Pyaar Huaa Chupke Se - 27 in Hindi Fiction Stories by Kavita Verma books and stories PDF | प्यार हुआ चुपके से - भाग 27

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 27

शिव रति का पल्लू पकड़े हुए उसके पास आया और उसे अपनी बांहों में भरकर बोला- रति आज हमारी शादी को पूरे तीन महीने हो गए है और इन तीन महीनों में, मैं अपने काम की वजह से तुम्हें बिल्कुल भी वक्त नही दे पा रहा हूं, पर तुमने मुझसे इस बात के लिए कभी कोई शिकायत नहीं की। क्यों?

रति ने पलटकर उसकी ओर देखा और बोली- आप मेरे लिए उस चांद की तरह थे शिव। जिसे मैंने चाहा तो बहुत, पर कभी उसे पाने का ख़्वाब नही देखा क्योंकि मैं ये बात जानती थी कि आसमान में चमकने वाले चांद और धरती का मिलन कभी संभव नहीं हो सकता, पर फिर महादेव मुझ पर मेहरबान हो गए और उस रात उन्होंने हम दोनों की शादी करवा दी।

पर जब आप मुझे लेकर पहली बार अपने घर आए, तो मां...टीना.. और ओमी को छोड़कर हर कोई मेरे खिलाफ खड़ा था, पर आपने मेरा हाथ नहीं छोड़ा। बहुत सी ऊंगलियां उठी मेरी तरह, पर आपने सबको जवाब दिया इसलिए उस दिन मैंने तय कर लिया था। कि अब अगर मेरी जान जायेगी, तो आपकी बांहों में। बस इसलिए मैं आपसे कभी कोई शिकायत नहीं करती, क्योंकि डरती हूं कि कहीं मेरी कोई बात, आपके दिल में मेरे लिए प्यार कम ना कर दे और आप मुझे खुद से दूर ना कर दे।

कहीं मेरी कोई नादानी आपको नाराज़ ना कर दे, क्योंकि अब मैं आपके बिना जी नहीं सकती हूं। आपसे दूर रहने का ख्याल ही मेरी जान निकालने लगता है, इसलिए प्लीज़ शिव मुझसे कभी नाराज़ मत होना। मुझसे अगर कोई गलती हो जाए, तो मुझे जी भर के डांट लेना, पर मुझे खुद से कभी दूर मत करना"- रति की बातें सुनकर शिव ने उसे अपनी बांहों में भर लिया। और बोला- नही करूंगा रति कभी नही करूंगा। तुम मुझे खोने का डर हमेशा के लिए अपने दिल और दिमाग से निकाल दो, क्योंकि हमारी ज़िंदगी में हालात चाहे जैसे हो जाए। मैं तुम्हारा हाथ कभी नही छोडूंगा, कभी नही।

रति की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे और चेहरे पर पानी की बूंदे पड़ने लगी। पानी की बूंदे पड़ते ही खाट पर लेटी रति ने अपनी आँखें खोल ली। आसमान में फिर से बादल उमड़ आए थे और हल्की-हल्की बारिश की फुवहारे पड़ने लगी थी। वो खाट से उठी और घर के अन्दर चली गई। दूसरी ओर अजय ने चाय शिव की ओर बढ़ाई और बोला- शिव, मुझे आपके ये अंकल कुछ ठीक इंसान नही लगे। ये जानते हुए भी कि आप शादीशुदा है और आपकी पत्नी ज़िंदा है, तो फिर वो आपके सामने ऐसी शर्त कैसे रख सकते है?

"वो मेरे अंकल और मेरे पापा के दोस्त होने के साथ-साथ एक बेटी के पिता भी है अजय। ऐसी बेटी के पिता, जो बचपन से सिर्फ इस सपने के साथ जवान हुई थी कि एक दिन वो शिव की गौरी बनेगी। पर जब उसे पता चला कि मैं उसकी सहेली से प्यार करता हूं, तो वो चुपचाप हमारे रास्ते से हट गई, पर उसके इस फैसले से उस पर क्या बीती होगी। ये मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता क्योंकि मैनें खुद अपनी मोहब्बत को खोने का दर्द मेहसूस किया है"

शिव की बातें सुनकर अजय बोला- पर शिव, अब आप क्या करेंगे? क्या सोचा है आपने?

