Yaado ki Asarfiya - 14 in Hindi Biography by Urvi Vaghela books and stories PDF | यादों की अशर्फियाँ - 14. पेपरस्टाइल - द बिग इश्यू

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यादों की अशर्फियाँ - 14. पेपरस्टाइल - द बिग इश्यू

14. पेपरस्टाइल : द बिग इश्यू

"अब तो दीपिका मेम की तरह गाड़ी लेकर , गोगल्स पहनकर कौन आएगा? " क्रिशा ने मेम की गाड़ी की जगह की ओर देख कर कहा।
" हम बहुत अनलकी है की मेम हमे 10th में नहीं पढ़ाएंगे।" झारा ने अफसोस करके कहा।
" मुझे तो उसने याद है आखरी दिन में वह स्पीच दी थी तब कहा था की आप स्टूडेंट्स जब सक्सेस के पर्वत की चोटी पर होंगे और हम नीचे से आपको देख कर खुश होंगे यह बात मेरे दिल को छू गई।" माही ने कहा।
" वैसे तो मुझे मेम का भाषण अच्छा नहीं लगता था पर उस दिन सच में अच्छा लगा था।" ध्रुवी ने भी कहा।
सब मेम की बाते याद कर रहे थे और में मेम की मधुर मुस्कान को।
कहते है ना बीते कल का शौक नहीं मनाना चाहिए किन्तु आज की जीना चाहिए। हम सब ने भी यही किया ध्रुवी की कंपनी को एंजॉय करते रहते और परीक्षा की तैयारी में लग जाते।

हम परीक्षा के दिनों में भी लॉन में खेलना भूलते नहीं पर कभी कभी ही अगर अजंता टीचर, गौरव सर और निशांत सर की कृपा होती तो ही हमारे पैर हरी हरी घास को छू सकते और जब भी निशांत सर ले जाते तो हम गर्ल्स तो लॉन में खेलते पर बॉयज के साथ निशांत सर क्रिकेट खेलते तब सब को यही लगता की हम बिना कोई सर या टीचर की परमिशन खेल रहे है क्योंकि निशांत सर को खेलते देख कोई नहीं कह सकता की वह स्टूडेंट है या सर। पर जब दौर मेना टीचर के हाथ में चला जाए तो हमारी क्या हाल होता था वह आप कल्पना भी ना कर सके स्पेशियली वह गर्ल्स को ही टोकते। कुछ भी खेलो वह एक ही बात कहते ," आप को सिर्फ यही आता है।" आधे घंटे के पीरियड में 15 मिनट्स तो परेड करवाते वह भी धूप में और बाकी बची 15 मिनट्स में हमे यह कहकर टोकते रहते यदि खो - खो खेलते समय कोई अच्छा प्लेयर न पकड़ा जाता तो कहते की आपको खेलना ही नहीं आता। उस हम सबसे ज्यादा जिसको मिस करते वह थे नसरीन टीचर।
हमारा हाल तब सबसे ज्यादा खराब हुआ जब उन्होंने ' शारीरिक शिक्षण ' की प्रैक्टिकल परीक्षा ली। सूर्य नमस्कार करवाया। गौरव सर ने हमे क्रिकेट खेलना सिखाया। सच में हमे इतना थका दिया की दूसरी बार हम खेलने का नाम ही ना ले। इन सब के बीच में दीपिका मेम को हम भूल ही गए थे। हालांकि उनके पीरियड में हम पढ़ते जरूर थे। मेम के ना होने पर सबसे ज्यादा कोई परेशान हुआ था तो वह निशांत सर थे क्योंकि उन्होंने पहली और आखरी बार यह गलती कर दी थी की उसने मेरी साइंस की टेक्स्टबुक पढ़ने के लिए ली थी और में हररोज उससे मांगती पर वह दे नहीं पाते क्योंकि वह टेक्स्टबुक दीपिका मेम की डेस्क में थी। में सोचती की क्या मेम ताला लगाकर गए होंगे की वह बुक नहीं निकाल पाए। आखिर मेरा इंतजार खत्म हुआ । एक दिन सर वह बुक मेरे हाथ में थमा गए स्माइल के साथ। मुझे बुक की नहीं परंतु इस बात का ख्याल आया की क्या मेम आए थे क्या?

