं कर रहा । वह बोला – सॉरी , सॉरी ,
और किताबें उठाने लगा । गुंजन ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और किताबें लेकर एक नजर गुस्से में वसंत की और डाली और चली गई । वसंत फिर से खो गया । उसे खोया देख दर्पण अपना सिर खुजाने लगा और वसंत को हिलाते हुए बोला – तुझे कोई नई बीमारी हुई है क्या?

वसंत ने कहा –नही तो ,क्यों? कौनसी बीमारी?
दर्पण ने कहा – खो जाने की !कभी भी कही भी खो जाता है तू।

वसंत बस मुस्कुरा दिया। दर्पण उसके अजीब व्यवहार को देख आश्चर्य में था। तभी विवेक ने आवाज़ दी– दर्पण, वसंत जल्दी आओ सर आने वाले है ।

दोनो क्लास की और भागे । दर्पण ने वसंत को नोटिस किया वह कुछ अलग सा व्यवहार कर रहा था। और बेवजह मुस्काए जा रहा था। क्लास खत्म होने के बाद दर्पण ने पूछा – तू बताएगा भी?
वसंत ने कहा – यार वो लड़की ही सिग्नल पर दिखी थी जिससे में कॉलेज में टकराया। पता है उसे देखकर में खो जाता हूं मुझे कोई होश ही नहीं रहता यार।

दर्पण मुस्कुराते हुए– ओ,,, ओ ओ ये बात है । तुझे प्यार हो गया है ।
वसंत आश्चर्य से – हैं? सच में?
दर्पण बोला – हां। तो बता अब प्यार होने की खुशी में मुझे क्या खिला रहा है ?
वसंत ने तुरंत जवाब दिया – गोबर। चल और उसे खींच कर ले जाने लगा ।
दर्पण – अबे कीड़े पड़े तुझे, तेरा प्यार तब तक सफल ना हो जब तक तू मुझे किसी अच्छी और महंगी होटल में खाना ना खिलाए।

वसंत हंसते हुए – भुक्कड़ साला।

दोनों कॉलेज के बाद नाश्ता करने जाते है स्वाभाविक सी बात है बिल वसंत को देना था। उसके बाद ही वो लोग चाय की एक टपरी पर जाते है । दोनों चाय मंगवाते है । तभी वहां बारिश शुरू हो जाती है । बारिश में चाय का मजा ही कुछ और होता है ।

अगले ही पल गुंजन और रिंकू अपनी स्कूटी से वहां पहुंचते है और जल्दी से उसे पार्क कर चाय की टपरी के शेड में खड़े हो जाते है । गुंजन दुपट्टे को निचोड़ती है और रिंकू कहती है – तेरे चाय के चक्कर में मैं भी भीग गई यार।

गुंजन ने कहा – ऐ,, मेरी चाय को कुछ मत कहना भले ही मुझे कह ले।
रिंकू ने कहा – तू और तेरा चाय प्रेम ।
गुंजन ने चाय वाले से कहा – भैया दो चाय देना । वह चाय का बोलकर आसपास देखने लगी तो वसंत और दर्पण उनकी और ही देख रहे थे । गुंजन का मुंह बिगड़ गया। दर्पण ने गुंजन को हाथ उठाकर हाई का इशारा किया। गुंजन ने फीकी सी मुस्कान दी।

रिंकू बोली – तू जानती है उसको?
गुंजन – सुबह जिसकी वजह से सर ने मुझे डांटा ये वही है ।
रिंकू – जो हाथ हिला रहा है वो?
गुंजन – नही जो एकटक मुझे देख रहा है वो ।

तभी दर्पण वसंत को हिलाकर उनके पास लेकर आया और मुस्कुराते हुए बोला– हेलो

गुंजन ने कहा – हाई।
रिंकू ने भी कहा – हाई।

वसंत को कोहनी से टल्ला मारकर दर्पण ने कहा – ये वसंत है ,, सुबह इसकी वजह से आपकी किताबें गिर गई थी । तो ये सॉरी के तौर पर आपको चाय पिलाएगा।
वसंत दर्पण को घूरने लगा तो दर्पण ने आंखों से उसे हां में इशारा किया ।

रिंकू ने कहा – पर इसके मुंह से तो नही लग रहा कि ये चाय पिलाएगा।
वसंत झेंप गया । दर्पण बोला पिलाएगा पिलाएगा । जा वसु चाय लेकर आ।

वसंत चाय लेने गया । और दो कांच के ग्लास में चाय लेकर दोनों लड़कियों की तरफ बढ़ाए।

इसकी कोई जरूरत नही हैं, इसका पेमेंट हम कर देंगे – गुंजन ने कहा ।
रिंकू ने उसे रोकते हुए कहा – गुनगुन चाय मुफ्त की और भी ज्यादा स्वादिष्ट लगती है। और फिर तू तो चाय दीवानी है। इसकी तरफ से ये सॉरी टी है पी ले।

गुंजन ने उसे आंखे दिखाई। रिंकू ने उसे रिक्वेस्ट की ,,

वसंत ने कहा – पी लीजिए , मैं समझूंगा आपने मुझे माफ कर दिया।

गुंजन ने चाय पी और वसंत को धन्यवाद कहा और जाते जाते उससे कहा – वैसे गलती आपकी अकेले की नही थी ,, मेरा भी ध्यान नहीं था वरना मैं संभल जाती।

दर्पण तपाक से बोला – तब तो चाय आपको भी पिलानी चाहिए। गुंजन मुस्कुरा कर बोली – जी जरूर कल इसी वक्त यही पर 👍🏻 आपको मैं चाय पिला दूंगी।

बारिश हल्की हो गई थी। गुंजन और रिंकू वहां से चली गई । वसंत अब भी गुंजन को देखे जा रहा था मगर वो अब काफी दूर तक जा चुकी थी । दर्पण ने उसके कंधे को थपथपाते हुए कहा – वसु, हमे भी अब घर चलना चाहिए । पेमेंट कर दे चाय वाले को ।

