The Author Sudhir Srivastava Follow Current Read देशप्रेम और देशभक्ति का पर्याय - चंदन माटी मातृभूमि की By Sudhir Srivastava Hindi Book Reviews Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books પ્રેમની એ રાત - ભાગ 8 મૂંઝવણ"શું વાત છે કેમ આમ ચુપચાપ બેઠો છે. કંઈ બોલતો નથી?? કંઈ... પ્રેમ થાય કે કરાય? ભાગ - 10 જાદુ" શું ભાઈ ટિફિનની વ્યવસ્થા કરી કે નહિ? " કૌશલ મોબાઈલ ચાર... ભાગવત રહસ્ય - 96 ભાગવત રહસ્ય-૯૬ મનુ મહારાજ-રાણી શતરૂપા અને દેવહુતિ સાથે-કર્... નવું વર્ષ નવા વિચાર નવું વર્ષ નવા વિચાર- રાકેશ ઠક્કર 'જેણે પોતાના જીવન પર ખ... ખજાનો - 63 એવામાં અબ્દુલ્લાહી જહાજ પરથી નીચે ઉતર્યા અને આજુબાજુ નજર ફેર... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share देशप्रेम और देशभक्ति का पर्याय - चंदन माटी मातृभूमि की 549 2.1k देशप्रेम और देशभक्ति का पर्याय - चंदन माटी मातृभूमि की ************** वरिष्ठ कवि डॉ. रवीन्द्र वर्मा जी की पुस्तक "चंदन माटी मातृभूमि की" कुछ माह पूर्व ही मुझे प्राप्त हो गई थी। लेकिन स्वास्थ्य कारणों से कुछ लिखने का विचार आगे बढ़ता रहा। अब जब नवोदय परिवार ने यह अवसर उपलब्ध कराया, तो थोड़ा विवश हो गया। जो अच्छा ही है कि एक विचार को अब साकार करने का समय आ ही गया। देशप्रेम और देशभक्ति रचनाओं का 177 पृष्ठीय 108 रचनाओं वाले काव्य संग्रह "चंदन माटी मातृभूमि की" को रचनाकार ने "अपने भारत राष्ट्र को समर्पित सभी बलिदानियों, देशधर्म व स्वतंत्रता को लड़े वीर क्रांतिकारियों, इस देश की अखंडता व स्वाभिमान के लिए जीवन समर्पित करने वाले सभी महान पुरुषों को श्रद्धावनत नमन करते हुए समर्पित किया है। विद्या वाचस्पति मानद उपाधि प्राप्त रवीन्द्र वर्मा के इस पुस्तक की भूमिका में केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा की निदेशक प्रो. बीना शर्मा के अनुसार रवीन्द्र जी का चिंतन इतना विस्तृत और विशाल है कि पहले पृष्ठ से एक एक पृष्ठ आगे बढ़ते हुए अंत तक सभी 108 रचनाओं को पढ़ते पढ़ते पाठक ऐसी दुनिया में खो जाता है, जो उसके लिए सर्वथा नई है, लेकिन दिल में भाव तो ऐसी दुनिया के ही हैं। छंदाचार्य ओम नीरव पुरोवाक् में मानते कि कृति के नाम के अनुरूप आपकी लेखनी से विविध विधाओं में राष्टृनुरक्ति का स्वर प्रखरता से मुखरित हुआ है। जिनमे मुख्य रूप से देशभक्ति, माँ भारती, भारत नव निर्माण, भारत उत्थान, जन जागरण, भारतीयता, सनातन संस्कृति, मानवीय नैतिक मूल्य, वीरों का उत्सर्जन आदि को वर्ण्य विषय बनाया गया है।आपकी सकारात्मक सोच को परिलक्षित करती है। अपने शुभकामना संदेश में युवा कवि साहित्यकार एडवोकेट डा. राजीव रंजन मिश्र बड़ी साफगोई से मानते हैं कि आपकी रचनाएंँ आत्मा की गहराई को छूती हैं।आपकी कलम हमेशा समाज के परिवर्तन, हमारे नैतिक व मानवीय मूल्यों की चेतना लाने, वीरों के बलिदानी गाथा पर मुख्य रूप से चलती है।आपकी कलम का हमेशा मैं मुरीद रहा हूँ। अभिमत में वरिष्ठ कवि/समीक्षक एवं लोक गाथाकार डा. ब्रज विहारी लाल 'विरजू' अभीभूत हैं कि एक सद्गृहस्थ की अनुकरणीय भूमिका निर्वहन करते हुए वर्मा जी सेवा निवृत्ति के उपरांत साहित्य सृजन में पूर्ण मनोयोग से संलग्न हैं। वरिष्ठ कवि/शिक्षक डा. ओम प्रकाश मिश्र 'मधुब्रत' अपने शुभकामना संदेश में 'मंगल- भाव मुक्तक'.. "चंदन माटी मातृभूमि की आदर पाये। भारत की माटी का गौरव चंदन बन जाये।।" देशभक्ति से ओतप्रोत रचना आदृत हो। कवि रवींद्र का यश- सौरभ दिग्दिगन्त में यह फैलाए।। ...से रवीन्द्र जी को अपनी शुभकामनाएं दी हैं। अंतरराष्ट्रीय कवयित्री/साहित्यकार/समाजसेवी प्रो0 ( डा0 ) शशि तिवारी," साहित्य भूषण " का मानना है कि अपनी रचनाओं में मानवीय मूल्यों को स्थापना करने की चिंता भी कवि ने की है। कवयित्री/ गीतकार डा. रुचि चतुर्वेदी, वर्मा जी के राष्ट्र निर्माण, माता भारती का वंदन और विश्व गुरु भारत की संकल्पना को समर्पित प्रत्येक शब्द को प्रणम्य मानती हैं। पतंजलि योग पीठ ट्रस्ट के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण अपने शुभकामना संदेश में विश्वास व्यक्त करते हैं कि यह पुस्तक देशवासियों के मानस में राष्ट्र के प्रति उत्साह व जोश भरेगी। ब्रज संवाद मासिक पत्रिका के संपादक श्री विजय गोयल अपने शुभकामना संदेश में लिखते हैं कि किसी भी राष्ट्र के निर्माण में इसी प्रकार के अनूठे और गतिशील प्रयास समाज को दिशा देने वाले और सामाजिक व्यवस्था में मानवीय मूल्यों को अधिक मजबूती प्रदान करने वाले होते हैं। 