अजय का ये सवाल सुनकर शिव सोच में पड़ गया। उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो क्या करें? तभी अजय बोला- चलिए, घर चलते है। डिनर करते है और फिर आराम से इस परेशानी से बाहर निकलने का कोई रास्ता तलाशते है। शिव कुछ नही बोल सका।

दूसरी ओर रति, दीनानाथजी और लक्ष्मी के साथ खाना खा रही थी और बाहर बहुत तेज़ बारिश हो रही थी। तेज़ हवाओं की वजह से बिजली भी नही थी, घर में चिमनी जल रही थी। तभी लक्ष्मी रति की थाली में रोटी रखते हुए बोली- बिटिया हम गरीब लोग है इसलिए तुझे इस हालत में मेवे तो नही खिला सकते, पर भगवान की दया से अच्छा खाना और फल ज़रूर खिला सकते है। तू पेट भर के खाना खाया कर और अगर तेरा कुछ खाने का मन किया करे, तो मुझसे तुरंत कह दिया कर।

रति मुस्कुराते हुए बोली- अम्मा, आप दोनों मेरे लिए जितना कर रहे है ना, वो तो कोई अपना भी नही करता इसलिए आप मेरी फिक्र मत कीजिए। मैं यहां बहुत खुश हूं और आप मेरे लिए जो भी बनाती है ना, उसे में खुशी से और पेट भरकर ही खाती हूं और रही बात मेवो की, तो मेरे लिए आपके हाथों से बने इस खाने से ज़्यादा स्वाददार, तो मेवे भी नही हो सकते है। आपको पता है? आपके हाथों से बने दाल-चावल देखकर तो मुझे बार-बार भूख लगती है।

"ऐसी बात है बिटिया, तो तेरी अम्मा कल से तेरे लिए रोज़ दाल-चावल बना दिया करेगी। तू जी भर के खाया कर और हां, कल सुमित्राजी के घर से जो पैसे मिलेंगे। उससे मैं तेरे लिए मेवे भी लेता आऊंगा। तेरी अम्मा तुझे दूध में डालकर दिया करेगी। फिर तू देखना, एक महीने में तेरी हालत कैसे बनती है"- दीनानाथजी के इतना कहते ही रति के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ गईं।

दीनानाथजी ने खाना खाने के बाद, थाली के आगे हाथ जोड़े और उठकर वहां से चले गए। उनके जाते ही लक्ष्मी रति से बोली- बिटिया तू खाना खा, मैं अभी आती हूं। तेरे बाबा के कमरे की छत टपक रही है, ज़रा उनकी मदद कर दूं। रति ने आहिस्ता से सिर हिला दिया, तो लक्ष्मी ने दीनानाथजी और अपनी झूठी थाली उठाई, और वहां से चली गई। उनके जाते ही रति ने अपनी थाली की ओर देखा। जिसमेें अभी भी दाल-चावल... घी लगी रोटी और लौकी की सब्जी रखी हुई थी।

वो मुस्कुराते हुए बोली- जितने प्यार से आप मुझे खिलाती है ना अम्मा, उसके आगे तो छप्पन भोग भी फीके है मेरे लिए....और आप फिक्र मत कीजिए। जिस दिन शिव लौटेंगे ना, उस दिन के बाद ये छत कभी नही टपकेगी। इतना कहकर वो मुस्कुराते हुए खाना खाने लगी। अपना खाना खत्म करके वो सारे झूठे बर्तन समेटकर रसोईघर साफ करने लगी।

बाहर के कमरे में दीनानाथजी टपकती हुई छत के नीचे। एक लकड़ी का पटिया लगा रहे थे और लक्ष्मी वहीं चिमनी पकड़े खड़ी थी।

"सुनिए जी, एक बार कबाड़ वाले के पास चद्दर देख आइए ना। कभी-कभी वहां भी अच्छी चद्दर मिल जाती है। ये चद्दर तो जगह-जगह से टूट गई है। बारिश अभी-अभी लगी है, अभी तो पूरे दो महीने बारिश और होगी। कब तक परेशान होते रहेंगे हम"- लक्ष्मी दीनानाथजी से बोली। रसोईघर से झूठे बर्तन लेकर बाहर आ रही रति के कदम, ये सब सुनकर रुक गए।

दीनानाथजी पटिया बल्ली के अंदर लगाते हुए बोले- देख आऊंगा, पर पुरानी चद्दर ज़्यादा दिन कहां चल सकेगी। कुछ दिनों बाद फिर बदलनी पड़ जाएगी। इस महीने और रुक जा, अगले महीने ले आऊंगा। इस महीने बिटिया के लिए कुछ मेवे ले आता हूं, फिर अगले महीने ये काम भी करवाता हूं। रति ने सारे झूठे बर्तन बाहर आंगन में रख दिये।

दीनानाथजी कुर्सी से उतरकर बोले- अब यहां से पानी थोड़ा कम आएगा। आज की रात तो निकल जायेगी, कल सुबह ऊपर से कुछ इंतज़ाम कर दूंगा। तभी रति ने अंदर आकर पूछा- बाबा, अगर हम पूरे घर में नई चद्दर लगाए, तो कितना खर्चा आएगा। दीनानाथजी वही एक खाट पर बैठकर बोले- यही कोई चार-पांच सौ रुपए का खर्च आयेगा बिटिया,

"इतने रुपयों में काम हो जाएगा बाबा?"- रति ने पूछा। दीनानाथजी मुस्कुराते हुए बोले- हां बिटिया हो जाएगा। मैं अगले महीने ये काम करवा दूंगा, तू फिक्र मत कर,
उनके इतना कहते ही रति तेज़ी से अंदर के कमरे में चली गई और फिर वापस दीनानाथजी के पास आई।

"ये लीजिए बाबा, कल सुबह ही पूरे घर की चद्दर बदलवा लीजिए"- रति पांच सौ रुपए उन्हें देते हुए बोली। चिमनी में तेल डाल रही लक्ष्मी ने तुरंत उसकी ओर देखा, तो दीनानाथजी भी उसकी ओर देखने लगे। उनके परेशान चेहरे देखकर रति ने पूछा- क्या हुआ बाबा? क्या सोच रहे है? लीजिए ना....

"बिटिया ये इतने रुपए तेरे पास"- लक्ष्मी ने उसके पास आकर पूछा, तो रति ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- वो आज मुझे मेरी तनख्वाह मिली है अम्मा... मैंने सोचा था कि सुबह जब आप पूजा करेगी तब आपको दूंगी, पर फिर सोचा अभी दे देती हूं। बाबा सुबह ही नई चद्दर ले आयेंगे और फिर ये सब ठीक करने के लिए मिस्त्री की भी तो ज़रूरत पड़ेगी ना,

दीनानाथजी के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई। उन्होंने रति के रूपए वाली मुठ्ठी बंध की और बोले- बिटिया ये तेरे रुपए है, तू इन्हें संभालकर रख... आगे चलकर ये तेरे और तेरे होने वाले बच्चे के काम आएगे और तू फिक्र मत कर, मैं जल्द ही घर की मरम्मत का काम करवा दूंगा।

रति उठकर खड़ी हुई और लक्ष्मी की हथेली पकड़कर, उसमें रुपए रखते हुए बोली- मैं इस घर में मेहमान बनकर नही बाबा, बल्कि आपकी बिटिया बनकर आई हूं और उस हिसाब से ये मेरा भी घर है। और अगर ये मेरा घर है, तो इस घर का ख्याल रखना मेरी भी उतनी ही ज़िम्मेदारी है, जितनी की आप दोनों की है इसलिए मुझे पराया मत कीजिए, इसे रखिए और कल सुबह घर का काम करवा लीजिए। ताकि कल से हम सब सुकून से सो सके।