हम सब गौरव सर का पीरियड में बैठे थे। तभी अचानक से मेम आए वह इनफॉर्मल कपड़ो में मतलब साड़ी की जगह ड्रेस पहने हुए बिलकुल डिफरेंट। झारा तो कहने लगी की मेम डोल जेसे लग रहे थे। हम सब खुश भी थे और सरप्राइज्ड भी। मेम की आवाज़ कई दिनों के बाद उस क्लास में गूंजी।
" देखो, आप सबके वीकली टेस्ट के पेपर्स में देने आई हूं और आप के फाइनल एक्जाम का पेपर भी में ही निकालूंगी और चेक भी में ही करूंगी , डॉन्ट वरी। बेस्ट ऑफ़ लक फॉर एक्जाम। " कई दिनों के बाद मुझे प्रभावित करने वाली इंग्लिश वर्ड्स वाली स्पीच सुनाई थी। तभी अचानक से आवाज़ आई ," मेम ले लोना।" यह पतली सी आवाज़ माही की थी। मेम ने कहा ," क्या?" " आप एक लेक्चर ले लो ना।" मेने वाक्य खत्म किया। मेम ने क्यूट सी स्माइल देकर कहा ," अरे .. नहीं" कहकर वह चले गए। हम सब को यकीन नहीं आया की मेम सच में आए थे। अब हम समझ गए थे की हम मेम से मिलेंगे जरूर कभी न कभी।

***


हम सब हमेशा मेम का इंतजार करते की वह कभी न कभी आयेंगे। वह दिन आ गया।
अजंता टीचर पीरियड ले रहे थे। वह हमे पढ़ने का बोलकर बेंच में बैठे थे। हम सब भी थोड़ी बाते करते करते पढ़ते थे तभी खिड़की के पास बैठी हुई झारा ने मेम को देखा और उसने तुरंत कहा ," उरी, मेम अभी ऑफिस में गए। वह अभी बहार निकलेंगे।" मेने जब देखा तो मेम गायब हो गए थे।
थोड़ी ही देर के बाद वह फिर से निकले और हम सब ने देखा। " जाना उरी, मेम से मिल लो।" " हा जाओ ना, फिर मेम को क्लास में ले आना। " " मेम चले जाएंगे, जल्दी करो" " सोच क्या रही हो?" झारा, माही , क्रिशा, खुशालि ने सब कहने लगे पर में सोच रही थी की में जाऊ या नहीं । मेने अजंता टीचर से पूछा। उन्होंने कहा," आपकी मर्ज़ी, आपको जाना हो तो जाओ।" में अभी सोच ही रही थी की इतने में हर्षित दौड़कर निकल पड़ा क्लास के बाहर मेम के पास। " देखो, यह तो चला गया।" झारा ने कहा और में भी चल पड़ी।

मेम हमे ऐसे फिल्मी एक्शन की तरह दौड़कर देख कर खुश हो गए। में जब पहुंची तो मेम अपना कॉन्टैक्ट नंबर हर्षित को लिखवा रहे थे। " आप दोनों आना मेरे घर। तुम दोनों ने देखा तो है ही यहां किसको अच्छा नहीं लगेगा मिलना , जेलेसी के कारण । आप अब जाओ।"

हम चले गए। मेम भी चले गए। हम दोनों भी खुश थे पर कुछ पलों के लिए। हम जेसे ही क्लास मे गए की पीरियड खत्म होने का घंट बज गया। हम सब मेम की बातें करने में मशगूल हो गए तभी मेना टीचर वही पुराने गुस्से से आए और मुझे और हर्षित को प्रिंसीपाल की ऑफिस में ले गए। हम दोनों को कोई डर नहीं था बल्कि हम मुस्कुरा रहे थे की हम मेम से तो मिल पाए। ऑफिस में लखन सर थे वह भी गुस्से में अजंता टीचर के साथ।

