Ardhangini - 30 in Hindi Love Stories by रितेश एम. भटनागर... शब्दकार books and stories PDF | अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 30

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 30

मैत्री के घर से कानपुर के लिये निकलने के थोड़ी देर बाद कानपुर के रास्ते में कार चला रहे जतिन के बगल में बैठे सागर ने राहत की लंबी सांस छोड़ते हुये उससे कहा- आज मुझे बहुत सुकून मिल रहा है, भइया आपकी पसंद यानि हमारी होने वाली भाभी जी बहुत अच्छी हैं आप दोनो एकदम आदर्श जोड़ी लग रहे थे...

सागर की बात पूरी होने के बाद मजाकिया लहजे में जतिन की टांग खींचते हुये ज्योति ने कहा- और क्या तभी तो भइया दीवाने हुये जा रहे थे... हैना भइया!!

ज्योति की बात सुनकर जतिन ने हंसते हुये कहा- अच्छा जी... मैं कब दीवाना हो रहा था?

जतिन और ज्योति की मजाकिया रस्साकशी की बातें सुनकर बबिता भी हंसते हुये बोलीं- अच्छा मैं बताऊं तुझे कि कब दीवाना हुआ जा रहा था....

जतिन ने बबिता की बात सुनकर उसी मजाकिया लहजे में कहा- अरे नहीं नहीं मम्मी मैं तो सिर्फ आपका दीवाना हूं...

जतिन की ये बात सुनकर बबिता हंसने लगीं और राहत की सांस लेते हुये बोलीं- चलो जो भी हुआ वो अच्छा हुआ, अब बस एक ही महीना बचा है फिर ज्योति की शादी के बाद से मुझे जो अकेलापन महसूस होता था अब वो मैत्री के आने से दूर हो जायेगा...

इसके बाद विजय की तरफ देखकर बबिता ने कहा- इनको तो अपना मुंआ अखबार पढ़ने से ही फुर्सत नहीं मिलती है, पता नही दिन भर उसमें क्या देखते रहते हैं...

हंसी मजाक के इस माहौल में बबिता की कही गयी इस बात पर हंसते हुये विजय ने कहा- अरे... असल में मुझे तुमसे डर लगता है इसीलिये अखबार मुंह के सामने रखकर बस बैठा रहता हूं ताकि मुझे देखते ही तुम कहीं डांट ना दो....

विजय की बात सुन कर बबिता ने कहा- हां हां मैंने तो बड़ा डरा कर रखा हुआ है सबको, बड़ा डरते हो सब मुझसे...
बड़े आये डरने वाले...

बबिता की बात सुनकर विजय बोले- देखा कर दिया ना गुस्सा!! बस इसी गुस्से से डरता हूं...

ऐसा कहकर विजय और कार में बैठे बाकि सारे लोग हंसने लगे...

जहां एक तरफ कानपुर जाते वक्त जतिन और उसका परिवार बहुत खुश थे और हंसी मजाक करते.. एक दूसरे की टांग खींचते कानपुर जा रहे थे वहीं दूसरी तरफ लखनऊ में मैत्री के परिवार में भी कुछ इसी तरह का माहौल था, जतिन और उसके परिवार के घर से जाने के बाद जगदीश प्रसाद और सरोज समेत पूरा का पूरा परिवार बहुत खुश था और सब राजेश की तारीफ कर रहे थे कि उसने इतनी मेहनत करके अपनी बहन के लिये करोड़ों मे एक लड़का देखा है!!

हंसी खुशी के इस माहौल के बीच सरोज ने कहा- इतना कम समय मिला है हमें, इतने कम समय मे शादी की तैयारियां कैसे होंगी? गेस्टहाउस तो चलो सुनील बुक कर देगा लेकिन बाकि और भी तो बहुत से काम होते हैं शादी के आयोजन में, वो सब कैसे होंगे सिर्फ एक महीने में?

