इस छोटी सी उम्र में दर्द का इतना बड़ा बवंडर अपने दिमाग में लिए आहुति स्कूल से घर के लिए निकली। रास्ते में एस टी डी बूथ पर रुककर उसने अपनी नानी को फोन लगाया।
फ़ोन उठाकर उसकी नानी पार्वती ने पूछा, "हैलो, कौन बोल रहा है?"
"हैलो नानी, मैं आहुति।"
"अरे, क्या बात है बिटिया? बाहर से फ़ोन क्यों कर रही हो? क्या हुआ है?"
"नानी, मुझे अकेले में सिर्फ़ आपसे कुछ बात करनी है, जो किसी और को पता नहीं चलनी चाहिए।"
पार्वती ने चिंतित स्वर में पूछा, "आहुति बेटा, ऐसी तो क्या बात है जो तुम इस तरह घर से बाहर आकर मुझे फ़ोन कर रही हो? तुम परेशान लग रही हो; मुझे बताओ, क्या बात है?"
नानी, मैं इस घर में नहीं रहना चाहती।
"नहीं रहना चाहती? आहुति, तुम ऐसा क्यों कह रही हो? तुम घर में क्यों नहीं रहना चाहती? बेटा, कोई परेशानी है क्या? क्या हुआ है? मुझे तुम्हारी चिंता हो रही है।"
"नानी, मैं आपको भी नहीं बताना चाहती थी, लेकिन फिर मेरा ध्यान कौन रखेगा? कौन मुझे पढ़ाएगा? मैं अकेली कहाँ जाऊँगी? पैसे कौन देगा? इन सब बातों को सोचकर मैं आपको बता रही हूँ। आपके अलावा मेरे लिए यह सब कौन कर सकता है?"
"आख़िर हुआ क्या है, आहुति? स्पष्ट शब्दों में बताओ।"
"नानी, मेरे असली पापा तो इस दुनिया में नहीं रहे। आप भी जानती हैं कि वे अच्छे इंसान नहीं थे। शराब पीकर वे मम्मा को कितना मारते थे। उनके बालों को ऐसे खींचते थे जैसे रस्सी पकड़ में उन्हें जीतना हो। मम्मा रोती थीं परन्तु उन्हें दया नहीं आती थी। वे मम्मा को कभी हाथ से, कभी लात से और कभी-कभी तो कमर के बेल्ट से भी मारते थे। नानी वह इतने बुरे क्यों थे? काश वह मेरी ही तरह मम्मी को भी प्यार करते और शराब नहीं पीते तो कितना अच्छा होता? नानी वह मुझे बहुत प्यार करते थे। मेरी पप्पी लेते थे तो मुझे उनका वह प्यारा-सा स्पर्श बहुत अच्छा लगता था। उनके स्पर्श में पिता का प्यार होता था और मुझे संरक्षण भी मिलता था। मुझे आज भी उनकी सब बातें याद है, फिर वह ज़हरीली शराब पीकर मर गए।"
आहुति को बीच में टोकते हुए पार्वती ने पूछा, "आहुति बेटा, ये सब तो मुझे पता है। तुम पहेलियाँ क्यों बुझा रही हो? बात क्या है सीधे वह बताओ कि तुम्हारे मन में घर छोड़ने का ख़्याल क्यों आया?"
अपनी नानी की बातों को नज़र अंदाज़ करते हुए आहुति ने फिर कहा, "नानी फिर आपने मेरी मम्मी की दूसरी शादी कर दी रौनक के साथ और मुझे नए पापा मिल गए। तब मैं बहुत खुश थी लेकिन नानी वह अच्छे पापा नहीं हैं। बचपन में मुझे कुछ नहीं समझता था किंतु अब मुझे उनका स्पर्श अच्छा नहीं लगता।"
"यह क्या कह रही है आहुति?"
"हाँ नानी मैं सच कह रही हूँ। मुझे उनसे बहुत डर लगता है। बचपन वाले स्पर्श में और आज के स्पर्श में बहुत अंतर आ गया है। नानी ऐसा क्यों होता है? नानी हम बड़े क्यों होते हैं? मैं तो उन्हें मेरे असली पापा जितना ही प्यार करती थी लेकिन वह मुझे असली पापा की तरह प्यार नहीं करते। उनके स्पर्श से मुझे घुटन होती है, गंदा लगता है।"
आहुति के मुंह से इस तरह की बातें सुनकर उसकी नानी सन्न रह गईं और उनके पैरों तले से ज़मीन खिसक गई। यह सब बताते समय आहुति की आवाज़ में समाये दर्द उसकी पीड़ा और सच्चाई को उसकी नानी महसूस कर रही थीं। वह सोच रही थीं, " यह तो बहुत ही बड़ी समस्या है। अब मैं क्या करूँ? किसी को बता भी नहीं सकती।" फ़ोन के उस तरफ़ सन्नाटा था।
पार्वती के पास कोई शब्द ही नहीं थे कि वह क्या बोलें। उस कड़वे सच को पचा पाना आसान नहीं था। उसका सामना करना और हल निकालना दोनों ही जटिल समस्याएँ थीं। पार्वती को इस समय लग रहा था कि मानो भीषण अग्नि की लपटों के बीच उनकी नातिन फंस गई है और उसे सही सलामत बाहर निकालना उनकी जिम्मेदारी है। यह भी एक अग्नि परीक्षा ही थी। यह सब बातें पल भर में ही पार्वती के दिलों दिमाग़ में विचरण करने लगीं। उन्होंने भी कमर कस ली कि वह साम दाम दंड भेद सब लगा देंगी और आहुति को बचा लेंगी।
तभी आहुति ने पार्वती से पूछा, "नानी आप मुझे बचा लेंगी ना?"
"हाँ मेरी बच्ची तू बिल्कुल चिंता मत कर, अब मैं तेरी ढाल बन चुकी हूँ। तू डर मत और घर जा, अपना ख़्याल रखना।"
"ठीक है नानी।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः