मैनें गांधी को क्यूं मारा -
नाथूराम गोडसे
इस किताब को पढ़ने का आव्हान करते हैं। तर्क है, गोडसे द्वारा गांधी को मारने की कोई तो वजह रही होगी।
पढ़कर जानना चाहिए।
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हम लोगो को पढ़कर और भी बहुत कुछ जानना चाहिए।जैसे कि
- मैंने इंदिरा को क्यूं मारा- बेअन्त सिंह
- मैनें बच्चो का रेप और मर्डर क्यो किया- रंगा-बिल्ला
- मैनें दर्जनों महिलाओं का कत्ल क्यो किया- जैक द रिप्पर
- मैनें मातृभूमि के दो टुकड़े क्यो लिए-मोहम्मद अली जिन्ना
-मैनें अनुसुइया का शीलभंग क्यो किया- इंद्र
- मैनें सीता का हरण क्यो किया- रावण
पर इन किताबो को लिखा नही गया। बदले में आप दूसरी किताब पढ़ सकते हैं- "मैनें दंगे क्यो करवाये- अनगिनत लेखक हो सकते है।
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हर कत्ल, बलात्कार, चोरी, छिनैती, दंगे के पीछे कोई कारण तो होगा।
पर क्या किसी अपराध के पीछे अपराधी की मानसिकता जानना जरूरी है। आप यौनेच्छा कन्ट्रोल न करने के कारण बलात्कार करें, नफरत में हत्या करें, गरीबी में चोरी डकैती छिनैती करें।
अपराधी तो सदा एक नोबल कारण गिनायेगा। मजबूरी गिनायेगा। खुद को मजलूम, मजबूर बतायेगा।
पूछकर देखिए। क्रिया के विरुद्ध प्रतिक्रिया का सिद्धांत मिलेगा।
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पर क्रिया और प्रतिक्रिया का विज्ञान, बेजान धातुओं पर लगता है। उनपर, जो बायलोजिकल नही होते।
जो जिंदा है, धड़क रहे हैं।
और जिनके बदन पर इंसानी स्पीशीज होने की तोहमत भले ही मजबूरन लगी हो, वहां क्रिया के बाद विचार, समझ, सलाहियत, इंसानियत, रिकनसीलियेशन जैसे भाव आते हैं।
क्योकि मानवीय समाज है। बेजान वस्तुओं का विज्ञान नही है।
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तो सीता के हरण से लेकर गांधी के मरण तक, कारणों की लकीर हर जगह होगी। पर क्या वे इंसानी मस्तिष्क को पढ़ाये जाने चाहिए।
सिवाय तब, जबकि आप स्थिर चित्त से , एक मैच्योर एज में, क्रिमिनल साइकोलॉजी का अध्ययन कर रहे हों, आम तौर पर ऐसे साहित्य से दूर रहना चाहिए।
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वाय आई किल्ड गांधी से तो पूरी तरह दूर रहना चाहिए।
यह किताब उस भाषण पर आधारित है, जिसे गोडसे ने कोर्ट में दिया था। कहा जाता है, की यह भाषण उसे सावरकर ने लिखकर दिया था, क्योकि उसकी शब्दावली सावरकर की सिग्मेचर शैली से मिलती है।
तो यह गोडसे का कथन नही।
असल हत्यारे का है।
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जो बाई डिफाल्ट झूठा है।
गांधी हत्या, जिसे बेशर्मी से "गांधी वध" कहकर गोडसे को श्रीराम और श्रीकृष्ण के बगल में खड़ा करने की हिमाकत की जाती है, वह गोडसे के छठवें प्रयास हो हो पाई।
पहला प्रयास 1934 में हुआ, जब पूना में गांधी की कार में बम फेंका गया। दूसरा 1940 में जब गांधी की ट्रेन की पूना के पास पटरी उखाड़ी गयी। तीसरा जब 1941 में जब गोडसे गांधी पर छुरा लेकर दौड़ा।
इसके बाद 1945 में एक और 1948 में दो प्रयास हुए। जिस दूसरे में हत्यारे अंततः सफल हुए।
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इस किताब में गांधी हत्या के लिए पाकिस्तान का निर्माण, उसे 55 करोड़ रुपये देने का दबाव, 15 किलोमीटर का गलियारा देकर पूर्वी- पश्चिमी पाकिस्तान को जोड़ने का प्रयास जैसे कारण गिनाए गए हैं।
पर सारे कारण क्या 1941 में मौजूद थे?? 1934 में मौजूद थे?? अगर नही, तो हत्यारे तब से ही गांधी को मारने की कोशिश में क्यो थे??
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गांधी की हत्या का असल कारण आपको उनकी हत्या के पहले प्रयास से समझना होगा।
यह डेट 1934 है।
क्या था 1934 के पहले, जो 1916,1920 या 1930 में नही था??
पूना पैक्ट।
गांधी ने हिन्दुओ की 149 सीटें दलितों को देने पैक्ट किया। इसके बाद एक खास मराठी ब्राह्मण वर्ग उनके खिलाफ हो गया। कल्याण जैसी पत्रिकाएं गांधी के विरुद्ध आग उगलने लगी।
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गोडसे उसी वर्ग से था। जिसके "हक" की सीटें गांधी ने दलितों को दे दीं।
जिन्हें मन्दिर में घुसाने और अस्पृश्यता दूर करने के अभियान में 1934 में दलित चेतना यात्रा निकाल रहे थे।
तो यह किताब झूठ का पुलिंदा है। गोडसे का भाषण झूठ का पुलिंदा है। यह भाषण, इसके तथ्य कोर्ट ने खारिज कर दिए। गोडसे को उसके कर्म की सजा दी।
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लेकिन एक जनश्रुति और है.. जिस पर आने वाले वक्त में एक वेबसीरीज मशहूर दृश्य आधारित हुआ।
गोडसे ने जब अपना भाषण खत्म किया, जज साहब पोडियम से उतरकर कटघरे के पास आये। गोडसे को जमकर दो झापड़ लगाए और कहा-
लोमड़ी के..
अब तो सच बोल दे लोमड़ी के!!