सरोज की ये बात सुनकर पास ही खड़ी सुरभि और नेहा उनके पास आयीं और फिर उनको दिलासा देते हुये सुरभि ने कहा- ताई जी आप बिल्कुल भी फिक्र मत करिये.. मैं, नेहा दीदी, सुनील जी और बड़े भइया जी हम चारों मिलकर सारे काम कर लेंगे और सबसे बड़ी बात तो ये है कि इतने दुखों के बाद तो हमारी मैत्री दीदी के जीवन में खुशियां आ रही हैं इसलिये हम कोई कमी नही छोड़ेंगे... बस आप घर के बड़े लोग हमारा मार्गदर्शन करिये बाकि सब हम पर छोड़ दीजिये....

सुरभि की इस आत्मविश्वास से भरी बात को सुनकर सरोज ने उसे गले लगाकर प्यार किया और कहा- हां बेटा... तुम लोगों को ही देखना है सब काम और मुझे पूरा विश्वास है कि तुम चारों सब अच्छा ही करोगे...

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये सरोज ने कहा- अच्छा सगाई के लिये कौन सा दिन रखना है, मै तो चाहती हूं कि जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी का रख लेते हैं ताकि फिर पूरा ध्यान शादी की तैयारियो पर केंद्रित हो जाये...

सरोज की ये बात सुनकर नरेश बोले- भाभी जी मैं तो कहता हूं कि जादा सोचने का और विचारने का क्या फायदा, अगले संडे का ही रख लेते हैं सगाई का और यहीं घर पर ही सारा इंतजाम कर लेते हैं, ये ड्राइंगरूम काफी बड़ा है इसका सारा सामान बाहर आंगन मे रख देंगे एक दिन के लिये और परिवार के सदस्यों की उपस्थिति में ही सगाई करवा देते हैं...

नरेश की बात सुनकर राजेश ने कहा- हां पापा ये ठीक रहेगा वैसे भी शादियों का सीज़न है तो सगाई के लिये कोई गेस्टहाउस मिलना भी मुश्किल है इतने कम समय में ....

राजेश की बात सुनकर सरोज ने कहा- हां ये ठीक रहेगा मैं आज ही शाम को कानपुर बबिता बहन जी को फोन करके ये बात बता देती हूं ताकि वो भी इसी हिसाब से यहां आने की तैयारियां करलें...

इन सब बातों के बाद वहीं सबके बीच मे ही बैठे बैठे सुनील ने अपने दोस्त को फोन करके एक महीने बाद की डेट के लिये उसका मैरिज लॉन बुक कर दिया और बुकिंग का पैसा ऑनलाइन ही उसे ट्रांसफर कर दिया...

सुनील के गेस्टहाउस बुक करने के बाद उसके जगदीश प्रसाद ने सरोज से कहा- सरोज जरा पैसे निकाल कर ले आओ और सुनील को दे दो, इसने ऑनलाइन ही पेमेंट कर दी है अपने पास से...
अपने ताऊ जी की बात सुनकर सुनील मुस्कुराते हुये बोला- नहीं ताऊ जी गेस्टहाउस मै ही बुक करूंगा और उसका पूरा पैसा मै ही दूंगा...

सुनील की बात सुनकर जगदीश प्रसाद कुछ बोलने ही वाले थे कि तभी सुनीता बीच में बोल पड़ीं- हां भाईसाहब मैत्री की शादी के गेस्टहाउस का खर्चा हम देंगे, पिछली बार हमने सारा सामान दिया था... टीवी, फ्रिज, अलमारी और बाकी सब... लेकिन इस बार जतिन जी और उनके मम्मी पापा कुछ लेने को तैयार नहीं हैं ऐसे में हम जबरदस्ती भी नही कर सकते हैं इसलिये गेस्टहाउस और कैटरिंग का खर्च हम देंगे और रही बात बबिता बहन जी की आधा खर्च देने वाली बात तो जब वो पैसे देंगे तब उनसे रिक्वेस्ट करके हम पैसे लेने से मना कर देंगे, कुछ दें या ना दें पर इतना तो हम करेंगे ही अपनी बेटी के लिये....

दुख और तकलीफों के लंबे सात आठ महीनों के पूरे के पूरे दौर को झेलने के बाद जिस तरह से मैत्री के आने वाले जीवन की सारी भूमिका इतने अच्छे तरीके से तय हो रही थी उसे देखकर मैत्री के मम्मी पापा जगदीश प्रसाद और सरोज को समझ ही नही आ रहा था कि वो अपनी खुशी को लेकर प्रतिक्रिया करें भी तो कैसे करें....

