गुलकंद
पार्ट - 7
उसके सीने से लग, अवश सी अन्नी रोए जा रही थी। उसको सांत्वना देता वीरेश खुद भी बहुत परेशान था। उसके घर को जैसे कोई श्राप सा लग गया था। मानो हाथ में पकड़ी हुई चीजें गायब हुई जा रही थीं... अभी कहीं कुछ रखा, फिर वहाँ कुछ नहीं है। जैसे जादू का कोई शो चल रहा हो। किचन के सामान, कपड़े, पेन... मोबाईल चार्जर... और आज तो अन्नी की आलमारी से पच्चीस हजार रूपये कैश गायब हो गये हैं। चीजें यदि गलती से इधर-उधर रख दी जाएँ तो समय पर भले न मिलें, बाद में तो मिल ही जानी चाहिए? नहीं मिलने का अर्थ है घर में चोरियाँ हो रही हैं। पर रानी के अलावा और तो कोई खास आता-जाता भी नहीं है घर में.. और मन है कि रानी को चोर मानने को तैयार ही नहीं था। पिछले दिनों यूँ ही अन्नी ने उससे पूछा भी था.. शायद कोई नई जरूरत... या किसी तरह की जिम्मेदारी बढ़ गई हो उसके ऊपर! पर वैसा तो कुछ भी समझ में नहीं आया। इतने सालों में तो कभी एक सिक्का तक गायब नहीं हुआ है? फिर यह सब कौन कर रहा है? अम्मा? पर वह क्यों करेंगी? दिन भर एक कमरे में पड़ी रहती हैं। लिफ्ट के डर के मारे नीचे तक नहीं जातीं... कहाँ खर्च करेंगी इतने पैसे?.. तो क्या प्रांशु? वो तो बच्चा है.. पर उससे क्या! कमरे से बेदखल हो जाने के बाद से नाराज रहता है। इस उम्र के बच्चों को बिगड़ने में कोई समय लगता है? पता करना होगा किस तरह के बच्चों से दोस्ती कर रहा है आजकल! वैसे जबसे उससे उसका कमरा छिना है, उसने अपने किसी दोस्त को घर में बुलाया तक नहीं है।
"थोड़ा पेशेंस के साथ खोजोगी तो मिल जाएगा... उस पैसे को कोई पैर तो है नहीं जो टहलकर घर से बाहर निकल जाएगा!" अन्नी को सांत्वना देते वीरेश को अपनी आवाज खोखली सी लग रही थी... चश्मे और रूमाल चुराकर रानी या प्रांशु क्या कर रहे हैं? बहुत दिनों से नया टीवी लेने की इच्छा थी..बहुत सारी जरूरतों और इच्छाओं पर लगाम लगाकर जोड़े थे ये पैसे... इस तरह कैसे जा सकते हैं? इस घाटे की भरपाई कैसे होगी? रानी से किस तरह बात करना ठीक रहेगा? अगर उसे निकाल देना पड़ा तो घर का काम कैसे चलेगा? शायद उसने स्वयं ही गलती कर दी... टीवी के लिये ऑनलाइन पेमेंट भी तो कर सकता था, फालतू में कैश ड्रा किया।
प्रांशु शौक से टीवी पर कोई पौराणिक कथा देख रहा था। यह कहानी उसके कोर्स में भी है। हिंदी उसके लिये हमेशा ही एक मुश्किल विषय रहा है अतः यह उसकी स्टडीज के एक पार्ट जैसा था। पर वही हुआ जो आजकल हमेशा हो रहा है... टीवी पर एकाएक लाल नीली लाइनें आनी शुरू हो गई... पिक्चर गायब हो गई। प्रांशु ने गुस्से से रिमोट पटक दिया था। वह सोच में पड़ा था.. इस समय बच्चे को डाँटना चाहिए या समझाना.. कि अचानक अम्मा ने कहानी का छूटा हुआ सिरा थाम लिया। फिर तो वह इतने मनोयोग से, डूब कर कहानी सुना रही थीं कि प्रांशु ही नहीं, वह भी रस में सराबोर हो गया। कहानी पूरी होने पर प्रांशु ने किलक कर पूछा, "दादी, क्या आप मुझे हिंदी पढ़ाओगे?" अम्मा का चेहरा उतर गया था पर तबतक वीरेश ने बातों का सिरा थाम लिया... "क्यों नहीं पढ़ाएँगीं दादी, पर क्या तुम उन्हें रोज शाम को नीचे लाॅन में ले जाओगे?" उसे पता था कि अम्मा अनपढ़ थीं पर यदि वह उन्हें पढकर सुना दे तो वह उन कहानी-कविताओं को बहुत खूबसूरती के साथ, बार-बार सुना कर प्रांशु को याद तो करा ही सकती थीं? फिर लिफ्ट पर चढ़ने का अभ्यास उन्हें कभी न कभी तो करना ही होगा, कबतक कोई जेल में बंद रह सकता है? इस बहाने अगर दादी-पोते के संबंधों में कुछ सहजता आ जाय तो कई समस्याओं का समाधान भी तो हो जाएगा!