" आप दोनों चल रही क्लास से टीचर के मना करने के बावजूद क्यों निकल गए?
कोई उत्तर नही।
" आपको मालूम नहीं की टीचर पढ़ा रहे हो तो उनकी परमिशन के बिना क्लास के बाहर नहीं निकलते? और दीपिका मेम ने रिजाइन देकर चले गए आप उनसे इस तरह नहीं मिल सकते। "
हमने कोई उत्तर नहीं दिया।
" अब जाओ, क्लास में। फिर कभी क्लास से बाहर मत निकलना।"

हम दोनों डर तो गए पर उतने नहीं जितना डरना चाहिए। क्लास में सब से ऑफिस की बात कही और हमने इसे इग्नोर कर दिया। हमे कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि मेम तो हमारे साथ थे न।

***

परीक्षा का माहौल था। सब सब्जेक्ट्स के सिलेबस खत्म हो चुके थे, बुक भी चेक हो गई थी तभी नई पेपरस्टाईल आए जिसमे कई ऐसे टॉपिक्स थे जो हमारे अभ्यासक्रम में नहीं थे। कुछ टीचर्स न्यू पेपरस्टाइल के अनुसार पेपर निकालेंगे तो कुछ पुरानी से। सब विषय के प्रश्न का सॉल्यूशन हो गया था सिर्फ इंग्लिश का बाकी था क्योंकि मेम नहीं थे। मेम एक - दो बार स्कूल आ गए थे तो मैने सोचा की अगली बार मेम आएंगे तभी पूछ लुंगी पर क्या हुआ जब रिसेस का वक्त होने वाला था तभी मेम आए और घंट बजते ही में दौड़कर बाहर आई की मेम की गाड़ी स्कूल के बाहर गई। मुझे बहुत बुरा लगा की मेम जानते हुए की हम उनसे मिलना चाहते थे फिर भी चले गए। इसलिए मैने मेम को कॉल , मैसेज सब कुछ ट्राय किया पर कोई उत्तर नहीं मिला। मुझे फिक्र सिर्फ इस बात की थी जो टॉपिक्स हमने नहीं पढ़े वह पूछे गए तो क्या होगा? स्पेशियली मेरे फ्रेंड्स को तो नहीं आते तो में उनके लिए कोशिश करती रही।

दूसरी बार मेम छूटी के समय मतलब 12:30 बजे आए। पिछली बार की तरह वह अभी भी जाना चाहते थे पर में जल्दी से वहा पहुंच गई पर मेम पहले की तरह नहीं मुस्कुराए और जेसे जल्दी में हो वैसे मुझे ओल्ड पेपरस्टाइल कहकर चले गए। और आगे जाकर दूसरे स्टूडेंट्स जो 12th के थे उनसे बात की। मुझे बहुत बुरा लगा की वह हमे अवॉइड क्यों कर रहे थे। फिर भी मुझे मेम की बात पर पूरा विश्वास था।

स्कूल के ट्यूशन में जब न्यू पेपरस्टाइल लिखवाई तो मैने भी कह दिया की मेम ने कहा है की वह ओल्ड पेपरस्टाइल ही अपनाएंगे। मेने सर की बात तक नहीं मानी जब उन्होंने कहा," लिख लो, काम आएंगी, अगर आपके मेडम न्यू पेपरस्टाइल से निकलेंगे तो?" मैने सर की बात नहीं मानी बल्कि सभी स्टूडेंट्स को भी कह दिया की मेम ओल्ड पेपरस्टाइल में ही पेपर निकालेंगे।

* * *


एक दिन अचानक से मेम ने व्हाट्सएप पर फोटो भेजा। मैने खोल कर देखा तो वह न्यु पेपरस्टाइल थी। में समझ गई की मेम न्यु पेपरस्टाईल में ही पेपर तैयार करेंगे। ट्यूशन सर की बात सच हो गई। फिर एक बार मुझे बुरा लग गया। मैने इसे भी अपना लिया। सबको कह दिया पर अब प्रोब्लम यह थी न्यू पेपरस्टाइल में कुछ टॉपिक्स करीब 10 -15 मार्क्स के ऐसे थे जो पुराने सिलेबस में नहीं थे इसलिए मेम ने नहीं पढ़ाए थे। अब दूसरे सब्जेक्ट्स में भी ऐसा था पर सर या टीचर ने उनका सॉल्यूशन दे दिया था पर इंग्लिश का क्या करे? में तो फिर भी पढ़ सकती थी पर मेरे फ्रेंड्स का क्या? इसलिए मैने मेम को पूछने की कोशिश जारी रखी।

