अब आगे,
अब रूही के सगे पिता अमर ने अपनी चाय पी और फिर अपने कमरे मे जाकर नए कपड़े पहन कर जल्दी से तैयार हो गए और फोन पर बताई हुई जगह पर पहुंचने के लिए अपने घर से निकल पड़े..!
और रूही की सौतेली मां कुसुम उन्हे शर्मा निवास के दरवाजे तक छोड़ने के लिए गई और फिर रूही के सगे पिता अमर के जाने के बाद, रूही की सौतेली मां कुसुम दनदनाते हुए अपनी सौतेली बेटी रूही के कमरे में पहुंच गई..!
और अब अपनी सौतेली बेटी रूही के बाल पकड़ते हुए उस से कहने लगी, "क्यू री करमजली बाप के आते ही तेरे पर निकल आ गए हैं जो हमारे लिए बनी मटर पनीर की सब्जी और परांठे चटकारे लेते हुए खा रही थी...!"
अपनी सौतेली मां कुसुम के ऐसे बालो से पकड़ने से अब रूही को बहुत ज्यादा ही दर्द होने लगा क्योंकि उस के बाल अभी गीले ही थे और अब रूही ने रोते हुए अपनी सौतेली मां कुसुम से कहा, "मां, वो तो पापा ने कहा था कि आप ने ही दिए हैं इसलिए खा लिए थे मैने...!"
अपनी सौतेली बेटी रूही की बात सुन कर अब उस की सौतेली मां कुसुम ने अपनी सौतेली बेटी रूही से कहा, "अच्छा, तू तो ऐसे कह रही है जैसे मै तुझे मटर पनीर की सब्जी रोज खिलाती हु, तुझे याद है या भूल गई कि तू जब पांच साल की थी तब मै इस घर में तेरी सौतेली मां बन कर आई थी जब से तुझे तेरे पसंद की कोई चीज दी है जो अब दे दूंगी...!"
फिर रूही की सौतेली मां कुसुम ने अपनी सौतेली बेटी रूही को जमीन पर धाका दे दिया और अपनी सौतेली बेटी रूही से कहा, "जा जाके छत से कपड़े लेकर आ आज तेरी वजह से मेरी फूल सी बच्ची रीना को इतने सारे कपड़ो को छत पर सुखाने जाना पड़ा, उस से तो चला तक नही जा रहा है, हल्दी वाला दूध दिया तब जाके सोई है मेरी बच्ची, और ये सब सिर्फ तेरी वजह से हुआ है..!"
और अपनी बात कह कर अब रूही की सौतेली मां कुसुम ने अपनी सौतेली बेटी रूही के हाथ की हथेली पर अपने पैर को चप्पल के साथ रख कर अपनी सौतेली बेटी रूही के हाथ को दबाने लगी जिस से रूही के आंखो से अंशू बहने लगे और अब रूही ने रोते हुए, अपनी सौतेली मां कुसुम से कहा, "मां, मुझे छोड़ दो, मुझे दर्द हो रहा है..!"
अपनी सौतेली बेटी रूही की बात सुन कर अब रूही की सौतेली मां कुसुम ने अपनी सौतेली बेटी रूही से कहा, "अच्छी बात है होना भी चाहिए क्योंकि आज तेरी वजह से मेरी कमर में लचक आ गई है तो तुझे इतनी आसानी से तो नहीं छोड़ सकती हूं जब तक तेरे से अपना हिसाब पूरा न कर लू...!"
फिर थोड़ी देर बाद,
रूही की सौतेली मां कुसुम ने अपना पैर अपनी सौतेली बेटी रूही के हाथ से हटा लिया और अब अपनी सौतेली बेटी रूही से कहा, "जा अब जल्दी से घर के सारे काम निपटाने में लग जा और फिर मेरे और मेरी फूल सी बच्ची रीना के लिए कुछ अच्छा सा बना, चल जल्दी से काम पर लग जा..!"
अपनी बात कह कर अब रूही की सौतेली मां कुसुम, अपनी सौतेली बेटी रूही के कमरे से निकल गई और साथ में रूही को बहुत रोना आ रहा था फिर उस ने अपने अंशु पोश लिए थे पर क्या भी क्या सकती थी उस को दर्द बहुत ज्यादा ही हो रहा था और ऊपर से सारे काम भी उस को ही करने थे जबकि जिस हाथ पर चोट लगी है वो उस का सीधा ही हाथ था...!
रूही जैसे तैसे कर के छत पर से सारे कपड़े ले आई और कुछ की तह बना के रख दिया और बाकी प्रेस वाले अलग कर के रख दिए और उस के बाद घर सारे काम निपटाने के बाद अब रसोई घर में जाकर पहले बर्तन के ढेर को निपटाया और फिर एक कप चाय बनाकर अपनी सौतेली मां कुसुम को देकर आई..!
फिर रसोई में दुबारा जाकर आटा मलने के लिए जैसे ही डब्बे को खोला तो उस मे आटा नही था और न ही चावल के कनस्तर में चावल बचे हुए थे तो अब वो डरते डरते अपने सौतेली मां कुसुम के पास पहुंच गई..!
रूही की सौतेली मां कुसुम ने जब अपनी सौतेली बेटी रूही को बिना खाना बनाये ही आता देखा तो अब रूही पर गुस्सा करते हुए उस से कहने लगी, "क्यू री करमजली अब तक खाना क्यू नही बनाया और यहां क्यू आ गाई है..!"
अपनी सौतेली मां कुसुम की बात सुन कर अब रूही ने अपनी सौतेली मां कुसुम से कहा, "वो...वो आटा खत्म हो गया है और चावल भी नही बचे हैं..!"
अपनी सौतेली बेटी रूही की बात सुन कर अब रूही की सौतेली मां कुसुम ने अपनी सौतेली बेटी रूही से कहा, "वो तो होगा ही जब तू हमारे हिस्से का खाना भी खा लेगी तो..!"
अब रूही ने डरते हुए अपनी सौतेली मां कुसुम से कहा, "मां आप राशन ला दो...!"
अपनी सौतेली बेटी रूही की बात सुन कर ही अब रूही की सौतेली मां कुसुम, अपनी सौतेली बेटी रूही के मुलायम गालों पर एक चाटा मार दिया जिस से रूही जमीन पर गिर गई..!
और अब रूही की सौतेली मां कुसुम ने अपनी सौतेली बेटी रूही से कहा, "एक तो करामजली ने आज मेरी कमर ही तोड़ दी और ऊपर से मेरी फूल सी बच्ची रीना के पूरे शरीर में दर्द हो रहा है, राजू भी घर पर नही है और तेरा बाप भी रात तक घर आएगा और मैने सुबह से कुछ नही खाया है और तू कह रही हैं कि मै दो घंटे लाइन मे भूखे प्यासे खड़े होकर राशन लेकर आऊ और जा जाकर अपना हुलिया ठीक कर के आ और राशन वाली दुकान से राशन लेकर आ और हां राशन लेकर ही आना चाहे कितना भी समय लग जाए, समझ में आया तुझे...!"
अपनी सौतेली मां कुसुम की बात सुन कर अब रूही रोते हुए अपना सिर हां मे हिला दिया और अपने कमरे में चली गई..!
To be Continued......
हेलो रीडर्स, यह मेरी पहली नोवेल है। कृपया इसे अपनी लाइब्रेरी में जोड़ें, मेरी प्रोफाइल को फॉलो करे और कमेंट्स, रिव्यू और रेटिंग के साथ मुझे अपना सपोर्ट दे। अधिक जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी पहली नोवेल "डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट" और अगला भाग केवल "मातृभारती" पर।