वसंत ने पेमेंट की और एक नजर फिर उस और देखा जहां से गुंजन गई थी और फिर अपनी बाइक स्टार्ट कर वो भी दर्पण के साथ घर चल पड़ा।
दर्पण और वसंत एकसाथ पीजी में रहते थे । इसलिए वो एक साथ रहते थे ।

अगले दिन कॉलेज में दर्पण रिंकू को ढूंढ रहा था । अनायास उसकी नजर गुंजन पर पड़ी मगर रिंकू उसके साथ नही थी । गुंजन से वो पूछ नही सकता था अतः नज़रे उठाकर उसे ढूंढने लगा । गुंजन के सामने से मुस्कुराता हुआ गुजरा और जैसे ही रिंकू गुंजन के पीछे आती दिखी वो सतर्क हो गया इससे पहले की रिंकू गुंजन को आवाज लगाती,, दर्पण ने रिंकू का मुंह दबा कर उसे दीवार की साइड में एक छोटे गलियारे में छुपा लिया ।गुंजन को हल्का शोर सुनाई दिया मगर गुंजन ने पलट कर देखा तो पीछे कोई नही था । वह फिर चलने लगी।

इधर रिंकू आंखे बड़ी बड़ी किए छटपटाते हुए दर्पण को देख रही थी । दर्पण ने झांक कर देखा गुंजन जा चुकी थी तो उसने रिंकू के मुंह पर से हाथ हटाया ।

रिंकू गुस्से में उसके पैर पर अपने पैर से मारते हुए – ये क्या बदतमीजी है?
और वो जाने को हुई तो दर्पण ने उसका हाथ पकड़ कर खींच के उसे खड़ा किया ,, अबकी बार वो दोनों एक दूसरे के बहुत करीब थे ,, दर्पण और रिंकू दोनों ही एक दूसरे की आंखों में कुछ देर देखते रहे फिर रिंकू ने पूछा – क्या है?

दर्पण ने कहा – तुमसे कुछ बात करनी थी ।
रिंकू का दिल जोरो से धड़कने लगा ।
क्या दर्पण मुझे प्रपोज करेगा ? यार इस तरह ? क्या बोलूंगी मैं इसे? बुरा नही है यार? लेकिन मैं इसे अभी जानती भी नही हूं । थोड़ा समय मांग लूंगी । रिंकू मन ही मन सोचने लगी और कांपती आवाज़ में बोली – क्या?

दर्पण ने कहा – वो वसंत को तुम्हारी दोस्त गुंजन पसंद है और मैं चाहता हूं कि आज वो चाय के लिए दोनो अकेले मिले।

रिंकू खुद में बड़बड़ाई – मैं ये सब क्या सोच बैठी । उसे खुद पर शर्म आने लगी ।

दर्पण ने उसका जवाब ना पाकर फिर पूछा – रिंकू?
रिंकू ने कहा – इंपोसिबल,, गुंजन मेरे बिना वहां नही जायेगी।

दर्पण – प्लीज रिंकू कुछ सोचो यार वसंत को लाइफ में पहली बार कोई लड़की पसंद आई है ।

रिंकू कमर पर हाथ रखते हुए – दूसरी , तीसरी बार भी चांस है क्या?
दर्पण ना में सिर हिलाते हुए – नो,, नो,, मेरा मतलब वो नही था।
रिंकू – हां समझ गई मैं तुम्हारा मतलब पर तुम्हारा प्लान बेकार है ।

दर्पण चिढ़कर– तो तुम्हारे पास कोई प्लान है?

रिंकू कुछ सोचकर अपनी उंगली को उठाकर जैसे उसे कोई आइडिया आया हो बोली – नही।
उसकी इस हरकत पर दर्पण गुस्से में उसे घूरने लगा ।
रिंकू ने कहा – सोचने दो यार ऐसे मत देखो।
दर्पण बोला – क्या ऐसा हो सकता कि हम वहां जाए और वहां से कही कल्टी कर ले?

रिंकू ने सोचते हुए कहा – हां एक आइडिया है।

उसके बाद रिंकू ने उसे कुछ कहा और दर्पण ने उसे हाई फाइव देते हुए कहा – अरे वाह , बहुत इंटेलिजेंट हो तुम ।
रिंकू ने गर्व से अपना सीना चौड़ा किया ही था कि वो आगे बोला – ये बात और है कि लगती नही हो।
रिंकू ने रोनी सूरत बना ली । दर्पण उसके सर पर चपत मार कर भाग गया।

वो तो चला गया मगर उसकी इस हरकत पर रिंकू मुस्कुरा उठी और अनायास ही उसने अपने बालों में उस जगह हाथ घुमाया जहां दर्पण मार कर गया था।

कॉलेज के बाद गेट पर ही वसंत और दर्पण रिंकू और गुंजन का इंतजार करने लगे ।

गुंजन उन्हे देखकर मुस्कुरा कर बोली – हमारा इंतजार कर रहे हो?

वसंत बोला – हां, सोचा शायद तुम्हे याद ना हो । तो याद दिला दूं।
गुंजन ने कहा – मुझे सब याद रहता है मिस्टर वसंत।
दर्पण एक्साइटमेंट से बोला – तो चले?