कई कॉल और मैसेज के बाद मेम फोन रिसीव किया और वह गुस्से में थे। शायद मैने उसे डिस्टर्ब कर दिया था। उसने सिर्फ इतना ही कहा," आपको जितना मैने सिखाया है उतना ही पूछा जायेगा। आप किसी भी सिलेबस के आधीन रहेंगे तो कभी आगे नहीं बढ़ पाओगे।" और फोन कट हो गया।

दूसरे दिन हमारे क्लास में प्रणव सर और लखन सर आए गुस्से में। हम सब गुड मॉर्निंग कहने के लिए खड़े हुए तो बैठने के लिए भी नहीं कहा। गुस्से में पूछने लगे,
" आपमें से कौन मेम के घर के आसपास रहता है?" किसी ने हाथ नहीं उठाया।
" हमे पता है की आप ही में से कोई उस और गया था कोई भी काम से। सच सच बताओ।" और गुस्से से पूछा। फिर भी कोई उत्तर नहीं। सिर्फ एक लड़का वहा रहता था पर वह कहीं नहीं गया था।
" हमे सब कुछ पता है की कौन गया था और क्यों गया था। मेडम के घर के बाहर कैमरा लगे हुए है। अगली बार एसी कोशिश न करें ।"
सर जेसे आए थे वैसे ही चले गए।

यह सब हमारे समझ के बाहर था। हमे कुछ भी नहीं पता था कौन कहा गया था। पर में सिर्फ इतना जानती थी की मैने सिर्फ कॉल किया था और वह ही...

थोड़ी देर के बाद तृषा टीचर आए और कहने लगे, " आप में से कौन ऐसा था एडवांस? किसने कहा था की मेम को फोन करने को? मेडम ने साफ मना किया था की आपको कुछ भी imp ना दे फिर भी हमने दिया पर आप किसके लायक ही नहीं हो।"

"मेडम कौन था या कौन थी?" निखिल ने पूछा जेसे उसे अंदाज़ा हो गया था की किसने फोन किया था।

"जिसको कहा है उसे समझ में आ गया।"

और मेम चले गए। में तो स्तब्ध रह गई की क्या से क्या हो गया अब कोई फायदा नहीं था मेम के साथ कोई भी बात करने का। मेरे समझ में कुछ नहीं आ रहा था की कौन हमारे खिलाफ था या कौन सही और कौन गलत। पर मैने सिर्फ मेम ने जो फोन में कहा उन पर ही विश्वास रखा चाहे कुछ भी हो मेम गलत नहीं होंगे ऐसा सोच कर मैने परीक्षा की तैयारी की।

* * *

परीक्षा शुरू हो गई एक के बाद एक पेपर आने लगे। मुझे सिर्फ इंतजार था इंग्लिश के पेपर का यह देखने के लिए की कौन सही था मेम या तृषा टीचर? पेपर आया और मुझे नाराज भी कर दिया और गुस्सा भी दिला दिया की पेपर में वह भी प्रश्न थे जो हमको नहीं सिखाए गए थे और तृषा मेम सही थे। में प्रश्न भी समझ नहीं पाई तो उत्तर तो कैसे लिख सकू ऐसी परेशानी न हो इसलिए मैने इतना सबकुछ किया था पर सब व्यर्थ था। जिस पेपर के कारण मेरा भरोसा टूटा उन पर मुझे बहुत गुस्सा आया और मुझे यह पता था की यह पेपर मेम के पास जाने वाले थे। इसलिए मैने पेपर पर लिख दिया " आई हेट थिस पेपर" एक छोटा सा सेंटेंस पूरे आंसर शीट के नीचे लिख दिया बिना यह सोचे की इसका अंजाम क्या होगा और यह तो भगवान ही जाने।

दूसरे दिन जब मेम आए तो 'हाला' ने मुझे बताया की मेम आए मेने उसे गुस्से से कह दिया की चुपचाप पेपर लिखो और मेने मेम की तरफ एक नजर भी नहीं डाली और पेपर लिखने लगी।