Devil Ceo's Sweetheart - 28 in Hindi Love Stories by Saloni Agarwal books and stories PDF | डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 28

Featured Books
Categories
Share

डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 28

अब आगे,

 

रूही रोते हुए अपने कमरे मे चली गई और वहा अपना मुंह धोकर अपने कपड़ो को ठीक कर के फिर से बाहर आ गई और उस की सौतेली मां कुसुम ने अब अपनी सौतेली बेटी रूही को कुछ रुपए देते हुए उस से कहा, "ये ले 500 रुपए और इस मे से तुझे 5 किलो आटा और 5 किलो चावल लाने है और बाकी बचे रुपए से आते हुए सब्जी और फल बगेरा भी लेती आना और शाम होने से पहले पहले घर आ जाना नही तो तेरी टांगे ही तोड़ के रख दूंगी, समझ में आया तुझे...!"

 

अपनी सौतेली मां कुसुम की बात सुन कर अब रूही ने अपना सिर हां मे हिला दिया और घर में रखा हुआ बड़ा सा थैला लेकर घर से बाहर निकल गई..!

 

और जैसे ही रूही ने शर्मा निवास से बाहर कदम निकला ही था कि उस को देख कर उस के मोहल्ले वाले देखते ही रह गए क्योंकि आज वो किसी पर भी अपने खूबसूरती से बिजली गिराने के लिए तैयार थी..!

 

वैसे तो रूही ने अपने लंबे घने बालो को बांध कर गूंधने वाली चोटी बना ली थी पर फिर भी वो उस की कमर तक आ रहे थे, आज उस ने अपने कानो मे उस की सगी मां सरस्वती के दिए हुए कुंडल और एक लोकेट भी पहना हुआ था..!

 

जो वो तब से है जब वो पांच साल की थी पर वो उस को तभी पहनने को दिया जाता था जब उस के सगे पिता अमर घर पर होते थे नही तो वैसे ये रूही की सौतेली मां कुसुम के पास ही रहते था..!

 

और उस ने हाथो में चूड़ियां पहनी हुई थी और माथे पर एक छोटी सी लाल बिंदी लगाई हुई थी और आंखो मे काजल और होठों पर हल्का सा लिप बाम लगाया हुआ था..!

 

और पैरो में पायल के साथ आज उस ने पंजाबी जूती पहनी हुई थी और बस इतने से सिंगार से ही हमारी रूही अब लोगो पर अपना कहर बरसाने को तैयार थी..!

 

रूही को आज हर कोई मुड़ मुड़ कर देख रहा था जिस से रूही को अजीब सा लग रहा था और आज मंगलवार होने की वजह से सारी दुकानें बंद होती थी..!

 

और सड़क पर भी कुछ लोग ही नजर आ रहे थे क्योंकि अभी दुपहर का ही समय है फिर जो लोग वहा मौजूद थे उनकी नजर सिर्फ और सिर्फ आज हमारी रूही पर ही टिकी हुई थी..!

 

बीस मिनट बाद,

 

राशन वाले की दुकान तक पहुंच ने मे ही करीब बीस मिनट लग गए थे क्योंकि राशन वाले की दुकान, रूही के घर से बहुत दूर थी और उस को पैदल ही जाना था फिर रूही ने वहा पहुंच के देखा कि आज तो उन अंकल की दुकान ही बंद है तो रूही ने वहा पर खड़े एक दादा जी की उम्र के आदमी से पूछा, "दादा जी ये दुकान बंद क्यू है..?"

 

रूही की बात सुन कर अब उन दादा जी ने रूही से कहा, "बेटा इस दुकानदार की बेटी की आज सगाई हो रही है इसलिए बनारस से बाहर गया हुआ है..!"

 

दादा जी की बात सुन कर अब रूही ने उन दादा जी से पूछा, "तो अब कब तक आकर दुकान खोल लेंगे ये अंकल...?"

 

रूही की बात सुन कर अब वो दादा जी, रूही को देखते हुए हंसने लगे तो रूही उन को ऐसे देखने लगी जैसे उन से पूछ रही हो कि उन को क्या हो गया..!

 

रूही को अपनी ओर हैरानी से देखते हुए अब उन दादा जी ने अपने आप को शांत करा और अब रूही से कहा, "अरे बेटा, मैने कहा है कि वो बनारस से बाहर गया है और आज उस की बेटी की सगाई है तो अब ये कल रात तक तो खुद ही आएगा फिर परसो दुपहर तक ही दुकान खोल पाएगा...!"

 

दादा जी की पूरी बात सुन कर, रूही के आंखो से अंशु आ गए क्योंकि अगर वो बिना राशन के घर गई तो उस की सौतेली मां कुसुम उस के साथ कुछ भी कर सकती थी..!

 

रूही के आंखो में आंसुओ को देख कर अब दादा जी ने उस से पूछा, "क्या हुआ बेटी, तुम ऐसे रो क्यू रही हो.?"

 

उन दादा जी की बात सुन कर अब रूही ने उन से रोते हुए कहा, "मुझे राशन आज के आज ही चाहिए नही तो हम क्या खायेंगे..!"

 

रूही की बात सुन कर अब उन दादा जी को भी रूही पर तरस आ था तो अब उन दादा जी ने रूही का मन बहलाते हुए उस से कहा, "अरे इस मे रोने की क्या बात है बच्चा, ये इकलौता राशन वाला थोड़ी है..!"

 

दादा जी की बात सुन कर अब रूही ने बड़ी मासूमियत से उन दादा जी से पूछा, "पर दादा जी अब मै कहा पर राशन लेने जाऊं, क्योंकि एक यही तो राशन की दुकान है जो आज मंगलवार को भी खुलती है नही तो आज के दिन सारी राशन की दुकान बंद ही होगी..?"

 

रूही की बात सुन कर अब उन दादा जी ने अब रूही से कहा, "बेटा एक दुकान है तो पर वो बहुत दूर हाइवे की तरफ है पर मैं यकीन के साथ के सकता हु, वो जरूर से खुली हुई होगी क्योंकि वो बाहरो महीने खुली रहती हैं एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब उस से अपनी किराने की दुकान न खोली हो..!"

 

उन दादा जी की पूरी बात सुन कर, अब रूही ने झट से अपने अंशु पोशते हुए उन दादा जी से पूछा, "क्या सच में और ये हाइवे का रास्ता कौन सा है, क्या आप मुझे बता सकते हैं..?"

 

रूही की बात सुन कर अब दादा जी ने रूही से कहा, "अरे बताना क्या, मै तुझे लेकर ही चलता हूं और मुझे वहा कुछ काम है तो तुझे छोड़ कर फिर मैं वहा से आगे निकल जाऊंगा..!"

 

दादा जी की बात सुन कर अब रूही खुशी खुशी उन दादा जी के साथ जाने को तैयार हो गई और वो दोनो हाइवे वाली किराने की दुकान के लिए पैदल ही निकल गए..!

 

To be Continued......

 

हेलो रीडर्स, यह मेरी पहली नोवेल है। कृपया इसे अपनी लाइब्रेरी में जोड़ें, मेरी प्रोफाइल को फॉलो करे और कमेंट्स, रिव्यू और रेटिंग के साथ मुझे अपना सपोर्ट दे। अधिक जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी पहली नोवेल "डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट" और अगला भाग केवल "मातृभारती" पर।