सभी लोग चाय की टपरी पर पहुंचे। वहां पहुंचने के बाद अचानक ही रिंकू ने अपने सिर पर हाथ मारते हुए कहा –

ओह शीट,,!
गुंजन – क्या हुआ?
रिंकू – यार मैं अपना बैग कॉलेज भूल आई हूं ।
गुंजन ने कहा – बैग तेरे पीछे तो लगा है ।
रिंकू ने कहा – अरे ये नही छोटा बैग जिसमे पैसे और कार्ड्स है ।

गुंजन ने कहा – व्हाट? क्यों निकाला था वहां ? चल लेकर आते है ।

तभी दर्पण ने कहा – इफ यू डोंट माइंड, बाइक पर मैं ले जाता हूं जल्दी आ जायेंगे ।

रिंकू बोली – ठीक है ।
गुंजन रिंकू को पकड़ कर बोली – क्या ठीक है ? मैं यहां अकेली क्या करूंगी ।

रिंकू ने कहा – अकेली कहां वसंत है ना हम अभी आते है ।

गुंजन ने अजीब सी मुस्कुराहट से वसंत को देखा।
रिंकू दर्पण के पीछे बाइक पर बैठ गई ।

अब वसंत और गुंजन अकेले खड़े थे । दोनों को थोड़ा अजीब लग रहा था । तभी वहां एक छोटा बच्चा आया और वसंत से बोला – भैया बहुत भूख लगी है कुछ खिलाओ ना।
वसंत ने पास ही एक पोहे की दुकान से उसे पोहे लाकर दिए।
बच्चा बोलकर गया – भगवान आप दोनों की जोड़ी बनाए रखे ।

इस पर गुंजन और वसंत एक दूसरे की और देखने लगे । गुंजन को बड़ा अजीब लग रहा था । इसलिए उसने माहोल हल्का करने पूछा – तुमने उसे पैसे क्यों नही दिए?
वसंत बोला – पैसे से ये लोग पान मसाला लेते है जो इनकी सेहत के लिए ठीक नहीं इसलिए मैं खाना ही देता हूं पैसा नहीं।
उसकी इस बात पर गुंजन उसे बड़े ही प्यार से देखने लगी वो उससे काफी प्रभावित हुई थी ।
तभी वसंत का फोन बजा
वसंत – हेलो कितना टाइम यार?
सामने दर्पण था उसने कहा – यार बाइक पंचर हो गई है तुझे पता है उस और पंचर नही है मैं रिंकू के साथ पंचर करवा कर उसे छोड़ दूंगा तू गुंजन के साथ चाय पीकर उन्हे बोल तुझे घर छोड़ दे ।

वसंत बोला – अरे यार ऐसे कैसे पंचर हो गई ,, हम आते है वही ।

दर्पण – अबे उल्लू के पट्ठे,, जब मौका मिल रहा है तो साथ एंजॉय कर ना ।

वसंत उसकी बात समझते हुए – लेकिन गुंजन से भी तो पूछ ले।
दर्पण – तू पूछ ले।
उसने फोन काट दिया।

गुंजन अपनी आंखे बड़ी करते हुए – क्या हुआ?
वसंत हकलाते हुए – वो,,, वो ,,, बाइक पंचर हो गई । इस और पंचर वाला नही है तो वो लोग उधर जा रहे , दर्पण कह रहा ,,,,,, था कि,,,, वो , रिंकू को ,,,,, घर छोड़ देगा ,,,, और तुम मुझे,,,
उसकी बात पूरी होने से पहले गुंजन चिल्ला के बोली – नही।
वसंत डरकर – क्या हुआ?
गुंजन हड़बड़ाकर – नही ,, वो मैं,, ऐसा बोल रही थी कि हम लोग उन्हीं के पास चलते है।
वसंत ने हां में सिर हिला दिया और स्कूटी की और बढ़ा। उसकी मासूमियत देख गुंजन ने कहा – वसंत।
वसंत मुड़कर उसे देखते हुए – हम्म्म
गुंजन ने मुस्कुरा कर कहा – चाय पी ले?

वसंत के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कुराहट छा गई । वह मुड़ा और वहां जाकर उसके पास बैठ गया । गुंजन ने चाय के लिए बोला । चाय बन रही थी उन्हे थोड़ा इंतजार करना था । उस दौरान उन्होंने एक दूसरे के बारे में सब बताया । चाय पीकर गुंजन ने स्कूटी की चाबी वसंत को देकर कहा – तुम चलाओगे?

वसंत ने पूछा – मेरे पीछे बैठोगी?
गुंजन ने हां कहा ।

वसंत ने चाबी ली और स्कूटी स्टार्ट की गुंजन उसके कंधे पर हाथ रखकर बैठ गई ।
और इस तरह शुरू हुई गुंजन और वसंत के प्यार की कहानी ।

वसंत ने कहा –गुंजन , रिंकू को कॉल करके पूछो तो कहां है ?

गुंजन ने रिंकू को कॉल किया तो उसने बताया कि वो लोग कॉलेज के आगे वाले चार रास्ते पर जो पंचर वाला है वहां है।
रिंकू ने जल्दी से दर्पण से वहां जाने को कहा जहां का पता उसने बताया था गुंजन को । दोनों पहले ही वहां पहुंच गए ।

गुंजन और वसंत भी वहां आए । दर्पण ने सबसे कहा,, हो गया है पंचर ठीक । अब चलते है।
वसंत ने उसे घूरकर देखा तो दर्पण ने अपनी नज़रे चुरा ली थी। फिर गुंजन के साथ रिंकू और वसंत के साथ दर्पण अपने अपने घर चले गए ।

रिंकू ने कहा – सुन गुनगुन,
गुंजन ने पूछा –हां बोल ना ।

रिंकू बोली – आई थिंक आई एम इन लव विथ दर्पण ।
गुंजन ने अचानक ही शॉर्ट ब्रेक लगाई और चिल्लाई – व्हाट? ब्रेक की वजह से आवाज बहुत तेज हुई । आसपास के व्हीकल भी रुक से गए।

गुंजन ने सभी की और अजीब सी हंसी बिखेर कर कहा – सॉरी सॉरी ।

सब व्हीकल निकले । गुंजन ने चैन की सांस ली।

गुंजन ने अब स्कूटी साइड में लगा के उतरते हुए रिंकू की और देख कर पूछा – फिर से बोलना ? क्या बोली थी तू?
रिंकू शरमाते हुए मुस्कुरा के – सही सुना तूने ,, मुझे प्यार हो गया है, दर्पण से। पर थोड़ी कन्फ्यूज हूं, कि सच में प्यार है या बस आकर्षण।