लक्ष्मी ने उसके गाल को छुआ और बोली- बिटिया हैतू, इसलिए तो ये हम नहीं ले सकते। बेटियों को बस दिया जाता है, उनसे लिया नही जाता। ये तू अपने पास संभालकर रख, पता नही जमाई बाबू को वापस लौटने में कितना वक्त लग जाए। ये तेरे काम आएंगे।

"नही अम्मा, ये मैं नही आप रखेगी और बाबा, कल सुबह इन रुपयों से घर की चद्दर बदलेंगे। बेटा हो या बेटी अम्मा, आजकल सब बराबर होते है। अपने माता-पिता की ज़रूरत का ख्याल रखना। जितना एक लड़के का काम होता है, उतना ही लड़की का भी होता है इसलिए इसे रखिए। जब तक मैं आप लोगों के साथ हूं, तब तक आप लोगों को अपनी इस बेटी की हर बात माननी होगी और अगर आपने मेरी बात मानकर ये रूपये नही लिए, तो कल सुबह जब आपकी आंख खुलेगी, तो आपको मैं नज़र नही आऊंगी। मैं रात में ही ये घर हमेशा के लिए छोड़कर चली जाऊंगी।

"नही बिटिया, ऐसा अनर्थ बिलकुल मत करना"- दीनानाथजी ने तुरंत उसके पास आकर कहा, तो रति भी बोली- तो फिर इन्हें लेने से इंकार मत कीजिए।

दीनानाथजी ने मुस्कुराते हुऐ, बहुत प्यार से उसके सिर पर अपना हाथ रखा, तो रति मुस्कुराते हुए लक्ष्मी से बोली- अम्मा मैं जल्दी से बर्तन साफ़ कर लेती हूं, फिर हम मन्दिर में रामायण का पाठ सुनने चलेंगे।

लक्ष्मी ने मुस्कुराते हुए सिर हिला दिया, तो रति बाहर आंगन में बैठकर बर्तन साफ़ करने लगी। उसे देखकर दीनानाथजी बोले- कितने अच्छे संस्कार दिए है इस बच्ची के माता-पिता ने इसे और कितने भाग्यशाली हैवो लोग जिनके घर की ये बहू है। हे भोलेनाथ, अगर मैनें सच्चे मन से आपकी आराधना की हो, तो इस बच्ची को इसकी कोई हुई खुशियां लौटा दीजिए। इसका सुहाग जहां भी हो, उसकी रक्षा कीजिए और जल्द इसे उससे मिलवा दीजिए।

दूसरी ओर अजय ने अपनी गाड़ी अपने घर के लॉन में रोकी और शिव से बोला- आइए शिव,

शिव ने जैसे कुछ सुना ही नहीं, वो बस किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था। अजय ने उसके कन्धे पर हाथ रखा और बोला- शिव घर आ गया। शिव ने चौंककर उसकी ओर देखा, तो अजय मुस्कुराते हुए बोला- घर आ गया शिव। आइए,

शिव और अजय दोनों गाड़ी से बाहर आए। तभी एक नौकर दौड़ता हुआ वहां आ गया और उसने अजय के हाथ से उसका ब्रीफकेस ले लिया।

"गाड़ी से शिव का सामान लेकर आओ।आइए शिव"- इतना कहकर अजय ने शिव को आगे चलने का इशारा किया। शिव जैसे ही घर के दरवाज़े पर पहुंचा। लिविंग रूम में अजय का इंतज़ार कर रही, उसकी मां ने तुरंत उसकी ओर देखा। शिव को देखते ही उन्हें याद आया कि कल वो शिव से मन्दिर में मिली थी।

शिव भी उन्हें देखकर मुस्कुरा दिया। अजय उसके साथ अंदर आया और अपनी मां से बोला- मां ये मेरे वही स्पेशल मेहमान है, जिनके बारे में मैंने आपको बताया था। शिव कपूर साहब,