वैसे इन समस्याओं का समाधान निकलना इतना आसान नहीं दिखाई देता था। अम्मा के स्वभाव की चिड़चिड़ाहट बढ़ती चली जा रही थी। अभी अन्नी ने मुँह से कुछ कहा भले ही नहीं था पर उसके सब्र का बाँध भी टूटता दिख रहा था। कितने दिन चलेगा ऐसा? अन्नी के व्यवहार में भी परिवर्तन आ गया तो कैसे चलेगा? उसको दोष भी तो नहीं दिया जा सकता अगर अम्मा की तरफ से किसी भी तरह की सुलह की कोई संभावना नहीं दिखाई देती हो। अगर जो पहले दिन से ही वह अम्मा के हाथ के नीचे रही होती तो फिर भी शायद दबकर रहना सीख गई होती पर यहाँ तो यह उसकी इतने सालों की सफल गृहस्थी में सीधी-सीधी घुसपैठ है। अन्नी का उनके सामने पति से बात कर लेना, सूट और जीन्स पहनना... हर चीज पर अम्मा की पैनी नजर रहती और हर बात में बोलना उनकी आदत बनती जा रही थी। आर्थिक रूप से भी स्वावलंबी अन्नी से दिन भर ताने-उलाहने सुनकर चुपचाप काम करते रहने की असंभव सी आशा लगाना भी तो गलत होगा। अम्मा चाहती तो सबकुछ हैं पर उसके लिये कर कुछ भी नहीं रही हैं। पूरा का पूरा दिन एक कमरे में बैठकर निरर्थक काट रही हैं यद्यपि अभी उनकी उम्र कोई बहुत ज्यादा तो हुई नहीं है। जिंदगी भर कड़ी मेहनत किया हुआ शरीर है.. उसे इस तरह गिरा कर क्या मिलेगा? आपको कुछ करते रहकर दूसरों की नजरों में महत्वपूर्ण बनना पड़ता है, तभी इज्जत मिलती है पर यह बात अम्मा को कौन समझाए? वैसे उन्हें कुछ भी समझाने-सुधारने की जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ उसी की है। वही तो है जो अपने जीवन की दोनों अहम् औरतों के मन को अच्छी तरह समझता है। पर वह क्या करे यदि अम्मा अन्नी को अपनाने को बिलकुल भी तैयार न हों? उन्हें गाँव से यहाँ लाना गलत तो नहीं हो गया? निकालता, तो हजारों रास्ते थे। किसी दाई-नौकरानी का इन्तजाम किया जा सकता था या किसी और उम्रदराज औरत को उनके साथ रखने की कोशिश की होती। कम से कम मकान और गाय बेचने का निर्णय इतनी जल्दबाजी में नहीं ही लेना था। जीवन कोरे आदर्शवादों की बिना पर नहीं चलता, समझ में आने लगा था।
सभी आलमारियों में लगाने के लिये ताले खरीदे पर कुछ कुंडियाँ इतने दिनों से उपयोग में न आने के कारण मरम्मत माँग रही थीं। उस दिन बैंक में छुट्टी थी तो सोचा यही काम निबटा लिया जाय। पेचकस तथा अन्य जरूरत के सामान निकालने के लिये बालकनी के पीछे की ओर स्थित वह हमेशा बंद और उपेक्षित रहने वाली आलमारी खोली तो अवाक रह गया वह... इतने दिनों से रोज खो रही लगभग सारी ही चीजें मौजूद थीं वहाँ! सामानों के नीचे दबाकर पचीस हजार रूपये भी रखे हुए थे। वीरेश सर पर हाथ रखकर वहीं बैठ गया। उसने एक दिन अम्मा को कहा था कि अन्नी गलतियाँ नहीं करती, कुछ बोलने का मौका नहीं देती तो यह सब करके अम्मा उसे अन्नी को डाँटने, जोर से बोलने का मौका दे रही हैं? अब क्या करे वह? अम्मा को जलील कर घर से निकाल दे या अन्नी को सब बताकर आँखों का बचा-खुचा पानी भी सुखा दे? एक बार फिर अकेले में बैठाकर अम्मा को समझाए या इस बार डराने-धमकाने का प्रयास करे.. या कोई हल न मिलने की परिस्थित में खुद ही घर छोड़कर कहीं चला जाए? खोया सामान वापस पाने की कोई खुशी नहीं हो रही थी। उसने आलमारी को पूर्ववत बंद कर दिया और अपने बिस्तर पर आकर लेट गया।
क्रमशः
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श्रुत कीर्ति अग्रवाल
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