गुंजन ने फिर से स्कूटी स्टार्ट की और बोली – पहले खुद समझ प्यार है या आकर्षण फिर किसी निष्कर्ष पर पहुंच।

रिंकू पीछे बैठते हुए – वो कैसे समझ आयेगा?
गुंजन – दर्पण के साथ वक्त बिता कर ।

रिंकू ने कहा – सच में? क्या मुझे ऐसा करना चाहिए ।
गुंजन ने कहा – हां।
रिंकू ने मन ही मन सोचा अच्छी बात है मैं दर्पण के साथ वक्त बिताऊं उसमे तुझे वसंत के प्यार को समझने का मौका मिलेगा ।

गुंजन ने उसे हिलाते हुए कहा – रिंकू , घर आ गया।क्या सोचने लगी?
रिंकू बोली – कुछ नही , चल चाय पीते है।
गीता बाहर की और देखते हुए – रिंकू आजा चाय बनाती हूं ।
रिंकू ने कहा – आई चाची।

इधर बाइक पर दर्पण से वसंत ने पूछा – कौनसा टायर पंचर था?
दर्पण ने हकलाते हुए कहा – अ,,,, अ,, वो पीछे वाला ।
वसंत बोला – इतनी जल्दी पंचर बन गया ?
दर्पण – हां तो आजकल कहां देर होती है?
दोनो पीजी पहुंच चुके थे । वसंत ने बाइक रोकी और
वसंत उसका कान खींचते हुए – मुझे मूर्ख समझता है?
दर्पण चीखते हुए – आ आ,, कान छोड़ यार दर्द हो रहा है। मैंने तेरे भले के लिए किया था यार, सोचा तुझे वक्त मिलेगा गुंजन भाभी के साथ ।









वसंत बोला – भाभी?
दर्पण बोला – हां तो भाभी ही है ना मेरी ?
वसंत ने कहा – पर मुझे तो बता देता अपना प्लान । बेवकूफ।

दर्पण ने आंखे चुराते हुए कहा – सॉरी यार मुझे लगा तू नही मानेगा ।
कुछ देर रुककर दर्पण ने कहा – सुन, बता ना क्या हुआ वहां ? क्या बात हुई?

वसंत ने मुस्कुराते हुए कहा – कुछ ज्यादा नही बस एक दूसरे को जाना , थोड़ा बहुत, और साथ चाय पी । मेरी जिंदगी की पहली ऐसी चाय जिसे पीने में मुझे सुकून मिला हो । कहते हुए वह जैसे फिर खो सा गया ।

दर्पण खीजकर – यार तेरी बीमारी का इलाज तो करवाना पड़ेगा ।

वसंत उसकी बात सुनकर उसके पीछे उसे मारने दौड़ा।

मकान मालिक ने आवाज लगाकर कहा – शोर कम करो।

दोनों चुपचाप हो गए और वसंत ताला खोलने लगा।

अब रोज ही दर्पण और रिंकू मिलते । और उसी कारण गुंजन और वसंत भी । इन्हीं मुलाकातों में कभी वो लोग सिनेमा जाते , कभी मंदिर , कभी गार्डन , कभी डिनर , कभी लंच , साथ किया करते ।

दर्पण अब तक रिंकू के मन की बात ना समझ पाया और रिंकू अब तक ये ना समझ सकी की दर्पण को उसके लिए क्या फीलिंग्स है । दर्पण अक्सर मजाक मस्ती करता ,,उसके साथ फ्लर्ट भी करता मगर फिर हंसकर बात उड़ा देता। जिस वजह से उसकी कई बातें मजाक में ले लेती थी रिंकू ।

और वसंत और गुंजन एक दूसरे से प्यार तो करने लगे थे मगर अब तक इजहार उन्होंने भी नही किया था ।

वसंत का जन्मदिन आने वाला था ,, रिंकू अपनी नानी के घर गई थी ,, इसलिए गुंजन अब कही भी जाती तो अकेले जाती।

वसंत ने जन्मदिन के एक दिन पहले गुंजन को कॉल करके कहा – कल फ्री हो?

गुंजन ने पूछा – हां क्यों?
वसंत बोला – मेरे साथ चलोगी?
गुंजन – कहां?
वसंत – जहां मैं ले जाऊ।
गुंजन ने कहा – ये कोई बात हुई भला? बिना जाने कैसे चलूं?

वसंत ने कहा– तुम्हारी मर्जी , मैं कल उसी चाय की टपरी पर तुम्हारा सुबह 7 बजे इंतजार करूंगा । आओ या ना आओ तुम्हारी मर्जी ।

गुंजन ने पूछा – दर्पण भी आ रहा है?
वसंत ने कहा – उसी से पूछ लो ।
और कॉल काट दिया । गुंजन ने कहा – इसे क्या हुआ है?

गुंजन ने तुरंत दर्पण को कॉल किया – हेलो दर्पण कल वसंत कहीं जाने को बोल रहा है तुम भी चल रहे हो?
दर्पण जानता था वसंत की सारी प्लानिंग इसलिए उसने कहा – हां उसने मुझे कहा तो था मगर मुझे कल बहुत जरूरी काम से बाहर जाना है । तो मैं नही आ पाऊंगा ।

गुंजन हताश होते हुए – अच्छा, ठीक है ।

उसने कॉल कट किया और रिंकू को कॉल किया ।
रिंकू ने फोन उठाते ही कहा – हां मेरी जान मुझे मिस कर रही है ? बस दो दिन बाद आ रही हूं ।

गुंजन ने कहा – यार , वसंत ने कल कही जाने को बुलाया है ।

रिंकू ने कहा – हां तो जा ना।
गुंजन चिंतित स्वर में – अकेले उसके साथ कही जाना ठीक रहेगा ?

