आशा अपने दोस्तों के साथ में गुड़िया से खेल रही थी।
"आशा! जल्दी से मैरे पास आओ, बड़ी दीदी के घर चलना है। वहाँ पर कार्यक्रम है। तैयार हो जाओ।"मां ने प्यार से समझाया।
"नहीं मुझे कहीं नहीं जाना है। मैं तो अभी गुड़िया से खेलूंगी।"
आशा बोली।
"ऐसे ज़िद नहीं करते हैं। मैं तुमको घर में अकेले छोड़कर नहीं जाऊँगी! साथ में चलो,...पापा ऑफिस से वहाँ आ जाएँगे।"
माँ ने कहाँ।
तैयार हो करके, माँ के साथ आशा बहन के घर कार्यक्रम में पहुँची। मन गुड़िया में ही अटक कर रह गया था।
"मुझे! गुड़िया से खेलना है। आप तो सब से बात कर रही हो!,...और मैं क्या करूँ?"
मम्मी से कहती है।
"जाओ! दीदी के पास से कोई पुराना कपड़ा और सुई-धागा लेकर आओ। मैं यहीं पर तुम्हारे लिए गुड़ियां बनाती हूँ। चुपचाप खेलना।"
सुनते ही दीदी के पास दौड़ी चली गई।
"दीदी! मुझे जल्दी कोई गुड़िया दो या कपड़ा सिलने के लिए,सुई-धागा मम्मी गुड़ियां बना कर देंगी। मैं खेलूॅगी। तुम्हारे यहाँ मेरा कोई दोस्त भी नहीं है। दे दो ना।"
दीदी को स्टोर रूम में पड़ी एक गुड़िया मिली!, जिसकी गंदी-सी फ्रॉक थी। आशा से पीछा छुड़ाने के लिए उसे दे दी, क्योंकि उनको घर में काफी काम भी था।
"यह ले जाओ! यह रंग बिरंगी कपड़ों से माँ से इसकी फ्रॉक सिल्वा लो। यह सुई-धागा, कैची,अब मुझे परेशान नहीं करना। मुझे बहुत से काम है।"
आशा को जैसे मन मांगी मुराद मिल गई हो। माँ के पास गई। जब गुड़िया बन गई । फिर दिनभर खेलती रही। जब रात में कार्यक्रम ख़त्म होने के बाद माॅ-पापा के साथ से घर वापस आ रही थी। तब रास्ते में एक श्मशान के पास से ऑटो गुज़रा ऑटो वहीं कुछ देर के लिए रुक गया। ऑटो स्टार्ट ही नहीं हो रहा था। परेशान होकर ऑटो वाले ने किसी मैकेनिक को बुलाने गया। आशा सो चुकी थी। गुड़िया उसके हाथ से गिरकर नीचे ज़मीन पर आ गई।
गुड़िया के गिरने के कारण आशा की नींद खुली। ज़मीन पर पड़ी गुड़िया को उसने उठा लिया।
ऑटो ठीक हो गया!....वह घर पहुँच गए।
आशा अपने कमरे में जाकर, अपने पलंग के पास गुड़िया को शो-केस में रख देती है और फिर सो जाती है। तब आधी रात को गुड़िया डरावनी-सी हो जाती है। उसके चेहरे से अजीब-सी सफ़ेदी और आँखो में बहता हुआ, खून नज़र आता है। और गुड़िया धीरे-धीरे कांच को ठोकती है।
कांच की आवाज़ सुनकर आशा की नींद खुली। वह देखती है। गुड़िया अपने हाथ फैला कर आशा की ओर इशारा कर रही है।
और कह रही है।
"आशा आजा !...
बड़ी हिम्मत करने के बाद माँ-माँ बोल पाई।
माँ ने आकर पूछा क्या हुआ?
आशा ने गुड़िया की ओर इशारा किया और कहाँ:,... यह गुड़िया मुझे बुला रही है। इसकी आँखों में से खून निकल रहा है और देखो उसके हाथ,...? खड़े होकर बड़े हो रहे हैं,...।
आशा बेटी!,....इतना क्यों बड़बड़ा रहे हो! अब उठ जाओ। माँ ने एक लोटा पानी लेकर मुँह पर फेर दिया! आशा की नींद खुल गई।
"माँ,... मैंने बहुत बुरा सपना देखा है। "
सरिता बघेला 'अनामिका'
18/7/2024