असल में मैत्री की चाची सुनीता का मैत्री और उसके मम्मी पापा के प्रति समर्पित होना इसलिये भी जायज़ था क्योंकि जब जगदीश प्रसाद अपने भाई नरेश के साथ अपने पुश्तैनी मकान में रहते थे और राजेश और उसका छोटा भाई सुनील पढ़ाई कर रहे थे तब नरेश की माली हालत ठीक नही थी, नौकरी में कोई बहुत अच्छा पद नहीं था इसलिये तनख्वाह काफी कम थी ऐसे में उनके ऊपर राजेश और सुनील की पढ़ाई का खर्च और घर के अन्य खर्चे भी थे... चूंकि जगदीश प्रसाद बैंक मे मैनेजर की पोस्ट पर थे तो उनकी तनख्वाह काफी अच्छी थी और जगदीश प्रसाद और सरोज दोनो से नरेश की माली हालत छुपी नही थी... चूंकि संयुक्त परिवार था तो चाहे घर का बिजली का बिल हो, चाहे गैस का खर्च या अन्य कोई महीने का खर्च वो जादातर जगदीश प्रसाद ही देखते थे और इन सब में सरोज भी उनका समर्थन करती थीं, सरोज ने भी हमेशा परिवार की बड़ी होने का फर्ज बखूबी निभाया था और कभी सुनीता को या अपने देवर नरेश को ये एहसास नहीं होने दिया था कि खर्च हम कर रहे हैं तो हम ही सर्वे सर्वा हैं.... ना कोई ताने तुश्की, ना मुंह चढ़ाना कुछ भी नही और यही कारण था कि अपने मम्मी पापा की तरह राजेश और सुनील भी अपने ताऊ जी के परिवार के प्रति पूरी तरह से समर्पित थे, इधर नरेश के परिवार की माली हालत राजेश और सुनील के अपने अपने काम धंधे शुरू करने के बाद धीरे धीरे सुधरती चली गयी इसलिये वो मैत्री के लिये बढ़ चढ़कर अपना फर्ज निभाने की कोशिश करते थे और इन्हीं सब वजहों से नरेश की दोनो बहुयें भी अपनी तरफ से कोई कसर नही छोड़ती थीं जगदीश प्रसाद, सरोज और मैत्री के लिये कुछ भी करने में ...

इन सारी बातों के चलते जहां एक तरफ सारे लोग बहुत खुश थे वहीं दूसरी तरफ मैत्री के मन मे एक हिचक, एक तकलीफ अभी भी थी, उसे जतिन और उसका परिवार अच्छा तो लगा था लेकिन दूसरी शादी के नाम पर वो अभी भी चीजों को स्वीकार नही कर पा रही थी, मैत्री के लिये ये बहुत विकट और असमंजस की स्थिति थी क्योंकि रवि को गुजरे अभी जादा समय भी नही हुआ था और इतनी जल्दी अपनी पिछली जिंदगी की बातों और तकलीफों को भूलकर किसी दूसरे मर्द के साथ रहने की सोचकर मैत्री बहुत असहज महसूस कर रही थी, जतिन के अपने शरीर पर निकट भविष्य मे किये जाने वाले स्पर्श का आभास उसके शरीर को बहुत असहज और अजीब सा महसूस करा रहा था, वो सच मे नहीं चाहती थी कि रवि के बाद कोई और उसे स्पर्श करे लेकिन वो ये बात भी बहुत अच्छे से जानती थी कि जो कुछ भी हो रहा था और जो परिस्थितियां बन रही थीं उन पर भी उसका कोई नियंत्रण नहीं था इसलिये वो चुपचाप सब कुछ होते हुये देख रही थी......

क्रमशः

होने वाला है जतिन और मैत्री की शादी नाम की प्रक्रिया का पहला आयोजन.... आप सभी सम्मानित पाठक जनों को जतिन और मैत्री की तरफ से स्पेशल इन्विटेशन है... कहानी की नायिका के जीवन में इतने दुखों के बाद खुशियां प्रवेश कर रही हैं... देखने के लिये आइयेगा जरूर!!