रिंकू बोली – ये तू अपने दिल से पूछ ,, तुझे उसपर कितना भरोसा है ? है या नही है? अगर है तो जा , नही है तो मत जा।

गुंजन कुछ देर चुप रही तो रिंकू फिर बोली – गुंजन , क्या तू वसंत को पसंद नही करती?
गुंजन ने तुरंत कहा – नही नही ऐसा नहीं है।

रिंकू ने फिर पूछा – प्यार करती है उससे?
गुंजन कुछ नही बोली ।
रिंकू ने उसे वीडियो कॉल किया और पूछा – बोल ना? प्यार करती है उससे?
गुंजन अब भी दुविधा में थी।

लेकिन रिंकू जानती थी कि दोनों एक दूसरे से प्यार तो करते है बस कहते नही ।

रिंकू ने कहा – फैसला तुझे लेना है गुंजन , तेरा दिल जो कहे करना ।
रात भर गुंजन वसंत के खयालों में गुम थी।
अगले दिन सुबह 7 बजे गुंजन चाय की टपरी पर इंतजार कर रही थी। वसंत वहां आया और पहले से उसे खड़ा देख मुस्कुरा दिया ।

गुंजन ने उसे गले से लगाकर विश किया – हैपी बर्थडे वसु।
और उसे एक गिफ्ट बॉक्स दिया।
वसंत को वो हमेशा वसंत कहती थी पहली बार उसके मुंह से वसु सुनकर वसंत के दिल में हलचल होने लगी ।

वसंत ने कहा – थैंक यू गुनगुन।
दोनों ने चाय पी फिर
गुंजन ने पूछा – कहां जाने वाले है हम?

वसंत ने कहा – बैठो मेरे पीछे ।
गुंजन ने अपनी स्कूटी वहीं पार्क की और वसंत के पीछे बैठ गई ।

दोनों लॉन्ग ड्राइव पर निकले शहर से दूर हाईवे पर एक मंदिर था । वहां दर्शन किए और फिर वही हाईवे होटल पर खाना खाया । पूरा दिन दोनों साथ में घूमते रहे । शहर वापिस आकर मूवी देखी । शाम हो चली थी ।

अब वो लोग फिर चाय की टपरी पर आ चुके थे । बारिश हो रही थी और सड़क पर इक्का दुक्का गाडियां आ जा रही थी। चाय पीकर जब गुंजन और वसंत को अलग होने का वक्त आया तब उन दोनों का दिल बैठ गया ।

वसंत का मायूस चेहरा देख गुंजन को ना जाने क्या हुआ वह उसके करीब आई , उसके गालों पर हाथ रखकर उसने वसंत के चेहरे के करीब जाकर उसके कांपते भीगे होठों पर अपने होठ रख दिए । चाय वाला मुंह खोले ये दृश्य देख रहा था उसकी चाय भी उसके हाथ से गिर कर सड़क पर फेल गई । चाय की दुकान पर जितने भी लोग थे सब मुस्कुराने लगे ।

गुंजन ने धीरे से उससे दूर होकर अपनी आंखे खोली और उसे कहा – आई लव यू वसंत।

वसंत को तो जैसे उसकी बर्थडे का बेस्ट गिफ्ट मिला ।
उसने आगे बढ़कर गुंजन को गले से लगा लिया ।

दोनों अब और कुछ देर साथ बैठे और अलग हो गए ।

अगले दिन गुंजन की तबीयत खराब हो गई । उसकी तबीयत दो दिन में कुछ ज्यादा ही खराब हो गई । बीपी लो रहने लगा और पेट में तेज दर्द होता था । उसने डॉक्टर को दिखाया तो गैस्ट्रिक प्रोब्लम बताया लेकिन उसके आराम होने की बजाय बस बढ़ रहा था सब ।

वसंत को अब बेचैनी होने लगी थी मगर वह गुंजन के घर तो जा नही सकता था । उसने दर्पण से कहा और दर्पण ने रिंकू से कहा ,, रिंकू आज शाम तक वापिस आने वाली थी उसने कहा – मैं आकर कुछ करती हूं ।

रिंकू शाम को आई और तुरंत गुंजन से मिलने आई । मगर उस वक्त उसे तेज दर्द उठा पेट में ।

रिंकू ही उसे हॉस्पिटल ले गई। और उसने वही पर दर्पण और वसंत को बुला लिया । वसंत उसके चेक अप के बाद उसे गले से लगाकर बोला – अपना खयाल क्यों नही रखती हो तुम ।

गुंजन बहुत दर्द में थी । इसलिए वसंत के गले लगाने पर रो पड़ी । रिंकू वसंत और गुंजन साथ खड़े थे उस वक्त डॉक्टर के पास जाकर दर्पण ने पूछा – डॉक्टर साहब ,, क्या हुआ है गुंजन को ।

तभी रिंकू भी उसके पीछे आई वो भी डॉक्टर से पूछना चाहती थी कि उसकी देखरेख में किस तरह का विशेष ध्यान रखा जाए ,क्या परहेज उसे करने है ।

रिंकू और दर्पण को कुर्सी पर बैठने का कहकर डॉक्टर ने कहा – आप लोग परेशान मत होइए,, कुछ ज्यादा दिक्कत नही है मगर अभी लाइट खाना लेंगे तो अच्छा रहेगा । और चाय बंद कर दे, आलू, और फिलहाल कुछ दिन के लिए रोटी बंद कर दे।

रिंकू ने तुरंत डॉक्टर से कहा – सर ,, चाय तो वो कभी नही छोड़ेगी ।

डॉक्टर ने सहजता से कहा – अगर नही छोड़ेंगी तो उनकी प्रोब्लम कम नहीं होंगी बाकी उनकी इच्छा , आप देख ले दवाइयां अभी समय पर ले और तीन दिन बाद एक बार फिर रिपोर्ट दे मुझे ।

दर्पण और रिंकू ने खड़े होते हुए कहा – ओके डॉक्टर।
बाहर निकल कर रिंकू को परेशान देख दर्पण ने पूछा ।
क्या हुआ रिंकू?

रिंकू सोच में डूबी हुई कहने लगी – चाय तो गुंजन का पहला प्यार है वो कैसे छोड़ेगी चाय।

दर्पण ने कहा – हमेशा के लिए ना सही कुछ समय के लिए तो बंद करवानी होंगी ।

रिंकू गुंजन को लेकर घर गई । वसंत दर्पण के साथ घर आ रहा था तब दर्पण ने उसे बताया कि डॉक्टर ने उसे चाय बंद करने को कहा है , मगर वो नही मानेगी।

रिंकू ने घर जाते ही ये बातें घर में सभी को और गुंजन को बताई ।
गीता बोली – अब तेरी चाय बंद।
गुंजन ने अपनी धीमी आवाज में बमुश्किल कहा – मां मर जाऊंगी तो चलेगा पर चाय नही छोडूंगी बाकी सब बंद कर दे रही हूं ना । पर चाय नही मां।

सबने कोशिश की मगर चाय बंद नहीं की उसने हां कम की मगर बंद ना की । गुंजन अब पहले से ठीक तो थी मगर उसे अक्सर दर्द होने लगता था। कुछ भी खाती पेट में दर्द चाय तो बंद की नही ।

ये बात जब वसंत को पता चली तो उसने गुंजन से मिलने की गुजारिश की ।

अब गुंजन थोड़ा घूम फिर पा रही थी इसलिए वह रिंकू के साथ उसी चाय की टपरी पर गई ।

वसंत ने उसे पूछा – क्या पियोगी?

गुंजन मुस्कुरा कर बोली – चाय ।
वसंत उठा और टपरी की और गया , रिंकू और दर्पण आश्चर्य से उसकी और देखने लगे । वो लोग तो उसकी चाय छुड़वाने आए थे ।

वसंत कुछ देर में दो चाय के कप लाया मगर वो उसने रिंकू और दर्पण को दिए । और फिर जाकर दो कप और लाया और वो गुंजन और उसने लिए ।

गुंजन ने जब उसका सीप लिया तो वह चाय नही थी। गुंजन ने एक सिप के बाद ही वसंत की और देखा । और बिना कुछ कहे उसका कप लेकर एक सिप लिया ,, वह भी वही स्वाद जो उसके कप में था ।

गुंजन ने कहा – मैने चाय मांगी थी कॉफी नही ।

असल में वसंत ने कॉफी डार्क बनवाई थी जिससे वह चाय जैसी दिखे ।

वसंत ने कहा – यह स्ट्रॉन्ग कॉफी है और आज से तुम यही पियोगी । मैने भी चाय छोड़ दी आज से ।

गुंजन ने कहा – लेकिन,, वसु,,
वसंत ने उससे कहा – जाना मैने चाय छोड़ दी अब तुम्हारी मर्जी।

रिंकू उसे वहां से लेकर घर चली गई । घर आकर गुंजन को चाय की तलब लगी । बहुत मन किया , उसकी मां ने चाय बनाई तो उसकी खुशबू से उसका दिल चाय पीने को मचल गया ।

रिंकू ने एक कप चाय लेकर जानबूझ कर गुंजन को दे दी।

और वहां से चली गई। गुंजन चाय को देखती रही। और फिर पलट कर सो गई।
उसे चाय ना पीता देख कर गुंजन के घर वाले सब आश्चर्य में पड़ गए तब गीता के पूछने पर रिंकू ने उन्हे वसंत के बारे में बताया । गीता वसंत का धन्यवाद कहने लगी ।

अब वो जानना चाहती थी कि ये वसंत आखिर है कौन जिसे गुंजन इतना मानती है ।

धीरे धीरे गुंजन की तबीयत सुधरने लगी । डॉक्टर को दिखाने पर उन्होंने कहा कि अब वो रोटी खा सकती है मगर रात में हल्का ही ले।

गुंजन बहुत दिनों बाद आज कॉलेज गई थी।

उसने वसंत से चाय पीने को कहा मगर वसंत ने ना कह दिया ,, जिससे गुंजन गुस्सा हो गई और बोली – इतने दिनो से तुम्हारे लिए चाय छोड़ दी और तुम अब मेरे लिए एक कप चाय नही पी सकते , एक कप से मर नही जाऊंगी मैं।

वसंत को उसकी इस बात पर बहुत गुस्सा आया । दोनों लड़ पड़े।
कुछ देर बाद दोनो उसी चाय की टपरी पर मिले ।
वसंत गुंजन के लिए चाय लाया मगर गुंजन ने गुस्से की वजह से चाय नहीं पी।
गुस्से में वसंत ने चाय को सड़क पर फेंक दिया और वही चीज गुंजन ने भी की और वहां से चली गई।

वसंत उसके पीछे गया। उसे गाड़ी रोकने को बोला और उसका हाथ पकड़ उसे गले से लगा लिया।

गुंजन रोने लगी । और उसे बोली मैं अब कभी चाय नही पिऊंगी।
वसंत ने उसके माथे को चूम लिया । जाना जो कहता हूं कुछ सोच कर ,, तेरी सेहत मेरे लिए ज्यादा जरूरी है ।
उसके बाद दोनो जब मिलते , तब सिर्फ कॉफी पीते ।

एक महीने बाद गुंजन एकदम सामान्य हो चुकी थी ।

अब वसंत ने उसे चाय पीने को कहा । दोनो ने चाय पी मगर गुंजन ने कहा " अब मुझे चाय नही पसंद ,, कॉफी और हम ही काफी है ।
कॉफी भी उन्हें बस उसी चाय वाले की पसंद थी क्योंकि वह स्ट्रॉन्ग और मीठी काफी बनाता था।
रोज कॉफी पीते हुए दोनों को एक दूसरे के साथ कॉफी पीने की आदत सी हो गई थी। और चाय वाला अब उन्हें देखते ही उनके बिना कहे कॉफी रेडी कर देता था।