'अपने मन की बात' में अपनी जीवन यात्रा का उल्लेख करते हुए जीवन के झंझावातों, पारिवारिक जीवन में आई दैवीय आपदाओं, सेवाकाल में कवि हृदय के संकुचित होने, खट्टे मीठे अनुभवों, अवसादों के साथ अपने साहित्यिक अनुभवों संग अपने लेखन को मार्गदर्शन देकर सुधार कराने के साथ आगे बढ़ाने, पुस्तक प्रकाशन में सहयोग देने वालों /शुभचिंतकों/ भाषाविदों/साहित्यकारों के प्रति आभार व्यक्त किया है। साथ ही अपनी सृजन यात्रा और जीवन की अभिलाषा को कुछ यूं प्रकट किया है- धीरे धीरे चली लेखनी, विविध विधा अभिव्यक्ति सुहाई। नयी चुनौती नित गढ़ने की, इच्छा ने कुछ आश जगाई। यों जिज्ञासा बढ़ी सीखना, चलता रहा कलम के पथ पर। माँ वीणा की अनुकम्पा थी, क्या लिखवाया क्यों सहज कर।। यही चाहना है जब तक भी, साँस, कलम चलती यों जाये। लिखता रहूँ सहज हितकर हो, समाज और राष्ट्र जग जाये।। प्रस्तुत संग्रह की सभी रचनाएं छंदाधारित है। रचनाकार ने पाठकों,विशेष रूप से नवोदित रचनाकारों के लिए सभी रचनाओं के साथ यथा विधा, विधान,छंन्द, मात्राभार, यति, समांत, पदांत, आदि देकर इसे एक अद्वितीय कृति के रूप में पाठकों को भारतीय संस्कृति, इतिहास, और देशभक्ति के गहरे आयामों से परिचित कराने का सार्थक प्रयास किया है। पुस्तक का प्रत्येक पृष्ठ देशप्रेम और संस्कृति के प्रति सजीवता के चित्रांकन जैसा है। प्रभावशाली सहज और सरल भाषा शैली में प्रस्तुत कृतिकार ने अपने विचारों की काव्यात्मक अभिव्यक्ति को विभिन्न छंदों में बहुत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है, जिससे पाठकों को सहजता से सौंपा है। देश प्रेम और देशभक्ति में रची बसी रचनाएं ग्रहणीयता के भावपूर्ण संदेश से बाध्य करती हैं। सरल,सहज शब्दों के साथ चयन और उनके यथा स्थान प्रयोग के साथ मातृभूमि की महत्ता और उसके प्रति हमारी जिम्मेदारियों का वर्णन करने के साथ ही उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए हर किसी को जिम्मेदारी का अहसास कराने का उत्तम प्रयास किया है। अंत में माँ भारती की आरती हर किसी के साथ नई पीढ़ी के लिए विशेष रूप से ज्ञानार्जन संग समर्पण/ सम्मान की सीख जैसा है, जो उन्हें अपने देश और संस्कृति के प्रति गर्व और सम्मान का भाव जागृत करने वाली है। रवीन्द्र वर्मा जी का प्रस्तुत संग्रह देशप्रेम और संस्कृति के प्रति असीम श्रद्धा का द्योतक होने के साथ भारतीय संस्कृति, भारतीयता और इतिहास का सघन परिचायक है। साथ ही राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का भी बोध कराने के साथ इसकी महानता और उसकी पवित्रता को समझने और सँजोने का नैतिक सन्देश भी देती हैं। जवाहर प्रकाशन मथुरा से प्रकाशित राष्ट्रीय भावना का उदाहरण देता मुखपृष्ठ (जिसकी परिकल्पना और चित्रांकन डा. राजीव रंजन मिश्र जी ने किया है) के साथ सुंदर शानदार टिकाऊ साज सज्जा के साथ प्रस्तुत संग्रह का मुद्रण बेदाग होने के साथ पुस्तक की ग्राह्यता को देखते कीमत (₹400/-मात्र) महज प्रतीकात्मक ही कहा जाएगा , इसलिए भी कि पुस्तक नवोदित रचनाकारों को काफी कुछ सीखने सिखाने जैसा ग्रंथ सरीखा है। वहीं मेरा विचार है कि इस पुस्तक को कम से कम देश के सभी इंटर कालेज/ विश्वविद्यालय के साथ साथ सभी तरह के पुस्तकालयों में होना चाहिए। जिससे संग्रह का वास्तविक उद्देश्य सफल हो सके और रवींद्र जी का प्रयास सफल और सार्थक सिद्ध हो सके। उत्कृष्ट संग्रह 'चंदन माटी मातृभूमि की' नि:संदेह सफलता की शुभेच्छा के साथ रवीन्द्र वर्मा जी के श्रेष्ठ साहित्यिक जीवन की मंगल कामनाएँ...। सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश Download Our App