सुमित्रा उसे एकटक देखने लगी। शिव ने आगे बढ़कर उनके पैर छुए, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए उसके सिर पर हाथ रखकर कहा- खुश रहो बेटा.... तुम वही होना, जिसने मेरे बेटे की जान बचाई थी? शिव ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- मैं किसी की जान बचाने वाला कौन होता हूं आंटी, मैं तो बस जरिया था..... असल में तो सबकी ज़िंदगी की डोर महाकाल के हाथ में होती है।

"सही कहा बेटा तुमने... हम सबकी ज़िंदगी की डोर उनके हाथों में ही होती है। वहीं तय करते है कि कौन कब इस दुनिया में आएगा और कब इस दुनिया से जाएगा। बहुत अच्छा लगा तुमसे मिलकर, तुम्हारा कमरा मैनें तैयार करवा दिया है। जल्दी से हाथ-मुंह धोकर आ जाओ, तब तक मैं खाना लगवाती हूं"- इतना कहकर सुमित्रा वहां से चली गई। शिव नज़रे घुमाकर अजय का घर देखने लगा। अजय का घर उसके घर की तरह आलीशान तो नही था, पर फिर भी बहुत खूबसूरत था।

"आइए शिव, मैं आपको आपका कमरा दिखा देता हूं"- तभी पास खड़ा अजय बोला। शिव ने आहिस्ता से अपनी गर्दन हिलाई और उसके साथ चला गया। अजय ने उसे उसका कमरा दिखाया और बोला- ये है आपका कमरा शिव....आप जल्दी से फ्रेश होकर आ जाइए, फिर साथ में खाना खाते है और अगर आपको किसी चीज़ की ज़रूरत हो, तो नौकर को बुला लीजिएगा। मैं भी चेंज करके आता हूं।

शिव ने सिर हिलाया, तो अजय वहां से चला गया। उसके जाते ही शिव ने नज़रें घुमाकर पूरे कमरे को देखा, तो उसे टेबल पर रखा एक फोन नज़र आया। उसने दो पल सोचा और तेज़ी से फोन के पास आया। उसने फोन का रिसीवर उठाया और गौरी के घर का नंबर डायल करने लगा। रिंग तो जा रही थी, पर कोई फोन नही उठा रहा था।

शिव बेचैनी से मन ही मन बोला- फोन उठाओ गौरी, प्लीज़ फोन उठाओ। पर किसी ने फोन नही उठाया। उसने दोबारा ट्राय किया पर इस बार फोन लगा ही नहीं। शिव बार-बार गौरी के घर का नंबर ट्राय करने लगा, पर फिर उसे बादलों के गरजने की तेज़ आवाज़ आई और उसने खिड़की की ओर देखा। बाहर बहुत तेज़ बारिश हो रही थी। उसने रिसीवर नीचे रखा और बोला- शायद इस वक्त इंदौर में भी बारिश हो रही है, इसलिए फोन नही लग रहा।

दूसरी ओर तेज़ बारिश में अरूण ने अपनी गाड़ी एक फैक्टरी के अंदर रोकी और गुस्से में गाड़ी से बाहर आए। उनके बाहर आते ही वहां मौजूद सारे आदमी तुरंत उनके पास आए। उनमें से एक आगे आकर बोला- क्या हुआ सर?? आपने इतनी तेज़ बारिश में हम सबको यहां क्यों बुलाया है?

उसके इतना पूछते ही अरूण ने गुस्से में उसके गाल पर बहुत ज़ोर से थप्पड़ मार दिया और फिर उसकी कॉलर पकड़कर बोले- शिव कपूर, अभी भी ज़िंदा है।

उनके इतना कहते ही उसके सारे आदमी हक्के बक्के रह गए। तभी अरूण ने उसे गुस्से में धकेला और बोले- और वो लड़की रति.... वो भी मरी नही है... ज़िंदा है वो भी। ये सुनकर उनके सारे आदमी एक-दूसरे का मुंह तंकने लगे।

लेखिका
कविता वर्मा