गुंजन कुछ समय के लिए अपनी नानी के घर गई । वीडियो कॉल पर वसंत ने उससे कहा – जाना जल्दी आ जा,, कॉफी पीने का मन कर रहा है तेरे साथ। बहुत मिस कर रहा हूं ।

इत्तेफाक से उसकी ये बात उसकी नानी ने सुन ली और वह गुंजन के पीछे आकर खड़ी हो गई । वसंत ने तो नानी को देखा मगर गुंजन इस बात से अनजान थी वसंत उसे चुप रहने को कहता उससे पहले नानी ने वसंत को मुंह पर उंगली रखकर चुप रहने को कहा ।

वसंत चुप हो गया । गुंजन ने कहा – मैं भी बहुत मिस करती हूं वसु तुम्हे, और वो कॉफी जो हम साथ पीते है । आई लव यू वसु। एंड रियली मिस यू अलॉट।
नानी ने अचानक गुंजन के कान पकड़े । गुंजन घबरा गई उसके हाथ से फोन छूट गया । वसंत ने अपने सिर पर हाथ दे मारा और फोन काट दिया ।

नानी कठोर स्वर में बोली – क्या हो रहा है ये?
गुंजन घबराते हुए – नानी , वो मैं, वसु, वसंत और मैं प्यार करते है एक दूसरे से ।

उसकी नानी उसके कान खींचते हुए उसे बाहर ले गई सब उन्हे ऐसे देख कर खड़े हो गए । गीता ने पूछा – क्या हुआ मां? इसे ऐसे क्यों पकड़ा है?

नानी बोली – पता नही किस लड़के को लव यू मिस यू बोल रही थी ।

सब गुंजन की और देख घूरने लगे । गुंजन ने अपनी गर्दन झुका ली उसे बहुत एंब्रेसमेंट हो रही थी ।

गीता हंसते हुए बोली – वसंत होगा ।
गुंजन आश्चर्य से उसकी और देखने लगी और फिर पूछा – आपको कैसे पता मां?

गीता ने कहा – रिंकू ने बताया था तेरी तबियत ठीक होने की वजह वही लड़का है । मैं भी उससे मिलना चाहती हूं और पापा भी ।

गुंजन डर गई । वह तुरंत अपने कमरे में गई । वसंत के ना जाने कितने मेसेज थे वो परेशान हो गया था ।
गुंजन ने उसे कॉल किया ।

गुंजन क्या हुआ तुम ठीक हो ना? फोन उठाते ही वसंत ने कहा ।

गुंजन रोते हुए बोली – वसंत मम्मी को हमारे बारे में पता है और पापा तुमसे मिलना चाहते है मुझे बहुत डर लग रहा है ।

गुंजन की नानी फिर वहां आई तो गुंजन ने फोन को अपने कानों से हटा दिया और चुप हो गई ।
नानी ने कहा – पागल लड़की , तेरे पापा ने वसंत की पूरी कुंडली निकाल ली है वो उसके माता पिता से भी मिल आए है और बस रिश्ता पक्का करना है । और तेरी मम्मी तुझे यहां इसी लिए लाई है क्योंकि वसंत के पापा मम्मी यहां आने वाले है।

ये सुनकर गुंजन और वसंत दोनो की धड़कने कुछ देर तो रुक सी गई और फिर तेजी से धड़कने लगी । नानी इतना बोलकर बाहर चली गई ।

गुंजन ने फोन कान पर लगाकर कहा – वसंत ये लोग तो हमारी शादी कराना चाहते है।
वसंत ने पूछा – तो क्या तुम नही करना चाहती शादी ?

गुंजन ने कहा – मुझे लगा था घरवालों को मनाने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़ेंगे । मगर ये तो ,,, कही ये कोई सपना तो नहीं ?

वसंत ने खुद को थप्पड़ मारा , उसे समझ आया कि ये कोई सपना नहीं । उसने कहा – गुंजन अपना हाथ को मुंह में लो ।
गुंजन ने वैसा ही किया।
वसंत बोला अब काटो।
गुंजन ने काटकर देखा । वह दर्द से सिसकी।
वसंत बोला – दर्द हुआ?
गुंजन बोली – हां,
वसंत ने कहा – तो ये सपना नहीं है मेरी जान ।

दोनो बहुत खुश थे । वसंत तो खुशी से बिस्तर पर कूदने लगा । दर्पण जो पढ़ रहा था ,, उसके पास आकर बोला – शांत हो जा भालू,

वसंत ने दर्पण से कहा – दर्पण ,, मेरी शादी हो रही है ।
दर्पण ने बात को ध्यान से सुने बिना पूछ लिया – किससे?
गुंजन का मुंह छोटा सा हो गया ।
वो वसंत से बोली – ये क्या बोल रहा है ? किससे मतलब ? कितनी गर्लफ्रेंड है तुम्हारी ।

वसंत उसे कुछ कहता उससे पहले दर्पण बोला – क्या बात कर रहा है तेरी शादी? गुंजन भाभी से । वाह यार मजा आ गया । वह भी कूदने लगा । आज मेरे यार की शादी है । जोर जोर से गाने लगा । गुंजन हंस रही थी उसने फोन काट दिया।

दो महीने बाद,,

गुंजन दुल्हन के जोड़े में बैठी थी। आज वसंत से उसकी शादी थी । वेन्यू पर गुंजन और वसंत की कॉफी पीते हुए कई बड़ी बड़ी पिक्स थी जो उनसे छुपा कर रिंकू और दर्पण लिया करते थे ।

शादी में खाने के साथ कॉफी भी थी । और कॉफी बनाने वाले वही चाय वाले भैया थे ।

रिंकू ने गुंजन से कहा – यार तेरा तो मेरे बाद स्टार्ट हुआ था फिर भी शादी तक बात आ गई । मेरा तो अभी स्टार्ट ही नही हुआ । ये गधा समझता ही नही । उसने दर्पण की और इशारा करके कहा

वसंत ने बीच में पड़ते हुए कहा – देख उसके कहने का इंतजार करेगी तो ऐसे ही मेरे बच्चो की शादी में कुंवारी फूल डालेगी। बेहतर है तू उसे अपने दिल की बात बता दे।

उसके ऐसा कहने पर रिंकू ने खुद को कुंवारी बुढ़िया किसी जोड़े पर फूल फेंकती हुई इमेजिन कर लिया ।

फिर अपना सिर झटक कर बोली – नही नही मुझे कुंवारे नही रहना मैं चली उसे कहने ।

वसंत बोला – रिंकू ,, उसे कुछ कहने की जरूरत नही बस एक चुम्मा दे दे समझ जाएगा ।
रिंकू बोली – छी,, वसु, बेशरम ।
गुंजन और वसंत हंसने लगे । और रिंकू शर्मा कर दर्पण के पास गई ।
उसने दर्पण के कुर्ते की आस्तीन खींची।
दर्पण ने उसे देखकर पूछा – क्या है?
रिंकू ने कहा – तुझसे कुछ बात करनी है ।

दर्पण बोला – हां बोल ना।
रिंकू ने आसपास देखकर कहा – यहां नही।

दर्पण उसके साथ उठकर जाने लगा । दोनो एकांत में चले गए । दर्पण ने कहा – हां अब बोल।

रिंकू की समझ कुछ नही आ रहा था , वैसे तो वो न जाने कितनी बड़बड़ करती थी मगर आज उसे शब्द नही मिल रहे थे घबराते हुए उसने जो मुंह में आया कह दिया – वो मुझे ना ,, एक बीमारी हो गई है ।

दर्पण – कौनसी? डॉक्टर के पास चले?
रिंकू चिढ़कर – यार समझता क्यों नही एक लड़की एक लड़के को ऐसे अकेले में क्यों लाती है?
दर्पण अनजान बनते हुए समझने का नाटक करते हुए बोला – ओ, अब समझ आया।
रिंकू खुश हो गई ।
दर्पण बोला – गुप्त रोग हो गया है तुझे ।
रिंकू बोली – छी,, गधा।
दर्पण ताली बजाकर हंसने लगा ।
उसे गधा कहकर वह गुस्से में जाने लगी । उसका दिल रोने को कर रहा था । शायद मैं ही पागल हो रही इसके दिल में ऐसा कुछ नही वरना ये ऐसी बात ना करता कहकर वह जा ही रही थी ।

कि तभी दर्पण ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपने पास खींचा , रिंकू झटके से उसकी बाहों में जा गिरी ।
दोनों की नज़रे टकराई।
दर्पण अपनी सेंसुअस आवाज़ में बोला – मैं जानता हूं तू क्या कहना चाहती है ।
रिंकू का दिल जोरों से धड़कने लगा ।
दर्पण ने उसके बालों की लट को उसके कानों के पीछे करते हुए कहा – पहली नजर में ही तुझसे प्यार हो गया था मुझे, और तू भी मुझे चाहती है जानता हूं मैं।

रिंकू आश्चर्य से उसकी और देखते हुए बोली – इसका मतलब तू मजाक में जो भी फ्लर्ट करता था असल में वो फ्लर्ट नही था । दर्पण ने ना में अपनी गर्दन हिला दी ।

रिंकू ने उसकी छाती पर मारा।
दर्पण बोला – तू पागल है जो समझी ही नहीं। कितने क्लियर हिंट थे यार।

रिंकू उसके गले से लग गई ।
दर्पण ने उसे गले से लगा कर किस कर दिया।

गुंजन और वसंत सबसे बच कर वहां आ चुके थे दोनों को इस तरह देख वे मुस्कुराने लगे और बोले।

रिंकू इसी मंडप में शादी कर ले ,, भरोसा नहीं दर्पण का।

दर्पण उससे दूर होते हुए बोला – शादी ,, नही यार, शादी नही करनी मुझे।
रिंकू उसे घूरने लगी तो उसने कहा – मेरे प्यार की अभी शुरुआत है , थोड़े मजे तो लेने दे , शादी तो मैं इस पागल से ही करूंगा , इसे समझ में कम आता है । ज्यादा दिमाग नही चलाती। मेरा जीवन अच्छे से कटेगा ।
रिंकू ने उसके पैर पर गुस्से में अपनी हील्स से मारा।
दर्पण चीख पड़ा – आउच।
गुंजन और रिंकू हंसने लगी। वसंत भी उन दोनों के साथ जाने लगा । तभी दर्पण लंगड़ाता हुआ रिंकू के पास आकर बोला – आई लव यू यार,
रिंकू उसे अंगूठा दिखाते हुए चली गई ।

अगले ही दिन उसी चाय की टपरी पर कॉफी के दो कप लिए जो कपल बैठा था वह गुंजन और वसंत नही बल्कि रिंकू और दर्पण थे , चाय वाला उन्हें देख मुस्कुरा रहा था क्योंकि उसे गुंजन और वसंत की याद आ गई ।

रिंकू ने कहा – हाए,, ये प्यार भरी कॉफी और हम ।
दर्पण ने उसके कप से अपना कप टकरा के चीयर्स कहा।

चाय से कॉफी तक के सफर की गुंजन की कहानी का यहां अंत होता है । आपको कहानी अच्छी लगी हो तो समीक्षाएं दीजिए और प्रोत्साहन दीजिए।

धन्यवाद

स्वरचित मौलिक रचना
27/04/2023
~कामिनी त्रिवेदी ✍️🔥